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बसंत पंचमी की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं ...🙏 ❤ 🙏💞💞👏🙏👏💞💞ऊँ श्री सरस्वत्यै नमः ....नमस्कार....सुप्रभात. ...शुभ बृहस्पतिवार.....आपका दिन मंगलमय हो...सरस्वति नमस्तुभ्यं , सर्वदेवि नमो नम: ।शान्तरूपे शशिधरे , सर्वयोगे नमो नमः ।।वेदायै वेदरूपायै , वेदान्तायै नमो नमः ।वाग्यै वरदहस्तायै , वरदायै नमो नमः ।।या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।सा माम् पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥माघ शुक्ल पञ्चमी , बसन्त पञ्चमी , श्री पञ्चमी और सरस्वती पूजन के पावन पर्व पर बहुत बहुत बधाई और शुभ कामनाएं. ..हंसवाहिनी , ज्ञानदायिनी , विद्याप्रदायिनी , वीणावादिनी , वाक् अधिष्ठात्री , श्वेतपद्मासना देवी भगवती माँ सरस्वती आप पर अपनी कृपा बनाये रखें.....💞💞🙏👏🙏💞💞

Best wishes to all of you on Basant Panchami ... 🙏 ❤ 🙏 4 Oh Mr. Saraswatai Namah .... Hi.... Morning. ... Good thursday ..... Have a good day... Saraswati Namastubhya, Sarvad

, नव उमंग व नई ऊर्जा के प्रतीक बसंत पंचमी के पावन पर्व की सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। विद्या की देवी मां सरस्वती सबके जीवन में ज्ञान, समृद्धि व उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें, ऐसी कामना करती हूँ।

Hearty greetings to all the countrymen of the holy festival of Basant Panchami, a symbol of new zeal and new energy. Mother Goddess Saraswati wishes to provide knowledge, prosperity and good health in everyone's life.

, वास्तुशास्त्र के अनुसार घर में दोष इंसान की जिंदगी बर्बाद कर देता है। ऐसे बहुत से व्यक्ति है, जो समय के अभाव में या किसी अन्य कारण से अपने घर की साफ़-सफाई पर ध्यान नहीं दे पाते हैं, जिससे उनका घर अधिकतर गंदगी से भरा होता है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब घर को गन्दा रखना अपने घर में दरिद्रता को आमंत्रण देना होता है। गंदगी के कारण व्यक्ति के जीवन में कई प्रकार की समस्याएँ उत्पन्न हो जाती हैं।# इसी तरह व्यक्ति के घर का बाथरूम भी उसके जीवन को प्रभावित करता है। यदि व्यक्ति के घर का बाथरुम गंदा होता है, तो इससे राहु-केतु का अशुभ प्रभाव आपके जीवन में बढ़ जाता है।# प्रतिदिन स्नान करने के पश्चात अपने घर के बाथरूम को साफ़ करना चाहिए। आवश्यकता से अधिक पानी का उपयोग नहीं करना चाहिए क्योंकि पानी का दुरूपयोग व्यक्ति के जीवन में दुर्भाग्य व दरिद्रता का कारण बनता है तथा इससे चन्द्र गृह भी कमजोर होता है।# यदि व्यक्ति के बाथरूम में पानी यहाँ-वहां फैला रहता है, तो यह किसी अशुभ का संकेत माना जाता है। इसलिए स्नान करने के पश्चात अपने बाथरूम को वाइपर से साफ़ करना चाहिए। ऐसा माना जाता है, की स्नान करने के बाद बाथरूम को वाइपर से साफ़ करने पर व्यक्ति के शारीरिक तेज में वृद्धि होती है।

According to Vastu Shastra, defects in the house ruin a person's life. There are many people who, due to lack of time or for any other reason, are unable to pay attention to the cleanliness of their house, due to which their house is mostly

#🌷शुभ गुरुवार #🌷शुभ शुक्रवार #🌞 Good Morning🌞 #🥳M,

#🌷शुभ गुरुवार #🌷शुभ शुक्रवार #🌞 Good Morning🌞 #🥳M

🌹🙏🚩ओम नमः शिवाय 🚩 🙏🌹 🌹🙏शुभ प्रभात जी 🙏🌹👉(((( भगवान के डाकू )))).✍️श्री द्वारकापुरी के समीप ही डाकोर नाम का एक गाँव है, वहा श्री रामदास जी नाम के भक्त रहते थे।.✍️वे प्रति एकादशी को द्वारका जाकर श्री रणछोड़ जी के मंदिर में जागरण कीर्तन करते थे।.✍️जब इनका शरीर वृद्ध हो गया, तब भगवन् ने आज्ञा दी, की अब एकादशी की रात का जागरण घर पर ही कर लिया करो। पर इन्होने ठाकुरजी की यह बात नहीं मानी। .✍️भक्त का दृढ़ नियम देखकर भाव में भरकर भगवन् बोले, अब तुम्हारे यहाँ आने का कष्ट मुझसे सहन नहीं होता है, इसलिए अब मै ही तुम्हारे घर चलूँगा। .✍️अगली एकादशी को गाड़ी ले आना और उसे मंदिर के पीछे खिड़की की ओर खड़ा कर देना। .✍️मै खिड़की खोल दूंगा, तुम मुझे गोद में भरकर उठा ले जाना और गाड़ी में पधराकर शीघ्र ही चल देना।.✍️भक्त रामदास जी ने वैसा ही किया... जागरण करने के लिए गाड़ी पर चढ़कर आये। सभी लोगो ने समझा की भक्त जी अब वृद्ध हो गए है। अतः गाड़ी पर चढ़कर आये है।.✍️एकादशी की रात को जागरण हुआ, द्वादशी की आधी रात को वे खिड़की के मार्ग से मंदिर मे गए। .✍️श्री ठाकुरजी के श्रीविग्रह पर से सभी आभूषण उतार कर वही मंदिर मे रख दिए। इनको तो भगवान् से सच्चा प्रेम था, आभूषणों से क्या प्रयोजन?.✍️श्री रणछोड़ जी को गाड़ी में पधराकर चल दिए।.✍️प्रातः काल जब पुजारियों ने देखा तो मंदिर सूना उजड़ा पड़ा है। लोग समझ गए की श्री रामदास जी गाड़ी लाये थे, वही ले गए। .✍️पुजारियों ने पीछा किया। उन्हें आते देखकर श्री रामदास जी ने कहा की अब कौन उपाय करना चाहिए? .✍️भगवान ने कहा, मुझे बावली में पधरा दो।भक्त ने ऐसा ही किया और सुखपूर्वक गाड़ी हांक दी। .✍️पुजारियों ने रामदास जी को पकड़ा और खूब मार लगायी। इनके शरीर मे बहुत-से-घाव हो गए।.✍️भक्त जी को मार-पीटकर पुजारी लोगों ने गाड़ी मे तथा गाड़ी के चारो ओर भगवान को ढूँढने लगे, पर वे कही नहीं मिले।.✍️तब सब पछता कर बोले की इस भक्त को हमने बेकार ही मारा। .✍️इसी बीच उनमे से एक बोल उठा, मैंने इस रामदास को इस ओर से आते देखा, इस ओर यह गया था। चलो वहां देखे।.✍️सभी लोगो ने जाकर बावली में देखा तो भगवान् मिल गए। बावली का जल ख़ून से लाल हो गया था।.✍️भगवन् ने कहा, तुम लोगो ने जो मेरे भक्त को मारा है, उस चोट को मैंने अपने शरीर पर लिया है, इसी से मेरे शरीर से ख़ून बह रहा है, अब मै तुम लोगों के साथ कदापि नहीं जाऊंगा।.✍️यह कहकर श्री ठाकुरजी ने उन्हें दूसरी मूर्ति एक स्थान मे थी, सो बता दी और कहा की उसे ले जाकर मंदिर मे पधराओ, अपनी जीविका के लिए इस मूर्ति के बराबर सोना ले लो और वापस जाओ। .✍️पुजारी लोभ वश राज़ी हो गए और बोले, तौल दीजिये। रामदास जी के घर पर आकर भगवान् ने कहा, रामदास, तराज़ू बांधकर तौल दो।.✍️रामदास जी की पत्नी के कान में एक सोने की बाली थी, उसी मे उन्होंने भगवान् को तौल दिया और पुजारियों को दे दिया। .पुजारी अत्यंत लज्जित होकर अपने घर को चल दिए।.श्री रणछोड़ जी रामदास जी के घर में ही विराजे। .✍️इस प्रसंग मे भक्ति का प्रकट प्रताप कहा गया है। भक्त के शरीर पर पड़ी चोट प्रभु ने अपने उपर ले लिया, तब उनका ‘आयुध-क्षत’ नाम हुआ। .✍️भगवान् ने भक्त् से अपनी एकरूपता दिखाने के लिए ही चोट सही, अन्यथा उन्हें भला कौन मार सकता है?.✍️भगवान् को ही डाकू की तरह लूट लाने से उस गाँव का नाम डाकौर हुआ, भक्त रामदास के वंशज स्वयं को भगवान् के डाकू कहलाने में अपना गौरव मानते है। .👉आज भी श्री रणछोड़ भगवान् को पट्टी बाँधी जाती है। धन्य है भक्त श्री रामदासजी। by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब((((((( जय श्री शिव शंकर जी )))))))

🌹🙏🚩जय श्री राम जी जय श्री बजरंगबली जी🚩 🙏🌹 🌹🙏शुभ प्रभात जी 🙏🌹👉(((( हरि मैं जैसो तैसो तेरौ )))).by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब✍️दक्षिण भारत में गोदावरी के पवित्र किनारे पर कनकावती नगरी थी। वहाँ रामदास नाम के एक भगवद्भक्त रहते थे। वे जाति के चमार थे। .घर में मूली नाम की पतिव्रता पत्‍नी थी और एक सुशील बालक था। .✍️स्‍त्री-पुरुष मिलकर जूते बनाते थे। रामदास उन्‍हें बाजार में बेच आते। इस प्रकार अपनी मजदूरी के पवित्र धन से वे जीवन-निर्वाह करते थे। .✍️तीन प्राणियों का पेट भरने पर जो पैसे बचते, वे अतिथि-अभ्‍यागतों की सेवा में लग जाते या दीन-दु:खियों को बाँट दिये जाते। .✍️संग्रह करना इन भक्त दम्‍पत्ति ने सीखा ही नहीं था। कीर्तन-भजन रामदास घर में कीर्तन किया करते थे। .✍️जूता बनाते-बनाते भी वे भगवन्नाम लिया करते थे। कहीं कथा-कीर्तन का पास-पड़ौस में समाचार मिलता तो वहाँ गये बिना नहीं रहते थे। .✍️उन्‍होंने कीर्तन में सुना था- "हरि मैं जैसो तैसो तेरौ।" यह ध्‍वनि उनके हृदय में बस गयी थी। इसे बार-बार गाते हुए वे प्रेम-विह्वल हो जाया करते थे। .अपने को भगवान का दास समझकर वे सदा आनन्‍दमग्‍न रहते थे।.एक बार एक चोर को चोरी के माल के साथ शालग्राम जी की एक सुन्‍दर मूर्ति मिली। .✍️उसे उस मूर्ति से कोई काम तो था नहीं। उसने सोचा- "मेरे जूते टूट गये हैं, इस पत्‍थर के बदले एक जोड़ी जूते मिल जायँ तो ठीक रहे।" .✍️वह रामदास के घर आया। पत्‍थर रामदास को देकर कहने लगा- "देखो, तुम्‍हारे औजार घिसने-योग्‍य कितना सुन्‍दर पत्‍थर लाया हूँ। मुझे इसके बदले एक जोड़ी जूते दे दो।" .✍️रामदास उस समय अपनी धुन में थे। उन्‍हें ब्रह्मज्ञान पूरा नहीं था। ग्राहक आया देख अभ्‍यासवश एक जोड़ी जूता उठाकर उसके सामने रख दिया। .✍️चोर जूता पहनकर चला गया। मूल्‍य माँगने की याद ही रामदास को नहीं आयी। इस प्रकार शालग्राम जी अपने भक्त के घर पहुँच गये। .रामदास अब उन पर औजार घिसने लगे।.✍️एक दिन उधर से एक ब्राह्मण देवता निकले। उन्‍होंने देखा कि यह चमार दोनों पैरों के बीच शालग्राम जी की सुन्‍दर मूर्ति को दबाकर उस पर औजार घिर रहा है। .✍️ब्राह्मण को दु:ख हुआ यह देखकर। वे आकर कहने लगे- "भाई ! मैं तुमसे एक वस्‍तु माँगने आया हूँ। ब्राह्मण की इच्‍छा पूरी करने से तुम्‍हें पुण्‍य होगा। .तुम्‍हारा यह पत्‍थर मुझे बहुत सुन्‍दर लगता है। तुम इसको मुझे दे दो। इसे न पाने से मुझे बड़ा दु:ख होगा। .चाहो तो इसके बदले दस-पाँच रुपये मैं तुम्‍हें दे सकता हूँ।.✍️रामदास ने कहा- "पण्डित जी ! यह पत्‍थर है तो मेरे बड़े काम का है। ऐसा चिकना पत्‍थर मुझे आज तक नहीं मिला है; पर आप इसको न पाने से दु:खी होंगे, अत: आप ही ले जाइये। .✍️मुझे इसका मूल्‍य नहीं चाहिये। आपकी कृपा से परिश्रम करके मेरा और मेरे स्‍त्री-पुत्र का पेट भरे, इतने पैसे मैं कमा लेता हूँ। प्रभु ने मुझे जो दिया है, मेरे लिये उतना पर्याप्‍त है।" .✍️पण्डित जी मूर्ति पाकर बड़े प्रसन्‍न हुए। घर आकर उन्‍होंने स्‍नान किया। पंचामृत से शालग्राम जी को स्‍नान कराया। .✍️वेदमंत्रों का पाठ करते हुए षोडशोपचार से पूजन किया भगवान का। इसी प्रकार वे नित्‍य पूजा करने लगे। .✍️वे विद्वान थे, विधिपूर्वक पूजा भी करते थे; किंतु उनके हृदय में लोभ, ईर्ष्‍या, अभिमान, भोगवासना आदि दुर्गुण भरे थे। .वे भगवान से नाना प्रकार की याचना किया करते थे। .✍️रामदास अशिक्षित था, पर उसका हृदय पवित्र था। उसमें न भोगवासना थी, न लोभ था। वह रूखी-सूखी खाकर संतुष्‍ट था। .✍️शुद्ध हो या अशुद्ध, पर सात्त्विक श्रद्धा से विश्‍वासपूर्वक वह भगवान का नाम लेता था। भगवान शालग्राम अपनी इच्‍छा से ही उसके घर गये थे। .✍️जब वह भजन गाता हुआ भगवान की मूर्ति पर औजार घिसने के लिये जल छोड़ता, तब प्रभु को लगता कि कोई भक्त पुरुष-सूक्‍त से मुझे स्‍नान करा रहा है। .✍️जब वह दोनों पैरों में दबाकर उस मूर्ति पर रखकर चमड़ा काटता, तब भावमय सर्वेश्‍वर को लगता कि उनके अंगों पर चन्‍दन-कस्‍तूरी का लेप किया जा रहा है। .✍️रामदास नहीं जानता था कि जिसे वह साधारण पत्‍थर मानता है, वे शालग्राम जी हैं, किंतु वह अपने को सब प्रकार से भगवान का दास मानता था। .इसी से उसकी सब क्रियाओं को सर्वात्‍मा भगवान अपनी पूजा मानकर स्‍वीकार करते थे। .✍️ब्राह्मण का स्‍वप्‍न इधर ये पण्डित जी बड़ी विधि से पूजा करते थे, पर वे भगवान के सेवक नहीं थे। .✍️वे धन-सम्‍पत्ति के दास थे। वे धन-सम्‍पत्ति की प्राप्ति के लिये भगवान को साधन बनाना चाहते थे। .भगवान को यह कैसे रुचता। वे तो नि:स्‍वार्थ भक्ति के वश हैं। .✍️भगवान ने ब्राह्मण को स्‍वप्‍न दिया- "पण्डित जी ! तुम्‍हारी यह आडम्‍बरपूर्ण पूजा मुझे तनिक भी नहीं रुचती। मैं तो रामदास चमार के निष्‍कपट प्रेम से ही प्रसन्‍न हूँ। .✍️तुमने मेरी पूजा की है। मेरी पूजा कभी व्‍यर्थ नहीं जाती। अत: तुम्‍हें धन और यश मिलेगा। पर मुझे तुम उस चमार के घर प्रात: काल ही पहुँचा दो।.✍️भगवान की आज्ञा पाकर ब्राह्मण डर गया। दूसरे दिन सबेरे ही स्‍नानादि करके शालग्राम जी को लेकर वह रामदास के घर पहुँचा। .✍️उसने कहा- "रामदास ! तुम धन्‍य हो। तुम्‍हारे माता-पिता धन्‍य हैं। तुम बड़े पुण्‍यात्‍मा हो। भगवान को तुमने वश में कर लिया है। .✍️ये भगवान शालग्राम हैं। अब तुम इनकी पूजा करना। मैं तो पापी हूँ, इसलिये मेरी पूजा भगवान को पसंद नहीं आयी। .भाई ! तुम्‍हारा जीवन पवित्र हो गया। तुम तो भवसागर से पार हो चुके।.✍️नित्य पूजा-पाठ रामदास ने ब्राह्मण के चरणों में प्रणाम किया। उनका हृदय भगवान की कृपा का अनुभव करके आनन्‍द में भर गया। .✍️वे सोचने लगे- "मैं दीन, अज्ञानी, नीच जाति का पापी प्राणी हूँ। न मुझमें शौच है, न सदाचार। .✍️रात-दिन चमड़ा छीलना मेरा काम है। मुझ-जैसे अधम पर भी प्रभु ने इतनी कृपा की। .✍️प्रभो ! तुम सचमुच ही पतितपावन हो।" भगवान को एक छोटे सिंहासन पर विराजमान कर दिया उन्‍होंने। .✍️अब वे नित्‍य पूजा करने लगे। धंधा-रोजगार प्रेम की बाढ़ में बह गया। वे दिनभर, रातभर कीर्तन करते। .✍️कभी हँसते, कभी रोते, कभी गान करते, कभी नाचने लगते, कभी गुमसुम बैठे रहते। .✍️भगवान के दर्शन की इच्‍छा से कातर कण्‍ठ से पुकार करते- "दयाधाम ! जब एक ब्राह्मण के घर को छोड़कर आप इस नीच के यहाँ आये....✍️तब मेरे नेत्रों को अपनी अदभुत रूपमाधुरी दिखाकर कृतार्थ करो, नाथ ! मेरे प्राण तुम्‍हारे बिना तड़प रहे हैं।".✍️रामदास की व्‍यथित पुकार सुनकर भगवान एक ब्राह्मण का रूप धारणकर उनके यहाँ पधारे। .✍️रामदास उनके चरणों पर गिर गये और गिड़-गिड़ाकर प्रार्थना करने लगे कि- "भगवान का दर्शन हो, ऐसा उपाय बताइये।" .✍️भगवान ने कहा- "तुम इस दुराशा को छोड़ दो। बड़े-बड़े योगी, मुनि जन्‍म-जन्‍म तप, ध्‍यान आदि करके भी कदाचित ही भगवान का दर्शन पाते हैं।" .✍️रामदास का विश्‍वास डिगने वाला नहीं था। वे बोले- "प्रभो ! आप ठीक कहते हैं। मैं नीच हूँ, पापी हूँ। मेरे पाप एवं नीचता की ओर देखकर तो भगवान मुझे दर्शन कदापि नहीं दे सकते....✍️परंतु मेरे वे स्‍वामी दीनबन्‍धु हैं, दया के सागर हैं। अवश्‍य वे मुझे दर्शन देंगे। अवश्‍य वे इस अधम को अपनायेंगे।".✍️अब भगवान से नहीं रहा गया। भक्त की आतुरता एवं विश्‍वास देखकर वे अपने चतुर्भुज स्‍वरूप से प्रकट हो गये। .✍️प्रभु ने कहा- "रामदास ! यह ठीक है कि जाति नहीं बदल सकती; किंतु मेरी भक्ति से भक्त का पद अवश्‍य बदल जाता है। .✍️मेरा भक्त ब्राह्मणों का, देवताओं का भी आदरणीय हो जाता है। तुम मेरे दिव्‍य रूप के दर्शन करो।" रामदास भगवान का दर्शन करके कृतार्थ हो गया। ((((((( जय जय श्री राम )))))))

*विनम्रता एक बार नदी को अपने पानी के प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया नदी को लगा कि ... मुझमें इतनी ताकत है कि मैं पहाड़, मकान, पेड़, पशु, मानव आदि सभी को बहाकर ले जा सकती हूँ एक दिन नदी ने बड़े गर्वीले अंदाज में समुद्र से कहा ~ बताओ ! मैं तुम्हारे लिए क्या-क्या लाऊँ ? मकान, पशु, मानव, वृक्ष जो तुम चाहो, उसे ... मैं जड़ से उखाड़कर ला सकती हूँ. समुद्र समझ गया यह कि ... नदी को अहंकार हो गया है उसने नदी से कहा ~ यदि तुम मेरे लिए* कुछ लाना ही चाहती हो, तो ... थोड़ी सी घास उखाड़कर ले आओ. नदी ने कहा ~ बस ... इतनी सी बात. अभी लेकर आती हूँ. नदी ने अपने जल का पूरा जोर लगाया पर ... घास नहीं उखड़ी नदी ने कई बार जोर लगाया लेकिन ... असफलता ही हाथ लगी आखिर नदी हारकर समुद्र के पास पहुँची और बोली मैं वृक्ष, मकान, पहाड़ आदि तो उखाड़कर ला सकती हूँ. मगर जब भी घास को उखाड़ने के लिए जोर लगाती हूँ, तो वह नीचे की ओर झुक जाती है और मैं खाली हाथ ऊपर से गुजर जाती हूँ.. समुद्र ने नदी की पूरी बात ध्यान से सुनी और मुस्कुराते हुए बोला ~ जो पहाड़ और वृक्ष जैसे कठोर होते हैं, वे आसानी से उखड़ जाते हैं. किन्तु ... घास जैसी विनम्रता जिसने सीख ली हो, उसे प्रचंड आँधी-तूफान या प्रचंड वेग भी नहीं उखाड़ सकता जीवन में खुशी का अर्थ लड़ाइयाँ लड़ना नहीं ... बल्कि ... उन से बचना है कुशलता पूर्वक पीछे हटना भी अपने आप में एक जीत है ... क्योकि ... अभिमान* ~ *फरिश्तों को भी शैतान बना देता है, ... और ... नम्रता साधारण व्यक्ति को भी फ़रिश्ता बना देती है.. , *By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*🌷🙏🙏🌷 🙏💐 विनम्रता से जिन्दगी जीना चाहिए 🙏🙏** Modesty Once the river is filled with water Boast over The river felt that ... I have so much power Mountains, houses, trees, animals, humans etc. Take it all away One day the river in a very proud style Tell from the sea ~ Tell! What should i get for you House, animal, human, tree Do whatever you want ... I can uproot it from the root. The sea understood that… River has become arrogant He said to the river ~ If you for me * If you want to bring something, then… Uproot some grass and bring it. The river said ~ Just ... such a thing. I will bring it now The river exerted its full force of water But ... the grass is not uprooted The river thrust many times but ... Failure is at stake Finally after losing the river reached the sea and said I can uproot trees, houses, mountains etc. But whenever I push the grass to uproot it, it bends down and I go up empty handed .. The sea listened intently to the river And he said with a smile ~ Which are like mountains and trees Are rigid, They crumble easily. But… Humility like grass Who has learned, He had a severe thunderstorm or Can not uproot even the raging velocity Meaning of happiness in life Battles don't fight ... Rather ... Avoid them Retreat efficiently Is a win in itself ... Because ... Pride * ~ * even to angels The devil makes ... And ... Humility even to an ordinary person Angel makes .., * By social worker Vanita Kasani Punjab * 🌷🙏🙏🌷 चाहिए live life humbly 🙏🙏 *

*विनम्रता  एक बार नदी को अपने पानी के        प्रचंड प्रवाह पर घमंड हो गया               नदी को लगा कि ...          मुझमें इतनी ताकत है कि मैं   पहाड़, मकान, पेड़, पशु, मानव आदि      सभी को बहाकर ले जा सकती हूँ   एक दिन नदी ने बड़े गर्वीले अंदाज में           समुद्र से कहा ~ बताओ !        मैं तुम्हारे लिए क्या-क्या लाऊँ ?         मकान, पशु, मानव, वृक्ष            जो तुम चाहो, उसे ...    मैं जड़ से उखाड़कर ला सकती हूँ.             समुद्र समझ गया यह कि ...         नदी को अहंकार हो गया है             उसने नदी से कहा ~             यदि तुम मेरे लिए*         कुछ लाना ही चाहती हो, तो ...    थोड़ी सी घास उखाड़कर ले आओ.   नदी ने कहा ...

