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, वास्तु एवं रोग (वास्तु शास्त्र का प्रयोग रोग निवारण के लिए) ; vastu and diseases*Byसमाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*चौंकिये मत बिलकुल सही बात है कि जब हम वास्तु शास्त्र के द्वारा जीवन की अनेकों समस्याए ठीक कर सकने में सक्षम है तो शारीरिक व्याधियों या रोगों को ठीक नहीं कर सकते हें.?व्यक्ति वास्तु शास्त्र के नियम अनुसार यदि निवास करता है तो समस्त बाधाए समाप्त हो जाती है. वास्तु शास्त्र प्राचीन वैज्ञानिक जीवन शैली है वास्तु विज्ञान सम्मत तो है ही साथ ही वास्तु का सम्बन्ध ग्रह नक्षत्रों एवम धर्म से भी है ग्रहों के अशुभ होने तथा वास्तु दोष विद्यमान होने से व्यक्ति को बहुत भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ता है. वास्तु शास्त्र अनुसार पंच तत्वों पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश और वायु तथा वास्तु के आठ कोण दिशाए एवम ब्रह्म स्थल केन्द्र को संतुलित करना अति आवश्यक होता है जिससे जीवन हमारा एवं परिवार सुखमय रह सके. वास्तु शास्त्र के कुछ नियम रोग निवारण में भी सहायक सिद्ध होते है… आपको विस्मय होना स्वाभाविक है जो रोग राजसी श्रेणी में आ कर फिर की समाप्त नहीं होता बल्कि केवल दवाईयों के द्वारा नियंत्रित हो कर जीवन भर हमें दंड देता रहता है वही मधुमेह को हमारे ऋषि मुनिओं ने वास्तु शास्त्र के द्वारा नियंत्रण की बात तो दूर है पूरी तरह से सफाया करने पर अग्रसित हो रहा है दुर्भाग्य कि बात है कि हम विशवास नहीं करते आपकी बात बिलकुल सही है इससे पहले मै भी कभी विशवास नहीं रखता था लेकिन जब से वास्तु शास्त्र के नियम मेने अपने घर एवं अपने व अपने परिवार के लोगों पर लगाए तो कुछ समय बाद मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा मै शत प्रतिशत सफल हुआ आज में समाज की भलाई के लिए साथ ही यह भी बताने का पूरा प्रयास करूँगा की आधुनिक दौड़ में अपने पीछे कि सभ्यता को भी याद रखे जो कि सटीक व हमारे जीवन में शत प्रतिशत कारगर सिद्ध होती आई है. वास्तु सही रूप से जीवन की एक कला है क्योंकि हर व्यक्ति का शरीर उर्जा का केन्द्र होता है. जंहा भी व्यक्ति निवास करता है वहाँ कि वस्तुओं की उर्जा अपनी होती है और वह मनुष्य की उर्जा से तालमेल रखने की कोशिश करती है. यदि उस भवन/स्थान की उर्जा उस व्यक्ति के शरीर की उर्जा से ज्यादा संतुलित हो तो उस स्थान से विकास होता है शरीर से स्वस्थ रहता है सही निर्णय लेने में समर्थ होता है सफलता प्राप्त करने में उत्साह बढता है,धन की वृद्धि होती है जिससे समृधि बढती है यदि वास्तु दोष होने एवं उस स्थान की उर्जा संतुलित नहीं होने से अत्यधिक मेहनत करने पर भी सफलता नहीं मिलती. वह व्यक्ति अनेक व्याधियो व रोगों से दुखी होने लगता है अपयश तथा हानि उठानी पडती है. भारत में प्राचीन काल से ही वास्तु शास्त्र को पर्याप्त मान्यता दी जाती रही है। अनेक प्राचीन इमारतें वास्तु के अनुरूप निर्मित होने के कारण ही आज तक अस्तित्व में है। वास्तु के सिद्धांत पूर्ण रूप से वैज्ञानिक हैं, क्योंकि इस शास्त्र् में हमें प्राप्त होने वाली सकारात्मक ऊर्जा शक्तियों का समायोजन पूर्ण रूप से वैज्ञानिक ढंग से करना बताया गया है।वास्तु के सिद्धांतों का अनुपालन करके बनाए गए गृह में रहने वाले प्राणी सुख, शांति, स्वास्थ्य, समृद्धि इत्यादि प्राप्त करते हैं। जबकि वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत बनाये गए गृह में रहने वाले समय-असमय प्रतिकूलता का अनुभव करते हैं एवं कष्टपद जीवन व्यतीत करते हैं। कई व्य-क्तियों के मन में यह शंका होती है कि वास्तु शास्त्रब का अधिकतम उपयोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न वर्ग ही करते हैं। मध्यम वर्ग के लिए इस विषय का उपयोग कम होता है। निस्संदेह यह धारणा गलत है। वास्तु विषय किसी वर्ग या जाति विशेष के लिये ही नहीं है, बल्कि वास्तु शास्त्रत संपूर्ण मानव जाति के लिये प्रकृति की ऊर्जा शक्तियों को दिलाने का ईश्वैर प्रदत्त एक अनुपम वरदान है।वास्तु विषय में दिशाओं एवं पंच-तत्त्वों की अत्यधिक उपयोगिता है। ये तत्त्वं जल-अग्नि-वायु-पृथ्वी-आकाश है। भवन निर्माण में इन तत्त्वों का उचित अनुपात ही, उसमें निवास करने वालों का जीवन प्रसन्नए एवं समृद्धिदायक बनाता है। भवन का निर्माण वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप करने पर, उस स्थल पर निवास करने वालों को प्राकृतिक एवं चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति एवं सूर्य की शुभ एवं स्वास्थ्यपद रश्मियों का शुभ प्रभाव पाप्त होता है। यह शुभ एवं सकारात्मक प्रभाव, वहाँ पर निवास करने वालों के सोच-विचार तथा कार्यशैली को विकासवादी बनाने में सहायक होता है, जिससे मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ एवं प्रसन्नचित रहती है और बौद्धिक संतुलन भी बना रहता है। ताकि हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेकर सुख-समृद्धिदायक एवं उन्नतिशील जीवन व्यतीत कर सकें। इसके विपरीत यदि भवन का निर्माण का कार्य वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत करने पर, उस स्थान पर निवास एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों के विचार तथा कार्यशैली निश्चित ही दुष्प्रभावी होंगी और मानसिक अशांति एवं परेशानियाँ बढ़ जायेंगी। इन पांच तत्त्वोंष के उचित संतुलन के अभाव में शारीरिक स्वास्थ्य तथा बुद्धि भी विचलित हो जाती है। इन तत्वों का उचित संतुलन ही, गृह में निवास करने वाले पाणियों को मानसिक तनाव से मुक्त करता है। ताकि वह उचित-अनुचित का विचार करके, सही निर्णय लेकर, उन्नतिशील एवं आनंददायक जीवन व्यतीत कर सकें। ब्रह्माण्ड में विद्यमान अनेक ग्रहों में से जीवन पृथ्वी पर ही है। क्योंकि पृथ्वी पर इन पंच-तत्त्वों का संतुलन निरंतर बना रहता है। हमें सुख और दुःख देने वाला कोई नहीं है। हम अपने अविवेकशील आचरण और प्रकृति के नियमों के विरुद्ध आहार-विहार करने से समस्याग्रस्त रहते हैं। पंच-तत्त्वों के संतुलन के विपरीत अपना जीवन निर्वाह करने से ही हमें दुःख और कष्ट भोगने पड़ते हैं।जब तक मनुष्य के ग्रह अच्छे रहते हैं वास्तुदोष का दुष्प्रभाव दबा रहता है पर जब उसकी ग्रहदशा निर्बल पड़ने लगती है तो वह वास्तु विरुध्द बने मकान में रहकर अनेक दुःखों, कष्टों, तनाव और रोगों से घिर जाता है। इसके विपरीत यदि मनुष्य वास्तु शास्त्र के अनुसार बने भवन में रहता है तो उसके ग्रह निर्बल होने पर भी उसका जीवन सामान्य ढंग से शांति पूर्ण चलता है।यथा— शास्तेन सर्वस्य लोकस्य परमं सुखम्चतुवर्ग फलाप्राप्ति सलोकश्च भवेध्युवम्शिल्पशास्त्र परिज्ञान मृत्योअपि सुजेतांव्रजेत्परमानन्द जनक देवानामिद मीरितम्शिल्पं बिना नहि देवानामिद मीरितम्शिल्पं बिना नहि जगतेषु लोकेषु विद्यते।जगत् बिना न शिल्पा च वतंते वासवप्रभोः॥विश्व के प्रथम विद्वान वास्तुविद् विश्वकर्मा के अनुसार शास्त्र सम्मत निर्मित भवन विश्व को सम्पूर्ण सुख, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। वास्तु शिल्पशास्त्र का ज्ञान मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कराकर लोक में परमानन्द उत्पन्न करता है, अतः वास्तु शिल्प ज्ञान के बिना निवास करने का संसार में कोई महत्व नहीं है। जगत और वास्तु शिल्पज्ञान परस्पर पर्याय हैं।क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंच रचित अति अघम शरीरा।मानव शरीर पंचतत्वों से निर्मित है- पृथ्वी, जल आकाश, वायु और अग्नि। मनुष्य जीवन में ये पंचमहाभूत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके सही संतुलन पर ही मनुष्य की बुध्दि का संतुलन एवं आरोग्य निर्भर हैं जिसमें वह अपने जीवन में सही निर्णय लेकर सुखी जीवन व्यतीत करता है। इसी प्रकार निवास स्थान में इन पांच तत्वों का सही संतुलन होने से उसके निवासी मानसिक तनाव से मुक्त रहकर सही ढंग से विचार करके समस्त कार्य सम्पन्न कर पायेंगे और सुखी जीवन जी सकेंगे।वास्तु विषय में दिशाओं एवं पंच-तत्वों का अत्यधिक महत्व है। यह तत्व, जल-अग्नि-वायु-पृथ्वी-आकाश है। भवन निर्माण में इन तत्वों का उचित तालमेल ही, वहाँ पर निवास करने वालों का जीवन खुशहाल एवं समृद्धिदायक बनाता है। भवन का निर्माण वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप करने पर, उस स्थल पर निवास करने वालों को पाकृतिक एवं चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति एवं सूर्य की शुभ एवं स्वास्थ्यपद रश्मियों का शुभ पभाव पाप्त होता है। यह शुभ एवं सकारात्मक पभाव, वहाँ पर निवास करने वालों के सोच-विचार तथा कार्यशैली को विकासवादी बनाने में सहायक होता है। जिससे मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ एवं पसन्नचित रहती है। साथ ही बौद्धिक संतुलन भी बना रहता है। ताकि हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेकर सुख-समृद्धिदायक एवं उन्नतिशील जीवन व्यतीत कर सकें। इसके विपरीत यदि भवन का निर्माण कार्य वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत करने पर, उस स्थान पर निवास एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों के विचार तथा कार्यशैली निश्चित ही दुष्पभावी होगी। जिसके कारण मानसिक अशांति एवं परेशानियाँ बढ़ जायेंगी। इन पांच तत्वों के उचित संतुलन एवं तालमेल के अभाव में शारीरिक स्वास्थ्य तथा बुद्धि भी विचलित हो जाती है।इन तत्वों का उचित संतुलन ही, वहाँ पर निवास करने वाले पाणियों को मानसिक तनाव से मुक्त करता है। ताकि वह उचित-अनुचित का विचार करके, सही निर्णय लेकर, उन्नतिशील एवं आनंददायक जीवन व्यतीत कर सके। ब्रह्माण्ड में विद्यमान अनेक ग्रहों में से जीवन पृथ्वी पर ही है। क्योंकि पथ्वी पर इन पंच-तत्वों का संतुलन निरंतर बना रहता है। हमें सुख और दुःख देने वाला कोई नहीं है। हम अपने अविवेकशील आचरण और पकृति के नियमों के विरुद्ध आहारविहार करने से समस्याग्रस्त रहते हैं। पंच-तत्वों के संतुलन के विपरीत अपना जीवन निर्वाह करने से ही हमें दुःख और कष्ट भोगने पड़ते हैं।