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Showing posts from June, 2021

. "दो पहलू"By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब देखने या करने में एक से लगने वाले कार्यपर निर्भर करता है कि उसे करने वाले का भाव क्या है ? हम अपनी बेटी, माँ या पत्नी से आलिंगनबद्ध होकर मिलते हैं। देखने में तीनों क्रियाएँ एक सी हैं। लेकिन मिलने के भाव में जमीन-आसमान का फर्क है। बेटी से जब हम आलिंगन करते हैं तो हमारा भाव वात्सल्य देने का होता है। माँ से जब हम आलिंगनबद्ध होते हैं तब हमारा भाव वात्सल्य पाने का होता है और जब पत्नी से आलिंगन करते हैं तब हमारा माधुर्य भाव होता है। इसी प्रकार एक डॉक्टर द्वारा पेट फाड़ना और एक बदमाश द्वारा पेट फाड़ना दोनों क्रियाएँ एक ही हैं किन्तु दोनों का भाव अलग-अलग है। डॉक्टर जीवन देने के लिये पेट फाड़ता है और बदमाश जीवन लेने के लिये। कुछ इसी तरह गोपालजी का विग्रह रखने वालों के भी भाव अलग-अलग होते हैं। किसी को केवल ठाकुरजी के दर्शन की लालसा होती है तो किसी को ठाकुरजी की सेवा की लालसा होती है। कोई उनसे कुछ पाने के लिये लाता है तो कोई उन्हें कुछ देने के लिये लाता है। किसी का भाव होता है कि विग्रह आने से ठाकुरजी हमारे घर में बने रहेंगे, हम पर कृपा करते रहेंगे, कोई संकट नहीं आने देंगे, हमारे दुख दूर करते रहेंगे। किसी का भाव केवल इतना होता है कि हमारे पड़ोस में मिसेज शर्मा के घर घर में ठाकुरजी का विग्रह है तो हमारे घर में भी होना चाहिये। हम भी ठाकुरजी को रखेंगे, हम किसी से कम हैं क्या ? अरे ! हजार दो हजार का खर्चा ही तो होगा। हमारी भी शान बनी रहेगी। जिस तरह घर में और अनेकों शोपीस रखें हैं वह भी रखें रहेंगे, उनको भी सजा दिया करेंगे, लाईटें लगा दिया करेंगे। जब आने-जाने वाले देखेंगे तो अच्छा लगेगा। इसलिये यदि आप श्री विग्रह विराजमान करशा चाहते हैं तो पहले अपने अन्दर के भावों को टटोलिये। जो लोग उनकी सेवा कर भी रहे हैं वे भी अपने अन्दर के भाव को टटोलें कि वे किस दृष्टि से सेवा कर रहे हैं। यद्यपि ठाकुरजी के श्रीविग्रह की बात ही कुछ अलग है। उनमें एक विशेष आकर्षण है। उनके श्रीविग्रह की सेवा यदि की जाय तो निश्चित ही एक न एक दिन हमारे अन्दर भगवत् सेवा के संस्कार पैदा हो ही जायेंगे। एक सच्चे साधक का प्रमुख लक्ष्य सेवा द्वारा, भजन द्वारा श्रीकृष्ण को सुख पहुँचाना होता है और इस शरीर की शान्ति के बाद चिन्मय शरीर द्वारा उनको सुख पहुँचाने वाली चरण सेवा प्राप्त करना होता है। यही मुख्य भाव होना चाहिये यदि इसके अतिरिक्त और कोई भाव है तो उसमें धीरे-धीरे सुधार करना चाहिये। ----------:::×:::---------- "जय जय श्री राधे"********************************************

. "दो पहलू" By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब           देखने या करने में एक से लगने वाले कार्यपर निर्भर करता है कि उसे करने वाले का भाव क्या है ?           हम अपनी बेटी, माँ या पत्नी से आलिंगनबद्ध होकर मिलते हैं। देखने में तीनों क्रियाएँ एक सी हैं। लेकिन मिलने के भाव में जमीन-आसमान का फर्क है। बेटी से जब हम आलिंगन करते हैं तो हमारा भाव वात्सल्य देने का होता है। माँ से जब हम आलिंगनबद्ध होते हैं तब हमारा भाव वात्सल्य पाने का होता है और जब पत्नी से आलिंगन करते हैं तब हमारा माधुर्य भाव होता है। इसी प्रकार एक डॉक्टर द्वारा पेट फाड़ना और एक बदमाश द्वारा पेट फाड़ना दोनों क्रियाएँ एक ही हैं किन्तु दोनों का भाव अलग-अलग है। डॉक्टर जीवन देने के लिये पेट फाड़ता है और बदमाश जीवन लेने के लिये।           कुछ इसी तरह गोपालजी का विग्रह रखने वालों के भी भाव अलग-अलग होते हैं। किसी को केवल ठाकुरजी के दर्शन की लालसा होती है तो किसी को ठाकुरजी की सेवा की लालसा होती है। कोई उनसे कुछ पाने के लिये लाता है तो को...