*🙏🌞!!ऊँ सूर्य देवाय नमः!! 🙏🍀!! षटतिला एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएं...!!🍀🙏🙏!!जय श्री राम राधे राधे!! 🙏🍒🍒🍒🍊🍊🍒🍒🍒*रूबरू होने की छोड़िये लोग**गुफ्तगू से भी कतराने लगे हैं।**गुरूर ओढ़े हैं रिश्ते...**अपनी हैसियत पर इतराने लगे हैं।**चक्रव्यूह रचने वाले सारे अपने ही होते हैं।**कल भी यही सच था।**और आज भी यही सच है।**संभाल के रखना अपनी पीठ को**शाबाशी और खंजर दोनो यहीं पर मिलते है।*। *वनिता पंजाब*🌷🙏🙏🌷 *🌸🌸•|| सुप्रभात ||•🌸.* 🙏🌞 !! Oon Surya Devaya Namah !! 🙏🍀 !! Best wishes to Shattila Ekadashi… !! 🍀🙏🙏 !! Jai Shri Ram Radhe Radhe !! 4 * People to be aware of * * Clippings have also started from Guptagu. * * Relations are worn out… * * Have begun to show their status. * * The people who created the cycle are all their own. * * The same was true yesterday. * * And the same is true today. * * Keep your back on the handle * * Both okey and dagger are found here. * Vanita Punjab * 🌷🙏🙏🌷 * 🌸🌸 • || Good morning || • 🌸.,

*🙏🌞!!ऊँ सूर्य देवाय नमः!! 🙏🍀!! षटतिला एकादशी की हार्दिक शुभकामनाएं...!!🍀🙏🙏!!जय श्री राम राधे राधे!! 🙏🍒🍒🍒🍊🍊🍒🍒🍒 *रूबरू होने की छोड़िये लोग* *गुफ्तगू से भी कतराने लगे हैं।* *गुरूर ओढ़े हैं रिश्ते...* *अपनी हैसियत पर इतराने लगे हैं।* *चक्रव्यूह रचने वाले सारे अपने ही होते हैं।* *कल भी यही सच था।* *और आज भी यही सच है।* *संभाल के रखना अपनी पीठ को* *शाबाशी और खंजर दोनो यहीं पर मिलते है।*। *वनिता पंजाब*🌷🙏🙏🌷    *🌸🌸•|| सुप्रभात ||•🌸.* 🙏🌞 !! Oon Surya Devaya Namah !! 🙏🍀 !! Best wishes to Shattila Ekadashi… !! 🍀🙏🙏 !! Jai Shri Ram Radhe Radhe !! 4  * People to be aware of *  * Clippings have also started from Guptagu. *  * Relations are worn out… *  * Have begun to show their status. *  * The people who created the cycle are all their own. *  * The same was true yesterday. *  * And the same is true today. *  * Keep your back on the handle *  * Both okey and dagger are found here. * Vanita Punjab...

ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्र में गौ (गाय) की महिमा (पुनः प्रेषित)〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब1👉 ज्योतिषमें गोधूलिका समय विवाहके लियेसर्वोत्तम माना गया है। 2👉 यदि यात्रा के प्रारम्भ में गाय सामने पड़ जाय अथवा अपने बछड़े को दूध पिलाती हुई सामने पड़ जाय तो यात्रा सफल होती है।3👉 जिस घर में गाय होती है, उसमें वास्तुदोष स्वतः ही समाप्त हो जाता है।4 👉 जन्मपत्री में यदि शुक्र अपनी नीचराशि कन्या पर हो, शुक्र की दशा चल रही हो या शुक्र अशुभ भाव (6,8,12)-में स्थित हो तो प्रात:काल के भोजन में से एकरोटी सफेद रंग की गाय को खिलाने से शुक्र का नीचत्व एवं शुक्र सम्बन्धी कुदोष स्वत: ही समाप्त हो जाता है।5👉 पितृदोष से मुक्ति👉 सूर्य, चन्द्र, मंगल या शुक्र की युति राहु से हो तो पितृदोष होता है। यह भी मान्यता है कि सूर्य का सम्बन्ध पिता से एवं मंगल का सम्बन्ध रक्त से होने के कारण सूर्य यदि शनि, राहु या केतु के साथ स्थित हो या दृष्टि सम्बन्ध हो तथा मंगल की युति राहु या केतु से हो तो पितृदोष होता है। इस दोष से जीवन संघर्षमय बन जाता है। यदि पितृदोष हो तो गाय को प्रतिदिन याअमावास्या को रोटी, गुड़, चारा आदि खिलाने से पितृदोष समाप्त हो जाता है।6👉 किसी की जन्मपत्री में सूर्य नीचराशि तुला पर हो या अशुभ स्थिति में हो अथवा केतु के द्वारा परेशानियाँ आ रही हों तो गाय में सूर्य-केतु नाडी में होने के फलस्वरूपगाय की पूजा करनी चाहिये, दोष समाप्त होंगे।7👉 यदि रास्ते में जाते समय गोमाता आती हुई दिखायी दें तो उन्हें अपने दाहिने से जाने देना चाहिये, यात्रा सफल होगी। 8👉 यदि बुरे स्वप्न दिखायी दें तो मनुष्य गोमाताका नाम ले, बुरे स्वप्न दिखने बन्द हो जायेंगे।9👉 गाय के घी का एक नाम आयु भी है-'आयई घृतम्'। अत: गाय के दूध-घी से व्यक्ति दीर्घायु होता है। हस्तरेखा में आयु रेखा टूटी हुई हो तो गायका घी काम मेंलें तथा गाय की पूजा करें।11👉 देशी गाय की पीठ पर जो ककुद् (कूबड़) होता है, वह 'बृहस्पति' है। अत: जन्मपत्रिका में यदि बृहस्पति अपनी नीच राशि मकर में हों या अशुभ स्थिति हों तो देशी गाय के इस बृहस्पति भाग एवं शिवलिंग रूपी ककुद् के दर्शन करने चाहिये। गुड़ तथा चने की दाल रखकर गाय को रोटी भी दें।👉 गोमाता के नेत्रों में प्रकाश स्वरूप भगवान् सुर्य तथा ज्योत्स्ना के अधिष्ठाता चन्द्रदेव का निवास होता है। जन्म पत्री में सूर्य-चन्द्र कमजोर हो तो गोनेत्र के दर्शन करें, लाभ होगा। वास्तुदोषों का निवारण भी करती है गाय〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️जिस स्थान पर भवन, घर का निर्माण करना हो, यदि वहाँ पर बछड़े वाली गाय को लाकर बाँधा जाय तो वहाँ सम्भावित वास्तु दोषों का स्वत: निवारण हो जाताहै, कार्य निर्विघ्न पूरा होता है और समापन तक आर्थिक बाधाएँ नहीं आतीं।गाय के प्रति भारतीय आस्था को अभिव्यक्त करने की आवश्यकता नहीं है। क्योंकि गाय सहज रूप से भारतीय जनमानस में रची-बसी है। गोसेवा को एक कर्तव्य के रूप में माना गया है। गाय सृष्टि मातृका कही जाती है। गाय के रूप में पृथ्वी की करुण पुकार और विष्णु से अवतार के लिये निवेदन के प्रसंग पुराणों में बहुत प्रसिद्ध हैं। 'समरांगणसूत्रधार'-जैसा प्रसिद्ध बृहद्वास्तुग्रन्थ गोरूप में पृथ्वी-ब्रह्मादि के समागम-संवाद से ही आरम्भ होता है।वास्तुग्रन्थ 'मयमतम्' में कहा गया है कि भवन निर्माणका शुभारम्भ करनेसे पूर्व उस भूमि पर ऐसी गाय को लाकर बाँधना चाहिये, जो सवत्सा (बछड़ेवाली) हो। नवजात बछडे को जब गाय दुलारकर चाटती है तो उसका फेन भूमिपर गिरकर उसे पवित्र बनाता है और वो समस्त दोषों का निवारण हो जाता है। यही वास्तुप्रदीप, अपराजितपृच्छा आदि ग्रन्थों में कामहाभारत के अनुशासन पर्व में कहा गया है कि गाय जहां बैठकर निर्भयता पूर्वक सांस लेती है तो उस स्थान के सारे पापों को खींच लेती है।निविष्टं गोकुलं यत्र श्वासं मुञ्चति निर्भयम।विराजयति तं देशं पापं चास्यापकर्षति ।।यह भी कहा गया है कि जिस घर में गाय की सेवा होती है, वहाँ पुत्र-पौत्र, धन, विद्या आदि सुख जो भी चाहिये, मिल जाता है। यही मान्यता अत्रिसंहिता में भी आयी है। महर्षि अत्रि ने तो यह भी कहा है कि जिसघर में सवत्सा धेनु नहीं हो, उसका मंगल-मांगल्य कैसेहोगा?गाय का घर में पालन करना बहुत लाभकारी है। इससे घरों में सर्वबाधाओं और विघ्नों का निवारण हो जाता है। बच्चों में भय नहीं रहता। विष्णुपुराण में कहा गया है कि जब श्रीकृष्ण पूतना के दुग्धपान से डर गये तो नन्द-दम्पती ने गाय की पूँछ घुमाकर उनकी नजर उतारी और भयका निवारण किया। सवत्सा गाय के शकुनलेकर यात्रा में जाने से कार्य सिद्ध होता है।पद्मपुराण और कूर्मपुराण में कहा गया है कि कभी गाय को लाँघकर नहीं जाना चाहिये। किसी भी साक्षात्कार, उच्च अधिकारी से भेंट आदि के लिये जाते समय गाय के रँभाने की ध्वनि कान में पड़ना शुभ है। संतान-लाभ के लिये गाय की सेवा अच्छा उपाय कहा गया है।शिवपुराण एवं स्कन्दपुराण में कहा गया है कि गो सेवा और गोदान से यम का भय नहीं रहता। गाय के पाँवकी धूलिका भी अपना महत्त्व है। यह पापविनाशक है, ऐसागरुडपुराण और पद्मपुराण का मत है। ज्योतिष एवं धर्मशास्त्रों में बताया गया है कि गोधूलि वेला विवाहादि मंगलकार्यों के लिये सर्वोत्तम मुहूर्त है। जब गायें जंगल सेचरकर वापस घर को आती हैं, उस समयको गोधूलि वेला कहा जाता है। गायके खुरों से उठने वाली धूलराशि। समस्त पाप-तापों को दूर करनेवाली है। पंचगव्य एवं पंचामृत की महिमा तो सर्वविदित है ही। गोदान की महिमा से कौन अपरिचित है ! ग्रहों के अरिष्ट-निवारण केलिये गोग्रास देने तथा गौ के दान की विधि ज्योतिष-ग्रन्थों में विस्तार से निरूपित है। इस प्रकार गाय सर्वविध कल्याणकारी ही है। 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️,

ज्योतिष एवं वास्तु शास्त्र में गौ (गाय) की महिमा (पुनः प्रेषित) By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब, 〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️🌼〰️〰️ 1👉 ज्योतिषमें गोधूलिका समय विवाहके लिये सर्वोत्तम माना गया है।  2👉 यदि यात्रा के प्रारम्भ में गाय सामने पड़ जाय अथवा अपने बछड़े को दूध पिलाती हुई सामने पड़ जाय तो यात्रा सफल होती है। 3👉 जिस घर में गाय होती है, उसमें वास्तुदोष स्वतः ही समाप्त हो जाता है। 4 👉 जन्मपत्री में यदि शुक्र अपनी नीचराशि कन्या पर हो, शुक्र की दशा चल रही हो या शुक्र अशुभ भाव (6,8,12)-में स्थित हो तो प्रात:काल के भोजन में से एक रोटी सफेद रंग की गाय को खिलाने से शुक्र का नीचत्व एवं शुक्र सम्बन्धी कुदोष स्वत: ही समाप्त हो जाता है। 5👉 पितृदोष से मुक्ति👉 सूर्य, चन्द्र, मंगल या शुक्र की युति राहु से हो तो पितृदोष होता है। यह भी मान्यता है कि सूर्य का सम्बन्ध पिता से एवं मंगल का सम्बन्ध रक्त से होने के कारण सूर्य यदि शनि, राहु या केतु के साथ स्थित हो या दृष्टि सम्बन्ध हो तथा मंगल की युति राहु या केतु से हो तो पितृदोष होता है। इस दोष से जीवन संघर्षमय बन जाता है। यदि पितृदोष ह...

🌷*घर की नकारात्मक ऊर्जा हटाने के लिय उपाय🌷 〰️〰️🌸〰️〰️ By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌷 जैसा की आप जानते है की हर घर में कोई न कोई वास्तु दोष अवश्य मिलता है ऐसे में घर में कोई न कोई समस्या बनी रहती है। वास्तु दोष से घर में नकारात्मक उर्जा भी इकट्ठी होती रहती है जो घर में कलह का कारण बन जाती है तो साथ ही परिवार के सदस्यों को स्वास्थ्य की हानी पैसे के बचत न होने आदि समस्या उत्पन्न कर देती है। आज कुछ उपाय पोस्ट कर रहा हूँ जिससे आप घर में नकारात्मक उर्जा को खत्म कर सके। 1. एक कटोरी में जल लेकर उसे तीन से चार घंटे के लिए सूर्य की रौशनी में रख दें और फिर उसे भगवान का स्मरण करते हुए पुरे घर में आम या अशोक के पतों से छिडक दें। इसकेलिये आप गौमूत्र या गंगाजल का भी प्रयोग कर सकते है। 2. घर में आप गुग्गूल की धुप जलाकर किसी भी मन्त्र का जप करते हुये पुरे घर में भुमाये ये भी नकारात्मक ऊर्जा को घर से बाहर करने का उत्तम उपाय है। 3. शाम के समय घर के सभी कोनो में नमक बिखरा दें और सुबह उस नमक को बाहर फेंक दें कोनों की सफाई करके। नमक को नकारात्मक ऊर्जा को खत्म करने वाला माना गया है। आप पोछा लगाते समय पानी में थोड़ा नमक मिला सकते है। 4. घर में हर रोज कुछ समय के भजन कीर्तन अवस्य लगाये या पूजा करते समय घंटी आदि बजाते हुवे मधुर स्वर में भजन गायन करे। 5. शंख की ध्वनी भी इस कार्य के लिय उत्तम मानी जाती है और शंख से घर में जल भी छिडक सकते है। एक अन्य मान्यता के अनुसार घर में शंख रखना शुभ नही माना जाता ये केवल मन्दिर में रखना चाहिए। 6. यदि आप किसी ऐसे घर में प्रवेश करते है जहाँ पहले अन्य कोई रहता था तो उनके द्वारा छोड़ी हुई नकारात्मक उर्जा दूर करने के लिए सबसे बेहतर उपाय है की आप घर में पहले रंग रोगन करवा लें उसके बाद घर में प्रवेश करे। 7. घर की सभी खिडकियों को हर रोज कम से कम 20 मिनट अवस्य खोलना चाहिए। 8. गाय के देशी घी का दीपक हर रोज घर में जलाना भी घर की नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है। 9. घर के मन्दिर में देवी देवताओं को चढ़ाये गये फुल के हार दुसरे दिन अवस्य उतार देने चाहिए पुराने फूल भी नकारात्मक ऊर्जा देते है। 10. धूल मिटटी कबाड़ खराब बिजली के उपकरण भी घर से हटा देने चाहिए ये भी नकारात्मक ऊर्जा देने वाले होते है। 11. घर में तुलसी का पोधा अवस्य लगाये। इन सामान्य उपायो द्वारा आप अपने घर की नकारात्मक ऊर्जा को काफी हद तक कम कर सकते है साथ ही आप समय समय पर घर में हवन आदि भी करवाते रहे। 〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️*

🌷*घर की नकारात्मक ऊर्जा हटाने के लिय उपाय🌷 〰️〰️🌸〰️〰️ By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌸〰️〰️🌷 जैसा की आप जानते है की हर घर में कोई  न  कोई वास्तु दोष अवश्य मिलता है ऐसे में घर में कोई न कोई समस्या बनी रहती है। वास्तु  दोष से घर में नकारात्मक उर्जा भी इकट्ठी होती रहती है जो घर में कलह का कारण बन  जाती है तो साथ ही परिवार के सदस्यों को  स्वास्थ्य की हानी पैसे के बचत न होने आदि समस्या उत्पन्न कर देती है। आज ] उपाय  पोस्ट कर रहा हूँ जिससे आप घर में नकारात्मक उर्जा को खत्म कर  सके। 1.  एक कटोरी में जल लेकर उसे तीन से चार  घंटे के लिए सूर्य की रौशनी में रख दें और फिर उसे भगवान का स्मरण करते हुए पुरे घर  में आम या अशोक के पतों से छिडक दें। इसकेलिये आप गौमूत्र या गंगाजल का भी  प्रयोग कर सकते है। 2. घर में आप गुग्गूल की धुप जलाकर  किसी भी मन्त्र का जप करते हुये पुरे घर में भुमाये ये  भी नकारात्मक ऊर्जा को घर से बाहर करने  का उत्तम उपाय  है। 3. शाम के समय घर के सभी कोनो में नमक बिखरा दें और सुबह उस नमक को बा...

हम अपने जीवन में सफलता पाने के लिए बहुत कुछ करते है by समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब: हमारी बहुत अधिक मेहनत करने के बाद भी तरक्की नहीं मिल पाती । आज हम आपको ऐसे कुछ बातो के बारे में बताने जा रहे है जो हमारी तरक्की की राह पर मुश्किल बनती है। वास्तु शास्त्र के अनुसार आज हम आपको कुछ बाते बताने जा रहे है जिनका ध्यान आपको अवश्य रखना है।- बैठते वक्त उत्तर या पूर्व दिशा में मुख करके बैठें।- गिलास में पानी लेकर उसमें थोड़ी हल्दी डालकर आम या पान के पत्ते से इस पानी का घर में छिड़काव करें। टीवी के कांच एवं दर्पण (आईना) की परछाई बेडरूम में नहीं पड़नी चाहिए।- घर में टूटा कांच नहीं रखें।- एक बाल्टी पानी में 5 चम्मच नमक डालकर घर में पोंछा करें।- डायनिंग टेबल गोल आकार की नहीं होना चाहिए।- आधा किलो फिटकरी ड्राइंग रूम में रखें।- प्रवेश द्वार कमान वाला नहीं होना चाहिए।- प्रवेश द्वार के पर्दे में घुंघरू बांधना शुभ है।- प्रवेश द्वार के ऊपर अंदर तथा बाहर गणेशजी की फोटो लगाएं।- उत्तर दिशा में हनुमानजी का आशीर्वाद मुद्रा वाला फोटो लगाएं।- घड़ी को गिफ्ट में नहीं लेना-देना चाहिए।- मस्तक पर टीका या कुमकुम लगाना चाहिए।- अमावस्या के दिन शाम को गोधूलि बेला में चौखट के बाहर सफाई कर स्वस्तिक बनाकर पूजा करना चाहिए व नारियल फोड़कर बाहर फेंकना चाहिए।,