देवशिल्पी विश्वकर्मा द्वारा रचित इस भारतीय वास्तु शास्त्र का एकमात्र उदेश्य यही है कि गृहस्वामी को भवन शुभफल दे, उसे पुत्र-पौत्रादि, सुख-समृद्धि प्रदान कर लक्ष्मी एवं वैभव को बढाने वाला हो.इस विलक्षण भारतीय वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने से घर में स्वास्थय, खुशहाली एवं समृद्धि को पूर्णत: सुनिश्चित किया जा सकता है. एक इन्जीनियर आपके लिए सुन्दर तथा मजबूत भवन का निर्माण तो कर सकता है, परन्तु उसमें निवास करने वालों के सुख और समृद्धि की गारंटी नहीं दे सकता. लेकिन भारतीय वास्तुशास्त्र आपको इसकी पूरी गारंटी देता है.यहाँ हम अपने पाठकों को जानकारी दे रहे हैं कि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन न करने से पारिवारिक सदस्यों को किस तरह से नाना प्रकार के रोगों का सामना करना पड सकता है.यहाँ हम ऐसे ही कुछ नियम लिख रहे है जिन्हें अपना कर आप स्वय तथा अपने परिवारजनों को कुछ रोगों से मुक्ति दिला सकते है..जेसे—दमा के रोगियों के लिए वास्तु नियम—यदि घर में दमा का रोगी हो तो अपने बेठने वाले कमरे क़ी पश्चिम क़ी दिवार पर पेंडुलम वाली सफेद या सुनहरी-पीले रंग क़ी दिवार घडी लगा देनी चाहिए,शरीर क़ी सुरक्षा हेतु तीन मुखी रुद्राक्ष भी धारण करे, मिर्गी, हिस्टीरिया या दिमागी कमजोरी के लिए वास्तु नियम—उतर-पश्चिम, दखिन- पश्चिम, पश्चिम या दक्षिण दिशा के शयनकक्ष में सोना चाहिए, रोगी का शयन कक्ष भवन के उत्तर-पूर्व दिशा में कतई नही होना चाहिए, इससे अशांति बनती है, पाँचमुखी रुद्राक्ष या एकमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए… शिव उपासना करना शुभ/लाभ दायक रहेगा,उच्च रक्तचाप-मधुमेह के उपचार के लिए वास्तु नियम—अपने भूखंड और भवन के बीच के स्थान में कोई स्टोर, लोहे का जाल या बेकार का सामान नही होना चाहिए, अपने घर क़ी उत्तर-पूर्व दिशा में नीले फूल वाला पौधा लगाये,जोड़ो के दर्द, गठिया, सियाटिका और पीठ दर्द हेतु के लिए वास्तु नियम—आपके घर के कमरों क़ी दीवारों पर दरारे नही होनी चाहिए, उन पर कवर/प्लास्टर करवा देना चाहिए या दरारों पर किसी झरने या पहाड़ी का पोस्टर लगा देना चाहिए, सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना भी ठीक रहेगा,ह्रदय रोग निवारण हेतु के लिए वास्तु नियम—सुबह उठने के बाद अपने सोने वाले पलंग क़ी साइड पर ३-4 बार दाए हाथ से हल्का सा थपथपाय इसे नो (09 ) दिनों तक करे, सोने वाले कमरे क़ी उत्तर दिवार पर क्रिस्टल गेंद टांग दे और गेंदों के नीचे चारो दिशाओ में एक एक क्रिस्टल पिरामिड रख दे, घर टूटी खिडकिया शीशे, आईने नही होने चाहिए, अगर ऐसा हो तो उन्हें भी बदल दीजिये, टूटे शीशे और खिडकियों को कभी भी अखवार, कागज या कपड़े से नहीं ढकें…मधुमेह /डायबिटीज निवारण हेतु के लिए वास्तु नियम–वास्तु शास्त्र प्राचीन वैज्ञानिक जीवन शैली है वास्तु विज्ञान सम्मत तो है ही साथ ही वास्तु का सम्बन्ध ग्रह नक्षत्रों एवम धर्म से भी है ग्रहों के अशुभ होने तथा वास्तु दोष विद्यमान होने से व्यक्ति को बहुत भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ता है. वास्तु शास्त्र अनुसार पंच तत्वों पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश और वायु तथा वास्तु के आठ कोण दिशाए एवम ब्रह्म स्थल केन्द्र को संतुलित करना अति आवश्यक होता है जिससे जीवन हमारा एवं परिवार सुखमय रह सके.चिकित्सा शास्त्र में बहुत से लक्षण सुनने और देखने में मिलते है लेकिन वास्तु शास्त्र में बिलकुल स्पष्ट है कि घर/भवन का दक्षिण-पश्चिम भाग अर्थात नैऋत्य कोण ही इस रोग का जनक बनता है देखिये कैसे…—- दक्षिण-पश्चिम कोण में कुआँ,जल बोरिंग या भूमिगत पानी का स्थान मधुमेह बढाता है।—–दक्षिण-पश्चिम कोण में हरियाली बगीचा या छोटे छोटे पोधे भी शुगर का कारण है।—–घर/भवन का दक्षिण-पश्चिम कोना बड़ा हुआ है तब भी शुगर आक्रमण करेगी।—–यदि दक्षिण-पश्चिम का कोना घर में सबसे छोटा या सिकुड भी हुआ है तो समझो मधुमेह का द्वार खुल गया।——दक्षिण-पश्चिम भाग घर या वन की ऊँचाई से सबसे नीचा है मधुमेह बढेगी. इसलिए यह भाग सबसे ऊँचा रखे।——-दक्षिण-पश्चिम भाग में सीवर का गड्ढा होना भी शुगर को निमंत्रण देना है।——ब्रह्म स्थान अर्थात घर का मध्य भाग भारी हो तथा घर के मध्य में अधिक लोहे का प्रयोग हो या ब्रह्म भाग से जीना सीडीयां ऊपर कि और जा रही हो तो समझ ले कि मधुमेह का घर में आगमन होने जा रहा हें अर्थात दक्षिण-पश्चिम भाग यदि आपने सुधार लिया तो काफी हद तक आप असाध्य रोगों से मुक्त हो जायेगे कुछ सावधानियां और करे जैसे कि….——अपने बेडरूम में कभी भी भूल कर भी खाना ना खाए।——अपने बेडरूम में जूते चप्पल नए या पुराने बिलकुल भी ना रखे।——मिटटी के घड़े का पानी का इस्तेमाल करे तथा घडे में प्रतिदिन सात तुलसी के पत्ते डाल कर उसे प्रयोग करे। —–दिन में एक बार अपनी माता के हाथ का बना हुआ खाना अवश्य खाए। —–अपने पिता को तथा जो घर का मुखिया हो उसे पूर्ण सम्मान दे।