गृह कलह से मुक्ति के उपायBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸कहा जाता है कि जिस घर में क्लेश होता है, वहां लक्ष्मी का वास नहीं होता। हर किसी की अपने गृहस्थ जीवन में सुख और शांति की कामना होती है। घर और जीवन की खुशहाली ही व्यक्ति को जीवन में प्रगति के मार्ग पर ले जाती है। परिवार में व्याप्त कलह यानी की क्लेश से व्यक्ति का जीवन कठिनाइयों से भर जाता है। गृह क्लेश से बचने या उसे कम करने के लिए ज्योतिष एवं वास्तु के मिश्रित रुप का आधार लेकर कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। हम आगे आपको ऐसे ही कुछ उपाय बता रहे हैं, जिनके इस्तेमाल से आपका जीवन सुखमय और खुशहाल बनाया जा सकता है।सोने की दिशा🔸🔸🔸🔸आप किस दिशा में सिर और पैर करके सोते हैं यह गृह कलह में काफी अहम भूमिका निभाता है। गृह कलह से मुक्ति के लिए रात को सोते समय पूर्व की और सिर रखकर सोए। इससे आपको तनाव से राहत मिलेगी। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है।हनुमान उपासना🔸🔸🔸🔸🔸हनुमान जी की नियमित रूप से की गई उपासना आपको सभी प्रकार के संकट और गृह कलह से दूर रखता है। यदि कोई महिला गृह कलह से परेशान हैं तो भोजपत्र पर लाल कलम से पति का नाम लिखकर तथा ‘हं हनुमंते नम:’ का 21 बार उच्चारण करते हुए उस पत्र को घर के किसी कोने में रख दें। इसके अलावा 11 मंगलवार नियमित रूप से हनुमान मंदिर में चोला चढाएं एवं सिंदूर चढाएं। ऐसा करने से परेशानियों से राहत प्राप्त होगी।जलाभिषेक🔸🔸🔸🔸प्रतिदिन सुबह में स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र पहनकर मंदिर या घर पर शिवलिंग के सामने बैठकर शिव उपासना करें। आप ‘ऊँ नम: सम्भवाय च मयो भवाय च नम:। शंकराय च नम: शिवाय च शिवतराय च:।।’ मंत्र का 108 बार उच्चारण कर सकते हैं। इसके बाद आप शिवलिंग पर जलाभिषेक करें। ऐसा नियमित करने से प्पति-पत्नी के वैवाहिक जीवन में सुख शांति बनी रहती है।गणेश उपासना🔸🔸🔸🔸यदि किसी घर में पति-पत्नी या बाप-बेटे के बीच कलह है या किसी भी बात पर विवाद चल रहा है तो इसमें गणेश उपासना फायदेमंद रहेगी। वैवाहिक जीवन को सुखी बनाने के लिए आप नुक्ति के लड्डू का भोग लगाकर प्रतिदिन श्री गणेश जी और शक्ति की उपासना करे।चीटियों को भोजनचीटियों के बिल के पास शक्कर या आटा व चीनी मिलाकर डालने से गृहस्थ की समस्याओं का निवारण होता है। ऐसा नियमित 40 दिन तक करें। ध्यान रखें कि इस प्रक्रिया में कोई नागा न हो। कुमकुम लगाए🔸🔸🔸🔸🔸एक गेंदे के फूल पर कुमकुम लगाकर उसे किसी देव स्थान में मूर्ति के सामने रख दें। ऐसा करने से रिश्तों में आया तनाव और मतभेद दूर होते हैं। साथ ही छोटी कन्या को शुक्रवार को मीठी वस्तु खिलाने और भेंट करने से आपके संकटों का निवारण होता है। तकिये में सिंदूर रखें🔸🔸🔸🔸🔸🔸घर मे व्याप्त कलह क्लेश को कम करने के लिए पति-पत्नी को रात को सोते समय अपने तकिये में सिंदूर की एक पुड़िया और कपूर रखें। सुबह में सूर्योदय से पहले उठकर सिंदूर की पुड़िया घर से बाहर फेंक दें और कपूर को निकालकर अपने कमरे में जला दें। ऐसा करने से लाभ मिलेगा। हल्दी की गांठ🔸🔸🔸🔸ससुराल में सुखी रहने के लिए कन्या अपने हाथ से हल्दी की पांच साबुत गांठें, पीतल का एक टुकड़ा और थोड़ा-सा गुड़ ससुराल की दिशा की ओर फेंक दें। ऐसा करने से ससुराल में सुख एवं शांति का वास रहता है। पति-पत्नी के बीच प्रेम संबंध बने रहते हैं।घर में रखें चांदी की गणेश प्रतिमा, पति-पत्नी के बीच नहीं होंगे झगड़ेघर में रखी हर वस्तु परिवार के सदस्यों के बीच संबंधों पर प्रभाव डालती है। सभी वस्तुओं की अलग-अलग सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार की ऊर्जा होती हैं। वास्तु के अनुसार बताई गई वस्तु सही जगह रखने पर घर में सकारात्मक ऊर्जा अधिक सक्रीय होती है।सामान्यत: शादी के बाद पति-पत्नी के बीच छोटे-छोटे झगड़े होते रहते हैं लेकिन कई बार यही छोटे झगड़े काफी बढ़ जाते हैं। इन झगड़ों की वजह से दोनों के जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है। ऐसे में मानसिक तनाव बढऩे लगता है और वैवाहिक जीवन में खटास घुल जाती है। इससे बचने के लिए वास्तु और ज्योतिष में कई सटीक उपाय बताया गया है। शास्त्रों के अनुसार श्रीगणेश को परिवार का देवता माना गया है।श्रीगणेश की आराधना से परिवार की सुख-समृद्धि और परस्पर प्रेम बना रहता है। इसी वजह से प्रथम पूज्य गणेशजी की मूर्ति घर में रखी जाती है। श्रीगणेश की चांदी की प्रतिमा घर में रखने से पति-पत्नी के बीच झगड़े नहीं होते और प्रेम बढ़ता रहता है।🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸

गृह कलह से मुक्ति के उपाय By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🔸🔸🔹🔸🔸🔹🔸🔸 कहा जाता है कि जिस घर में क्लेश होता है, वहां लक्ष्मी का वास नहीं होता। हर किसी की अपने गृहस्थ जीवन में सुख और शांति की कामना होती है। घर और जीवन की खुशहाली ही व्यक्ति को जीवन में प्रगति के मार्ग पर ले जाती है। परिवार में व्याप्त कलह यानी की क्लेश से व्यक्ति का जीवन कठिनाइयों से भर जाता है। गृह क्लेश से बचने या उसे कम करने के लिए ज्योतिष एवं वास्तु के मिश्रित रुप का आधार लेकर कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। हम आगे आपको ऐसे ही कुछ उपाय बता रहे हैं, जिनके इस्तेमाल से आपका जीवन सुखमय और खुशहाल बनाया जा सकता है। सोने की दिशा 🔸🔸🔸🔸 आप किस दिशा में सिर और पैर करके सोते हैं यह गृह कलह में काफी अहम भूमिका निभाता है। गृह कलह से मुक्ति के लिए रात को सोते समय पूर्व की और सिर रखकर सोए। इससे आपको तनाव से राहत मिलेगी। ऐसा करने से घर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। हनुमान उपासना 🔸🔸🔸🔸🔸 हनुमान जी की नियमित रूप से की गई उपासना आपको सभी प्रकार के संकट और गृह कलह से दूर रखता है। यदि कोई महिला गृह कलह से पर...