Money: धन प्राप्ति के लिए वास्तु शास्त्र की इन बातों पर दें ध्यान, बनी रहती है समृद्धि By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब Vastu Tips For Money: धन प्राप्ति के लिए वास्तु शास्त्र की इन बातों पर दें ध्यान, बनी रहेगी समृद्धि Money जीवन अच्छा हो और सुख-सुविधाओं से भरपूर हो यह कौन नहीं चाहता है। हर कोई अपने परिवार को बेहतर जीवन के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत करता है। लेकिन कई बार इसके बाद भी मनचाहा फल नहीं मिल पाता है।Publish Date:Wed, 04 Jan 2021 10:25 AM Vastu Tips: जीवन अच्छा हो और सुख-सुविधाओं से भरपूर हो यह कौन नहीं चाहता है। हर कोई अपने परिवार को बेहतर जीवन के लिए दिन-रात कड़ी मेहनत करता है। लेकिन कई बार इसके बाद भी मनचाहा फल नहीं मिल पाता है। कई बार बिना बात के भी पैसा खर्च हो जाता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, कई चीजें ऐसी होती हैं जो वास्तु दोष से प्रभावित होती हैं और इससे व्यक्ति की तरक्की में बाधा आती है। ऐसे में अगर आप अपने जीवन में सुख-समृद्धि चाहते हैं तो आपको निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए।1. अगर तुलसी का पौधा घर की पूर्व या उत्तर दिशा में लगा हो तो व्यक्ति को आर्थिक रूप से लाभ होता है। साथ ही मानसिक और शारीरिक लाभ भी होता है।2. घर में अगर शीशा पश्चिम दिशा या दक्षिण दिशा में लगा हो तो इसे तुरंत हटा लें। इससे व्यक्ति या घर की प्रगति में बाधा आती है।3. वास्तु शास्त्र के अनुसार, कभी भी चलते हुए गहनों को नहीं पहनना चाहिए। इससे तरक्की में बाधा आती है।4. घर के चारों तरफ अगर खुली जगह हो तो घर में धन और वैभव की बरकत रहती है।5. घर की ऊंचाई की भी वास्तु शास्त्र में महत्ता है। यह दक्षिण और पश्चिम भाग में ज्यादा और उत्तर और पूर्व भाग में कम होनी चाहिए। इससे व्यक्ति को काम में सफलता हासिल होती है।6. घर का कूड़ेदान या कचड़ा उत्तर पूर्व यानी ईशान कोण दिशा में न रखें। इससे धन का नाश होता है।7. वास्तु शास्त्र के अनुसार, अगर नल से पानी टपक रहा है तो इससे व्यक्ति को आर्थिक नुकसान होता है। साथ ही धन भी बेवजह खर्च होता है।8. अगर घर का रसोई घर आग्नेय कोण (दक्षिण-पूर्व) दिशा में हो तो बेहतर होता है। अगर पश्चिम दिशा में रसोई घर होता है तो धन का आगमन बेहतर होता है लेकिन बरकत नहीं रहती है।9. अगर घर में तिजोरी की दिशा सही हो तो आर्थिक जीवन बेहतर होता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार, तिजोरी को दक्षिण की दिवार से सटाकर रखें। यह इस तरह रखें कि इसका मुंह उत्तर दिशा की ओर रहे।10. वास्तु शास्त्र के अनुसार, घर में किसी भी सीढ़ी के नीचे कबाड़ जमा नहीं होना चाहिए। इससे धन का नुकसान होता है।डिस्क्लेमर'इस लेख में निहित किसी भी जानकारी/सामग्री/गणना की सटीकता या विश्वसनीयता की गारंटी नहीं है। विभिन्न माध्यमों/ज्योतिषियों/पंचांग/प्रवचनों/मान्यताओं/धर्मग्रंथों से संग्रहित कर ये जानकारियां आप तक पहुंचाई गई हैं। हमारा उद्देश्य महज सूचना पहुंचाना है, इसके उपयोगकर्ता इसे महज सूचना समझकर ही लें। इसके अतिरिक्त, इसके किसी भी उपयोग की जिम्मेदारी स्वयं उपयोगकर्ता की ही रहेगी। ',,,

Vastu for Money: घर की इन 6 चीजों को तुरंत कर दें घर से बाहर, क्योंकि इनसे बढ़ती है धन की परेशानी और पारिवारिक कलहVastu for Money: यदि घर में लाना है धन का भण्डार और पारिवारिक सम्पन्नता तो करें वास्तु शास्त्र का पालन, घर की सजावट के लिए तस्वीरों को खरीदते समय तस्वीरों के वास्तु प्रभाव का भी रखें ध्यान. आइये जानें डिटेल्स में.By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबLast Updated: 11 Jan 2021 05:37 AM Vastu for Money: घर की इन 6 चीजों को तुरंत कर दें घर से बाहर, क्योंकि इनसे बढ़ती है धन की परेशानी और पारिवारिक कलहVastu for Money: लोग अपने घर की सजावट के लिए तरह-तरह की तरकीबें अपनाते हैं. कुछ लोग अपने घर और कमरों की सजावट के लिए कई तरह की तस्वीरें भी लगाते हैं. लेकिन घर या कमरों में तस्वीरें लगाते समय वास्तु का विशेष ध्यान रखना चाहिए. क्योंकि घर या कमरे में लगी कुछ तस्वीरें तो स्वभाव व व्यवहार पर सकारात्मक प्रभाव डालती हैं और कुछ नकारात्मक. इसलिए घर में ऐसी यदि 6 चीजें हैं तो इनको घर से तुरंत बाहर कर देना चाहिए.यदि आप दिन में सोते हैं तो हो जाएं सावधान ! आयु होगी कम और आएंगी कई समस्याएं, यहां पढ़ें विस्तार सेइन 6 चीजों को घर से तुरंत करें दूर:घर में अगर कहीं पर ऐसी तस्वीर लगी हो जिसमें पानी बहता हुआ या पानी का फव्वारा दिखाई दे रहा हो तो इसे घर से तुरंत बाहर कर देना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि जिस तरह से पानी बह जाता है ठीक उसी तरह से घर का रूपया भी व्यर्थ कार्यों में खर्च हो जाता है.वास्तु के हिसाब से घर में किसी डूबती हुई नाव या भवंर में फंसी हुई नाव की भी तस्वीरें नहीं लगाना चाहिए. घर में लगी हुई ऐसी तस्वीरें घर के सदस्यों पर नकारात्मक प्रभाव डालती हैं. ऐसा माना जाता है कि घर में लगी ऐसी तस्वीरें भाग्य सम्बन्धी बाधा पैदा करती हैंमहाभारत के युद्ध से सम्बंधित तस्वीर भी अगर घर में लगी हो तो इसे भी बिना किसी देरी के घर से बाहर कर देना चाहिए. ऐसा माना जाता है कि इस तरह की तस्वीरों को लगाने से घर के सदस्यों का व्यवहार आक्रामक हो जाता है.घर के पूजा घर में कभी भी पुराने फूल नहीं रहने चाहिए. पुराने फूल से लक्ष्मी माता नाराज होती हैं और धन सम्बन्धी नुकसान होता है. इसलिए पूजा घर में रोजाना ताजे फूल चढ़ाने चाहिए और पुराने फूल को हटाते रहना चाहिए.घर के दरवाजे टूटे हुए हों या उनसे आवाज आती हो तो उसे भी तुरंत ठीक करा लेना चाहिए. ऐसी मान्यता है कि ऐसा होने पर घर में लड़ाई-झगड़े होने की अधिक संभावना रहती है.घर में टूटे हुए खिलौने और टूटी हुई क्राकरी कभी भी नहीं रखना चाहिए. जहां टूटे हुए खिलौने बच्चों की सेहत के लिए नुकसानदायक होते हैं वहीँ टूटे हुए क्राकरी से घर में अपव्यय भी बढ़ता है.,

अगली ख़बरपहेली सॉल्व करने पर देना होता था टैक्स...जानें बजट के ऐसे ही फैसलों के बारे मेसस्ता घर खरीदने का मौका! 8 जनवरी को PNB बेच रहा 3080 मकान, चेक करें पूरी डिटेल्सक्या आप भी नए साल में सस्ता घर खरीदने का प्लान कर रहे हैं. तो आपके पास एक अच्छा मौका है पंजाब नेशनल बैंक (Punjab national bank) 8 जनवरी 2021 को सस्ते रेससिडेंशियल और कॉमर्शियल प्रापर्टी की नीलामी करने जा रहा है.पहेली सॉल्व करने पर देना होता था टैक्स...जानें बजट के ऐसे ही फैसलों के बारे मेसस्ता घर खरीदने का मौकाNEWS HINDILAST UPDATED: JANUARY 6, 2021, 9:07 AM LTS, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब: क्या आप भी नए साल में सस्ता घर खरीदने का प्लान कर रहे हैं. तो आपके पास एक अच्छा मौका है पंजाब नेशनल बैंक (Punjab national bank) 8 जनवरी 2021 को सस्ते रेससिडेंशियल और कॉमर्शियल प्रापर्टी की नीलामी करने जा रहा है. IBAPI (Indian Banks Auctions Mortgaged Properties Information) की ओर से इस बारे में जानकारी दी गई है. इसमें 3080 रेसिडेंशियल प्रापर्टी हैं. बता दें ये वो प्रापर्टी हैं जो डिफॉल्ट की लिस्ट में आ चुकी हैं.PNB ने किया ट्वीटPunjab Nationl Bank ने ट्वीट करके अपने ग्राहकों को बताया है. PNB में ट्वीट में लिखा कि प्रॉपर्टी में निवेश करना चाह रहे हैं? तो आप 8 जनवरी 2021 को पीएनबी ई-नीलामी में हिस्सा ले सकते हैं. इस नीलामी में रेसिडेंशियल और कॉमर्शियल प्रापर्टी सस्ते में खरीद सकते हैं.यह भी पढ़ें: 17 फीसदी गिरावट के बाद आज bitcoin में तेजी, जल्द एक करोड़ हो सकती है 1 सिक्के की कीमत!बैंक समय-समय पर करता है नीलामीबता दें जिन भी प्रापर्टी के मालिकों ने उनका लोन नहीं चुकाया है. ये किसी कारणवश नहीं दे पाएं हैं उन सभी लोगों की जमीन बैंकों के द्वारा अपने कब्जे में ले ली जाती हैं. बैंकों की ओर से समय-समय पर इस तरह की प्रापर्टी की नीलामी की जाती है. इस नीलामी में बैंक प्रापर्टी बेचकर अपनी बकाया राशि वसूल करता है.कितनी हैं प्रापर्टीबता दें इस समय 3080 रेसिडेंशियल प्रापर्टी हैं. इसके अलावा 873 कॉमर्शियल प्रापर्टी, 465 इंडस्ट्रियल प्रापर्टी, 11 एग्रीकल्चर प्रापर्टी हैं. इन सभी प्रापर्टियों की नीलामी बैंक की ओर से की जाएगी.यह भी पढ़ें: Indian Railways: 6 जनवरी तक रेलवे ने कैंसिल कर दीं ये सभी ट्रेनें, फटाफट चेक करें पूरी लिस्ट!इस लिंक से लें अधिक जानकारीप्रापर्टी की नीलामी के बारे में अधिक जानकारी के लिए आप इस लिंक पर विजिट https://ibapi.in/ कर सकते हैं. बैंक के मुताबिक वह संपत्ति के फ्रीहोल्ड या लीजहोल्ड होने, स्थान, माप समेत अन्य जानकारियां भी नीलामी के लिए जारी सार्वजनिक नोटिस में देता है. अगर ई-नीलामी के जरिये प्रॉपर्टी खरीदना चाहते हैं तो बैंक में जाकर प्रक्रिया और संबंधित प्रॉपर्टी के बारे में किसी भी तरह की जानकारी ले सकते हैं. नीलामी की प्रक्रिया 29 दिसंबर को की जाएगी. Next newsHad to pay tax on solving the puzzle ... Learn about similar decisions of the budgetCheap home buying opportunity! PNB selling 3080 houses on 8 January, check complete detailsDo you also have a cheaper house in the new year,

अगर आपके रिश्तों में है कड़वाहट तो जानिए वास्तु से कैसे करें इसे दूर?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 12सितम्बर, 2020घर के उत्तर-पूर्व में कचरा, टॉयलेट, सेप्टिक टैंक जैसे वास्तु दोष भी संबंधों को खराब करते हैं. यहाँ पर लाल, बैंगनी, या गुलाबी रंग होना भी हानिकारक है. इस रंग को क्रीम कलर में बदल दें. 3 CLAPS00 पुरुष और स्त्री की मनो-संरचना में अंतर है और इसके कारण कई बार तनाव की स्थिति बन जाती है. कहते हैं कि पुरुष अगर मंगल ग्रह से है तो स्त्री शुक्र ग्रह की निवासिनी है. इसका भी वही तात्पर्य है कि दोनों एक दूसरे से विपरीत हैं. सदियों से पुरुष का काम शिकार करना या आज के परिपेक्ष में घर के लिए आय का प्रबंध करना रहा है और महिला का काम घर का संचालन करना रहा है.इसके कारण पुरुष अपनी दृष्टि पर एकाग्रचित रहता है – कोई अवसर हाथ से छूट न जाए और स्त्री अपनी श्रवण पर एकाग्रचित है कि कोई आहट अनसुनी न रह जाए. इसलिए जब भी पति-पत्नी के बीच मनमुटाव होता है तो स्त्री कहती है कि ये सुनते ही नहीं है और पति कहता है कि इसको दिखता ही नहीं हैं. इसमें दोनों की गलती नहीं पर उनके बीच का स्वाभाविक अंतर है. kसांकेतिक फोटो (साभार: shutterstock)वर्तमान में स्थिति अलग है. अधिक से अधिक महिलाएं घर में आमदनी लाने की ज़िम्मेदारी ओढ़ रही हैं यानि अपनी श्रवण योग्यता का कॉर्पोरेट सेक्टर में उपयोग कर उस कमी को पूर्ण कर रही हैं. जो पहले एक कमज़ोर कड़ी थी जैसे कि मानव संसाधन या ग्राहक सेवा.स्त्री-पुरुष में नैसर्गिक अंतर के अलावा भी पति-पत्नी के बीच मनमुटाव के अनेक कारण हो जाते हैं. आजकल पति-पत्नी दिन का आधे से ज्यादा समय ऑफिस में या घर के बाहर गुजारते हैं कभी-कभी इस कारण विवाहोत्तर संबंध बनने की संभावना बन जाती है और जो गृह-कलह का कारण बनती है. कई बार दोनों के अहम् भी टकराने लगते हैं जिससे भी रिश्तों में कड़वाहट आने लगती है.ऊपर दिए कई कारण ऐसे हैं जिनपर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है. जो पुरुष-स्त्री के मनोविज्ञान में अंतर है उसको तो बदला नहीं जा सकता पर अगर पति-पत्नी में प्रेम और आपसी सौहार्द है तो फिर कड़वाहट या मनमुटाव की नौबत कभी नहीं आती है. आइए जानते हैं कि आपसी प्रेम को बढ़ाने के लिए क्या वास्तु उपाय किए जा सकते हैं.ALSO READवास्तुशास्त्र: हर दिशा में अलग होता है बेडरूम का प्रभाव, यहां जानिए बेडरूम का वास्तुअगर आपका बेडरूम दक्षिण-पश्चिम में है तो सर्वोत्तम है, दक्षिण का शयनकक्ष भी उत्तम माना गया है. दक्षिण-पूर्व का शयनकक्ष पति-पत्नी के बीच खटपट को बढाता है, खास तौर से जब पलंग पूर्व और दक्षिण-पूर्व के मध्य रखा हुआ हो. वास्तु के अनुसार घर के तीन ज़ोन पति-पत्नी के आपसी प्रेम को बढाने में सहायक हैं; इनमें सबसे प्रमुख है दक्षिण-पश्चिम. घर के इस क्षेत्र में रिश्तों को निभाने की उर्जाएं हैं. उत्तर-पूर्व हमको रिश्तों में स्पष्टता लाने में सहायक है. जरूरत पड़ने पर एक दुसरे के लिए खड़े होने की दृढ़ता उत्तर-पश्चिम की उर्जा से आती है. घर के इन तीन क्षेत्र में अगर टॉयलेट या कोई अन्य वास्तु दोष है, तो इसका सीधा असर पति-पत्नी के आपसी संबंध पर पड़ता है और इसका समुचित निदान कराना जरूरी है. अगर घर के दक्षिण-पश्चिम में लाल रंग का आधिक्य है तो उसको पीले या क्रीम कलर में बदल दें. यहाँ पर पौधे रखना भी वर्जित है. दक्षिण-पश्चिम में दो हंसों का जोड़ा रखना भी संबंधों को सुदृढ़ बनाने में सहायक होता है. अगर हंसों का जोड़ा उपलब्ध नहीं है तो “डबल हैप्पीनेस” का सिंबल भी दक्षिण-पश्चिम में लगा सकते हैं. यहाँ पर एक फ्रेम में पति-पत्नी अपना चित्र भी फ्रेम करके लगाएं.घर के उत्तर-पूर्व में कचरा, टॉयलेट, सेप्टिक टैंक जैसे वास्तु दोष भी संबंधों को खराब करते हैं. यहाँ पर लाल, बैंगनी, या गुलाबी रंग होना भी हानिकारक है. इस रंग को क्रीम कलर में बदल दें.उपरोक्त उदाहरण पति-पत्नी के संबंधों के विषय में लिखे गए हैं पर इनका प्रभाव घर में बाकी संबंधों पर भी पड़ता है जैसे अगर आप संयुक्त परिवार में रह रहे हैं और परिवारजनों के बीच कड़वाहट है तो दक्षिण-पश्चिम में पूरे परिवार का एक संयुक्त चित्र लगाएं.आचार्य मनोज श्रीवास्तव ऐसे वास्तु कंसलटेंट और ज्योतिषी हैं जिनको बीस साल से ज्यादा का कॉर्पोरेट लीडरशिप का अनुभव है। वे पूर्व में एयरटेल, रिलायंस और एमटीएस जैसे बड़े कॉर्पोरेट हाउस में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे हैं। आजकल वे पूर्ण रूप से एक वास्तु कंसलटेंट और ज्योतिषी के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं।अपने सवाल और सुझाव के लिये आप भी इनसे जुड़ सकते हैं : +9877264170+9780948925