——प्रत्येक मंगलवार को अपने मित्रों को मिष्ठान जरूर दे।——रविवार भगवान सूर्य को जल दे कर यदि बन्दरों को गुड खिलाये तो आप स्वयं अनुभव करेंगे की मधुमेह शुगर कितनी जल्दी जा रही है।——ईशानकोण से लोहे की सारी वस्तुए हटा ले।इन सब के करने से आप मधुमेह मुक्त हो सकते है. वृहस्पति देव की हल्दी की एक गाँठ लेकर एक चम्मच शहद में सिलपत्थर में घिस कर सुबह खाली पेट पीने से मधुमेह से मुक्त हो सकते है।===========================================—–पूर्व दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–—-यदि भवन में पूर्व दिशा का स्थान ऊँचा हो, तो व्यक्ति का सारा जीवन आर्थिक अभावों, परेशानियों में ही व्यतीत होता रहेगा और उसकी सन्तान अस्वस्थ, कमजोर स्मरणशक्ति वाली, पढाई-लिखाई में जी चुराने तथा पेट और यकृत के रोगों से पीडित रहेगी.—–यदि पूर्व दिशा में रिक्त स्थान न हो और बरामदे की ढलान पश्चिम दिशा की ओर हो, तो परिवार के मुखिया को आँखों की बीमारी, स्नायु अथवा ह्रदय रोग की स्मस्या का सामना करना पडता है.—–घर के पूर्वी भाग में कूडा-कर्कट, गन्दगी एवं पत्थर, मिट्टी इत्यादि के ढेर हों, तो गृहस्वामिनी में गर्भहानि का सामना करना पडता है.—–भवन के पश्चिम में नीचा या रिक्त स्थान हो, तो गृहस्वामी यकृत, गले, गाल ब्लैडर इत्यादि किसी बीमारी से परिवार को मंझधार में ही छोडकर अल्पावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.—–यदि पूर्व की दिवार पश्चिम दिशा की दिवार से अधिक ऊँची हो, तो संतान हानि का सामना करना पडता है.—–अगर पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया जाए, तो घर की बहू-बेटियाँ अवश्य अस्वस्थ रहेंगीं.—-बचाव के उपाय:—–—- पूर्व दिशा में पानी, पानी की टंकी, नल, हैंडापम्प इत्यादि लगवाना शुभ रहेगा.—–पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है, जो कि कालपुरूष के मुख का प्रतीक है. इसके लिए पूर्वी दिवार पर ‘सूर्य यन्त्र’ स्थापित करें और छत पर इस दिशा में लाल रंग का ध्वज(झंडा) लगायें.—– पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगें. धन और वंश की वृद्धि होगी तथा समाज में मान-प्रतिष्ठा बढेगी.—-पश्चिम दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–—-पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है. यह स्थान कालपुरूष का पेट, गुप्ताँग एवं प्रजनन अंग है.—–यदि पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो परिवार में फेफडे, मुख, छाती और चमडी इत्यादि के रोगों का सामना करना पडता है.—-यदि भवन का पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो पुरूष संतान की रोग बीमारी पर व्यर्थ धन का व्यय होता रहेगा.—-यदि घर के पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरूष सदस्यों को लम्बी बीमारियों का शिकार होना पडेगा.—-यदि भवन का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो, तो अकारण व्यर्थ में धन का अपव्यय होता रहेगा.—-यदि पश्चिम दिशा की दिवार में दरारें आ जायें, तो गृहस्वामी के गुप्ताँग में अवश्य कोई बीमारी होगी.—–यदि पश्चिम दिशा में रसोईघर अथवा अन्य किसी प्रकार से अग्नि का स्थान हो, तो पारिवारिक सदस्यों को गर्मी, पित्त और फोडे-फिन्सी, मस्से इत्यादि की शिकायत रहेगी.—–बचाव के उपाय:—–—–ऎसी स्थिति में पश्चिमी दिवार पर ‘वरूण यन्त्र’ स्थापित करें.—–परिवार का मुखिया न्यूनतम 11 शनिवार लगातार उपवास रखें और गरीबों में काले चने वितरित करे.—-पश्चिम की दिवार को थोडा ऊँचा रखें और इस दिशा में ढाल न रखें.—-पश्चिम दिशा में अशोक का एक वृक्ष लगायें.—-उत्तर दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–— उत्तर दिशा का प्रतिनिधि ग्रह बुध है और भारतीय वास्तुशास्त्र में इस दिशा को कालपुरूष का ह्रदय स्थल माना जाता है. जन्मकुंडली का चतुर्थ सुख भाव इसका कारक स्थान है.—-यदि उत्तर दिशा ऊँची हो और उसमें चबूतरे बने हों, तो घर में गुर्दे का रोग, कान का रोग, रक्त संबंधी बीमारियाँ, थकावट, आलस, घुटने इत्यादि की बीमारियाँ बनी रहेंगीं.—– यदि उत्तर दिशा अधिक उन्नत हो, तो परिवार की स्त्रियों को रूग्णता का शिकार होना पडता है.—बचाव के उपाय :—–यदि उत्तर दिशा की ओर बरामदे की ढाल रखी जाये, तो पारिवारिक सदस्यों विशेषतय: स्त्रियों का स्वास्थय उत्तम रहेगा. रोग-बीमारी पर अनावश्यक व्यय से बचे रहेंगें और उस परिवार में किसी को भी अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पडेगा.—– इस दिशा में दोष होने पर घर के पूजास्थल में ‘बुध यन्त्र’ स्थापित करें.—–परिवार का मुखिया 21 बुधवार लगातार उपवास रखे.—–भवन के प्रवेशद्वार पर संगीतमय घंटियाँ लगायें.—–उत्तर दिशा की दिवार पर हल्का हरा (Parrot Green) रंग करवायें.