श्री हरि जय सिया राम , कुछ उपाय टोटके = By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब ★★★★★★👉विवाह में बिलम्ब हो रहा हो 4किलो जौ और 600gm कच्चा कोयला दूध मिलाकर दरिया में डाले , 👉मुकदमा में विजय प्राप्त करने के लिए चार दिन लगातार ठीक एक समय पर श्मशान में वाहर से श्मशान में बादाम डाले 👉एक कागज पर अपनी मनोकामना लिखकर साथ मे लोहे , ताँबा, जस्त, का एक एक टुकड़ा लेकर ज़मीन में छेद करके डाल दे और ऊपर से मिट्टी भर दे मनोकामना पूरी होगी , 👉 जायदाद आदि पूरी किम्मत पर बेचने के लिए काले उड़द चलते पानी मे बहाओ , लोहे की चीजो का दान करे , बादाम बच्चो में बांट दे 👉चने की दाल लगातार धर्मस्थान में 43 दिन दे सुख , सफलता आर्थिक स्तिथि में सुधार होता है 👉 झग़डे , फसाद , और व्यपारिक घाटे से बचने के लिए अपने वजन के बराबर कोयले दरिया में बहाए 👉आर्थिक स्तिथि ठीक करने के लिए शरीर पर सोने का चौरस टुकड़ा पहने 👉गृह की शांति सुख समृद्धि के लिए प्रतिदिन अपने भोजन में से गाय , कौआ और कुते को हिस्सा दे 👉8 छुहारे लाल कपड़े में बांधकर प्लास्टिक की थैली में अपने पास रखे , या वाहन में रख दे और ॐ नमः शिवाय का जप करे , दुर्घटना आदि से बचाव होता है 👉 किसी भी तरह से विमारी ना जाती हो तो मरीज के वजन जितने जौ चलते पानी मे वहां दे 👉 आप को लगता है किया कराया है तो आप शाम के समय पीपल के पेड़ पास कुछ खाद्य पदार्थ रखे , और इसके बाद पीपल की पूजा करे , और पीपल की 49 वार परिक्रमा करे , इससे किया कराया , भूत प्रेत आदि दोष दूर होते है 👉 कुंडली प्रश्न कुंडली के फलादेश आदि के लिए सम्पर्क करें बाल वनिता महिला आश्रम

श्री हरि जय सिया राम ,  कुछ उपाय टोटके =  By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब          ★★★★★★ 👉विवाह में बिलम्ब हो रहा हो 4किलो जौ और 600gm कच्चा कोयला दूध मिलाकर दरिया में डाले ,  👉मुकदमा में विजय प्राप्त करने के लिए चार दिन लगातार ठीक एक समय पर श्मशान में वाहर से श्मशान में बादाम डाले  👉एक कागज पर अपनी मनोकामना लिखकर साथ मे लोहे , ताँबा, जस्त, का एक एक टुकड़ा लेकर ज़मीन में छेद करके डाल दे और ऊपर से मिट्टी भर दे मनोकामना पूरी होगी ,  👉 जायदाद आदि पूरी किम्मत पर बेचने के लिए काले उड़द चलते पानी मे बहाओ , लोहे की चीजो का दान करे , बादाम बच्चो में बांट दे  👉चने की दाल लगातार धर्मस्थान में 43 दिन दे सुख , सफलता आर्थिक स्तिथि में सुधार होता है  👉 झग़डे , फसाद , और व्यपारिक घाटे से बचने के लिए अपने वजन के बराबर कोयले दरिया में बहाए  👉आर्थिक  स्तिथि ठीक करने के लिए शरीर पर सोने का चौरस टुकड़ा पहने  👉गृह की शांति सुख समृद्धि के लिए प्रतिदिन अपने भोजन में से गाय , कौआ और कुते को हिस्सा दे  👉8 छुहारे लाल कपड़े में ब...

भाई-बहनों, आज हम पांडवों की माता कुन्ती के जीवन का दर्शन करेंगे, By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबमहाभारत युद्ध के बाद जब भगवान् श्री कृष्णजी द्वारिका जा रहे थे, तब भगवान् ने सभी को इच्छित वरदान दियें, जब माता कुन्ती से वर मांगने के लिये कहाँ गया तो माँ कुन्ती ने क्या मांगा? कुन्ती बोली- मैं क्या मांगूं गोपाल? मांगते तो वो हैं जिनके पास कुछ होता नहीं, जिसको सर्वस्व पहले ही मिला हुआ हो, वो क्या मांगे? कन्हैया बोले, कुछ तो मांगो बुआ, मेरा देने का मन है, कुन्ती ने तुरंत अपनी साड़ी के पल्लू को आगे कर लिया और देना चाहते हो तो गोपाल एक ही वर दे दो।विपद: सन्तु न: शश्ववत्तत्र तत्र जगद्गुरो।भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनभ॔वदर्शनम्।।मेरे जीवन में विपत्ति पर विपत्ति आती रहें, एक विपत्ति दूर न हो दूसरी विपत्ति आ जाये, दु:ख पर दु:ख मेरे जीवन में आता रहे, भगवान् बोले, क्या मांग रही हो बुआ? दु:ख भी कोई मांगने की चीज है? कुन्ती ने कहा गोपाल जिस दु:ख में तुम्हारी याद आती है ना, वो दु:ख ही सबसे बड़ा सुख होता है, मेरे गोविन्द आवेश में आ गये और बोले, बुआ अब ये दु:ख मैं तुम्हें नहीं दे सकता, जीवन में दु:ख के सिवाय तुमने और पाया ही क्या है? सज्जनों! आप माता कुन्ती के चरित्र पर एक नजर डालकर देखें, कुन्ती का जन्म हुआ मथुरा में शूरसेन के घर, जन्म लेने के बाद ही इनको कुंती भोज राजा ले गये, इनका वास्तविक नाम है प्रथा, कुंती भोज राजा ने अपना नाम दिया और कुन्ती नाम रख दिया, इनका जन्म कहीं हुआ, पालन दूसरे घर में हुआ, भाई-बहनों! जिस बालक का जन्म कहीं और पालन कहीं और हो, उसका बचपन सुख से व्यतीत कैसे हो सकता है? बचपन माता कुन्ती का बड़े कष्ट में व्यतीत हुआ, किशोरावस्था भें कुन्ती का विवाह हो गया, विवाह भी हुआ तो एक ऐसे पुरुष से जो जन्म से ही पीलिया के रोग से ग्रस्त हैं, माद्रि और कुन्ती दोनों उनकी पत्नी हैं, कुन्ती ने सोचा, कोई बात नहीं मेरे लिए तो पति परमेश्वर है, पति भी मिला तो ऐसा जो पीलिया का रोगी है और उस पति का कोई सुख नहीं, क्योंकि पति को ऐसा श्राप मिला हुआ कि जब भी सहवास की कामना लेकर पत्नी के पास जाओगे, तुम्हारी मृत्यु हो जायेगी।