, वास्तु एवं रोग (वास्तु शास्त्र का प्रयोग रोग निवारण के लिए) ; vastu and diseases*Byसमाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*चौंकिये मत बिलकुल सही बात है कि जब हम वास्तु शास्त्र के द्वारा जीवन की अनेकों समस्याए ठीक कर सकने में सक्षम है तो शारीरिक व्याधियों या रोगों को ठीक नहीं कर सकते हें.?व्यक्ति वास्तु शास्त्र के नियम अनुसार यदि निवास करता है तो समस्त बाधाए समाप्त हो जाती है. वास्तु शास्त्र प्राचीन वैज्ञानिक जीवन शैली है वास्तु विज्ञान सम्मत तो है ही साथ ही वास्तु का सम्बन्ध ग्रह नक्षत्रों एवम धर्म से भी है ग्रहों के अशुभ होने तथा वास्तु दोष विद्यमान होने से व्यक्ति को बहुत भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ता है. वास्तु शास्त्र अनुसार पंच तत्वों पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश और वायु तथा वास्तु के आठ कोण दिशाए एवम ब्रह्म स्थल केन्द्र को संतुलित करना अति आवश्यक होता है जिससे जीवन हमारा एवं परिवार सुखमय रह सके. वास्तु शास्त्र के कुछ नियम रोग निवारण में भी सहायक सिद्ध होते है… आपको विस्मय होना स्वाभाविक है जो रोग राजसी श्रेणी में आ कर फिर की समाप्त नहीं होता बल्कि केवल दवाईयों के द्वारा नियंत्रित हो कर जीवन भर हमें दंड देता रहता है वही मधुमेह को हमारे ऋषि मुनिओं ने वास्तु शास्त्र के द्वारा नियंत्रण की बात तो दूर है पूरी तरह से सफाया करने पर अग्रसित हो रहा है दुर्भाग्य कि बात है कि हम विशवास नहीं करते आपकी बात बिलकुल सही है इससे पहले मै भी कभी विशवास नहीं रखता था लेकिन जब से वास्तु शास्त्र के नियम मेने अपने घर एवं अपने व अपने परिवार के लोगों पर लगाए तो कुछ समय बाद मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा मै शत प्रतिशत सफल हुआ आज में समाज की भलाई के लिए साथ ही यह भी बताने का पूरा प्रयास करूँगा की आधुनिक दौड़ में अपने पीछे कि सभ्यता को भी याद रखे जो कि सटीक व हमारे जीवन में शत प्रतिशत कारगर सिद्ध होती आई है. वास्तु सही रूप से जीवन की एक कला है क्योंकि हर व्यक्ति का शरीर उर्जा का केन्द्र होता है. जंहा भी व्यक्ति निवास करता है वहाँ कि वस्तुओं की उर्जा अपनी होती है और वह मनुष्य की उर्जा से तालमेल रखने की कोशिश करती है. यदि उस भवन/स्थान की उर्जा उस व्यक्ति के शरीर की उर्जा से ज्यादा संतुलित हो तो उस स्थान से विकास होता है शरीर से स्वस्थ रहता है सही निर्णय लेने में समर्थ होता है सफलता प्राप्त करने में उत्साह बढता है,धन की वृद्धि होती है जिससे समृधि बढती है यदि वास्तु दोष होने एवं उस स्थान की उर्जा संतुलित नहीं होने से अत्यधिक मेहनत करने पर भी सफलता नहीं मिलती. वह व्यक्ति अनेक व्याधियो व रोगों से दुखी होने लगता है अपयश तथा हानि उठानी पडती है. भारत में प्राचीन काल से ही वास्तु शास्त्र को पर्याप्त मान्यता दी जाती रही है। अनेक प्राचीन इमारतें वास्तु के अनुरूप निर्मित होने के कारण ही आज तक अस्तित्व में है। वास्तु के सिद्धांत पूर्ण रूप से वैज्ञानिक हैं, क्योंकि इस शास्त्र् में हमें प्राप्त होने वाली सकारात्मक ऊर्जा शक्तियों का समायोजन पूर्ण रूप से वैज्ञानिक ढंग से करना बताया गया है।वास्तु के सिद्धांतों का अनुपालन करके बनाए गए गृह में रहने वाले प्राणी सुख, शांति, स्वास्थ्य, समृद्धि इत्यादि प्राप्त करते हैं। जबकि वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत बनाये गए गृह में रहने वाले समय-असमय प्रतिकूलता का अनुभव करते हैं एवं कष्टपद जीवन व्यतीत करते हैं। कई व्य-क्तियों के मन में यह शंका होती है कि वास्तु शास्त्रब का अधिकतम उपयोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न वर्ग ही करते हैं। मध्यम वर्ग के लिए इस विषय का उपयोग कम होता है। निस्संदेह यह धारणा गलत है। वास्तु विषय किसी वर्ग या जाति विशेष के लिये ही नहीं है, बल्कि वास्तु शास्त्रत संपूर्ण मानव जाति के लिये प्रकृति की ऊर्जा शक्तियों को दिलाने का ईश्वैर प्रदत्त एक अनुपम वरदान है।वास्तु विषय में दिशाओं एवं पंच-तत्त्वों की अत्यधिक उपयोगिता है। ये तत्त्वं जल-अग्नि-वायु-पृथ्वी-आकाश है। भवन निर्माण में इन तत्त्वों का उचित अनुपात ही, उसमें निवास करने वालों का जीवन प्रसन्नए एवं समृद्धिदायक बनाता है। भवन का निर्माण वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप करने पर, उस स्थल पर निवास करने वालों को प्राकृतिक एवं चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति एवं सूर्य की शुभ एवं स्वास्थ्यपद रश्मियों का शुभ प्रभाव पाप्त होता है। यह शुभ एवं सकारात्मक प्रभाव, वहाँ पर निवास करने वालों के सोच-विचार तथा कार्यशैली को विकासवादी बनाने में सहायक होता है, जिससे मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ एवं प्रसन्नचित रहती है और बौद्धिक संतुलन भी बना रहता है। ताकि हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेकर सुख-समृद्धिदायक एवं उन्नतिशील जीवन व्यतीत कर सकें। इसके विपरीत यदि भवन का निर्माण का कार्य वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत करने पर, उस स्थान पर निवास एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों के विचार तथा कार्यशैली निश्चित ही दुष्प्रभावी होंगी और मानसिक अशांति एवं परेशानियाँ बढ़ जायेंगी। इन पांच तत्त्वोंष के उचित संतुलन के अभाव में शारीरिक स्वास्थ्य तथा बुद्धि भी विचलित हो जाती है। इन तत्वों का उचित संतुलन ही, गृह में निवास करने वाले पाणियों को मानसिक तनाव से मुक्त करता है। ताकि वह उचित-अनुचित का विचार करके, सही निर्णय लेकर, उन्नतिशील एवं आनंददायक जीवन व्यतीत कर सकें। ब्रह्माण्ड में विद्यमान अनेक ग्रहों में से जीवन पृथ्वी पर ही है। क्योंकि पृथ्वी पर इन पंच-तत्त्वों का संतुलन निरंतर बना रहता है। हमें सुख और दुःख देने वाला कोई नहीं है। हम अपने अविवेकशील आचरण और प्रकृति के नियमों के विरुद्ध आहार-विहार करने से समस्याग्रस्त रहते हैं। पंच-तत्त्वों के संतुलन के विपरीत अपना जीवन निर्वाह करने से ही हमें दुःख और कष्ट भोगने पड़ते हैं।जब तक मनुष्य के ग्रह अच्छे रहते हैं वास्तुदोष का दुष्प्रभाव दबा रहता है पर जब उसकी ग्रहदशा निर्बल पड़ने लगती है तो वह वास्तु विरुध्द बने मकान में रहकर अनेक दुःखों, कष्टों, तनाव और रोगों से घिर जाता है। इसके विपरीत यदि मनुष्य वास्तु शास्त्र के अनुसार बने भवन में रहता है तो उसके ग्रह निर्बल होने पर भी उसका जीवन सामान्य ढंग से शांति पूर्ण चलता है।यथा— शास्तेन सर्वस्य लोकस्य परमं सुखम्चतुवर्ग फलाप्राप्ति सलोकश्च भवेध्युवम्शिल्पशास्त्र परिज्ञान मृत्योअपि सुजेतांव्रजेत्परमानन्द जनक देवानामिद मीरितम्शिल्पं बिना नहि देवानामिद मीरितम्शिल्पं बिना नहि जगतेषु लोकेषु विद्यते।जगत् बिना न शिल्पा च वतंते वासवप्रभोः॥विश्व के प्रथम विद्वान वास्तुविद् विश्वकर्मा के अनुसार शास्त्र सम्मत निर्मित भवन विश्व को सम्पूर्ण सुख, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। वास्तु शिल्पशास्त्र का ज्ञान मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कराकर लोक में परमानन्द उत्पन्न करता है, अतः वास्तु शिल्प ज्ञान के बिना निवास करने का संसार में कोई महत्व नहीं है। जगत और वास्तु शिल्पज्ञान परस्पर पर्याय हैं।क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंच रचित अति अघम शरीरा।मानव शरीर पंचतत्वों से निर्मित है- पृथ्वी, जल आकाश, वायु और अग्नि। मनुष्य जीवन में ये पंचमहाभूत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके सही संतुलन पर ही मनुष्य की बुध्दि का संतुलन एवं आरोग्य निर्भर हैं जिसमें वह अपने जीवन में सही निर्णय लेकर सुखी जीवन व्यतीत करता है। इसी प्रकार निवास स्थान में इन पांच तत्वों का सही संतुलन होने से उसके निवासी मानसिक तनाव से मुक्त रहकर सही ढंग से विचार करके समस्त कार्य सम्पन्न कर पायेंगे और सुखी जीवन जी सकेंगे।वास्तु विषय में दिशाओं एवं पंच-तत्वों का अत्यधिक महत्व है। यह तत्व, जल-अग्नि-वायु-पृथ्वी-आकाश है। भवन निर्माण में इन तत्वों का उचित तालमेल ही, वहाँ पर निवास करने वालों का जीवन खुशहाल एवं समृद्धिदायक बनाता है। भवन का निर्माण वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप करने पर, उस स्थल पर निवास करने वालों को पाकृतिक एवं चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति एवं सूर्य की शुभ एवं स्वास्थ्यपद रश्मियों का शुभ पभाव पाप्त होता है। यह शुभ एवं सकारात्मक पभाव, वहाँ पर निवास करने वालों के सोच-विचार तथा कार्यशैली को विकासवादी बनाने में सहायक होता है। जिससे मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ एवं पसन्नचित रहती है। साथ ही बौद्धिक संतुलन भी बना रहता है। ताकि हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेकर सुख-समृद्धिदायक एवं उन्नतिशील जीवन व्यतीत कर सकें। इसके विपरीत यदि भवन का निर्माण कार्य वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत करने पर, उस स्थान पर निवास एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों के विचार तथा कार्यशैली निश्चित ही दुष्पभावी होगी। जिसके कारण मानसिक अशांति एवं परेशानियाँ बढ़ जायेंगी। इन पांच तत्वों के उचित संतुलन एवं तालमेल के अभाव में शारीरिक स्वास्थ्य तथा बुद्धि भी विचलित हो जाती है।इन तत्वों का उचित संतुलन ही, वहाँ पर निवास करने वाले पाणियों को मानसिक तनाव से मुक्त करता है। ताकि वह उचित-अनुचित का विचार करके, सही निर्णय लेकर, उन्नतिशील एवं आनंददायक जीवन व्यतीत कर सके। ब्रह्माण्ड में विद्यमान अनेक ग्रहों में से जीवन पृथ्वी पर ही है। क्योंकि पथ्वी पर इन पंच-तत्वों का संतुलन निरंतर बना रहता है। हमें सुख और दुःख देने वाला कोई नहीं है। हम अपने अविवेकशील आचरण और पकृति के नियमों के विरुद्ध आहारविहार करने से समस्याग्रस्त रहते हैं। पंच-तत्वों के संतुलन के विपरीत अपना जीवन निर्वाह करने से ही हमें दुःख और कष्ट भोगने पड़ते हैं।देवशिल्पी विश्वकर्मा द्वारा रचित इस भारतीय वास्तु शास्त्र का एकमात्र उदेश्य यही है कि गृहस्वामी को भवन शुभफल दे, उसे पुत्र-पौत्रादि, सुख-समृद्धि प्रदान कर लक्ष्मी एवं वैभव को बढाने वाला हो.इस विलक्षण भारतीय वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने से घर में स्वास्थय, खुशहाली एवं समृद्धि को पूर्णत: सुनिश्चित किया जा सकता है. एक इन्जीनियर आपके लिए सुन्दर तथा मजबूत भवन का निर्माण तो कर सकता है, परन्तु उसमें निवास करने वालों के सुख और समृद्धि की गारंटी नहीं दे सकता. लेकिन भारतीय वास्तुशास्त्र आपको इसकी पूरी गारंटी देता है.यहाँ हम अपने पाठकों को जानकारी दे रहे हैं कि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन न करने से पारिवारिक सदस्यों को किस तरह से नाना प्रकार के रोगों का सामना करना पड सकता है.यहाँ हम ऐसे ही कुछ नियम लिख रहे है जिन्हें अपना कर आप स्वय तथा अपने परिवारजनों को कुछ रोगों से मुक्ति दिला सकते है..जेसे—दमा के रोगियों के लिए वास्तु नियम—यदि घर में दमा का रोगी हो तो अपने बेठने वाले कमरे क़ी पश्चिम क़ी दिवार पर पेंडुलम वाली सफेद या सुनहरी-पीले रंग क़ी दिवार घडी लगा देनी चाहिए,शरीर क़ी सुरक्षा हेतु तीन मुखी रुद्राक्ष भी धारण करे, मिर्गी, हिस्टीरिया या दिमागी कमजोरी के लिए वास्तु नियम—उतर-पश्चिम, दखिन- पश्चिम, पश्चिम या दक्षिण दिशा के शयनकक्ष में सोना चाहिए, रोगी का शयन कक्ष भवन के उत्तर-पूर्व दिशा में कतई नही होना चाहिए, इससे अशांति बनती है, पाँचमुखी रुद्राक्ष या एकमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए… शिव उपासना करना शुभ/लाभ दायक रहेगा,उच्च रक्तचाप-मधुमेह के उपचार के लिए वास्तु नियम—अपने भूखंड और भवन के बीच के स्थान में कोई स्टोर, लोहे का जाल या बेकार का सामान नही होना चाहिए, अपने घर क़ी उत्तर-पूर्व दिशा में नीले फूल वाला पौधा लगाये,जोड़ो के दर्द, गठिया, सियाटिका और पीठ दर्द हेतु के लिए वास्तु नियम—आपके घर के कमरों क़ी दीवारों पर दरारे नही होनी चाहिए, उन पर कवर/प्लास्टर करवा देना चाहिए या दरारों पर किसी झरने या पहाड़ी का पोस्टर लगा देना चाहिए, सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना भी ठीक रहेगा,ह्रदय रोग निवारण हेतु के लिए वास्तु नियम—सुबह उठने के बाद अपने सोने वाले पलंग क़ी साइड पर ३-4 बार दाए हाथ से हल्का सा थपथपाय इसे नो (09 ) दिनों तक करे, सोने वाले कमरे क़ी उत्तर दिवार पर क्रिस्टल गेंद टांग दे और गेंदों के नीचे चारो दिशाओ में एक एक क्रिस्टल पिरामिड रख दे, घर टूटी खिडकिया शीशे, आईने नही होने चाहिए, अगर ऐसा हो तो उन्हें भी बदल दीजिये, टूटे शीशे और खिडकियों को कभी भी अखवार, कागज या कपड़े से नहीं ढकें…मधुमेह /डायबिटीज निवारण हेतु के लिए वास्तु नियम–वास्तु शास्त्र प्राचीन वैज्ञानिक जीवन शैली है वास्तु विज्ञान सम्मत तो है ही साथ ही वास्तु का सम्बन्ध ग्रह नक्षत्रों एवम धर्म से भी है ग्रहों के अशुभ होने तथा वास्तु दोष विद्यमान होने से व्यक्ति को बहुत भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ता है. वास्तु शास्त्र अनुसार पंच तत्वों पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश और वायु तथा वास्तु के आठ कोण दिशाए एवम ब्रह्म स्थल केन्द्र को संतुलित करना अति आवश्यक होता है जिससे जीवन हमारा एवं परिवार सुखमय रह सके.चिकित्सा शास्त्र में बहुत से लक्षण सुनने और देखने में मिलते है लेकिन वास्तु शास्त्र में बिलकुल स्पष्ट है कि घर/भवन का दक्षिण-पश्चिम भाग अर्थात नैऋत्य कोण ही इस रोग का जनक बनता है देखिये कैसे…—- दक्षिण-पश्चिम कोण में कुआँ,जल बोरिंग या भूमिगत पानी का स्थान मधुमेह बढाता है।—–दक्षिण-पश्चिम कोण में हरियाली बगीचा या छोटे छोटे पोधे भी शुगर का कारण है।—–घर/भवन का दक्षिण-पश्चिम कोना बड़ा हुआ है तब भी शुगर आक्रमण करेगी।—–यदि दक्षिण-पश्चिम का कोना घर में सबसे छोटा या सिकुड भी हुआ है तो समझो मधुमेह का द्वार खुल गया।——दक्षिण-पश्चिम भाग घर या वन की ऊँचाई से सबसे नीचा है मधुमेह बढेगी. इसलिए यह भाग सबसे ऊँचा रखे।——-दक्षिण-पश्चिम भाग में सीवर का गड्ढा होना भी शुगर को निमंत्रण देना है।——ब्रह्म स्थान अर्थात घर का मध्य भाग भारी हो तथा घर के मध्य में अधिक लोहे का प्रयोग हो या ब्रह्म भाग से जीना सीडीयां ऊपर कि और जा रही हो तो समझ ले कि मधुमेह का घर में आगमन होने जा रहा हें अर्थात दक्षिण-पश्चिम भाग यदि आपने सुधार लिया तो काफी हद तक आप असाध्य रोगों से मुक्त हो जायेगे कुछ सावधानियां और करे जैसे कि….——अपने बेडरूम में कभी भी भूल कर भी खाना ना खाए।——अपने बेडरूम में जूते चप्पल नए या पुराने बिलकुल भी ना रखे।——मिटटी के घड़े का पानी का इस्तेमाल करे तथा घडे में प्रतिदिन सात तुलसी के पत्ते डाल कर उसे प्रयोग करे। —–दिन में एक बार अपनी माता के हाथ का बना हुआ खाना अवश्य खाए। —–अपने पिता को तथा जो घर का मुखिया हो उसे पूर्ण सम्मान दे।——प्रत्येक मंगलवार को अपने मित्रों को मिष्ठान जरूर दे।——रविवार भगवान सूर्य को जल दे कर यदि बन्दरों को गुड खिलाये तो आप स्वयं अनुभव करेंगे की मधुमेह शुगर कितनी जल्दी जा रही है।——ईशानकोण से लोहे की सारी वस्तुए हटा ले।इन सब के करने से आप मधुमेह मुक्त हो सकते है. वृहस्पति देव की हल्दी की एक गाँठ लेकर एक चम्मच शहद में सिलपत्थर में घिस कर सुबह खाली पेट पीने से मधुमेह से मुक्त हो सकते है।===========================================—–पूर्व दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–—-यदि भवन में पूर्व दिशा का स्थान ऊँचा हो, तो व्यक्ति का सारा जीवन आर्थिक अभावों, परेशानियों में ही व्यतीत होता रहेगा और उसकी सन्तान अस्वस्थ, कमजोर स्मरणशक्ति वाली, पढाई-लिखाई में जी चुराने तथा पेट और यकृत के रोगों से पीडित रहेगी.—–यदि पूर्व दिशा में रिक्त स्थान न हो और बरामदे की ढलान पश्चिम दिशा की ओर हो, तो परिवार के मुखिया को आँखों की बीमारी, स्नायु अथवा ह्रदय रोग की स्मस्या का सामना करना पडता है.—–घर के पूर्वी भाग में कूडा-कर्कट, गन्दगी एवं पत्थर, मिट्टी इत्यादि के ढेर हों, तो गृहस्वामिनी में गर्भहानि का सामना करना पडता है.—–भवन के पश्चिम में नीचा या रिक्त स्थान हो, तो गृहस्वामी यकृत, गले, गाल ब्लैडर इत्यादि किसी बीमारी से परिवार को मंझधार में ही छोडकर अल्पावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.—–यदि पूर्व की दिवार पश्चिम दिशा की दिवार से अधिक ऊँची हो, तो संतान हानि का सामना करना पडता है.—–अगर पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया जाए, तो घर की बहू-बेटियाँ अवश्य अस्वस्थ रहेंगीं.—-बचाव के उपाय:—–—- पूर्व दिशा में पानी, पानी की टंकी, नल, हैंडापम्प इत्यादि लगवाना शुभ रहेगा.—–पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है, जो कि कालपुरूष के मुख का प्रतीक है. इसके लिए पूर्वी दिवार पर ‘सूर्य यन्त्र’ स्थापित करें और छत पर इस दिशा में लाल रंग का ध्वज(झंडा) लगायें.—– पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगें. धन और वंश की वृद्धि होगी तथा समाज में मान-प्रतिष्ठा बढेगी.—-पश्चिम दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–—-पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है. यह स्थान कालपुरूष का पेट, गुप्ताँग एवं प्रजनन अंग है.—–यदि पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो परिवार में फेफडे, मुख, छाती और चमडी इत्यादि के रोगों का सामना करना पडता है.—-यदि भवन का पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो पुरूष संतान की रोग बीमारी पर व्यर्थ धन का व्यय होता रहेगा.—-यदि घर के पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरूष सदस्यों को लम्बी बीमारियों का शिकार होना पडेगा.—-यदि भवन का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो, तो अकारण व्यर्थ में धन का अपव्यय होता रहेगा.—-यदि पश्चिम दिशा की दिवार में दरारें आ जायें, तो गृहस्वामी के गुप्ताँग में अवश्य कोई बीमारी होगी.—–यदि पश्चिम दिशा में रसोईघर अथवा अन्य किसी प्रकार से अग्नि का स्थान हो, तो पारिवारिक सदस्यों को गर्मी, पित्त और फोडे-फिन्सी, मस्से इत्यादि की शिकायत रहेगी.—–बचाव के उपाय:—–—–ऎसी स्थिति में पश्चिमी दिवार पर ‘वरूण यन्त्र’ स्थापित करें.—–परिवार का मुखिया न्यूनतम 11 शनिवार लगातार उपवास रखें और गरीबों में काले चने वितरित करे.—-पश्चिम की दिवार को थोडा ऊँचा रखें और इस दिशा में ढाल न रखें.—-पश्चिम दिशा में अशोक का एक वृक्ष लगायें.—-उत्तर दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–— उत्तर दिशा का प्रतिनिधि ग्रह बुध है और भारतीय वास्तुशास्त्र में इस दिशा को कालपुरूष का ह्रदय स्थल माना जाता है. जन्मकुंडली का चतुर्थ सुख भाव इसका कारक स्थान है.—-यदि उत्तर दिशा ऊँची हो और उसमें चबूतरे बने हों, तो घर में गुर्दे का रोग, कान का रोग, रक्त संबंधी बीमारियाँ, थकावट, आलस, घुटने इत्यादि की बीमारियाँ बनी रहेंगीं.—– यदि उत्तर दिशा अधिक उन्नत हो, तो परिवार की स्त्रियों को रूग्णता का शिकार होना पडता है.—बचाव के उपाय :—–यदि उत्तर दिशा की ओर बरामदे की ढाल रखी जाये, तो पारिवारिक सदस्यों विशेषतय: स्त्रियों का स्वास्थय उत्तम रहेगा. रोग-बीमारी पर अनावश्यक व्यय से बचे रहेंगें और उस परिवार में किसी को भी अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पडेगा.—– इस दिशा में दोष होने पर घर के पूजास्थल में ‘बुध यन्त्र’ स्थापित करें.—–परिवार का मुखिया 21 बुधवार लगातार उपवास रखे.—–भवन के प्रवेशद्वार पर संगीतमय घंटियाँ लगायें.—–उत्तर दिशा की दिवार पर हल्का हरा (Parrot Green) रंग करवायें.—–दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–दक्षिण दिशा का प्रतिनिधि ग्रह मंगल है, जो कि कालपुरूष के बायें सीने, फेफडे और गुर्दे का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली का दशम भाव इस दिशा का कारक स्थान होता है.—-यदि घर की दक्षिण दिशा में कुआँ, दरार, कचरा, कूडादान, कोई पुराना सामान इत्यादि हो, तो गृहस्वामी को ह्रदय रोग, जोडों का दर्द, खून की कमी, पीलिया, आँखों की बीमारी, कोलेस्ट्राल बढ जाना अथवा हाजमे की खराबीजन्य विभिन्न प्रकार के रोगों का सामना करना पडता है.—-दक्षिण दिशा में उत्तरी दिशा से कम ऊँचा चबूतरा बनाया गया हो, तो परिवार की स्त्रियों को घबराहट, बेचैनी, ब्लडप्रैशर, मूर्च्छाजन्य रोगों से पीडा का कष्ट भोगना पडता है.—-यदि दक्षिणी भाग नीचा हो, ओर उत्तर से अधिक रिक्त स्थान हो, तो परिवार के वृद्धजन सदैव अस्वस्थ रहेंगें. उन्हे उच्चरक्तचाप, पाचनक्रिया की गडबडी, खून की कमी, अचानक मृत्यु अथवा दुर्घटना का शिकार होना पडेगा. दक्षिण पिशाच का निवास है, इसलिए इस तरफ थोडी जगह खाली छोडकर ही भवन का निर्माण करवाना चाहिए.—-यदि किसी का घर दक्षिणमुखी हो ओर प्रवेश द्वार नैऋत्याभिमुख बनवा लिया जाए, तो ऎसा भवन दीर्घ व्याधियाँ एवं किसी पारिवारिक सदस्य को अकाल मृत्यु देने वाला होता है.बचाव के उपाय:———-यदि दक्षिणी भाग ऊँचा हो, तो घर-परिवार के सभी सदस्य पूर्णत: स्वस्थ एवं संपन्नता प्राप्त करेंगें. इस दिशा में किसी प्रकार का वास्तुजन्य दोष होने की स्थिति में छत पर लाल रक्तिम रंग का एक ध्वज अवश्य लगायें.—घर के पूजनस्थल में ‘श्री हनुमंतयन्त्र’ स्थापित करें.—-दक्षिणमुखी द्वार पर एक ताम्र धातु का ‘मंगलयन्त्र’ लगायें.—प्रवेशद्वार के अन्दर-बाहर दोनों तरफ दक्षिणावर्ती सूँड वाले गणपति जी की लघु प्रतिमा लगायें.—–आग्नेय में वास्तु दोष होने पर :—— पूर्व दिशा व दक्षिण दिशा को मिलाने वाले कोण को अग्नेय कोण संज्ञा दी जाती है। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है। इस कोण को अग्नि तत्व का प्रभुत्व माना गया है और इसका सीधा सम्बन्ध स्वास्थय के साथ है। यदि भवन की यह दिशा दूषित रहेंगी तो द्घर का कोई न कोई सदस्य बीमार रहेगा। इस दिशा के दोषपूर्ण रहने से व्यक्ति को क्रोधित स्वभाव वाला व चिडचिड़ा बना देगा। यदि भवन का यह कोण बढ़ा हुआ है तो यह संतान को कष्टप्रद होकर राजमय आदि देता है। इस दिशा का स्वामी ‘गणेश’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘शुक्र’ है। यदि आग्नेय ब्लॉक की पूर्वी दिशा मे सड़क सीधे उत्तर की ओर न बढ़कर घर के पास ही समाप्त हो जाए तो वह घर पराधीन हो जाएगा।—-नैऋत्य में वास्तु दोष होने पर :—— दक्षिण व पश्चिम के मध्य कोण को नेऋत्य कोण कहते है। यह कोण व्यक्ति के चरित्र का परिचय देता है। यदि भवन का यह कोण दूषित होगा तो उस भवन के सदस्यों का चरित्र प्रायः कुलषित होगा और शत्रु भय बना रहेगा। विद्वानों के अनुसार इस कोण के दूषित होने से अकस्मिक दुर्द्घटना होने के साथ ही अल्प आयु होने का भी योग होता है। यदि द्घर में इस कोण में खाली जगह है गड्डा है, भूत है या कांटेदार वृक्ष है तो गृह स्वामी बीमार, शत्रुओं से पीडित एंव सम्पन्नता से दूर रहेगा। नेऋत्य का हर कोण पूरे घर मे हर जगह संतुलित होना चाहिए, अन्यथा दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा। इस दिशा का स्वामी ‘राक्षस’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘राहु’ है।—-.वायव्य में वास्तु दोष होने पर :—— पश्चिम दिशा व उत्तर दिशा को मिलाने वाली विदिशा को वायव्य विदिशा या कोण कहते है जैसा कि नाम से ही विदित होता है कि यह कोण वायु का प्रतिनिधित्व करता है। यह वायु का ही स्थान माना जाता है। यह मानव को शांति, स्वस्थ दीर्घायु आदि प्रदान करता है। वस्तुतः यह परिवर्तन प्रदान करता है। भवन मे यदि इस कोण मे दोष हो, तो यह शत्रुता चपट हो तो, जातक भाग्यशाली होते हुए भी आनन्द नही भोग सकता है। यदि वायव्य द्घर मे सबसे बड़ा या ज्यादा गोलाकार है तो गृहस्वामी को गुप्त रोग सताएंगें। इस कोण का स्वामी ‘बटुक’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘चन्द्रमा’ माना गया है।—–ईशानमें वास्तु दोष होने पर :—— यह दिशा विवेक, धैर्य, ज्ञान, बुद्धि आदि प्रदान करती है भवन मे इस दिशा को पूरी तरह शुद्ध व पवित्र रखा जाना चाहिए। यदि यह दिशा दूषित होगी तो भवन मे प्रायः कलह व विभिन्न कष्टों को प्रदान करने के साथ व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट होती है और प्रायः कन्या संतान प्राप्त होती है। अतः भवन में इस दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस दिशा का स्वामी ‘रूद्र’ यानि भगवान शिव है और प्रतिनिधि ग्रह ‘बृहस्पति’ है।——-लगातार शारीरिक कष्ट बने रहने कि स्थिति को दूर करने के विषय में बताया कि अपने मकान के सामने अशोक के पेड़ लगायें. घर के सामने लैंप पोस्ट कुछ इस तरह से लगायें की उसका प्रकाश घर के ऊपर आये. इसके अलावे यदि आपका प्रवेश द्वार दक्षिण अथवा दक्षिण-पश्चिम में हो तो लाल रंग अथवा केवल पश्चिम में होने पर सफेद अथवा सुनहरे रंग से रंगे.——सर दर्द अथवा माइग्रेन जैसे रोग को दूर करने के लिये बेड के उत्तर पश्चिम कोने में सफेद माल जिसका किनारा भूरे रंग का हो, दबा कर रखने से समस्या का हल हो जाता है. इसके अलावे बेड कवर सफेद अथवा हल्के रंग का प्रयोग में लायें. मधुमेह की बढ़ती समस्या को नियंत्रित करने लिये अपने शयन कक्ष के उत्तर-पश्चिम दिशा में नीले रंग के फूलों का गुलदस्ता रखें. इसके अतिरिक्त सफेद मूंगा के धारण करने से भी इसे नियंत्रित किया जा सकता है.——एकाग्रता लाने के विषय में बताया कि विद्यार्थियों के कमरे की पूर्व दीवार पीला अथवा गुलाबी रंग की होनी चाहिये. साथ ही जोड़ों के दर्द के समाधान के लिये यह ध्यान अवश्य रखें कि जिस कमरे में आप सोते हैं उसकी दीवार में दरार न हो. साथ ही दक्षिण-पश्चिम भाग को भारी रखें. साथ ही भगवान विष्णु की तसवीर कमरे की पूर्व दीवार में लगाना सही माना जाता है.प्रकृति की ऊर्जा शक्तियों के संतुलित उपयोग से जीवन को खुशहाल और समृद्धिदायक कैसे बनायें? इसका व्यवस्थित अध्ययन और व्यावहारिक उपयोग करना ही वास्तु विज्ञान है।आज का आम इंसान अति व्यस्त है। दूषित वातावरण एवं समस्याओं ने उसका जीवन अंधकारमय, उदास एवं पीड़ित बना दिया है। मानव भले ही महान मेधावी क्यों न हो। प्रकृति पर विजय पाने की आकांक्षा को लेकर कितना ही प्रयत्न करे। उसे प्रकृति की शक्तियों के समक्ष नतमस्तक होना ही पड़ेगा। प्रकृति पर विजय पाने की कामना को छोड़कर उसके रहस्यों को आत्मसात करके, उसके नियमों का अनुसरण करे, तो प्रकृति की ऊर्जा शक्तियां स्वयं ही मानव समुदाय के लिये वरदान सिद्ध होगी। इस विषय में वास्तु विषय अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है। पंच-तत्वों पर आधारित वास्तु पर मानव सिद्धि प्राप्त करता है, तो वह उसे सुख-शांति और समृद्धि प्रदान कर सकती है। यही वास्तु का रहस्य है। वास्तु विषय का महत्व बढ़ने के साथ-साथ केवल पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर इस विषय में इतने अपरिपक्व एवं अज्ञानी लोग प्रवेश कर चुके हैं कि आम व्यक्ति के लिये सही-गलत का फैसला कर पाना मुश्किल हो जाता है। बाजार में वास्तु-शास्त्र से संबंधित मिलने वाली लगभग सभी पुस्तकों में एक ही तरह की बातें लिखी रहती हैं। इसका अर्थ यह है कि यह पुस्तकें लेखक की मौलिक रचना नहीं है और ना ही स्वयं शोध या अनुसंधान करके लिखी गयी है। बल्कि शास्त्रों में लिखी गयी बातों को अपनी भाषा में पिरो दी जाती है या फिर अन्य पुस्तकों की नकल, जिन्हें पढ़कर आम इंसान वास्तु-विषय के प्रति भ्रमित ही रहता है। जब कई मकानों का अवलोकन किया जाता है, तब हम यह देखते हैं कि प्रत्येक मकान का आकार एवं दिशाएं अलग-अलग होती हैं। जबकि पुस्तकों में लगभग एक ही तरह के सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है। आप स्वयं चिंतन कर सकते हैं कि जब अलग-अलग मकान की दिशाएं भिन्न-भिन्न रहती है, तब अलग-अलग मकान में वास्तु के सिद्धांत भी पृथक लागू होंगे।कई महानुभावों का यह सोचना है कि भवन में वास्तु के सिद्धांतों का पालन करने के बावजूद भी जीवन समस्याग्रसित रहता है। निश्चित ही यह दोष वास्तु विषय का नहीं माना जा सकता है बल्कि बिना अनुभव के अज्ञानियों के परामर्श का ही नतीजा होता है। कमी व्यक्ति के ज्ञान में संभव है, वास्तु विज्ञान में नहीं।कुशल एवं अनुभवी वास्तु विशेषज्ञ के परामर्श के अनुसार वास्तु के सिद्धांतों का पालन करते हुए भवन का निर्माण कार्य किया जाये तो, वहाँ पर रहने वालों का जीवन निरंतर खुशहाल, समृद्धिदायक और उन्नतिशील बना रहता है। वास्तु की दिशाएँ और तत्व सुधरते ही, ग्रह दशा भी स्वयं सुधरने लगती है। वास्तु के सिद्धांतों का परिपालन करते हुए, यदि मकान का निर्माण एवं सामान रखने की व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन किया जाये तो निश्चय ही वह मकान गृह स्वामी एवं वहाँ पर रहने वालों के लिये समृद्धिदायक एवं मंगलमय सिद्ध होगा। *वनिता कासनियां पंजाब*🌷🌷🙏🙏🌷🌷