—–दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–दक्षिण दिशा का प्रतिनिधि ग्रह मंगल है, जो कि कालपुरूष के बायें सीने, फेफडे और गुर्दे का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली का दशम भाव इस दिशा का कारक स्थान होता है.—-यदि घर की दक्षिण दिशा में कुआँ, दरार, कचरा, कूडादान, कोई पुराना सामान इत्यादि हो, तो गृहस्वामी को ह्रदय रोग, जोडों का दर्द, खून की कमी, पीलिया, आँखों की बीमारी, कोलेस्ट्राल बढ जाना अथवा हाजमे की खराबीजन्य विभिन्न प्रकार के रोगों का सामना करना पडता है.—-दक्षिण दिशा में उत्तरी दिशा से कम ऊँचा चबूतरा बनाया गया हो, तो परिवार की स्त्रियों को घबराहट, बेचैनी, ब्लडप्रैशर, मूर्च्छाजन्य रोगों से पीडा का कष्ट भोगना पडता है.—-यदि दक्षिणी भाग नीचा हो, ओर उत्तर से अधिक रिक्त स्थान हो, तो परिवार के वृद्धजन सदैव अस्वस्थ रहेंगें. उन्हे उच्चरक्तचाप, पाचनक्रिया की गडबडी, खून की कमी, अचानक मृत्यु अथवा दुर्घटना का शिकार होना पडेगा. दक्षिण पिशाच का निवास है, इसलिए इस तरफ थोडी जगह खाली छोडकर ही भवन का निर्माण करवाना चाहिए.—-यदि किसी का घर दक्षिणमुखी हो ओर प्रवेश द्वार नैऋत्याभिमुख बनवा लिया जाए, तो ऎसा भवन दीर्घ व्याधियाँ एवं किसी पारिवारिक सदस्य को अकाल मृत्यु देने वाला होता है.बचाव के उपाय:———-यदि दक्षिणी भाग ऊँचा हो, तो घर-परिवार के सभी सदस्य पूर्णत: स्वस्थ एवं संपन्नता प्राप्त करेंगें. इस दिशा में किसी प्रकार का वास्तुजन्य दोष होने की स्थिति में छत पर लाल रक्तिम रंग का एक ध्वज अवश्य लगायें.—घर के पूजनस्थल में ‘श्री हनुमंतयन्त्र’ स्थापित करें.—-दक्षिणमुखी द्वार पर एक ताम्र धातु का ‘मंगलयन्त्र’ लगायें.—प्रवेशद्वार के अन्दर-बाहर दोनों तरफ दक्षिणावर्ती सूँड वाले गणपति जी की लघु प्रतिमा लगायें.—–आग्नेय में वास्तु दोष होने पर :—— पूर्व दिशा व दक्षिण दिशा को मिलाने वाले कोण को अग्नेय कोण संज्ञा दी जाती है। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है। इस कोण को अग्नि तत्व का प्रभुत्व माना गया है और इसका सीधा सम्बन्ध स्वास्थय के साथ है। यदि भवन की यह दिशा दूषित रहेंगी तो द्घर का कोई न कोई सदस्य बीमार रहेगा। इस दिशा के दोषपूर्ण रहने से व्यक्ति को क्रोधित स्वभाव वाला व चिडचिड़ा बना देगा। यदि भवन का यह कोण बढ़ा हुआ है तो यह संतान को कष्टप्रद होकर राजमय आदि देता है। इस दिशा का स्वामी ‘गणेश’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘शुक्र’ है। यदि आग्नेय ब्लॉक की पूर्वी दिशा मे सड़क सीधे उत्तर की ओर न बढ़कर घर के पास ही समाप्त हो जाए तो वह घर पराधीन हो जाएगा।—-नैऋत्य में वास्तु दोष होने पर :—— दक्षिण व पश्चिम के मध्य कोण को नेऋत्य कोण कहते है। यह कोण व्यक्ति के चरित्र का परिचय देता है। यदि भवन का यह कोण दूषित होगा तो उस भवन के सदस्यों का चरित्र प्रायः कुलषित होगा और शत्रु भय बना रहेगा। विद्वानों के अनुसार इस कोण के दूषित होने से अकस्मिक दुर्द्घटना होने के साथ ही अल्प आयु होने का भी योग होता है। यदि द्घर में इस कोण में खाली जगह है गड्डा है, भूत है या कांटेदार वृक्ष है तो गृह स्वामी बीमार, शत्रुओं से पीडित एंव सम्पन्नता से दूर रहेगा। नेऋत्य का हर कोण पूरे घर मे हर जगह संतुलित होना चाहिए, अन्यथा दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा। इस दिशा का स्वामी ‘राक्षस’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘राहु’ है।—-.वायव्य में वास्तु दोष होने पर :—— पश्चिम दिशा व उत्तर दिशा को मिलाने वाली विदिशा को वायव्य विदिशा या कोण कहते है जैसा कि नाम से ही विदित होता है कि यह कोण वायु का प्रतिनिधित्व करता है। यह वायु का ही स्थान माना जाता है। यह मानव को शांति, स्वस्थ दीर्घायु आदि प्रदान करता है। वस्तुतः यह परिवर्तन प्रदान करता है। भवन मे यदि इस कोण मे दोष हो, तो यह शत्रुता चपट हो तो, जातक भाग्यशाली होते हुए भी आनन्द नही भोग सकता है। यदि वायव्य द्घर मे सबसे बड़ा या ज्यादा गोलाकार है तो गृहस्वामी को गुप्त रोग सताएंगें। इस कोण का स्वामी ‘बटुक’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘चन्द्रमा’ माना गया है।—–ईशानमें वास्तु दोष होने पर :—— यह दिशा विवेक, धैर्य, ज्ञान, बुद्धि आदि प्रदान करती है भवन मे इस दिशा को पूरी तरह शुद्ध व पवित्र रखा जाना चाहिए। यदि यह दिशा दूषित होगी तो भवन मे प्रायः कलह व विभिन्न कष्टों को प्रदान करने के साथ व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट होती है और प्रायः कन्या संतान प्राप्त होती है। अतः भवन में इस दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस दिशा का स्वामी ‘रूद्र’ यानि भगवान शिव है और प्रतिनिधि ग्रह ‘बृहस्पति’ है।——-लगातार शारीरिक कष्ट बने रहने कि स्थिति को दूर करने के विषय में बताया कि अपने मकान के सामने अशोक के पेड़ लगायें. घर के सामने लैंप पोस्ट कुछ इस तरह से लगायें की उसका प्रकाश घर के ऊपर आये. इसके अलावे यदि आपका प्रवेश द्वार दक्षिण अथवा दक्षिण-पश्चिम में हो तो लाल रंग अथवा केवल पश्चिम में होने पर सफेद अथवा सुनहरे रंग से रंगे.