ये तो महात्मा दुर्वासा के कुछ मंत्र ऐसे दिये हुए थे जिससे कुन्ती जिस देवता का आव्हान करके बुलाती तो प्रकट हो जाते, उन्हीं मंत्रों के आश्रय से धर्मराज को आमंत्रित किया, धर्मराज की कृपा से युधिष्ठिरजी का प्रादुर्भाव हुआ, इन्द्र की कृपा से अर्जुन, पवनदेव की कृपा से भीमसेन, माद्रि जो उनकी सौत हैं, उसके लिये भी अश्विनी कुमारों को आमंत्रित किया, दो बेटे हुए नकुल और सहदेव, माता कुन्ती पाँच पांडवों में से बङे तीन की माता थीं, कुन्ती पंच-कन्याओं में से एक हैं जिन्हें चिर-कुमारी कहा जाता है।भाई-बहनों! महाराज पाण्डु को श्राप कैसे मिला यह भी समझने की कोशिश करेंगे, हुआ ऐसा कि एक बार राजा पाण्डु अपनी दोनों पत्नियों यानी माता कुन्ती तथा माद्री के साथ आखेट के लिये वन में गये, वहाँ उन्हें एक मृग का मैथुनरत जोड़ा दृष्टिगत हुआ, पाण्डु ने तत्काल अपने बाण से उस मृग को घायल कर दिया, मरते हुये मृग ने पाण्डु को शाप दिया कि तुम्हारे समान क्रूर पुरुष इस संसार में कोई भी नहीं होगा, तूने मुझे मैथुन के समय बाण मारा है अतः जब कभी भी तू मैथुनरत होगा तेरी मृत्यु हो जायेगी।इसी दौरान राजा पाण्डु ने अमावस्या के दिन ऋषि-मुनियों को ब्रह्मा जी के दर्शनों के लिये जाते हुये देखा, उन्होंने उन ऋषि-मुनियों से स्वयं को साथ ले जाने का आग्रह किया, उनके इस आग्रह पर ऋषि-मुनियों ने कहा, "राजन्! कोई भी निःसन्तान पुरुष ब्रह्मलोक जाने का अधिकारी नहीं हो सकता अत: हम आपको अपने साथ ले जाने में असमर्थ हैं, ऋषि-मुनियों की बात सुन कर पाण्डु अपनी पत्नी से बोले, हे कुन्ती! मेरा जन्म लेना ही वृथ हो रहा है, क्योंकि? सन्तानहीन व्यक्ति पितृ-ऋण, ऋषि-ऋण, देव-ऋण तथा मनुष्य-ऋण से मुक्ति नहीं पा सकता। क्या तुम पुत्र प्राप्ति के लिये मेरी सहायता कर सकती हो? कुन्ती बोली- हे आर्यपुत्र! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मन्त्र प्रदान किया है जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित संतान प्राप्त कर सकती हूँ, आप आज्ञा करें मैं किस देवता को बुलाऊँ, इस पर पाण्डु ने धर्म को आमन्त्रित करने का आदेश दिया, धर्म ने कुन्ती को पुत्र प्रदान किया जिसका नाम युधिष्ठिर रखा गया, महाराज पाण्डु ने कुन्ती को पुनः दो बार वायुदेव तथा इन्द्रदेव को आमन्त्रित करने की आज्ञा दी। वायुदेव से भीम तथा इन्द्र से अर्जुन की उत्पत्ति हुई, तत्पश्चात् महाराज पाण्डु की आज्ञा से कुन्ती ने माद्री को उस मन्त्र की दीक्षा दी, माद्री ने अश्वनीकुमारों को आमन्त्रित किया और नकुल तथा सहदेव का जन्म हुआ, महाराज पाण्डु की मौत का कारण भी वही श्राप है जो हिरण ने दिया था, हुआ ऐसा कि एक दिन राजा पाण्डु माद्री के साथ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे, वातावरण अत्यन्त रमणीक था और शीतल-मन्द-सुगन्धित वायु चल रही थी, वायु के झोंके से माद्री का वस्त्र उड़ गया, इससे पाण्डु का मन चंचल हो उठा और वे मैथुन मे प्रवृत हुये ही थे कि श्रापवश उनकी मृत्यु हो गयी।माद्री उनके साथ सती हो गई किन्तु पाँच पुत्रों के पालन-पोषण के लिये कुन्ती हस्तिनापुर लौट आई, सज्जनों! ऐसे कष्टों से भरा जीवन जीने के बाद भी भगवान् से माता कुन्ती अपने लिये कष्ट माँगती है, ऐसी वीर माता के जीवन चरित्र को हमें अपने जीवन में धारण करना चाहियें, गये शुक्रवार को हमने माता देवहूति के जीवन चरित्र के दर्शन किये थे, जो भगवान् कपीलजी और सती अनुसूइयाजी की माताश्री भी थी, भाई-बहनों! ऐसी पोस्ट करने का मेरा मकसद ही यहीं है कि शास्त्रों में वर्णित ऐसी वीर माताओं के जीवन चरित्र का हम दर्शन कर सकें और हम अपने जीवन में धारण करने की कोशिश करें, आज के पावन दिवस की पावन सुप्रभात् आप सभी के लिये मंगलमय् हो।जय श्री राधे-कृष्ण!ओऊम् नमो भगवते वासुदेवाय्

भाई-बहनों, आज हम पांडवों की माता कुन्ती के जीवन का दर्शन करेंगे,  By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब महाभारत युद्ध के बाद जब भगवान् श्री कृष्णजी द्वारिका जा रहे थे, तब भगवान् ने सभी को इच्छित वरदान दियें, जब माता कुन्ती से वर मांगने के लिये कहाँ गया तो माँ कुन्ती ने क्या मांगा? कुन्ती बोली- मैं क्या मांगूं गोपाल? मांगते तो वो हैं जिनके पास कुछ होता नहीं, जिसको सर्वस्व पहले ही मिला हुआ हो, वो क्या मांगे? कन्हैया बोले, कुछ तो मांगो बुआ, मेरा देने का मन है, कुन्ती ने तुरंत अपनी साड़ी के पल्लू को आगे कर लिया और देना चाहते हो तो गोपाल एक ही वर दे दो। विपद: सन्तु न: शश्ववत्तत्र तत्र जगद्गुरो। भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनभ॔वदर्शनम्।। मेरे जीवन में विपत्ति पर विपत्ति आती रहें, एक विपत्ति दूर न हो दूसरी विपत्ति आ जाये, दु:ख पर दु:ख मेरे जीवन में आता रहे, भगवान् बोले, क्या मांग रही हो बुआ? दु:ख भी कोई मांगने की चीज है? कुन्ती ने कहा गोपाल जिस दु:ख में तुम्हारी याद आती है ना, वो दु:ख ही सबसे बड़ा सुख होता है, मेरे गोविन्द आवेश में आ गये और बोले, बुआ अब ये दु:ख मैं तुम्हें नहीं दे सकता, जीवन में दु:ख...