वास्तु एवं रोग (वास्तु शास्त्र का प्रयोग रोग निवारण के लिए) ; vastu and diseases*By(समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब)*चौंकिये मत बिलकुल सही बात है कि जब हम वास्तु शास्त्र के द्वारा जीवन की अनेकों समस्याए ठीक कर सकने में सक्षम है तो शारीरिक व्याधियों या रोगों को ठीक नहीं कर सकते हें.?व्यक्ति वास्तु शास्त्र के नियम अनुसार यदि निवास करता है तो समस्त बाधाए समाप्त हो जाती है. वास्तु शास्त्र प्राचीन वैज्ञानिक जीवन शैली है वास्तु विज्ञान सम्मत तो है ही साथ ही वास्तु का सम्बन्ध ग्रह नक्षत्रों एवम धर्म से भी है ग्रहों के अशुभ होने तथा वास्तु दोष विद्यमान होने से व्यक्ति को बहुत भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ता है. वास्तु शास्त्र अनुसार पंच तत्वों पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश और वायु तथा वास्तु के आठ कोण दिशाए एवम ब्रह्म स्थल केन्द्र को संतुलित करना अति आवश्यक होता है जिससे जीवन हमारा एवं परिवार सुखमय रह सके. वास्तु शास्त्र के कुछ नियम रोग निवारण में भी सहायक सिद्ध होते है… आपको विस्मय होना स्वाभाविक है जो रोग राजसी श्रेणी में आ कर फिर की समाप्त नहीं होता बल्कि केवल दवाईयों के द्वारा नियंत्रित हो कर जीवन भर हमें दंड देता रहता है वही मधुमेह को हमारे ऋषि मुनिओं ने वास्तु शास्त्र के द्वारा नियंत्रण की बात तो दूर है पूरी तरह से सफाया करने पर अग्रसित हो रहा है दुर्भाग्य कि बात है कि हम विशवास नहीं करते आपकी बात बिलकुल सही है इससे पहले मै भी कभी विशवास नहीं रखता था लेकिन जब से वास्तु शास्त्र के नियम मेने अपने घर एवं अपने व अपने परिवार के लोगों पर लगाए तो कुछ समय बाद मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा मै शत प्रतिशत सफल हुआ आज में समाज की भलाई के लिए साथ ही यह भी बताने का पूरा प्रयास करूँगा की आधुनिक दौड़ में अपने पीछे कि सभ्यता को भी याद रखे जो कि सटीक व हमारे जीवन में शत प्रतिशत कारगर सिद्ध होती आई है. वास्तु सही रूप से जीवन की एक कला है क्योंकि हर व्यक्ति का शरीर उर्जा का केन्द्र होता है. जंहा भी व्यक्ति निवास करता है वहाँ कि वस्तुओं की उर्जा अपनी होती है और वह मनुष्य की उर्जा से तालमेल रखने की कोशिश करती है. यदि उस भवन/स्थान की उर्जा उस व्यक्ति के शरीर की उर्जा से ज्यादा संतुलित हो तो उस स्थान से विकास होता है शरीर से स्वस्थ रहता है सही निर्णय लेने में समर्थ होता है सफलता प्राप्त करने में उत्साह बढता है,धन की वृद्धि होती है जिससे समृधि बढती है यदि वास्तु दोष होने एवं उस स्थान की उर्जा संतुलित नहीं होने से अत्यधिक मेहनत करने पर भी सफलता नहीं मिलती. वह व्यक्ति अनेक व्याधियो व रोगों से दुखी होने लगता है अपयश तथा हानि उठानी पडती है. भारत में प्राचीन काल से ही वास्तु शास्त्र को पर्याप्त मान्यता दी जाती रही है। अनेक प्राचीन इमारतें वास्तु के अनुरूप निर्मित होने के कारण ही आज तक अस्तित्व में है। वास्तु के सिद्धांत पूर्ण रूप से वैज्ञानिक हैं, क्योंकि इस शास्त्र् में हमें प्राप्त होने वाली सकारात्मक ऊर्जा शक्तियों का समायोजन पूर्ण रूप से वैज्ञानिक ढंग से करना बताया गया है।वास्तु के सिद्धांतों का अनुपालन करके बनाए गए गृह में रहने वाले प्राणी सुख, शांति, स्वास्थ्य, समृद्धि इत्यादि प्राप्त करते हैं। जबकि वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत बनाये गए गृह में रहने वाले समय-असमय प्रतिकूलता का अनुभव करते हैं एवं कष्टपद जीवन व्यतीत करते हैं। कई व्य-क्तियों के मन में यह शंका होती है कि वास्तु शास्त्रब का अधिकतम उपयोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न वर्ग ही करते हैं। मध्यम वर्ग के लिए इस विषय का उपयोग कम होता है। निस्संदेह यह धारणा गलत है। वास्तु विषय किसी वर्ग या जाति विशेष के लिये ही नहीं है, बल्कि वास्तु शास्त्रत संपूर्ण मानव जाति के लिये प्रकृति की ऊर्जा शक्तियों को दिलाने का ईश्वैर प्रदत्त एक अनुपम वरदान है।वास्तु विषय में दिशाओं एवं पंच-तत्त्वों की अत्यधिक उपयोगिता है। ये तत्त्वं जल-अग्नि-वायु-पृथ्वी-आकाश है। भवन निर्माण में इन तत्त्वों का उचित अनुपात ही, उसमें निवास करने वालों का जीवन प्रसन्नए एवं समृद्धिदायक बनाता है। भवन का निर्माण वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप करने पर, उस स्थल पर निवास करने वालों को प्राकृतिक एवं चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति एवं सूर्य की शुभ एवं स्वास्थ्यपद रश्मियों का शुभ प्रभाव पाप्त होता है। यह शुभ एवं सकारात्मक प्रभाव, वहाँ पर निवास करने वालों के सोच-विचार तथा कार्यशैली को विकासवादी बनाने में सहायक होता है, जिससे मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ एवं प्रसन्नचित रहती है और बौद्धिक संतुलन भी बना रहता है। ताकि हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेकर सुख-समृद्धिदायक एवं उन्नतिशील जीवन व्यतीत कर सकें। इसके विपरीत यदि भवन का निर्माण का कार्य वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत करने पर, उस स्थान पर निवास एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों के विचार तथा कार्यशैली निश्चित ही दुष्प्रभावी होंगी और मानसिक अशांति एवं परेशानियाँ बढ़ जायेंगी। इन पांच तत्त्वोंष के उचित संतुलन के अभाव में शारीरिक स्वास्थ्य तथा बुद्धि भी विचलित हो जाती है। इन तत्वों का उचित संतुलन ही, गृह में निवास करने वाले पाणियों को मानसिक तनाव से मुक्त करता है। ताकि वह उचित-अनुचित का विचार करके, सही निर्णय लेकर, उन्नतिशील एवं आनंददायक जीवन व्यतीत कर सकें। ब्रह्माण्ड में विद्यमान अनेक ग्रहों में से जीवन पृथ्वी पर ही है। क्योंकि पृथ्वी पर इन पंच-तत्त्वों का संतुलन निरंतर बना रहता है। हमें सुख और दुःख देने वाला कोई नहीं है। हम अपने अविवेकशील आचरण और प्रकृति के नियमों के विरुद्ध आहार-विहार करने से समस्याग्रस्त रहते हैं। पंच-तत्त्वों के संतुलन के विपरीत अपना जीवन निर्वाह करने से ही हमें दुःख और कष्ट भोगने पड़ते हैं।जब तक मनुष्य के ग्रह अच्छे रहते हैं वास्तुदोष का दुष्प्रभाव दबा रहता है पर जब उसकी ग्रहदशा निर्बल पड़ने लगती है तो वह वास्तु विरुध्द बने मकान में रहकर अनेक दुःखों, कष्टों, तनाव और रोगों से घिर जाता है। इसके विपरीत यदि मनुष्य वास्तु शास्त्र के अनुसार बने भवन में रहता है तो उसके ग्रह निर्बल होने पर भी उसका जीवन सामान्य ढंग से शांति पूर्ण चलता है।यथा— शास्तेन सर्वस्य लोकस्य परमं सुखम्चतुवर्ग फलाप्राप्ति सलोकश्च भवेध्युवम्शिल्पशास्त्र परिज्ञान मृत्योअपि सुजेतांव्रजेत्परमानन्द जनक देवानामिद मीरितम्शिल्पं बिना नहि देवानामिद मीरितम्शिल्पं बिना नहि जगतेषु लोकेषु विद्यते।जगत् बिना न शिल्पा च वतंते वासवप्रभोः॥विश्व के प्रथम विद्वान वास्तुविद् विश्वकर्मा के अनुसार शास्त्र सम्मत निर्मित भवन विश्व को सम्पूर्ण सुख, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। वास्तु शिल्पशास्त्र का ज्ञान मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कराकर लोक में परमानन्द उत्पन्न करता है, अतः वास्तु शिल्प ज्ञान के बिना निवास करने का संसार में कोई महत्व नहीं है। जगत और वास्तु शिल्पज्ञान परस्पर पर्याय हैं।क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंच रचित अति अघम शरीरा।मानव शरीर पंचतत्वों से निर्मित है- पृथ्वी, जल आकाश, वायु और अग्नि। मनुष्य जीवन में ये पंचमहाभूत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके सही संतुलन पर ही मनुष्य की बुध्दि का संतुलन एवं आरोग्य निर्भर हैं जिसमें वह अपने जीवन में सही निर्णय लेकर सुखी जीवन व्यतीत करता है। इसी प्रकार निवास स्थान में इन पांच तत्वों का सही संतुलन होने से उसके निवासी मानसिक तनाव से मुक्त रहकर सही ढंग से विचार करके समस्त कार्य सम्पन्न कर पायेंगे और सुखी जीवन जी सकेंगे।वास्तु विषय में दिशाओं एवं पंच-तत्वों का अत्यधिक महत्व है। यह तत्व, जल-अग्नि-वायु-पृथ्वी-आकाश है। भवन निर्माण में इन तत्वों का उचित तालमेल ही, वहाँ पर निवास करने वालों का जीवन खुशहाल एवं समृद्धिदायक बनाता है। भवन का निर्माण वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप करने पर, उस स्थल पर निवास करने वालों को पाकृतिक एवं चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति एवं सूर्य की शुभ एवं स्वास्थ्यपद रश्मियों का शुभ पभाव पाप्त होता है। यह शुभ एवं सकारात्मक पभाव, वहाँ पर निवास करने वालों के सोच-विचार तथा कार्यशैली को विकासवादी बनाने में सहायक होता है। जिससे मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ एवं पसन्नचित रहती है। साथ ही बौद्धिक संतुलन भी बना रहता है। ताकि हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेकर सुख-समृद्धिदायक एवं उन्नतिशील जीवन व्यतीत कर सकें। इसके विपरीत यदि भवन का निर्माण कार्य वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत करने पर, उस स्थान पर निवास एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों के विचार तथा कार्यशैली निश्चित ही दुष्पभावी होगी। जिसके कारण मानसिक अशांति एवं परेशानियाँ बढ़ जायेंगी। इन पांच तत्वों के उचित संतुलन एवं तालमेल के अभाव में शारीरिक स्वास्थ्य तथा बुद्धि भी विचलित हो जाती है।इन तत्वों का उचित संतुलन ही, वहाँ पर निवास करने वाले पाणियों को मानसिक तनाव से मुक्त करता है। ताकि वह उचित-अनुचित का विचार करके, सही निर्णय लेकर, उन्नतिशील एवं आनंददायक जीवन व्यतीत कर सके। ब्रह्माण्ड में विद्यमान अनेक ग्रहों में से जीवन पृथ्वी पर ही है। क्योंकि पथ्वी पर इन पंच-तत्वों का संतुलन निरंतर बना रहता है। हमें सुख और दुःख देने वाला कोई नहीं है। हम अपने अविवेकशील आचरण और पकृति के नियमों के विरुद्ध आहारविहार करने से समस्याग्रस्त रहते हैं। पंच-तत्वों के संतुलन के विपरीत अपना जीवन निर्वाह करने से ही हमें दुःख और कष्ट भोगने पड़ते हैं।देवशिल्पी विश्वकर्मा द्वारा रचित इस भारतीय वास्तु शास्त्र का एकमात्र उदेश्य यही है कि गृहस्वामी को भवन शुभफल दे, उसे पुत्र-पौत्रादि, सुख-समृद्धि प्रदान कर लक्ष्मी एवं वैभव को बढाने वाला हो.इस विलक्षण भारतीय वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने से घर में स्वास्थय, खुशहाली एवं समृद्धि को पूर्णत: सुनिश्चित किया जा सकता है. एक इन्जीनियर आपके लिए सुन्दर तथा मजबूत भवन का निर्माण तो कर सकता है, परन्तु उसमें निवास करने वालों के सुख और समृद्धि की गारंटी नहीं दे सकता. लेकिन भारतीय वास्तुशास्त्र आपको इसकी पूरी गारंटी देता है.यहाँ हम अपने पाठकों को जानकारी दे रहे हैं कि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन न करने से पारिवारिक सदस्यों को किस तरह से नाना प्रकार के रोगों का सामना करना पड सकता है.यहाँ हम ऐसे ही कुछ नियम लिख रहे है जिन्हें अपना कर आप स्वय तथा अपने परिवारजनों को कुछ रोगों से मुक्ति दिला सकते है..जेसे—दमा के रोगियों के लिए वास्तु नियम—यदि घर में दमा का रोगी हो तो अपने बेठने वाले कमरे क़ी पश्चिम क़ी दिवार पर पेंडुलम वाली सफेद या सुनहरी-पीले रंग क़ी दिवार घडी लगा देनी चाहिए,शरीर क़ी सुरक्षा हेतु तीन मुखी रुद्राक्ष भी धारण करे, मिर्गी, हिस्टीरिया या दिमागी कमजोरी के लिए वास्तु नियम—उतर-पश्चिम, दखिन- पश्चिम, पश्चिम या दक्षिण दिशा के शयनकक्ष में सोना चाहिए, रोगी का शयन कक्ष भवन के उत्तर-पूर्व दिशा में कतई नही होना चाहिए, इससे अशांति बनती है, पाँचमुखी रुद्राक्ष या एकमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए… शिव उपासना करना शुभ/लाभ दायक रहेगा,उच्च रक्तचाप-मधुमेह के उपचार के लिए वास्तु नियम—अपने भूखंड और भवन के बीच के स्थान में कोई स्टोर, लोहे का जाल या बेकार का सामान नही होना चाहिए, अपने घर क़ी उत्तर-पूर्व दिशा में नीले फूल वाला पौधा लगाये,जोड़ो के दर्द, गठिया, सियाटिका और पीठ दर्द हेतु के लिए वास्तु नियम—आपके घर के कमरों क़ी दीवारों पर दरारे नही होनी चाहिए, उन पर कवर/प्लास्टर करवा देना चाहिए या दरारों पर किसी झरने या पहाड़ी का पोस्टर लगा देना चाहिए, सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना भी ठीक रहेगा,ह्रदय रोग निवारण हेतु के लिए वास्तु नियम—सुबह उठने के बाद अपने सोने वाले पलंग क़ी साइड पर ३-4 बार दाए हाथ से हल्का सा थपथपाय इसे नो (09 ) दिनों तक करे, सोने वाले कमरे क़ी उत्तर दिवार पर क्रिस्टल गेंद टांग दे और गेंदों के नीचे चारो दिशाओ में एक एक क्रिस्टल पिरामिड रख दे, घर टूटी खिडकिया शीशे, आईने नही होने चाहिए, अगर ऐसा हो तो उन्हें भी बदल दीजिये, टूटे शीशे और खिडकियों को कभी भी अखवार, कागज या कपड़े से नहीं ढकें…मधुमेह /डायबिटीज निवारण हेतु के लिए वास्तु नियम–वास्तु शास्त्र प्राचीन वैज्ञानिक जीवन शैली है वास्तु विज्ञान सम्मत तो है ही साथ ही वास्तु का सम्बन्ध ग्रह नक्षत्रों एवम धर्म से भी है ग्रहों के अशुभ होने तथा वास्तु दोष विद्यमान होने से व्यक्ति को बहुत भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ता है. वास्तु शास्त्र अनुसार पंच तत्वों पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश और वायु तथा वास्तु के आठ कोण दिशाए एवम ब्रह्म स्थल केन्द्र को संतुलित करना अति आवश्यक होता है जिससे जीवन हमारा एवं परिवार सुखमय रह सके.चिकित्सा शास्त्र में बहुत से लक्षण सुनने और देखने में मिलते है लेकिन वास्तु शास्त्र में बिलकुल स्पष्ट है कि घर/भवन का दक्षिण-पश्चिम भाग अर्थात नैऋत्य कोण ही इस रोग का जनक बनता है देखिये कैसे…—- दक्षिण-पश्चिम कोण में कुआँ,जल बोरिंग या भूमिगत पानी का स्थान मधुमेह बढाता है।—–दक्षिण-पश्चिम कोण में हरियाली बगीचा या छोटे छोटे पोधे भी शुगर का कारण है।—–घर/भवन का दक्षिण-पश्चिम कोना बड़ा हुआ है तब भी शुगर आक्रमण करेगी।—–यदि दक्षिण-पश्चिम का कोना घर में सबसे छोटा या सिकुड भी हुआ है तो समझो मधुमेह का द्वार खुल गया।——दक्षिण-पश्चिम भाग घर या वन की ऊँचाई से सबसे नीचा है मधुमेह बढेगी. इसलिए यह भाग सबसे ऊँचा रखे।——-दक्षिण-पश्चिम भाग में सीवर का गड्ढा होना भी शुगर को निमंत्रण देना है।——ब्रह्म स्थान अर्थात घर का मध्य भाग भारी हो तथा घर के मध्य में अधिक लोहे का प्रयोग हो या ब्रह्म भाग से जीना सीडीयां ऊपर कि और जा रही हो तो समझ ले कि मधुमेह का घर में आगमन होने जा रहा हें अर्थात दक्षिण-पश्चिम भाग यदि आपने सुधार लिया तो काफी हद तक आप असाध्य रोगों से मुक्त हो जायेगे कुछ सावधानियां और करे जैसे कि….