——सर दर्द अथवा माइग्रेन जैसे रोग को दूर करने के लिये बेड के उत्तर पश्चिम कोने में सफेद माल जिसका किनारा भूरे रंग का हो, दबा कर रखने से समस्या का हल हो जाता है. इसके अलावे बेड कवर सफेद अथवा हल्के रंग का प्रयोग में लायें. मधुमेह की बढ़ती समस्या को नियंत्रित करने लिये अपने शयन कक्ष के उत्तर-पश्चिम दिशा में नीले रंग के फूलों का गुलदस्ता रखें. इसके अतिरिक्त सफेद मूंगा के धारण करने से भी इसे नियंत्रित किया जा सकता है.——एकाग्रता लाने के विषय में बताया कि विद्यार्थियों के कमरे की पूर्व दीवार पीला अथवा गुलाबी रंग की होनी चाहिये. साथ ही जोड़ों के दर्द के समाधान के लिये यह ध्यान अवश्य रखें कि जिस कमरे में आप सोते हैं उसकी दीवार में दरार न हो. साथ ही दक्षिण-पश्चिम भाग को भारी रखें. साथ ही भगवान विष्णु की तसवीर कमरे की पूर्व दीवार में लगाना सही माना जाता है.प्रकृति की ऊर्जा शक्तियों के संतुलित उपयोग से जीवन को खुशहाल और समृद्धिदायक कैसे बनायें? इसका व्यवस्थित अध्ययन और व्यावहारिक उपयोग करना ही वास्तु विज्ञान है।आज का आम इंसान अति व्यस्त है। दूषित वातावरण एवं समस्याओं ने उसका जीवन अंधकारमय, उदास एवं पीड़ित बना दिया है। मानव भले ही महान मेधावी क्यों न हो। प्रकृति पर विजय पाने की आकांक्षा को लेकर कितना ही प्रयत्न करे। उसे प्रकृति की शक्तियों के समक्ष नतमस्तक होना ही पड़ेगा। प्रकृति पर विजय पाने की कामना को छोड़कर उसके रहस्यों को आत्मसात करके, उसके नियमों का अनुसरण करे, तो प्रकृति की ऊर्जा शक्तियां स्वयं ही मानव समुदाय के लिये वरदान सिद्ध होगी। इस विषय में वास्तु विषय अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है। पंच-तत्वों पर आधारित वास्तु पर मानव सिद्धि प्राप्त करता है, तो वह उसे सुख-शांति और समृद्धि प्रदान कर सकती है। यही वास्तु का रहस्य है। वास्तु विषय का महत्व बढ़ने के साथ-साथ केवल पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर इस विषय में इतने अपरिपक्व एवं अज्ञानी लोग प्रवेश कर चुके हैं कि आम व्यक्ति के लिये सही-गलत का फैसला कर पाना मुश्किल हो जाता है। बाजार में वास्तु-शास्त्र से संबंधित मिलने वाली लगभग सभी पुस्तकों में एक ही तरह की बातें लिखी रहती हैं। इसका अर्थ यह है कि यह पुस्तकें लेखक की मौलिक रचना नहीं है और ना ही स्वयं शोध या अनुसंधान करके लिखी गयी है। बल्कि शास्त्रों में लिखी गयी बातों को अपनी भाषा में पिरो दी जाती है या फिर अन्य पुस्तकों की नकल, जिन्हें पढ़कर आम इंसान वास्तु-विषय के प्रति भ्रमित ही रहता है। जब कई मकानों का अवलोकन किया जाता है, तब हम यह देखते हैं कि प्रत्येक मकान का आकार एवं दिशाएं अलग-अलग होती हैं। जबकि पुस्तकों में लगभग एक ही तरह के सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है। आप स्वयं चिंतन कर सकते हैं कि जब अलग-अलग मकान की दिशाएं भिन्न-भिन्न रहती है, तब अलग-अलग मकान में वास्तु के सिद्धांत भी पृथक लागू होंगे।कई महानुभावों का यह सोचना है कि भवन में वास्तु के सिद्धांतों का पालन करने के बावजूद भी जीवन समस्याग्रसित रहता है। निश्चित ही यह दोष वास्तु विषय का नहीं माना जा सकता है बल्कि बिना अनुभव के अज्ञानियों के परामर्श का ही नतीजा होता है। कमी व्यक्ति के ज्ञान में संभव है, वास्तु विज्ञान में नहीं।कुशल एवं अनुभवी वास्तु विशेषज्ञ के परामर्श के अनुसार वास्तु के सिद्धांतों का पालन करते हुए भवन का निर्माण कार्य किया जाये तो, वहाँ पर रहने वालों का जीवन निरंतर खुशहाल, समृद्धिदायक और उन्नतिशील बना रहता है। वास्तु की दिशाएँ और तत्व सुधरते ही, ग्रह दशा भी स्वयं सुधरने लगती है। वास्तु के सिद्धांतों का परिपालन करते हुए, यदि मकान का निर्माण एवं सामान रखने की व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन किया जाये तो निश्चय ही वह मकान गृह स्वामी एवं वहाँ पर रहने वालों के लिये समृद्धिदायक एवं मंगलमय सिद्ध होगा। *वनिता कासनियां पंजाब*🌷🌷🙏🙏🌷🌷

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वास्तु मेन गेट डिजाइन फोटो 2022 Main Gate Design Images(लोहा गेट)By वनिता कासनियां पंजाब ?hi Hindiइस पोस्ट में मैं आपको घर के मुख्य या मेन गेट डिजाईन फोटो के बारें में बताने वाला हूँ. एक बार घर कंस्ट्रक्शन का मुख्य काम होने के बाद आपको क्रिएटिव तरीके से सोचने की जरुरत होती हैं. घर के लिए पेंट, गेट की डिजाईन को इस कद्र चुनना चाहिए कि वह घर की सुन्दरता और शोभा को बढ़ा सके. दूसरा कारन यह भी हैं कि यह आपके सपनों का एक हिस्सा होगा, इसलिए घर के मेन गेट की डिजाईन को बहुत अच्छी और मजबूत चुननी चाहिए.यहाँ मेन गेट डिजाइन फोटो 2022 सलेक्शन में लगभग 45 से अधिक अलग अलग सुन्दर डिजाईन का सिलेक्शन किया हैं. आप इन डिजाईन को देखकर अपने लिए कोई सुन्दर विचार निकाल सकते हैं.बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रमसुन्दर मेन गेट डिजाइन फोटो 2022अगर घर का कंस्ट्रक्शन काम पूरा हो गया हैं तो अब आपको इसकी सिक्यूरिटी और प्राइवेसी के बारें मे सोचना चाहिए. एक ऊँचा और मजबूत गेट घर को सिक्योर तो बनाता ही हैं, साथ में घर को सुन्दर भी बनाता हैं.2आजकल घर का मेन गेट कई डिजाईनों में बनने लग गया हैं. आप यहाँ दिखाई गयी अलग अलग डिजाईन में से कोई भी डिजाईन को चुन सकते हैं.3Main gate design photo 20224एंट्रेंस गेट कई प्रकार का होता हैं. एंट्रेंस या घर का मेन गेट का प्रकार स्विंग गेट होता हैं. स्विंग गेट अन्दर या बाहर की तरफ खुलते हैं. स्विंग गेट, सिंगल स्विंग गेट, डबल स्विंग गेट मोडल्स में आते हैं. आमतौर पर आवासीय गहरो में मेन गेट के रूप में स्विंग गेट का ऊपयोग किया जाता हैं. 5मुख्य गेट का एक प्रकार स्लाइडिंग गेट होता हैं. स्लाइडिंग गेट एक पटरी पर रेल की तरह चलते हैं, यह गेट सुरक्षा की दृष्टि से काफी अच्छे होते हैं. क्योंकि बाहर से लॉक तक आसानी से हाथ नहीं पहुँचता हैं. स्लाइडिंग गेट ड्राइव गेट के रूप में हाई सिक्यूरिटी प्रदान करते हैं.6घर के मेन गेट डिजाइन फोटो 20227हालांकि लोग घरों के बाहर लिफ्ट गेट नहीं बनाते हैं. वाहन और गाड़ियों को आवाजाही के लिए अनुमति देने के लिएय फाटक या गेट को ऊपर किया जाता हैं. लिफ्ट गेट तब चुना जाता हैं, जब घर के सामने जमीन बहुत कम होती हैं. मेन गेट डिजाइन फोटोघर का मुख्य प्रवेश द्वार खरीदने से पहले या मुख्य गेट बनाने से पहले यह सुनिश्चित जरूर कर ले कि आपने जो भी माप चुना हैं वह ठीक आयामों में मापा गया हो. 9Iron gate design photo 202210एक अच्छा गेट बनाने की चाहत रखते हैं तो आपको पहले खुद से पूछे की आप गेट से क्या उम्मीद रखते हैं, या आपकी घर के मुख्य गेट को लेकर क्या उमीदें हैं.11ऐसा हो सकता हैं कि जो गेट दिखने में सुन्दर होता हैं, वह उतना मजबूत भी हो, इसकी कोई गारंटी नहीं हैं. गेट स्टाइलिश होने के साथ साथ मजबूत भी होना चाहिए. इस बात का विशेष रूप से ख्याल रखे.12Loha gate photo for new house13गेट के लिए सही सामग्री चुने, गेट के लिए लोहा चुन सकते हैं. लोहा के अलावा आप लकड़ी भी चुन सकते हैं, लकड़ी के अलावा मार्बल भी चुना जा सकता हैं. सभी कीमत लग अलग होती हैं. लोहा का गेट सबसे सस्ता पड़ सकता हैं. उत्तम दर्जे की लकड़ी काफी महँगी पड़ सकती हैं.14यदि आप अपने गेट में लिफ्ट लगाने चाहते हैं, तो इस बात का पूरा ध्यान रखे की लिफ्ट की ऊंचाई आपके वाहन की ऊंचाई से अधिक हो.15लोहा गेट डिजाइन फोटोलोहा का गेट जिस पर सिल्वर कलर की इंटर डिजाईन आप देख सकते हैं. इस डिजाईन से गेट का लुक बहुत ही अद्भुत लग रहा हैं. आप देख सकते हैं कि गेट का कलर बिलकुल घर के कलर से मिलता झूलता हैं.17स्टील लुक के कलर में आप इस सुन्दर घर के मुख्य गेट को देख सकते है.18घरों के लिए सामने गेट डिजाइन19मेन गेट डिजाइन फोटो को आप इन इमेज में देख सकते हैं.20मेन गेट डिजाइन फोटो को देखे.21Ghar ke main darvaje ki design photo22फेंसी और न्यू डिजाईन से मिक्स गेट को आप इस फोटो में देख सकते हैं.23सिंपल हैंडल ओपनिंग गेट डिजाईन आप देख सकते, यह डिजाईन आजकल खूब पसंद नहीं की जाती हैं.घर के मेन दरवाजे की डिजाइन25बहुत ही सुन्दर और आकर्षक गेट की डिजाईन को आप इस फोटो में देख सकते हैं. इस तरह की डिजाईन आजकल खूब पसंद की जाती हैं.27घर के बाहर के मेन गेट की डिजाइन28मजबूत और सुन्दर भाला रेलिंग के रूप में यह डिजाईन घर के मुख्य दरवाजे गेट के लिए पसंद की जा सकती हैं.29यह एक चादर गेट हैं, घर के लिए मुख्य दरवाजे के रूप में इसको पसंद किया जा सकता हैं.30चादर गेट डिजाइन31बीच में पतली चद्दर पट्टी का मुख्य गेट आपके दिल को खुश कर सकता हैं.चद्दर पाइपों से मिलकर बना यह गेट आपको खूब पसंद आ सकता हैं.33फैंसी लोहा गेट डिजाइन फोटो 34प्लेन सिंपल और हल्का आप इस मेन गेट को फोटो में दख सकते हैं.35बड़ा मेहराब आकर का यह गेट बहुत ही मजबूत होता हैं, इसका वजन लगभग 300 किलो तक होता हैं.36फैंसी गेट डिजाईन फोटो37लकड़ी लुक का सुन्दर मुख्य गेट आप इस फोटो में देख सकते हैं.38वाहन की एंट्री और घर के सदस्यों के लिए अलग अलग दो गेट बनाए जा सकते हैं. इसका फायदा यह हैं की बार बार बड़ा वाला गेट को खोलने की जरुरत नहीं होती हैं.नए जमाने के गेट डिजाईन39लकड़ी का बना हुआ यह गेट आपको खूब पसंद आएगा. अगर मुख्य दरवाजे पर लकड़ी का गेट बनाया जाता हैं, तो यह ध्यान रखना चाहिए कि लकड़ी वाटर प्रूफ हो.लोहे की चादर और सिंपल डिजाईन से बना गेट आप इस घर के मेन गेट पर देख सकते हैं.41नए घर के गेट42लोहे की सिंपल डिजाईन का गेट आप इस घर के मुख्य गेट में देख सकते हैं.43मकान के टावर की डिजाइन – Staircase Tower Design photo simple Homeदुनिया का सबसे ऊंचा बड़ा बिल्डिंग टावर इमारत (duniya ki sabse unchi building)43घर के लिए एंट्रेंस गेट डिजाईन फोटो44यहाँ बताये गए डिजाईन आपको अगर पसंद आये हो तो हमने मकान टावर और घर के समें की डिजाईन की फोटो डिजाईन भी अपलोड की हैं. आप उनको भी देख सकते हैं.45घर का बाहरी डिजाइन फोटो & गांव के घर का डिजाइन – Village House Designघ बनाने का तरीका – Ghar 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Skip to conte वास्तु मेन गेट डिजाइन फोटो 2022 Main Gate Design Images(लोहा गेट) By वनिता कासनियां पंजाब ?  