अंतिम सफर की तैयारी :- =============== बाल वनिता महिला आश्रम एक राज्य का क़ानून था कि वो एक साल बाद अपना राजा बदल लेते थे। उस दिन जो भी सब से पहले शहर में आता था तो उसे राजा घोषित कर लेते थे, और इससे पहले वाले राजा को एक बहुत ही ख़तरनाक और मीलों मॆं फैले जंगल के बीचों बीच छोड़कर आते जहां बेचारा अगर खूंखार जानवरो से किसी तरह अपने आप को बचा लेता तो भूख- प्यास से मर जाता । ना जाने कितने ही राजा ऐसे ही एक साल की राजगद्दी के बाद जंगल में जा कर मर गए ।  एक बार राज्य में एक नौजवान किसी दूसरे राज्य से आया और इस राज्य के कानून से अनजान था, तब सब लोगों ने आगे बढ़कर उसे बधाईयाँ दी और उसे बताया कि उसको इस राज्य का राजा चुन लिया गया है और उसे बड़े मान-शान के साथ राजमहल में ले गए । वो हैरान भी हुआ और बहुत ख़ुश भी । राजगद्दी पर बैठते ही उसने पूछा कि मुझ से पहले जो राजा था, वो कहाँ है? तो दरबारियों ने उसे इस राज्य का क़ानून बताया कि हर राजा को एक साल बाद जंगल में छोड़ दिया जाता है और नया राजा चुन लिया जाता है ।  ये बात सुनते ही वो एक बार तो परेशान हुआ लेकिन फिर उसने अपनी दिमाग का इस्तेमाल करते ह...
झाड़ू कहां और कैसे रखें: By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 🔸🔸🔹🔸🔹🔸🔸 झाड़ू से घर में प्रवेश करने वाली बुरी अथवा नकारात्मक ऊर्जा नष्ट होती है।  अत: इसके संबंध ध्यान रखें कि: 1 खुले स्थान पर झाड़ू रखना अपशकुन माना जाता है, इसलिए इसे छिपा कर रखें। 2 भोजन कक्ष में झाड़ू न रखें, क्योंकि इससे घर का अनाज जल्दी खत्म हो सकता है। साथ ही, स्वास्थ्य संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है। 3 यदि अपने घर के बाहर हर रोज रात के समय दरवाजे के सामने झाड़ू रखते हैं तो इससे घर में नकारात्मक ऊर्जा प्रवेश नहीं करती है। ये काम केवल रात के समय ही करना चाहिए। दिन में झाड़ू छिपा कर रखें। 🚩घर में पोंछा लगाते समय करें ये उपाय: जब भी घर में पोंछा लगाते है, तब पानी में थोड़ा-सा नमक भी मिला लेना चाहिए। नमक मिले हुए पानी से पोंछा लगाने पर फर्श के सूक्ष्म कीटाणु नष्ट होंगे। साथ ही, घर की नकारात्मक ऊर्जा भी खत्म हो जाएगी। झाड़ू से जुड़े शकुन-अपशकुन 🔸🔸🔹🔸🔹🔸🔹🔸🔸 1 अगर कोई बच्चा घर में अचानक झाड़ू लगा रहा है तो समझना चाहिए अनचाहे मेहमान घर में आने वाले हैं। 2 सूर्यास्त के बाद घर में झाड़ू पोंछा गलती स...

वास्तु की ये 13 बातें आपकी आंखें खोल देंगी, तरक्की करना है तो पता होना चाहिए आपकोबाल वनिता महिला आश्रमयहां पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं वास्तु के अनुसार 13 ऐसी बातें जो हम सबको जरूर पता होना चाहिए। अगर आप भी अपने जीवन को सुख, शांति और सफलता से भरपूर बनाना चाहते हैं तो अवश्य अपनाएं। * बैठते वक्त उत्तर या पूर्व दिशा में मुख करके बैठें। * गिलास में पानी लेकर उसमें थोड़ी हल्दी डालकर आम या पान के पत्ते से इस पानी का घर में छिड़काव करें। टीवी के कांच एवं दर्पण (आईना) की परछाई बेडरूम में नहीं पड़नी चाहिए। * घर में टूटा कांच नहीं रखें। * एक बाल्टी पानी में 5 चम्मच नमक डालकर घर में पोंछा करें।* डायनिंग टेबल गोल आकार की नहीं होना चाहिए। * आधा किलो फिटकरी ड्राइंग रूम में रखें।* प्रवेश द्वार कमान वाला नहीं होना चाहिए। * प्रवेश द्वार के पर्दे में घुंघरू बांधना शुभ है। * प्रवेश द्वार के ऊपर अंदर तथा बाहर गणेशजी की फोटो लगाएं। * उत्तर दिशा में हनुमानजी का आशीर्वाद मुद्रा वाला फोटो लगाएं। * घड़ी को गिफ्ट में नहीं लेना-देना चाहिए। * मस्तक पर टीका या कुमकुम लगाना चाहिए। * अमावस्या के दिन शाम को गोधूली बेला में चौखट के बाहर सफाई कर स्वस्तिक बनाकर पूजा करना चाहिए व नारियल फोड़कर बाहर फेंकना चाहिए।

वास्तु की ये 13 बातें आपकी आंखें खोल देंगी, तरक्की करना है तो पता होना चाहिए आपको बाल वनिता महिला आश्रम यहां पाठकों के लिए प्रस्तुत हैं वास्तु के अनुसार 13 ऐसी बातें जो हम सबको जरूर पता होना चाहिए। अगर आप भी अपने जीवन को सुख, शांति और सफलता से भरपूर बनाना चाहते हैं तो अवश्य अपनाएं।    * बैठते वक्त उत्तर या पूर्व दिशा में मुख करके बैठें।   * गिलास में पानी लेकर उसमें थोड़ी हल्दी डालकर आम या पान के पत्ते से इस पानी का घर में छिड़काव करें। टीवी के कांच एवं दर्पण (आईना) की परछाई बेडरूम में नहीं पड़नी चाहिए।   * घर में टूटा कांच नहीं रखें।   * एक बाल्टी पानी में 5 चम्मच नमक डालकर घर में पोंछा करें। * डायनिंग टेबल गोल आकार की नहीं होना चाहिए।   * आधा किलो फिटकरी ड्राइंग रूम में रखें। * प्रवेश द्वार कमान वाला नहीं होना चाहिए।   * प्रवेश द्वार के पर्दे में घुंघरू बांधना शुभ है।    * प्रवेश द्वार के ऊपर अंदर तथा बाहर गणेशजी की फोटो लगाएं।   * उत्तर दिशा में हनुमानजी का आशीर्वाद मुद्रा वाला फोटो लगाएं।   * घड़ी को गिफ्ट में नहीं ल...