——अपने बेडरूम में कभी भी भूल कर भी खाना ना खाए।——अपने बेडरूम में जूते चप्पल नए या पुराने बिलकुल भी ना रखे।——मिटटी के घड़े का पानी का इस्तेमाल करे तथा घडे में प्रतिदिन सात तुलसी के पत्ते डाल कर उसे प्रयोग करे। —–दिन में एक बार अपनी माता के हाथ का बना हुआ खाना अवश्य खाए। —–अपने पिता को तथा जो घर का मुखिया हो उसे पूर्ण सम्मान दे।——प्रत्येक मंगलवार को अपने मित्रों को मिष्ठान जरूर दे।——रविवार भगवान सूर्य को जल दे कर यदि बन्दरों को गुड खिलाये तो आप स्वयं अनुभव करेंगे की मधुमेह शुगर कितनी जल्दी जा रही है।——ईशानकोण से लोहे की सारी वस्तुए हटा ले।इन सब के करने से आप मधुमेह मुक्त हो सकते है. वृहस्पति देव की हल्दी की एक गाँठ लेकर एक चम्मच शहद में सिलपत्थर में घिस कर सुबह खाली पेट पीने से मधुमेह से मुक्त हो सकते है।===========================================—–पूर्व दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–—-यदि भवन में पूर्व दिशा का स्थान ऊँचा हो, तो व्यक्ति का सारा जीवन आर्थिक अभावों, परेशानियों में ही व्यतीत होता रहेगा और उसकी सन्तान अस्वस्थ, कमजोर स्मरणशक्ति वाली, पढाई-लिखाई में जी चुराने तथा पेट और यकृत के रोगों से पीडित रहेगी.—–यदि पूर्व दिशा में रिक्त स्थान न हो और बरामदे की ढलान पश्चिम दिशा की ओर हो, तो परिवार के मुखिया को आँखों की बीमारी, स्नायु अथवा ह्रदय रोग की स्मस्या का सामना करना पडता है.—–घर के पूर्वी भाग में कूडा-कर्कट, गन्दगी एवं पत्थर, मिट्टी इत्यादि के ढेर हों, तो गृहस्वामिनी में गर्भहानि का सामना करना पडता है.—–भवन के पश्चिम में नीचा या रिक्त स्थान हो, तो गृहस्वामी यकृत, गले, गाल ब्लैडर इत्यादि किसी बीमारी से परिवार को मंझधार में ही छोडकर अल्पावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.—–यदि पूर्व की दिवार पश्चिम दिशा की दिवार से अधिक ऊँची हो, तो संतान हानि का सामना करना पडता है.—–अगर पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया जाए, तो घर की बहू-बेटियाँ अवश्य अस्वस्थ रहेंगीं.—-बचाव के उपाय:—–—- पूर्व दिशा में पानी, पानी की टंकी, नल, हैंडापम्प इत्यादि लगवाना शुभ रहेगा.—–पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है, जो कि कालपुरूष के मुख का प्रतीक है. इसके लिए पूर्वी दिवार पर ‘सूर्य यन्त्र’ स्थापित करें और छत पर इस दिशा में लाल रंग का ध्वज(झंडा) लगायें.—– पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगें. धन और वंश की वृद्धि होगी तथा समाज में मान-प्रतिष्ठा बढेगी.—-पश्चिम दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–—-पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है. यह स्थान कालपुरूष का पेट, गुप्ताँग एवं प्रजनन अंग है.—–यदि पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो परिवार में फेफडे, मुख, छाती और चमडी इत्यादि के रोगों का सामना करना पडता है.—-यदि भवन का पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो पुरूष संतान की रोग बीमारी पर व्यर्थ धन का व्यय होता रहेगा.—-यदि घर के पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरूष सदस्यों को लम्बी बीमारियों का शिकार होना पडेगा.—-यदि भवन का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो, तो अकारण व्यर्थ में धन का अपव्यय होता रहेगा.—-यदि पश्चिम दिशा की दिवार में दरारें आ जायें, तो गृहस्वामी के गुप्ताँग में अवश्य कोई बीमारी होगी.—–यदि पश्चिम दिशा में रसोईघर अथवा अन्य किसी प्रकार से अग्नि का स्थान हो, तो पारिवारिक सदस्यों को गर्मी, पित्त और फोडे-फिन्सी, मस्से इत्यादि की शिकायत रहेगी.—–बचाव के उपाय:—–—–ऎसी स्थिति में पश्चिमी दिवार पर ‘वरूण यन्त्र’ स्थापित करें.—–परिवार का मुखिया न्यूनतम 11 शनिवार लगातार उपवास रखें और गरीबों में काले चने वितरित करे.—-पश्चिम की दिवार को थोडा ऊँचा रखें और इस दिशा में ढाल न रखें.—-पश्चिम दिशा में अशोक का एक वृक्ष लगायें.—-उत्तर दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–— उत्तर दिशा का प्रतिनिधि ग्रह बुध है और भारतीय वास्तुशास्त्र में इस दिशा को कालपुरूष का ह्रदय स्थल माना जाता है. जन्मकुंडली का चतुर्थ सुख भाव इसका कारक स्थान है.—-यदि उत्तर दिशा ऊँची हो और उसमें चबूतरे बने हों, तो घर में गुर्दे का रोग, कान का रोग, रक्त संबंधी बीमारियाँ, थकावट, आलस, घुटने इत्यादि की बीमारियाँ बनी रहेंगीं.—– यदि उत्तर दिशा अधिक उन्नत हो, तो परिवार की स्त्रियों को रूग्णता का शिकार होना पडता है.—बचाव के उपाय :—–यदि उत्तर दिशा की ओर बरामदे की ढाल रखी जाये, तो पारिवारिक सदस्यों विशेषतय: स्त्रियों का स्वास्थय उत्तम रहेगा. रोग-बीमारी पर अनावश्यक व्यय से बचे रहेंगें और उस परिवार में किसी को भी अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पडेगा.—– इस दिशा में दोष होने पर घर के पूजास्थल में ‘बुध यन्त्र’ स्थापित करें.—–परिवार का मुखिया 21 बुधवार लगातार उपवास रखे.—–भवन के प्रवेशद्वार पर संगीतमय घंटियाँ लगायें.—–उत्तर दिशा की दिवार पर हल्का हरा (Parrot Green) रंग करवायें.—–दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–दक्षिण दिशा का प्रतिनिधि ग्रह मंगल है, जो कि कालपुरूष के बायें सीने, फेफडे और गुर्दे का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली का दशम भाव इस दिशा का कारक स्थान होता है.—-यदि घर की दक्षिण दिशा में कुआँ, दरार, कचरा, कूडादान, कोई पुराना सामान इत्यादि हो, तो गृहस्वामी को ह्रदय रोग, जोडों का दर्द, खून की कमी, पीलिया, आँखों की बीमारी, कोलेस्ट्राल बढ जाना अथवा हाजमे की खराबीजन्य विभिन्न प्रकार के रोगों का सामना करना पडता है.—-दक्षिण दिशा में उत्तरी दिशा से कम ऊँचा चबूतरा बनाया गया हो, तो परिवार की स्त्रियों को घबराहट, बेचैनी, ब्लडप्रैशर, मूर्च्छाजन्य रोगों से पीडा का कष्ट भोगना पडता है.—-यदि दक्षिणी भाग नीचा हो, ओर उत्तर से अधिक रिक्त स्थान हो, तो परिवार के वृद्धजन सदैव अस्वस्थ रहेंगें. उन्हे उच्चरक्तचाप, पाचनक्रिया की गडबडी, खून की कमी, अचानक मृत्यु अथवा दुर्घटना का शिकार होना पडेगा. दक्षिण पिशाच का निवास है, इसलिए इस तरफ थोडी जगह खाली छोडकर ही भवन का निर्माण करवाना चाहिए.—-यदि किसी का घर दक्षिणमुखी हो ओर प्रवेश द्वार नैऋत्याभिमुख बनवा लिया जाए, तो ऎसा भवन दीर्घ व्याधियाँ एवं किसी पारिवारिक सदस्य को अकाल मृत्यु देने वाला होता है.बचाव के उपाय:———-यदि दक्षिणी भाग ऊँचा हो, तो घर-परिवार के सभी सदस्य पूर्णत: स्वस्थ एवं संपन्नता प्राप्त करेंगें. इस दिशा में किसी प्रकार का वास्तुजन्य दोष होने की स्थिति में छत पर लाल रक्तिम रंग का एक ध्वज अवश्य लगायें.—घर के पूजनस्थल में ‘श्री हनुमंतयन्त्र’ स्थापित करें.—-दक्षिणमुखी द्वार पर एक ताम्र धातु का ‘मंगलयन्त्र’ लगायें.—प्रवेशद्वार के अन्दर-बाहर दोनों तरफ दक्षिणावर्ती सूँड वाले गणपति जी की लघु प्रतिमा लगायें.—–आग्नेय में वास्तु दोष होने पर :—— पूर्व दिशा व दक्षिण दिशा को मिलाने वाले कोण को अग्नेय कोण संज्ञा दी जाती है। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है। इस कोण को अग्नि तत्व का प्रभुत्व माना गया है और इसका सीधा सम्बन्ध स्वास्थय के साथ है। यदि भवन की यह दिशा दूषित रहेंगी तो द्घर का कोई न कोई सदस्य बीमार रहेगा। इस दिशा के दोषपूर्ण रहने से व्यक्ति को क्रोधित स्वभाव वाला व चिडचिड़ा बना देगा। यदि भवन का यह कोण बढ़ा हुआ है तो यह संतान को कष्टप्रद होकर राजमय आदि देता है। इस दिशा का स्वामी ‘गणेश’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘शुक्र’ है। यदि आग्नेय ब्लॉक की पूर्वी दिशा मे सड़क सीधे उत्तर की ओर न बढ़कर घर के पास ही समाप्त हो जाए तो वह घर पराधीन हो जाएगा।—-नैऋत्य में वास्तु दोष होने पर :—— दक्षिण व पश्चिम के मध्य कोण को नेऋत्य कोण कहते है। यह कोण व्यक्ति के चरित्र का परिचय देता है। यदि भवन का यह कोण दूषित होगा तो उस भवन के सदस्यों का चरित्र प्रायः कुलषित होगा और शत्रु भय बना रहेगा। विद्वानों के अनुसार इस कोण के दूषित होने से अकस्मिक दुर्द्घटना होने के साथ ही अल्प आयु होने का भी योग होता है। यदि द्घर में इस कोण में खाली जगह है गड्डा है, भूत है या कांटेदार वृक्ष है तो गृह स्वामी बीमार, शत्रुओं से पीडित एंव सम्पन्नता से दूर रहेगा। नेऋत्य का हर कोण पूरे घर मे हर जगह संतुलित होना चाहिए, अन्यथा दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा। इस दिशा का स्वामी ‘राक्षस’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘राहु’ है।—-.वायव्य में वास्तु दोष होने पर :—— पश्चिम दिशा व उत्तर दिशा को मिलाने वाली विदिशा को वायव्य विदिशा या कोण कहते है जैसा कि नाम से ही विदित होता है कि यह कोण वायु का प्रतिनिधित्व करता है। यह वायु का ही स्थान माना जाता है। यह मानव को शांति, स्वस्थ दीर्घायु आदि प्रदान करता है। वस्तुतः यह परिवर्तन प्रदान करता है। भवन मे यदि इस कोण मे दोष हो, तो यह शत्रुता चपट हो तो, जातक भाग्यशाली होते हुए भी आनन्द नही भोग सकता है। यदि वायव्य द्घर मे सबसे बड़ा या ज्यादा गोलाकार है तो गृहस्वामी को गुप्त रोग सताएंगें। इस कोण का स्वामी ‘बटुक’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘चन्द्रमा’ माना गया है।—–ईशानमें वास्तु दोष होने पर :—— यह दिशा विवेक, धैर्य, ज्ञान, बुद्धि आदि प्रदान करती है भवन मे इस दिशा को पूरी तरह शुद्ध व पवित्र रखा जाना चाहिए। यदि यह दिशा दूषित होगी तो भवन मे प्रायः कलह व विभिन्न कष्टों को प्रदान करने के साथ व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट होती है और प्रायः कन्या संतान प्राप्त होती है। अतः भवन में इस दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस दिशा का स्वामी ‘रूद्र’ यानि भगवान शिव है और प्रतिनिधि ग्रह ‘बृहस्पति’ है।——-लगातार शारीरिक कष्ट बने रहने कि स्थिति को दूर करने के विषय में बताया कि अपने मकान के सामने अशोक के पेड़ लगायें. घर के सामने लैंप पोस्ट कुछ इस तरह से लगायें की उसका प्रकाश घर के ऊपर आये. इसके अलावे यदि आपका प्रवेश द्वार दक्षिण अथवा दक्षिण-पश्चिम में हो तो लाल रंग अथवा केवल पश्चिम में होने पर सफेद अथवा सुनहरे रंग से रंगे.——सर दर्द अथवा माइग्रेन जैसे रोग को दूर करने के लिये बेड के उत्तर पश्चिम कोने में सफेद माल जिसका किनारा भूरे रंग का हो, दबा कर रखने से समस्या का हल हो जाता है. इसके अलावे बेड कवर सफेद अथवा हल्के रंग का प्रयोग में लायें. मधुमेह की बढ़ती समस्या को नियंत्रित करने लिये अपने शयन कक्ष के उत्तर-पश्चिम दिशा में नीले रंग के फूलों का गुलदस्ता रखें. इसके अतिरिक्त सफेद मूंगा के धारण करने से भी इसे नियंत्रित किया जा सकता है.——एकाग्रता लाने के विषय में बताया कि विद्यार्थियों के कमरे की पूर्व दीवार पीला अथवा गुलाबी रंग की होनी चाहिये. साथ ही जोड़ों के दर्द के समाधान के लिये यह ध्यान अवश्य रखें कि जिस कमरे में आप सोते हैं उसकी दीवार में दरार न हो. साथ ही दक्षिण-पश्चिम भाग को भारी रखें. साथ ही भगवान विष्णु की तसवीर कमरे की पूर्व दीवार में लगाना सही माना जाता है.प्रकृति की ऊर्जा शक्तियों के संतुलित उपयोग से जीवन को खुशहाल और समृद्धिदायक कैसे बनायें? इसका व्यवस्थित अध्ययन और व्यावहारिक उपयोग करना ही वास्तु विज्ञान है।आज का आम इंसान अति व्यस्त है। दूषित वातावरण एवं समस्याओं ने उसका जीवन अंधकारमय, उदास एवं पीड़ित बना दिया है। मानव भले ही महान मेधावी क्यों न हो। प्रकृति पर विजय पाने की आकांक्षा को लेकर कितना ही प्रयत्न करे। उसे प्रकृति की शक्तियों के समक्ष नतमस्तक होना ही पड़ेगा। प्रकृति पर विजय पाने की कामना को छोड़कर उसके रहस्यों को आत्मसात करके, उसके नियमों का अनुसरण करे, तो प्रकृति की ऊर्जा शक्तियां स्वयं ही मानव समुदाय के लिये वरदान सिद्ध होगी। इस विषय में वास्तु विषय अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है। पंच-तत्वों पर आधारित वास्तु पर मानव सिद्धि प्राप्त करता है, तो वह उसे सुख-शांति और समृद्धि प्रदान कर सकती है। यही वास्तु का रहस्य है। वास्तु विषय का महत्व बढ़ने के साथ-साथ केवल पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर इस विषय में इतने अपरिपक्व एवं अज्ञानी लोग प्रवेश कर चुके हैं कि आम व्यक्ति के लिये सही-गलत का फैसला कर पाना मुश्किल हो जाता है। बाजार में वास्तु-शास्त्र से संबंधित मिलने वाली लगभग सभी पुस्तकों में एक ही तरह की बातें लिखी रहती हैं। इसका अर्थ यह है कि यह पुस्तकें लेखक की मौलिक रचना नहीं है और ना ही स्वयं शोध या अनुसंधान करके लिखी गयी है। बल्कि शास्त्रों में लिखी गयी बातों को अपनी भाषा में पिरो दी जाती है या फिर अन्य पुस्तकों की नकल, जिन्हें पढ़कर आम इंसान वास्तु-विषय के प्रति भ्रमित ही रहता है। जब कई मकानों का अवलोकन किया जाता है, तब हम यह देखते हैं कि प्रत्येक मकान का आकार एवं दिशाएं अलग-अलग होती हैं। जबकि पुस्तकों में लगभग एक ही तरह के सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है। आप स्वयं चिंतन कर सकते हैं कि जब अलग-अलग मकान की दिशाएं भिन्न-भिन्न रहती है, तब अलग-अलग मकान में वास्तु के सिद्धांत भी पृथक लागू होंगे।कई महानुभावों का यह सोचना है कि भवन में वास्तु के सिद्धांतों का पालन करने के बावजूद भी जीवन समस्याग्रसित रहता है। निश्चित ही यह दोष वास्तु विषय का नहीं माना जा सकता है बल्कि बिना अनुभव के अज्ञानियों के परामर्श का ही नतीजा होता है। कमी व्यक्ति के ज्ञान में संभव है, वास्तु विज्ञान में नहीं।कुशल एवं अनुभवी वास्तु विशेषज्ञ के परामर्श के अनुसार वास्तु के सिद्धांतों का पालन करते हुए भवन का निर्माण कार्य किया जाये तो, वहाँ पर रहने वालों का जीवन निरंतर खुशहाल, समृद्धिदायक और उन्नतिशील बना रहता है। वास्तु की दिशाएँ और तत्व सुधरते ही, ग्रह दशा भी स्वयं सुधरने लगती है। वास्तु के सिद्धांतों का परिपालन करते हुए, यदि मकान का निर्माण एवं सामान रखने की व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन किया जाये तो निश्चय ही वह मकान गृह स्वामी एवं वहाँ पर रहने वालों के लिये समृद्धिदायक एवं मंगलमय सिद्ध होगा। *वनिता कासनियां पंजाब*🌷🌷🙏🙏🌷🌷