Hindi इस पोस्ट में मैं आपको घर के मुख्य या मेन गेट डिजाईन फोटो के बारें में बताने वाला हूँ. एक बार घर कंस्ट्रक्शन का मुख्य काम होने के बाद आपको क्रिएटिव तरीके से सोचने की जरुरत होती हैं. घर के लिए पेंट, गेट की डिजाईन को इस कद्र चुनना चाहिए कि वह घर की सुन्दरता और शोभा को बढ़ा सके. दूसरा कारन यह भी हैं कि यह आपके सपनों का एक हिस्सा होगा ,  इसलिए घर के मेन गेट की डिजाईन को बहुत अच्छी और मजबूत चुननी चाहिए. यहाँ मेन गेट डिजाइन फोटो 2022 सलेक्शन में लगभग 45 से अधिक अलग अलग सुन्दर डिजाईन का सिलेक्शन किया हैं. आप इन डिजाईन को देखकर अपने लिए कोई सुन्दर विचार निकाल सकते हैं. बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम सुन्दर मेन गेट डिजाइन फोटो 2022 अगर घर का कंस्ट्रक्शन काम पूरा हो गया हैं तो अब आपको इसकी सिक्यूरिटी और प्राइवेसी के बारें मे सोचना चाहिए. एक ऊँचा और मजबूत गेट घर को सिक्योर तो बनाता ही हैं, साथ में घर को सुन्दर भी बनाता हैं. आजकल घर का मेन गेट कई डिजाईनों में बनने लग गया हैं. ...

, नव उमंग व नई ऊर्जा के प्रतीक बसंत पंचमी के पावन पर्व की सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं। विद्या की देवी मां सरस्वती सबके जीवन में ज्ञान, समृद्धि व उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करें, ऐसी कामना करती हूँ।

Hearty greetings to all the countrymen of the holy festival of Basant Panchami, a symbol of new zeal and new energy. Mother Goddess Saraswati wishes to provide knowledge, prosperity and good health in everyone's life.

, वास्तु में घर, कार्यस्थल हर जगह पर निर्माण और सामान रखने से संबंधित महत्वपूर्ण दिशा निर्देश दिए गए हैं। वास्तु के अनुसार घर में किसी भी चीज का निर्माण करते समय दिशाओं का ध्यान रखना बेहद आवश्यक होता है अन्यथा आपको समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है। By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब इसी तरह से सीढ़ियों को तरक्की से जोड़कर देखा जाता है। वास्तु के अनुसार यदि सीढ़ियों की दिशा सही नहीं है तो व्यापार में नुकसान, आर्थिक तंगी और तरक्की में बाधाएं उत्पन्न हो सकती हैं। गलत तरह और गलत दिशा में बनी हुआ सीढ़ियों का बुरा प्रभाव घर के मुखिया पर पड़ता है। सीढ़ियों का निर्माण यदि वास्तु की बातों को ध्यान में रखकर किया जाए तो तरक्की और आर्थिक समृद्धि पाई जा सकती है। तो चलिए जानते हैं वास्तु के अनुसार कैसी होना चाहिए आपके घर की सीढ़ियां।वास्तु के अनुसार घर में सीढ़ियां हमेशा दक्षिण, पश्चिम या नैऋत्य कोण में बनाना चाहिए। वास्तु के अनुसार सीढ़ियों का निर्माण करने के लिए यह दिशाएं बहुत अच्छी रहती है।वास्तु में सीढ़ियों के निर्माण के लिए उत्तर-पूर्व यानी ईशान कोण को बिलकुल भी उचित नहीं माना गया है। घर के ईशान कोण में सीढ़ियां भूलकर भी नहीं बनानी चाहिए। इस दिशा में सीढ़ियों का निर्माण होने से वास्तु दोष लगता है जिसके कारण आपको आर्थिक तंगी, नौकरी और व्यवसाय में हानि का सामना करना पड़ सकता है। आपकी उन्नति में बाधाएं आती हैं।सीढ़ी में यदि किसी प्रकार का दोष है तो पिरामिड या फिर सीढ़ियां ईशान, उत्तर दिशा में बनी हुई हैं तो पिरामिड के द्वारा उसे संतुलित किया जा सकता है, लेकिन इसके लिए वास्तु विशेषज्ञ से सलाह अवश्य लेनी चाहिए।

Vastu has important guidelines related to construction and furnishings everywhere in the home, workplace. According to Vastu, it is very important to take care of directions while constructing anything in the house, otherwise you may face problems. By philanthropist Vanita Kasani Punjab, this is seen by connecting the stairs to the elevation. According to Vastu, if the direction of the stairs is not right then there may be loss in business, financial tightness and obstacles in progress. The stairs in the wrong way and in the wrong direction have a bad effect on the head of the household. If the stairs are constructed keeping in mind the things of Vastu, then progress and economic prosperity can be found. So let us know what should be the steps of your house according to Vastu.  According to Vastu, stairs should always be constructed in the south, west or south west corner of the house. According to Vastu, these directions are very good for constructing stairs.  The nort...