आर्किटेक्चरBy समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाबभाषा: हिन्दीडाउनलोड पीडीऍफ़घड़ीसंपादित करेंपेशे के लिए, आर्किटेक्ट देखें । अन्य उपयोगों के लिए, आर्किटेक्चर (बहुविकल्पी) देखें ।वास्तुकला (लैटिन architectura , ग्रीक से ἀρχιτέκτων arkhitekton "वास्तुकार", से ἀρχι- "मुख्य" और τέκτων "निर्माता") प्रक्रिया और का उत्पाद है नियोजन , डिजाइन , और निर्माण इमारतों या अन्य संरचनाओं । [३] इमारतों के भौतिक रूप में स्थापत्य के कार्यों को अक्सर सांस्कृतिक प्रतीकों और कला के कार्यों के रूप में माना जाता है । ऐतिहासिक सभ्यताओं को अक्सर उनकी जीवित स्थापत्य उपलब्धियों के साथ पहचाना जाता है। [४]गुंबद को दिखाते हुए फ्लोरेंस का दृश्य, जो अपने चारों ओर की हर चीज पर हावी है। यह योजना में अष्टकोणीय है और खंड में अंडाकार है। इसमें चौड़ी पसलियाँ हैं जो बीच में लाल टाइलों के साथ शीर्ष पर उठती हैं और शीर्ष पर एक संगमरमर का लालटेन है।15वीं शताब्दी की शुरुआत में फ्लोरेंस कैथेड्रल (इटली) में गुंबद को जोड़ने में , वास्तुकार फिलिपो ब्रुनेलेस्ची ने न केवल इमारत और शहर को बदल दिया, बल्कि वास्तुकार की भूमिका और स्थिति को भी बदल दिया । [1] [2]प्लान डी'एक्ज़ीक्यूशन डु सेकेंड एटेज डे ल'होटल डे ब्रियोन (डेसिन) डी कॉट्टे 2503c - गैलिका 2011 (समायोजित)पेरिस में होटल डी ब्रियोन की दूसरी मंजिल (अटारी मंजिला) की योजना - १७३४।प्रागैतिहासिक काल में शुरू हुई इस प्रथा का उपयोग सभी सात महाद्वीपों पर सभ्यताओं के लिए संस्कृति को व्यक्त करने के एक तरीके के रूप में किया गया है । [५] इसी कारण वास्तुकला को कला का एक रूप माना जाता है । वास्तुकला पर ग्रंथ प्राचीन काल से लिखे गए हैं। स्थापत्य सिद्धांत पर सबसे पुराना जीवित पाठ रोमन वास्तुकार विट्रुवियस द्वारा पहली शताब्दी ईस्वी सन् का ग्रंथ डी आर्किटेक्चर है , जिसके अनुसार एक अच्छी इमारत फर्मिटास, यूटिलिटस और वेनुस्टास (स्थायित्व, उपयोगिता और सौंदर्य) का प्रतीक है । सदियों बाद, लियोन बतिस्ता अल्बर्टिकअपने विचारों को और विकसित किया, सुंदरता को उनके अनुपात में पाए जाने वाले भवनों की एक उद्देश्य गुणवत्ता के रूप में देखते हुए। जियोर्जियो वासरी ने सबसे उत्कृष्ट चित्रकारों, मूर्तिकारों और वास्तुकारों का जीवन लिखा और 16 वीं शताब्दी में कला में शैली के विचार को सामने रखा। 19वीं शताब्दी में, लुई सुलिवन ने घोषणा की कि " फॉर्म फंक्शन फॉलो करता है "। "कार्य" ने शास्त्रीय "उपयोगिता" को प्रतिस्थापित करना शुरू कर दिया और समझा गया कि इसमें न केवल व्यावहारिक बल्कि सौंदर्य, मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक आयाम भी शामिल हैं। टिकाऊ वास्तुकला का विचार 20 वीं शताब्दी के अंत में पेश किया गया था।वास्तुकला ग्रामीण, मौखिक स्थानीय वास्तुकला के रूप में शुरू हुई जो परीक्षण और त्रुटि से सफल प्रतिकृति तक विकसित हुई। प्राचीन शहरी वास्तुकला शासकों की राजनीतिक शक्ति के प्रतीक धार्मिक संरचनाओं और इमारतों के निर्माण में व्यस्त थी जब तक कि ग्रीक और रोमन वास्तुकला ने नागरिक गुणों पर ध्यान केंद्रित नहीं किया। भारतीय और चीनी वास्तुकला ने पूरे एशिया में रूपों को प्रभावित किया और विशेष रूप से बौद्ध वास्तुकला ने विविध स्थानीय स्वाद लिए। के दौरान यूरोपीय मध्य युग , के अखिल यूरोपीय शैलियों रोम देशवासी और गोथिक गिरिजाघरों और abbeys उभरा जबकि पुनर्जागरण द्वारा कार्यान्वित शास्त्रीय रूपों इष्टआर्किटेक्ट्स के नाम से जाना जाता है। बाद में, आर्किटेक्ट और इंजीनियरों की भूमिका अलग हो गई। आधुनिक वास्तुकला प्रथम विश्व युद्ध के बाद एक अवंत-गार्डे आंदोलन के रूप में शुरू हुआ , जिसने मध्य और कामकाजी वर्गों की जरूरतों को पूरा करने पर केंद्रित एक नए युद्ध के बाद के सामाजिक और आर्थिक आदेश के लिए उपयुक्त एक पूरी तरह से नई शैली विकसित करने की मांग की। आधुनिक तकनीकों, सामग्रियों और सरलीकृत ज्यामितीय रूपों पर जोर दिया गया, जिससे उच्च-वृद्धि वाले सुपरस्ट्रक्चर का मार्ग प्रशस्त हुआ। कई वास्तुकारों का आधुनिकतावाद से मोहभंग हो गया, जिसे वे अनैतिहासिक और सौंदर्य-विरोधी मानते थे, और उत्तर आधुनिक और समकालीन वास्तुकला विकसित हुई।वर्षों से, वास्तुशिल्प निर्माण के क्षेत्र में जहाज के डिजाइन से लेकर आंतरिक सजावट तक सब कुछ शामिल है।