वास्तु एवं रोग (वास्तु शास्त्र का प्रयोग रोग निवारण के लिए) ; vastu and diseases*Byसमाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*चौंकिये मत बिलकुल सही बात है कि जब हम वास्तु शास्त्र के द्वारा जीवन की अनेकों समस्याए ठीक कर सकने में सक्षम है तो शारीरिक व्याधियों या रोगों को ठीक नहीं कर सकते हें.?व्यक्ति वास्तु शास्त्र के नियम अनुसार यदि निवास करता है तो समस्त बाधाए समाप्त हो जाती है. वास्तु शास्त्र प्राचीन वैज्ञानिक जीवन शैली है वास्तु विज्ञान सम्मत तो है ही साथ ही वास्तु का सम्बन्ध ग्रह नक्षत्रों एवम धर्म से भी है ग्रहों के अशुभ होने तथा वास्तु दोष विद्यमान होने से व्यक्ति को बहुत भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ता है. वास्तु शास्त्र अनुसार पंच तत्वों पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश और वायु तथा वास्तु के आठ कोण दिशाए एवम ब्रह्म स्थल केन्द्र को संतुलित करना अति आवश्यक होता है जिससे जीवन हमारा एवं परिवार सुखमय रह सके. वास्तु शास्त्र के कुछ नियम रोग निवारण में भी सहायक सिद्ध होते है… आपको विस्मय होना स्वाभाविक है जो रोग राजसी श्रेणी में आ कर फिर की समाप्त नहीं होता बल्कि केवल दवाईयों के द्वारा नियंत्रित हो कर जीवन भर हमें दंड देता रहता है वही मधुमेह को हमारे ऋषि मुनिओं ने वास्तु शास्त्र के द्वारा नियंत्रण की बात तो दूर है पूरी तरह से सफाया करने पर अग्रसित हो रहा है दुर्भाग्य कि बात है कि हम विशवास नहीं करते आपकी बात बिलकुल सही है इससे पहले मै भी कभी विशवास नहीं रखता था लेकिन जब से वास्तु शास्त्र के नियम मेने अपने घर एवं अपने व अपने परिवार के लोगों पर लगाए तो कुछ समय बाद मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा मै शत प्रतिशत सफल हुआ आज में समाज की भलाई के लिए साथ ही यह भी बताने का पूरा प्रयास करूँगा की आधुनिक दौड़ में अपने पीछे कि सभ्यता को भी याद रखे जो कि सटीक व हमारे जीवन में शत प्रतिशत कारगर सिद्ध होती आई है. वास्तु सही रूप से जीवन की एक कला है क्योंकि हर व्यक्ति का शरीर उर्जा का केन्द्र होता है. जंहा भी व्यक्ति निवास करता है वहाँ कि वस्तुओं की उर्जा अपनी होती है और वह मनुष्य की उर्जा से तालमेल रखने की कोशिश करती है. यदि उस भवन/स्थान की उर्जा उस व्यक्ति के शरीर की उर्जा से ज्यादा संतुलित हो तो उस स्थान से विकास होता है शरीर से स्वस्थ रहता है सही निर्णय लेने में समर्थ होता है सफलता प्राप्त करने में उत्साह बढता है,धन की वृद्धि होती है जिससे समृधि बढती है यदि वास्तु दोष होने एवं उस स्थान की उर्जा संतुलित नहीं होने से अत्यधिक मेहनत करने पर भी सफलता नहीं मिलती. वह व्यक्ति अनेक व्याधियो व रोगों से दुखी होने लगता है अपयश तथा हानि उठानी पडती है. भारत में प्राचीन काल से ही वास्तु शास्त्र को पर्याप्त मान्यता दी जाती रही है। अनेक प्राचीन इमारतें वास्तु के अनुरूप निर्मित होने के कारण ही आज तक अस्तित्व में है। वास्तु के सिद्धांत पूर्ण रूप से वैज्ञानिक हैं, क्योंकि इस शास्त्र् में हमें प्राप्त होने वाली सकारात्मक ऊर्जा शक्तियों का समायोजन पूर्ण रूप से वैज्ञानिक ढंग से करना बताया गया है।वास्तु के सिद्धांतों का अनुपालन करके बनाए गए गृह में रहने वाले प्राणी सुख, शांति, स्वास्थ्य, समृद्धि इत्यादि प्राप्त करते हैं। जबकि वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत बनाये गए गृह में रहने वाले समय-असमय प्रतिकूलता का अनुभव करते हैं एवं कष्टपद जीवन व्यतीत करते हैं। कई व्य-क्तियों के मन में यह शंका होती है कि वास्तु शास्त्रब का अधिकतम उपयोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न वर्ग ही करते हैं। मध्यम वर्ग के लिए इस विषय का उपयोग कम होता है। निस्संदेह यह धारणा गलत है। वास्तु विषय किसी वर्ग या जाति विशेष के लिये ही नहीं है, बल्कि वास्तु शास्त्रत संपूर्ण मानव जाति के लिये प्रकृति की ऊर्जा शक्तियों को दिलाने का ईश्वैर प्रदत्त एक अनुपम वरदान है।वास्तु विषय में दिशाओं एवं पंच-तत्त्वों की अत्यधिक उपयोगिता है। ये तत्त्वं जल-अग्नि-वायु-पृथ्वी-आकाश है। भवन निर्माण में इन तत्त्वों का उचित अनुपात ही, उसमें निवास करने वालों का जीवन प्रसन्नए एवं समृद्धिदायक बनाता है। भवन का निर्माण वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप करने पर, उस स्थल पर निवास करने वालों को प्राकृतिक एवं चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति एवं सूर्य की शुभ एवं स्वास्थ्यपद रश्मियों का शुभ प्रभाव पाप्त होता है। यह शुभ एवं सकारात्मक प्रभाव, वहाँ पर निवास करने वालों के सोच-विचार तथा कार्यशैली को विकासवादी बनाने में सहायक होता है, जिससे मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ एवं प्रसन्नचित रहती है और बौद्धिक संतुलन भी बना रहता है। ताकि हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेकर सुख-समृद्धिदायक एवं उन्नतिशील जीवन व्यतीत कर सकें। इसके विपरीत यदि भवन का निर्माण का कार्य वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत करने पर, उस स्थान पर निवास एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों के विचार तथा कार्यशैली निश्चित ही दुष्प्रभावी होंगी और मानसिक अशांति एवं परेशानियाँ बढ़ जायेंगी। इन पांच तत्त्वोंष के उचित संतुलन के अभाव में शारीरिक स्वास्थ्य तथा बुद्धि भी विचलित हो जाती है। इन तत्वों का उचित संतुलन ही, गृह में निवास करने वाले पाणियों को मानसिक तनाव से मुक्त करता है। ताकि वह उचित-अनुचित का विचार करके, सही निर्णय लेकर, उन्नतिशील एवं आनंददायक जीवन व्यतीत कर सकें। ब्रह्माण्ड में विद्यमान अनेक ग्रहों में से जीवन पृथ्वी पर ही है। क्योंकि पृथ्वी पर इन पंच-तत्त्वों का संतुलन निरंतर बना रहता है। हमें सुख और दुःख देने वाला कोई नहीं है। हम अपने अविवेकशील आचरण और प्रकृति के नियमों के विरुद्ध आहार-विहार करने से समस्याग्रस्त रहते हैं। पंच-तत्त्वों के संतुलन के विपरीत अपना जीवन निर्वाह करने से ही हमें दुःख और कष्ट भोगने पड़ते हैं।जब तक मनुष्य के ग्रह अच्छे रहते हैं वास्तुदोष का दुष्प्रभाव दबा रहता है पर जब उसकी ग्रहदशा निर्बल पड़ने लगती है तो वह वास्तु विरुध्द बने मकान में रहकर अनेक दुःखों, कष्टों, तनाव और रोगों से घिर जाता है। इसके विपरीत यदि मनुष्य वास्तु शास्त्र के अनुसार बने भवन में रहता है तो उसके ग्रह निर्बल होने पर भी उसका जीवन सामान्य ढंग से शांति पूर्ण चलता है।यथा— शास्तेन सर्वस्य लोकस्य परमं सुखम्चतुवर्ग फलाप्राप्ति सलोकश्च भवेध्युवम्शिल्पशास्त्र परिज्ञान मृत्योअपि सुजेतांव्रजेत्परमानन्द जनक देवानामिद मीरितम्शिल्पं बिना नहि देवानामिद मीरितम्शिल्पं बिना नहि जगतेषु लोकेषु विद्यते।जगत् बिना न शिल्पा च वतंते वासवप्रभोः॥विश्व के प्रथम विद्वान वास्तुविद् विश्वकर्मा के अनुसार शास्त्र सम्मत निर्मित भवन विश्व को सम्पूर्ण सुख, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। वास्तु शिल्पशास्त्र का ज्ञान मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कराकर लोक में परमानन्द उत्पन्न करता है, अतः वास्तु शिल्प ज्ञान के बिना निवास करने का संसार में कोई महत्व नहीं है। जगत और वास्तु शिल्पज्ञान परस्पर पर्याय हैं।क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंच रचित अति अघम शरीरा।मानव शरीर पंचतत्वों से निर्मित है- पृथ्वी, जल आकाश, वायु और अग्नि। मनुष्य जीवन में ये पंचमहाभूत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके सही संतुलन पर ही मनुष्य की बुध्दि का संतुलन एवं आरोग्य निर्भर हैं जिसमें वह अपने जीवन में सही निर्णय लेकर सुखी जीवन व्यतीत करता है। इसी प्रकार निवास स्थान में इन पांच तत्वों का सही संतुलन होने से उसके निवासी मानसिक तनाव से मुक्त रहकर सही ढंग से विचार करके समस्त कार्य सम्पन्न कर पायेंगे और सुखी जीवन जी सकेंगे।वास्तु विषय में दिशाओं एवं पंच-तत्वों का अत्यधिक महत्व है। यह तत्व, जल-अग्नि-वायु-पृथ्वी-आकाश है। भवन निर्माण में इन तत्वों का उचित तालमेल ही, वहाँ पर निवास करने वालों का जीवन खुशहाल एवं समृद्धिदायक बनाता है। भवन का निर्माण वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप करने पर, उस स्थल पर निवास करने वालों को पाकृतिक एवं चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति एवं सूर्य की शुभ एवं स्वास्थ्यपद रश्मियों का शुभ पभाव पाप्त होता है। यह शुभ एवं सकारात्मक पभाव, वहाँ पर निवास करने वालों के सोच-विचार तथा कार्यशैली को विकासवादी बनाने में सहायक होता है। जिससे मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ एवं पसन्नचित रहती है। साथ ही बौद्धिक संतुलन भी बना रहता है। ताकि हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेकर सुख-समृद्धिदायक एवं उन्नतिशील जीवन व्यतीत कर सकें। इसके विपरीत यदि भवन का निर्माण कार्य वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत करने पर, उस स्थान पर निवास एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों के विचार तथा कार्यशैली निश्चित ही दुष्पभावी होगी। जिसके कारण मानसिक अशांति एवं परेशानियाँ बढ़ जायेंगी। इन पांच तत्वों के उचित संतुलन एवं तालमेल के अभाव में शारीरिक स्वास्थ्य तथा बुद्धि भी विचलित हो जाती है।इन तत्वों का उचित संतुलन ही, वहाँ पर निवास करने वाले पाणियों को मानसिक तनाव से मुक्त करता है। ताकि वह उचित-अनुचित का विचार करके, सही निर्णय लेकर, उन्नतिशील एवं आनंददायक जीवन व्यतीत कर सके। ब्रह्माण्ड में विद्यमान अनेक ग्रहों में से जीवन पृथ्वी पर ही है। क्योंकि पथ्वी पर इन पंच-तत्वों का संतुलन निरंतर बना रहता है। हमें सुख और दुःख देने वाला कोई नहीं है। हम अपने अविवेकशील आचरण और पकृति के नियमों के विरुद्ध आहारविहार करने से समस्याग्रस्त रहते हैं। पंच-तत्वों के संतुलन के विपरीत अपना जीवन निर्वाह करने से ही हमें दुःख और कष्ट भोगने पड़ते हैं।देवशिल्पी विश्वकर्मा द्वारा रचित इस भारतीय वास्तु शास्त्र का एकमात्र उदेश्य यही है कि गृहस्वामी को भवन शुभफल दे, उसे पुत्र-पौत्रादि, सुख-समृद्धि प्रदान कर लक्ष्मी एवं वैभव को बढाने वाला हो.इस विलक्षण भारतीय वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने से घर में स्वास्थय, खुशहाली एवं समृद्धि को पूर्णत: सुनिश्चित किया जा सकता है. एक इन्जीनियर आपके लिए सुन्दर तथा मजबूत भवन का निर्माण तो कर सकता है, परन्तु उसमें निवास करने वालों के सुख और समृद्धि की गारंटी नहीं दे सकता. लेकिन भारतीय वास्तुशास्त्र आपको इसकी पूरी गारंटी देता है.यहाँ हम अपने पाठकों को जानकारी दे रहे हैं कि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन न करने से पारिवारिक सदस्यों को किस तरह से नाना प्रकार के रोगों का सामना करना पड सकता है.यहाँ हम ऐसे ही कुछ नियम लिख रहे है जिन्हें अपना कर आप स्वय तथा अपने परिवारजनों को कुछ रोगों से मुक्ति दिला सकते है..जेसे—दमा के रोगियों के लिए वास्तु नियम—यदि घर में दमा का रोगी हो तो अपने बेठने वाले कमरे क़ी पश्चिम क़ी दिवार पर पेंडुलम वाली सफेद या सुनहरी-पीले रंग क़ी दिवार घडी लगा देनी चाहिए,शरीर क़ी सुरक्षा हेतु तीन मुखी रुद्राक्ष भी धारण करे, मिर्गी, हिस्टीरिया या दिमागी कमजोरी के लिए वास्तु नियम—उतर-पश्चिम, दखिन- पश्चिम, पश्चिम या दक्षिण दिशा के शयनकक्ष में सोना चाहिए, रोगी का शयन कक्ष भवन के उत्तर-पूर्व दिशा में कतई नही होना चाहिए, इससे अशांति बनती है, पाँचमुखी रुद्राक्ष या एकमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए… शिव उपासना करना शुभ/लाभ दायक रहेगा,उच्च रक्तचाप-मधुमेह के उपचार के लिए वास्तु नियम—अपने भूखंड और भवन के बीच के स्थान में कोई स्टोर, लोहे का जाल या बेकार का सामान नही होना चाहिए, अपने घर क़ी उत्तर-पूर्व दिशा में नीले फूल वाला पौधा लगाये,जोड़ो के दर्द, गठिया, सियाटिका और पीठ दर्द हेतु के लिए वास्तु नियम—आपके घर के कमरों क़ी दीवारों पर दरारे नही होनी चाहिए, उन पर कवर/प्लास्टर करवा देना चाहिए या दरारों पर किसी झरने या पहाड़ी का पोस्टर लगा देना चाहिए, सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना भी ठीक रहेगा,ह्रदय रोग निवारण हेतु के लिए वास्तु नियम—सुबह उठने के बाद अपने सोने वाले पलंग क़ी साइड पर ३-4 बार दाए हाथ से हल्का सा थपथपाय इसे नो (09 ) दिनों तक करे, सोने वाले कमरे क़ी उत्तर दिवार पर क्रिस्टल गेंद टांग दे और गेंदों के नीचे चारो दिशाओ में एक एक क्रिस्टल पिरामिड रख दे, घर टूटी खिडकिया शीशे, आईने नही होने चाहिए, अगर ऐसा हो तो उन्हें भी बदल दीजिये, टूटे शीशे और खिडकियों को कभी भी अखवार, कागज या कपड़े से नहीं ढकें…मधुमेह /डायबिटीज निवारण हेतु के लिए वास्तु नियम–वास्तु शास्त्र प्राचीन वैज्ञानिक जीवन शैली है वास्तु विज्ञान सम्मत तो है ही साथ ही वास्तु का सम्बन्ध ग्रह नक्षत्रों एवम धर्म से भी है ग्रहों के अशुभ होने तथा वास्तु दोष विद्यमान होने से व्यक्ति को बहुत भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ता है. वास्तु शास्त्र अनुसार पंच तत्वों पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश और वायु तथा वास्तु के आठ कोण दिशाए एवम ब्रह्म स्थल केन्द्र को संतुलित करना अति आवश्यक होता है जिससे जीवन हमारा एवं परिवार सुखमय रह सके.चिकित्सा शास्त्र में बहुत से लक्षण सुनने और देखने में मिलते है लेकिन वास्तु शास्त्र में बिलकुल स्पष्ट है कि घर/भवन का दक्षिण-पश्चिम भाग अर्थात नैऋत्य कोण ही इस रोग का जनक बनता है देखिये कैसे…—- दक्षिण-पश्चिम कोण में कुआँ,जल बोरिंग या भूमिगत पानी का स्थान मधुमेह बढाता है।—–दक्षिण-पश्चिम कोण में हरियाली बगीचा या छोटे छोटे पोधे भी शुगर का कारण है।—–घर/भवन का दक्षिण-पश्चिम कोना बड़ा हुआ है तब भी शुगर आक्रमण करेगी।—–यदि दक्षिण-पश्चिम का कोना घर में सबसे छोटा या सिकुड भी हुआ है तो समझो मधुमेह का द्वार खुल गया।——दक्षिण-पश्चिम भाग घर या वन की ऊँचाई से सबसे नीचा है मधुमेह बढेगी. इसलिए यह भाग सबसे ऊँचा रखे।——-दक्षिण-पश्चिम भाग में सीवर का गड्ढा होना भी शुगर को निमंत्रण देना है।——ब्रह्म स्थान अर्थात घर का मध्य भाग भारी हो तथा घर के मध्य में अधिक लोहे का प्रयोग हो या ब्रह्म भाग से जीना सीडीयां ऊपर कि और जा रही हो तो समझ ले कि मधुमेह का घर में आगमन होने जा रहा हें अर्थात दक्षिण-पश्चिम भाग यदि आपने सुधार लिया तो काफी हद तक आप असाध्य रोगों से मुक्त हो जायेगे कुछ सावधानियां और करे जैसे कि….——अपने बेडरूम में कभी भी भूल कर भी खाना ना खाए।——अपने बेडरूम में जूते चप्पल नए या पुराने बिलकुल भी ना रखे।——मिटटी के घड़े का पानी का इस्तेमाल करे तथा घडे में प्रतिदिन सात तुलसी के पत्ते डाल कर उसे प्रयोग करे। —–दिन में एक बार अपनी माता के हाथ का बना हुआ खाना अवश्य खाए। —–अपने पिता को तथा जो घर का मुखिया हो उसे पूर्ण सम्मान दे।——प्रत्येक मंगलवार को अपने मित्रों को मिष्ठान जरूर दे।——रविवार भगवान सूर्य को जल दे कर यदि बन्दरों को गुड खिलाये तो आप स्वयं अनुभव करेंगे की मधुमेह शुगर कितनी जल्दी जा रही है।——ईशानकोण से लोहे की सारी वस्तुए हटा ले।इन सब के करने से आप मधुमेह मुक्त हो सकते है. वृहस्पति देव की हल्दी की एक गाँठ लेकर एक चम्मच शहद में सिलपत्थर में घिस कर सुबह खाली पेट पीने से मधुमेह से मुक्त हो सकते है।===========================================—–पूर्व दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–—-यदि भवन में पूर्व दिशा का स्थान ऊँचा हो, तो व्यक्ति का सारा जीवन आर्थिक अभावों, परेशानियों में ही व्यतीत होता रहेगा और उसकी सन्तान अस्वस्थ, कमजोर स्मरणशक्ति वाली, पढाई-लिखाई में जी चुराने तथा पेट और यकृत के रोगों से पीडित रहेगी.—–यदि पूर्व दिशा में रिक्त स्थान न हो और बरामदे की ढलान पश्चिम दिशा की ओर हो, तो परिवार के मुखिया को आँखों की बीमारी, स्नायु अथवा ह्रदय रोग की स्मस्या का सामना करना पडता है.—–घर के पूर्वी भाग में कूडा-कर्कट, गन्दगी एवं पत्थर, मिट्टी इत्यादि के ढेर हों, तो गृहस्वामिनी में गर्भहानि का सामना करना पडता है.—–भवन के पश्चिम में नीचा या रिक्त स्थान हो, तो गृहस्वामी यकृत, गले, गाल ब्लैडर इत्यादि किसी बीमारी से परिवार को मंझधार में ही छोडकर अल्पावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.—–यदि पूर्व की दिवार पश्चिम दिशा की दिवार से अधिक ऊँची हो, तो संतान हानि का सामना करना पडता है.—–अगर पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया जाए, तो घर की बहू-बेटियाँ अवश्य अस्वस्थ रहेंगीं.—-बचाव के उपाय:—–—- पूर्व दिशा में पानी, पानी की टंकी, नल, हैंडापम्प इत्यादि लगवाना शुभ रहेगा.—–पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है, जो कि कालपुरूष के मुख का प्रतीक है. इसके लिए पूर्वी दिवार पर ‘सूर्य यन्त्र’ स्थापित करें और छत पर इस दिशा में लाल रंग का ध्वज(झंडा) लगायें.—– पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगें. धन और वंश की वृद्धि होगी तथा समाज में मान-प्रतिष्ठा बढेगी.—-पश्चिम दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–—-पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है. यह स्थान कालपुरूष का पेट, गुप्ताँग एवं प्रजनन अंग है.—–यदि पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो परिवार में फेफडे, मुख, छाती और चमडी इत्यादि के रोगों का सामना करना पडता है.—-यदि भवन का पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो पुरूष संतान की रोग बीमारी पर व्यर्थ धन का व्यय होता रहेगा.—-यदि घर के पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरूष सदस्यों को लम्बी बीमारियों का शिकार होना पडेगा.—-यदि भवन का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो, तो अकारण व्यर्थ में धन का अपव्यय होता रहेगा.—-यदि पश्चिम दिशा की दिवार में दरारें आ जायें, तो गृहस्वामी के गुप्ताँग में अवश्य कोई बीमारी होगी.—–यदि पश्चिम दिशा में रसोईघर अथवा अन्य किसी प्रकार से अग्नि का स्थान हो, तो पारिवारिक सदस्यों को गर्मी, पित्त और फोडे-फिन्सी, मस्से इत्यादि की शिकायत रहेगी.—–बचाव के उपाय:—–—–ऎसी स्थिति में पश्चिमी दिवार पर ‘वरूण यन्त्र’ स्थापित करें.—–परिवार का मुखिया न्यूनतम 11 शनिवार लगातार उपवास रखें और गरीबों में काले चने वितरित करे.—-पश्चिम की दिवार को थोडा ऊँचा रखें और इस दिशा में ढाल न रखें.—-पश्चिम दिशा में अशोक का एक वृक्ष लगायें.—-उत्तर दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–— उत्तर दिशा का प्रतिनिधि ग्रह बुध है और भारतीय वास्तुशास्त्र में इस दिशा को कालपुरूष का ह्रदय स्थल माना जाता है. जन्मकुंडली का चतुर्थ सुख भाव इसका कारक स्थान है.—-यदि उत्तर दिशा ऊँची हो और उसमें चबूतरे बने हों, तो घर में गुर्दे का रोग, कान का रोग, रक्त संबंधी बीमारियाँ, थकावट, आलस, घुटने इत्यादि की बीमारियाँ बनी रहेंगीं.—– यदि उत्तर दिशा अधिक उन्नत हो, तो परिवार की स्त्रियों को रूग्णता का शिकार होना पडता है.—बचाव के उपाय :—–यदि उत्तर दिशा की ओर बरामदे की ढाल रखी जाये, तो पारिवारिक सदस्यों विशेषतय: स्त्रियों का स्वास्थय उत्तम रहेगा. रोग-बीमारी पर अनावश्यक व्यय से बचे रहेंगें और उस परिवार में किसी को भी अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पडेगा.—– इस दिशा में दोष होने पर घर के पूजास्थल में ‘बुध यन्त्र’ स्थापित करें.—–परिवार का मुखिया 21 बुधवार लगातार उपवास रखे.—–भवन के प्रवेशद्वार पर संगीतमय घंटियाँ लगायें.—–उत्तर दिशा की दिवार पर हल्का हरा (Parrot Green) रंग करवायें.—–दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–दक्षिण दिशा का प्रतिनिधि ग्रह मंगल है, जो कि कालपुरूष के बायें सीने, फेफडे और गुर्दे का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली का दशम भाव इस दिशा का कारक स्थान होता है.—-यदि घर की दक्षिण दिशा में कुआँ, दरार, कचरा, कूडादान, कोई पुराना सामान इत्यादि हो, तो गृहस्वामी को ह्रदय रोग, जोडों का दर्द, खून की कमी, पीलिया, आँखों की बीमारी, कोलेस्ट्राल बढ जाना अथवा हाजमे की खराबीजन्य विभिन्न प्रकार के रोगों का सामना करना पडता है.—-दक्षिण दिशा में उत्तरी दिशा से कम ऊँचा चबूतरा बनाया गया हो, तो परिवार की स्त्रियों को घबराहट, बेचैनी, ब्लडप्रैशर, मूर्च्छाजन्य रोगों से पीडा का कष्ट भोगना पडता है.—-यदि दक्षिणी भाग नीचा हो, ओर उत्तर से अधिक रिक्त स्थान हो, तो परिवार के वृद्धजन सदैव अस्वस्थ रहेंगें. उन्हे उच्चरक्तचाप, पाचनक्रिया की गडबडी, खून की कमी, अचानक मृत्यु अथवा दुर्घटना का शिकार होना पडेगा. दक्षिण पिशाच का निवास है, इसलिए इस तरफ थोडी जगह खाली छोडकर ही भवन का निर्माण करवाना चाहिए.—-यदि किसी का घर दक्षिणमुखी हो ओर प्रवेश द्वार नैऋत्याभिमुख बनवा लिया जाए, तो ऎसा भवन दीर्घ व्याधियाँ एवं किसी पारिवारिक सदस्य को अकाल मृत्यु देने वाला होता है.बचाव के उपाय:———-यदि दक्षिणी भाग ऊँचा हो, तो घर-परिवार के सभी सदस्य पूर्णत: स्वस्थ एवं संपन्नता प्राप्त करेंगें. इस दिशा में किसी प्रकार का वास्तुजन्य दोष होने की स्थिति में छत पर लाल रक्तिम रंग का एक ध्वज अवश्य लगायें.—घर के पूजनस्थल में ‘श्री हनुमंतयन्त्र’ स्थापित करें.—-दक्षिणमुखी द्वार पर एक ताम्र धातु का ‘मंगलयन्त्र’ लगायें.—प्रवेशद्वार के अन्दर-बाहर दोनों तरफ दक्षिणावर्ती सूँड वाले गणपति जी की लघु प्रतिमा लगायें.—–आग्नेय में वास्तु दोष होने पर :—— पूर्व दिशा व दक्षिण दिशा को मिलाने वाले कोण को अग्नेय कोण संज्ञा दी जाती है। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है। इस कोण को अग्नि तत्व का प्रभुत्व माना गया है और इसका सीधा सम्बन्ध स्वास्थय के साथ है। यदि भवन की यह दिशा दूषित रहेंगी तो द्घर का कोई न कोई सदस्य बीमार रहेगा। इस दिशा के दोषपूर्ण रहने से व्यक्ति को क्रोधित स्वभाव वाला व चिडचिड़ा बना देगा। यदि भवन का यह कोण बढ़ा हुआ है तो यह संतान को कष्टप्रद होकर राजमय आदि देता है। इस दिशा का स्वामी ‘गणेश’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘शुक्र’ है। यदि आग्नेय ब्लॉक की पूर्वी दिशा मे सड़क सीधे उत्तर की ओर न बढ़कर घर के पास ही समाप्त हो जाए तो वह घर पराधीन हो जाएगा।—-नैऋत्य में वास्तु दोष होने पर :—— दक्षिण व पश्चिम के मध्य कोण को नेऋत्य कोण कहते है। यह कोण व्यक्ति के चरित्र का परिचय देता है। यदि भवन का यह कोण दूषित होगा तो उस भवन के सदस्यों का चरित्र प्रायः कुलषित होगा और शत्रु भय बना रहेगा। विद्वानों के अनुसार इस कोण के दूषित होने से अकस्मिक दुर्द्घटना होने के साथ ही अल्प आयु होने का भी योग होता है। यदि द्घर में इस कोण में खाली जगह है गड्डा है, भूत है या कांटेदार वृक्ष है तो गृह स्वामी बीमार, शत्रुओं से पीडित एंव सम्पन्नता से दूर रहेगा। नेऋत्य का हर कोण पूरे घर मे हर जगह संतुलित होना चाहिए, अन्यथा दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा। इस दिशा का स्वामी ‘राक्षस’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘राहु’ है।—-.वायव्य में वास्तु दोष होने पर :—— पश्चिम दिशा व उत्तर दिशा को मिलाने वाली विदिशा को वायव्य विदिशा या कोण कहते है जैसा कि नाम से ही विदित होता है कि यह कोण वायु का प्रतिनिधित्व करता है। यह वायु का ही स्थान माना जाता है। यह मानव को शांति, स्वस्थ दीर्घायु आदि प्रदान करता है। वस्तुतः यह परिवर्तन प्रदान करता है। भवन मे यदि इस कोण मे दोष हो, तो यह शत्रुता चपट हो तो, जातक भाग्यशाली होते हुए भी आनन्द नही भोग सकता है। यदि वायव्य द्घर मे सबसे बड़ा या ज्यादा गोलाकार है तो गृहस्वामी को गुप्त रोग सताएंगें। इस कोण का स्वामी ‘बटुक’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘चन्द्रमा’ माना गया है।—–ईशानमें वास्तु दोष होने पर :—— यह दिशा विवेक, धैर्य, ज्ञान, बुद्धि आदि प्रदान करती है भवन मे इस दिशा को पूरी तरह शुद्ध व पवित्र रखा जाना चाहिए। यदि यह दिशा दूषित होगी तो भवन मे प्रायः कलह व विभिन्न कष्टों को प्रदान करने के साथ व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट होती है और प्रायः कन्या संतान प्राप्त होती है। अतः भवन में इस दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस दिशा का स्वामी ‘रूद्र’ यानि भगवान शिव है और प्रतिनिधि ग्रह ‘बृहस्पति’ है।——-लगातार शारीरिक कष्ट बने रहने कि स्थिति को दूर करने के विषय में बताया कि अपने मकान के सामने अशोक के पेड़ लगायें. घर के सामने लैंप पोस्ट कुछ इस तरह से लगायें की उसका प्रकाश घर के ऊपर आये. इसके अलावे यदि आपका प्रवेश द्वार दक्षिण अथवा दक्षिण-पश्चिम में हो तो लाल रंग अथवा केवल पश्चिम में होने पर सफेद अथवा सुनहरे रंग से रंगे.——सर दर्द अथवा माइग्रेन जैसे रोग को दूर करने के लिये बेड के उत्तर पश्चिम कोने में सफेद माल जिसका किनारा भूरे रंग का हो, दबा कर रखने से समस्या का हल हो जाता है. इसके अलावे बेड कवर सफेद अथवा हल्के रंग का प्रयोग में लायें. मधुमेह की बढ़ती समस्या को नियंत्रित करने लिये अपने शयन कक्ष के उत्तर-पश्चिम दिशा में नीले रंग के फूलों का गुलदस्ता रखें. इसके अतिरिक्त सफेद मूंगा के धारण करने से भी इसे नियंत्रित किया जा सकता है.——एकाग्रता लाने के विषय में बताया कि विद्यार्थियों के कमरे की पूर्व दीवार पीला अथवा गुलाबी रंग की होनी चाहिये. साथ ही जोड़ों के दर्द के समाधान के लिये यह ध्यान अवश्य रखें कि जिस कमरे में आप सोते हैं उसकी दीवार में दरार न हो. साथ ही दक्षिण-पश्चिम भाग को भारी रखें. साथ ही भगवान विष्णु की तसवीर कमरे की पूर्व दीवार में लगाना सही माना जाता है.प्रकृति की ऊर्जा शक्तियों के संतुलित उपयोग से जीवन को खुशहाल और समृद्धिदायक कैसे बनायें? इसका व्यवस्थित अध्ययन और व्यावहारिक उपयोग करना ही वास्तु विज्ञान है।आज का आम इंसान अति व्यस्त है। दूषित वातावरण एवं समस्याओं ने उसका जीवन अंधकारमय, उदास एवं पीड़ित बना दिया है। मानव भले ही महान मेधावी क्यों न हो। प्रकृति पर विजय पाने की आकांक्षा को लेकर कितना ही प्रयत्न करे। उसे प्रकृति की शक्तियों के समक्ष नतमस्तक होना ही पड़ेगा। प्रकृति पर विजय पाने की कामना को छोड़कर उसके रहस्यों को आत्मसात करके, उसके नियमों का अनुसरण करे, तो प्रकृति की ऊर्जा शक्तियां स्वयं ही मानव समुदाय के लिये वरदान सिद्ध होगी। इस विषय में वास्तु विषय अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है। पंच-तत्वों पर आधारित वास्तु पर मानव सिद्धि प्राप्त करता है, तो वह उसे सुख-शांति और समृद्धि प्रदान कर सकती है। यही वास्तु का रहस्य है। वास्तु विषय का महत्व बढ़ने के साथ-साथ केवल पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर इस विषय में इतने अपरिपक्व एवं अज्ञानी लोग प्रवेश कर चुके हैं कि आम व्यक्ति के लिये सही-गलत का फैसला कर पाना मुश्किल हो जाता है। बाजार में वास्तु-शास्त्र से संबंधित मिलने वाली लगभग सभी पुस्तकों में एक ही तरह की बातें लिखी रहती हैं। इसका अर्थ यह है कि यह पुस्तकें लेखक की मौलिक रचना नहीं है और ना ही स्वयं शोध या अनुसंधान करके लिखी गयी है। बल्कि शास्त्रों में लिखी गयी बातों को अपनी भाषा में पिरो दी जाती है या फिर अन्य पुस्तकों की नकल, जिन्हें पढ़कर आम इंसान वास्तु-विषय के प्रति भ्रमित ही रहता है। जब कई मकानों का अवलोकन किया जाता है, तब हम यह देखते हैं कि प्रत्येक मकान का आकार एवं दिशाएं अलग-अलग होती हैं। जबकि पुस्तकों में लगभग एक ही तरह के सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है। आप स्वयं चिंतन कर सकते हैं कि जब अलग-अलग मकान की दिशाएं भिन्न-भिन्न रहती है, तब अलग-अलग मकान में वास्तु के सिद्धांत भी पृथक लागू होंगे।कई महानुभावों का यह सोचना है कि भवन में वास्तु के सिद्धांतों का पालन करने के बावजूद भी जीवन समस्याग्रसित रहता है। निश्चित ही यह दोष वास्तु विषय का नहीं माना जा सकता है बल्कि बिना अनुभव के अज्ञानियों के परामर्श का ही नतीजा होता है। कमी व्यक्ति के ज्ञान में संभव है, वास्तु विज्ञान में नहीं।कुशल एवं अनुभवी वास्तु विशेषज्ञ के परामर्श के अनुसार वास्तु के सिद्धांतों का पालन करते हुए भवन का निर्माण कार्य किया जाये तो, वहाँ पर रहने वालों का जीवन निरंतर खुशहाल, समृद्धिदायक और उन्नतिशील बना रहता है। वास्तु की दिशाएँ और तत्व सुधरते ही, ग्रह दशा भी स्वयं सुधरने लगती है। वास्तु के सिद्धांतों का परिपालन करते हुए, यदि मकान का निर्माण एवं सामान रखने की व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन किया जाये तो निश्चय ही वह मकान गृह स्वामी एवं वहाँ पर रहने वालों के लिये समृद्धिदायक एवं मंगलमय सिद्ध होगा। *वनिता कासनियां पंजाब*🌷🌷🙏🙏🌷🌷