बाल वनिता महिला आश्रमपरिभाषाएंवास्तुकला का मतलब हो सकता है:इमारतों और अन्य भौतिक संरचनाओं का वर्णन करने के लिए एक सामान्य शब्द। [6]इमारतों और (कुछ) गैर-निर्माण संरचनाओं को डिजाइन करने की कला और विज्ञान । [6]डिजाइन की शैली और इमारतों और अन्य भौतिक संरचनाओं के निर्माण की विधि। [6]एक एकीकृत या सुसंगत रूप या संरचना। [7]कला, विज्ञान, प्रौद्योगिकी और मानवता का ज्ञान। [6]आर्किटेक्ट की डिजाइन गतिविधि, [६] मैक्रो-लेवल ( शहरी डिजाइन , लैंडस्केप आर्किटेक्चर ) से माइक्रो-लेवल (निर्माण विवरण और फर्नीचर) तक। वास्तुकार का अभ्यास , जहां वास्तुकला का अर्थ है इमारतों के डिजाइन और निर्माण, या निर्मित वातावरण के संबंध में पेशेवर सेवाएं प्रदान करना या प्रदान करना। [8]वास्तुकला का सिद्धांतका चित्रण ब्रैकेट हाथ युक्त समूहों cantilevers से Yingzao Fashi , द्वारा वास्तुकला पर एक पाठ ली जुए (1065-1110))मुख्य लेख: वास्तुकला सिद्धांतमुख्य लेख: वास्तुकला का दर्शनवास्तुकला का दर्शन कला के दर्शन की एक शाखा है , जो वास्तुकला के सौंदर्य मूल्य, इसके शब्दार्थ और संस्कृति के विकास के साथ संबंधों से संबंधित है । प्लेटो से लेकर मिशेल फौकॉल्ट , गिल्स डेल्यूज़ , [९] रॉबर्ट वेंचुरी और लुडविग विट्गेन्स्टाइन तक कई दार्शनिकों और सिद्धांतकारों ने खुद को वास्तुकला की प्रकृति से संबंधित किया है और वास्तुकला को इमारत से अलग किया गया है या नहीं।ऐतिहासिक ग्रंथवास्तुकला के विषय पर सबसे पुराना जीवित लिखित कार्य रोमन वास्तुकार विट्रुवियस द्वारा पहली शताब्दी ईस्वी की शुरुआत में डी आर्किटेक्चर है । [१०] विट्रुवियस के अनुसार, एक अच्छी इमारत को फर्मिटस, यूटिलिटस, वेनुस्टास के तीन सिद्धांतों को पूरा करना चाहिए , [११] [१२] जिसे आमतौर पर मूल अनुवाद से जाना जाता है - दृढ़ता, वस्तु और प्रसन्नता । आधुनिक अंग्रेजी में एक समकक्ष होगा:स्थायित्व - एक इमारत को मजबूती से खड़ा होना चाहिए और अच्छी स्थिति में रहना चाहिएउपयोगिता - यह उन उद्देश्यों के लिए उपयुक्त होना चाहिए जिनके लिए इसका उपयोग किया जाता हैसौंदर्य - यह सौंदर्य की दृष्टि से मनभावन होना चाहिएविट्रुवियस के अनुसार, वास्तुकार को इन तीनों गुणों में से प्रत्येक को यथासंभव पूरा करने का प्रयास करना चाहिए। लियोन बत्तीस्ता अल्बर्टी , जो अपने ग्रंथ, डे रे एडिफिक्टोरिया में विट्रुवियस के विचारों पर विस्तार से बताते हैं , ने सुंदरता को मुख्य रूप से अनुपात के रूप में देखा, हालांकि आभूषण ने भी एक भूमिका निभाई। अल्बर्टी के लिए, अनुपात के नियम वे थे जो आदर्श मानव आकृति, गोल्डन माध्य को नियंत्रित करते थे । सुंदरता का सबसे महत्वपूर्ण पहलू, इसलिए, किसी वस्तु का एक अंतर्निहित हिस्सा था, न कि किसी चीज़ को सतही रूप से लागू करने के लिए, और यह सार्वभौमिक, पहचानने योग्य सत्य पर आधारित था। कला में शैली की धारणा 16 वीं शताब्दी तक जियोर्जियो वसारी के लेखन के साथ विकसित नहीं हुई थी । [13]१८वीं शताब्दी तक, सबसे उत्कृष्ट चित्रकारों, मूर्तिकारों और वास्तुकारों के उनके जीवन का इतालवी, फ्रेंच, स्पेनिश और अंग्रेजी में अनुवाद किया गया था।१६वीं शताब्दी में, इटालियन मैननेरिस्ट आर्किटेक्ट, पेंटर और थिओरिस्ट सेबेस्टियानो सेर्लियो ने टुटे ल'ओपेरे डी'आर्किटेटुरा एट प्रॉस्पेटिवा ( आर्किटेक्चर और पर्सपेक्टिव पर पूर्ण कार्य ) लिखा था । इस ग्रंथ ने पूरे यूरोप में अत्यधिक प्रभाव डाला, पहली पुस्तिका होने के नाते जिसने वास्तुकला के सैद्धांतिक पहलुओं के बजाय व्यावहारिक पर जोर दिया, और यह पांच आदेशों को सूचीबद्ध करने वाला पहला व्यक्ति था। [14]१९वीं शताब्दी की शुरुआत में, ऑगस्टस वेल्बी नॉर्थमोर पुगिन ने कॉन्ट्रास्ट्स (१८३६) लिखा था , जैसा कि शीर्षक से सुझाया गया था, आधुनिक, औद्योगिक दुनिया के विपरीत, जिसे उन्होंने नव-मध्ययुगीन दुनिया की आदर्श छवि के साथ अपमानित किया। गॉथिक वास्तुकला , पुगिन का मानना ​​​​था, "वास्तुकला का एकमात्र सच्चा ईसाई रूप" था। [१५] १९वीं सदी के अंग्रेजी कला समीक्षक, जॉन रस्किन , १८४९ में प्रकाशित अपने सेवेन लैम्प्स ऑफ़ आर्किटेक्चर में , वास्तुकला के गठन के बारे में उनके विचार में बहुत संकीर्ण थे। वास्तुकला "कला है जो पुरुषों द्वारा उठाए गए भवनों को इतना निपटाने और सजाती है ... कि उनकी दृष्टि" उनके मानसिक स्वास्थ्य, शक्ति और आनंद में योगदान देती है। [16]रस्किन के लिए सौन्दर्य का अत्यधिक महत्व था। उनका काम यह बताता है कि एक इमारत वास्तव में वास्तुकला का काम नहीं है जब तक कि इसे किसी तरह से "सजाया" न जाए। रस्किन के लिए, एक अच्छी तरह से निर्मित, अच्छी तरह से आनुपातिक, कार्यात्मक इमारत को कम से कम स्ट्रिंग कोर्स या जंग की आवश्यकता होती