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#Google_AdSense_Account_Approved_कैसे_करे – Top 12 #Best #Methods, Tips & #Tricks - by *#समाजसेवी_वनिता_कासनियां_पंजाब* 🌹🌹🙏🙏🌹🌹🇮🇳- Leave a Comment Google AdSense Account Approved Kaise Kare #Google #AdSense #Account #Approved कैसे करे : अगर आप Blog या Website बनाकर अर्थात Blogging से पैसे कमाना चाहते हैं तो आपको AdSense से Approval लेना होगा। जब आपको AdSense से Approval मिल जाएगा तभी आप Blogging से पैसे कमा सकते हैं। जब तक आपको AdSense से Approval नहीं मिलेगा तब तक आप पैसे नहीं कमा पाएँगे। इसलिए आपको AdSense से Approval लेना जरूरी है। AdSense क्या है (What is AdSense) अगर आप AdSense के बारे में नहीं जानते हैं तो हम यहाँ संक्षेप में आपको AdSense के बारे में बता रहे हैं कि AdSense क्या है (What is AdSense)। AdSense एक Ad Network Service है। यह Google की ही एक Service है जो आपको Ad Provide कराती है। अपने Blog पर Ad लगाने के लिए आपको AdSense से Approval लेना होगा। तभी आप अपने Blog पर Ad लगा सकते हैं और अपने Blog से पैसे कमा सकते हैं। AdSense एक ऐसी Ad Network Service है जिससे Approval लेना सबसे कठिन माना जाता है। जब तक आपका Blog AdSense की शर्तों पर खरा नहीं उतरता है तब तक आपको AdSense से Approval नहीं मिलेगा। कुछ लोग मानते हैं कि AdSense से Approval लेना बहुत कठिन है। जबकि मेरा मानना है कि AdSense से Approval लेना बहुत ही आसान है। अगर आप AdSense की सभी शर्तों को पूरा करते हैं तो आपको AdSense बहुत ही जल्द Approval दे देता है। जब आप AdSense की Terms and Conditions को Follow नहीं करते हैं तो AdSense आपको Approval नहीं देता है। अक्सर नए Blogger जल्दी पैसे कमाने के चक्कर में अपने Blog में कई गलतियाँ कर देते हैं जिसकी वजह से उन्हें AdSense से Approval नहीं मिलता है। जिसकी वजह से वह काफी परेशान हो जाते हैं। Google AdSense Account Approved कैसे करे आज हम आपको विस्तार से बताएँगे कि AdSense से Approval लेने के लिए (Google AdSense Account Approved कैसे करे) आपको किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। अगर आप हमारे द्वारा बताई गयी इन बातों का ध्यान रखेंगे तो आपको AdSense से Approval लेने में कभी परेशानी नहीं होगी। 1. Copy, Paste न करें यह गलती अक्सर नए Blogger करते हैं। नए Blogger सोचते हैं कि इतने लम्बे-लम्बे Article कौन लिखे ? Google से Search करके उसे अगर हम Copy, Paste कर देंगे तो इससे हमें मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी और AdSense भी जल्दी से मिल जाएगा। Google इतना बेबकूफ नहीं है। वह आसानी से पता लगा लेता है कि कौन सा Article Copy Paste है और कौन सा Article Original ? ऐसी Condition में आपको कभी Approval नहीं मिलेगा। AdSense तभी आपको Approval देगा जब आप अपना Unique Content लिखेंगे। अगर आप किसी Post को Copy करके उसे थोड़ा Edit करके AdSense से Approval लेना चाहेंगे तो ऐसी Condition में भी आपको AdSense से Approval मिलने के Chance न के बराबर हैं। अगर आप AdSense से Approval चाहते हैं तो आपको अपने खुद से Unique Article लिखने ही होंगे। 2. Quality Content लिखें AdSense से आपको Approval तभी मिलेगा जब आप Unique और Quality Content लिखेंगे। Unique Content तो आपको समझ में आ गया होगा कि ये Unique Content क्या है ? अगर आप Quality Content के बारे में नहीं जानते हैं तो हम आपको संक्षेप में बता रहे हैं कि Quality Content का मतलब क्या होता है ? जिस जानकारी के लिए कोई Visitor आपके Page पर आए तो उसे वह जानकारी मिले। ऐसा न हो आप Unique Content लिखने के चक्कर में कुछ भी लिख दें। आपको Point to Point बताना होगा। बिलकुल सटीक जानकारी देनी होगी। Visitor को वह जानकारी दें जिसके लिए वह आपके Page पर आया है। उसे इधर-उधर टहलाने की कोशिश न करें। उसे ऐसी जानकारी दें जिससे वह 100% संतुष्ट हो जाए। इस तरह के Content को ही Quality Content कहते हैं। 3. Copyright Image का Use न करें जब हम अपने Blog के लिए कोई Post लिखते हैं तो हमें इसके लिए Images की जरूरत होती है। ऐसे में हम Google में Search करके किसी भी Image को अपनी Post में लगा देते हैं। इस तरह की Image को Copyright Image कहते हैं। अपनी Post में Copyright Image का Use कभी नहीं करें, नहीं तो आपको AdSense से Approval नहीं मिलेगा। अगर आप अपनी Post में Image का Use करना चाहते हैं तो वह आपकी खुद की बनाई हुई Original Image होनी चाहिए। अगर आप अपनी Image नहीं बना सकते हैं तो हमेशा Free Image का Use करें। कुछ ऐसी Websites हैं जो Free Image Provide करती हैं। AdSense से Approval के लिए ऐसी Websites से ही Image Download करके उसे अपनी Post में Use करें। 4. Post कितनी होनी चाहिए Blog में AdSense से Approval के लिए आपके Blog में कितनी Post होनी चाहिए, इस पर सबकी राय अलग-अलग है। कोई कहता है कि 50 Post होनी चाहिए। कोई कहता है कि 35 Post होनी चाहिए तो कोई कहता है कि 20 Post होनी चाहिए। मेरा मानना है कि अगर आपके Blog में 10 Post भी होंगी तब भी आपको Approval मिल जाएगा, बस Post कहीं से Copyrighted नहीं होनी चाहिए। 5. Post कितने शब्द की होनी चाहिए कुछ Bloggerअपने Blog में Post की संख्या बढ़ाने के लिए बहुत ही छोटी-छोटी Post लिख देते हैं। अगर आप अपने AdSense Approval के लिए वास्तव में Serious हैं तो आपको अपनी हर एक Post कम से कम 700 शब्दों में लिखनी होगी। 500 शब्दों से कम आपकी कोई भी Post नहीं होनी चाहिए। हो सके तो हर एक Post को 1000+ शब्दों में लिखने की कोशिश करें। इससे जहाँ एक ओर आपको AdSense से Approval लेने में आसानी होगी वहीँ दूसरी ओर 1000+ शब्दों में लिखी हुई आपकी हर Post SEO की दृष्टि से भी काफी फायदेमंद होगी। अगर आप अपने ब्लॉग में 10 Post ही लिखें, लेकिन 1000+ शब्दों में, तो आपको AdSense Approve कराने में आसानी होगी। Google AdSense Account Approved Kaise Kare Google AdSense Account Approved Kaise Kare 6. Clear Navigation होना चाहिए कुछ Blogger को AdSense से Approval इसलिए नहीं मिल पाता है क्योंकि वह अपने Blog के लिए Navigation पर ध्यान नहीं देते हैं। AdSense इस बात पर बहुत ध्यान देता है कि आपके Blog का Navigation कैसा है ? अगर आपके Blog का Navigation अच्छा होगा तो आपको AdSense से Approval जल्दी मिल जाएगा। अगर आपने अपने Blog के Navigation पर काम नहीं किया है तो आपको फिर से Apply करना होगा। जो लोग Navigation के बारे में नहीं जानते हैं उनको हम बता दें कि Navigation का मतलब होता है – आपके Blog का आपके Visitor के सामने पूरा खुला हुआ होना। वह आपके एक Page, Category या Post से किसी दूसरे Page, Category या Post तक आसानी से पहुँच सके। उसे आपके Blog में चीजों को ज्यादा ढूँढना न पड़े। इसके लिए आप अपने Blog में Page, Category, Recent Post और Popular Post के लिए Widgets का Use कर सकते हैं। 7. Top Level Domain का ही Use करें कुछ Blogger Free का Domain लेकर उससे AdSense Approve कराने की कोशिश करते हैं। Free के Domain से कुछ समय पहले तक AdSense Approve हो जाता था। लेकिन अब आपको Free Domain की बजाय Domain को खरीदना ही पड़ेगा, तभी AdSense आपको Approval देगा। हमेशा Top Level Domain जैसे .com, .in, .net, .org .edu ही Use करें। .tk जैसे Domain का प्रयोग करने से बचें। इनका Use करके आप AdSense Approve कराने की कोशिश करेंगे तो आपका AdSense Approve नहीं होगा। 8. इन Websites पर नहीं होता है AdSense Approve कुछ ऐसी Websites होती हैं जिन पर AdSense कभी Approve नहीं होता है, जैसे – Jokes Website, Shayari Website. इन जैसी Websites को AdSense Copyrighted Material की श्रेणी में रखता है। अगर आप इन Websites के लिए AdSense Approve कराने की कोशिश करेंगे तो आपका AdSense कभी Approve नहीं होगा। किसी ऐसे Blog से AdSense Approve कराने की कोशिश करें जिस पर आपने थोड़ी मेहनत की हो। 9. आपके Blog में जरूर होने चाहिए ये 4 Important Page अपना AdSense Approve कराने के लिए आपके Blog में ये चार Page जरूर होने चाहिए। ये चार Page हैं – 1. About Us – इसमें आपको अपने और अपने Blog के बारे में संक्षेप में बताना होगा। 2. Contact Us – इसमें आपको अपनी Contact Details देनी होंगी जिससे कि कोई आपसे सम्पर्क कर सके। 3. Privacy Policy – इसमें आपको अपने Blog की Privacy Policies के बारें में बताना होगा। 4. Disclaimer – इसमें आपको अपनी Disclaimer Details देनी होंगी। 10. AdSense के लिए Apply करते वक्त दूसरे Ad Network की Ads का Use न करें आपने देखा होगा जब तक हमें AdSense से Approval नहीं मिलता है, तब तक हम किसी दूसरे Ad Network से Approval लेकर उसके Ad अपने Blog में लगा लेते हैं। इसका कारण यह है कि दूसरे Ad Network से Approval मिलना थोड़ा आसान होता है। हम अपने Blog में किसी भी Ad Network के Ad लगा सकते हैं। जब आप AdSense के लिए Apply करें तो अपने Blog से दूसरे सभी Ad Network के Ads हटाकर ही Apply करें। कभी-कभी हम दूसरे Ad Network के Ads हटाए बिना ही AdSense Approval के लिए Apply कर देते हैं, जिसकी वजह से हमें Approval नहीं मिलता है। आप ऐसी गलती न करें। 11. ज्यादा Images और Videos का Use न करें कुछ Blogger अपने Blog को आकर्षक और Colourful दिखाने के चक्कर में बहुत ज्यादा Images और Videos का Use कर लेते हैं। AdSense को जरूरत से ज्यादा Images और Videos से सख्त नफरत है। अपने Blog में केवल उतनी ही Images और Videos का Use करें, जितना जरूरी हो। AdSense का मानना है कि Visitor आपके Blog पर Content पढ़ने आता है, इसलिए आपका Content अच्छा होना चाहिए। आप केवल Images और Videos का Use करके Visitor को ज्यादा देर तक नहीं रोक सकते। अपने Blog में ज्यादा Images और Videos का प्रयोग करने से बचें। 12. हमेशा Neat and Clean Theme का ही Use करें अपने Blog के लिए हमेशा Neat and Clean Theme या Template का ही Use करें। आपके द्वारा इस्तेमाल की गयी Theme या Template जितनी साफ़-सुथरी होगी, आपके AdSense Approval के Chance उतने ही बढ़ जाएँगे। ज्यादा भड़काऊ Theme या Template का Use न करें, नहीं तो AdSense Account Approve होने में मुश्किल होगी। #बाल_वनिता_महिला_आश्रम उम्मीद है अब आपको पता चल गया होगा कि अपना Google AdSense Account Approved कैसे करे। अगर आपके मन में अभी भी कोई सवाल है तो आप नीचे Comment करके हमसे पूँछ सकते हैं। हमें उत्तर देने में ख़ुशी होगी।