है । [16]वास्तुकला और मात्र निर्माण के आदर्शों के बीच अंतर पर , 20 वीं शताब्दी के प्रसिद्ध वास्तुकार ले कॉर्बूसियर ने लिखा: "आप पत्थर, लकड़ी और कंक्रीट का उपयोग करते हैं, और इन सामग्रियों के साथ आप घर और महल बनाते हैं: वह निर्माण है। सरलता काम पर है लेकिन अचानक तुम मेरे दिल को छूते हो, तुम मेरा भला करते हो। मैं खुश हूं और मैं कहता हूं: यह सुंदर है। वह वास्तुकला है"। [१७] ले कॉर्बूसियर के समकालीन लुडविग मिस वैन डेर रोहे ने कहा, "वास्तुकला तब शुरू होती है जब आप ध्यान से दो ईंटों को एक साथ रखते हैं। वहां यह शुरू होता है।" [18]The view shows a 20th-century building with two identical towers very close to each other rising from a low building which has a dome at one end, and an inverted dome, like a saucer, at the other.ब्राजील की राष्ट्रीय कांग्रेस , ऑस्कर निमेयर द्वारा डिजाइन की गईआधुनिक अवधारणाएंगगनचुंबी इमारतों के उल्लेखनीय 1 9वीं शताब्दी के वास्तुकार, लुई सुलिवान ने वास्तुशिल्प डिजाइन के लिए एक ओवरराइडिंग नियम को बढ़ावा दिया: " फॉर्म फ़ंक्शन का पालन करता है "। जबकि यह धारणा कि संरचनात्मक और सौंदर्य संबंधी विचार पूरी तरह से कार्यक्षमता के अधीन होने चाहिए, लोकप्रियता और संदेह दोनों के साथ मिले थे, इसका प्रभाव विट्रुवियस की "उपयोगिता" के स्थान पर "फ़ंक्शन" की अवधारणा को पेश करने का था । "कार्य" को एक इमारत के उपयोग, धारणा और आनंद के सभी मानदंडों को शामिल करने के रूप में देखा जाने लगा , न केवल व्यावहारिक बल्कि सौंदर्य, मनोवैज्ञानिक और सांस्कृतिक भी।नुन्ज़िया रोंडानिनी ने कहा, "अपने सौंदर्य आयाम के माध्यम से वास्तुकला उन कार्यात्मक पहलुओं से परे है जो अन्य मानव विज्ञानों के साथ समान हैं। मूल्यों को व्यक्त करने के अपने विशेष तरीके के माध्यम से , वास्तुकला सामाजिक जीवन को उत्तेजित और प्रभावित कर सकती है, यह मानने के बिना कि, अपने आप में, यह सामाजिक विकास को बढ़ावा देगा .... कला के लिए (वास्तुशिल्प) औपचारिकता के अर्थ को कला तक सीमित करना केवल प्रतिक्रियावादी नहीं है; यह पूर्णता या मौलिकता के लिए एक उद्देश्यहीन खोज भी हो सकती है जो एक मात्र साधन में रूप को नीचा दिखाती है"। [19]दर्शन है कि आधुनिक आर्किटेक्ट और डिजाइन के निर्माण के प्रति उनके दृष्टिकोण को प्रभावित किया है में से हैं बुद्धिवाद , अनुभववाद , संरचनावाद , उत्तर संरचनावाद , डीकंस्ट्रक्शन और घटना ।20 वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में संरचना और कार्य दोनों के कंपास में शामिल लोगों में एक नई अवधारणा जोड़ी गई, स्थिरता पर विचार , इसलिए टिकाऊ वास्तुकला । समकालीन लोकाचार को संतुष्ट करने के लिए एक इमारत का निर्माण इस तरह से किया जाना चाहिए जो इसकी सामग्री के उत्पादन के संदर्भ में पर्यावरण के अनुकूल हो, इसके आसपास के क्षेत्र के प्राकृतिक और निर्मित वातावरण पर इसका प्रभाव और यह गैर-टिकाऊ बिजली स्रोतों पर मांग करता है। हीटिंग, कूलिंग, पानी और अपशिष्ट प्रबंधन, और प्रकाश व्यवस्था के लिए ।इतिहासमुख्य लेख: वास्तुकला का इतिहासमूल और स्थानीय वास्तुकलामुख्य लेख: वर्नाक्युलर आर्किटेक्चरमें नॉर्वे : लकड़ी और ऊंचा स्तर के में लेसोथो : rondavel पत्थर में आयरलैंड : Yola झोपड़ी में रोमानिया : में किसान घरों दिमित्री गस्टी राष्ट्रीय गांव संग्रहालय ( बुखारेस्ट )निर्माण पहले जरूरतों (आश्रय, सुरक्षा, पूजा, आदि) और साधनों (उपलब्ध निर्माण सामग्री और परिचर कौशल) के बीच की गतिशीलता से विकसित हुआ । जैसे-जैसे मानव संस्कृतियों का विकास हुआ और मौखिक परंपराओं और प्रथाओं के माध्यम से ज्ञान को औपचारिक रूप दिया जाने लगा, भवन एक शिल्प बन गया , और "वास्तुकला" उस शिल्प के सबसे उच्च औपचारिक और सम्मानित संस्करणों को दिया गया नाम है। यह व्यापक रूप से माना जाता है कि वास्तुशिल्प सफलता परीक्षण और त्रुटि की प्रक्रिया का उत्पाद थी, उत्तरोत्तर कम परीक्षण और अधिक प्रतिकृति के साथ क्योंकि प्रक्रिया के परिणाम तेजी से संतोषजनक साबित हुए। जिसे वर्नाक्यूलर आर्किटेक्चर कहा जाता है, उसका निर्माण दुनिया के कई हिस्सों में जारी है।प्रागैतिहासिक वास्तुकलातुर्की से गोबेकली टेप , 10 वीं सहस्राब्दी ईसा पूर्व में स्थापित और 8 वीं सहस्राब्दी ईसा पूर्व में छोड़ दिया गया था कुकुटेनी-ट्रिपिलियन घर का मिट्टी के बर्तनों का लघुचित्र चीनी मिट्टी के बर्तनों से भरा एक नियमित कुकुटेनी-ट्रिपिलियन घर का लघुचित्र स्कारा ब्रे ( मुख्यभूमि, ओर्कनेय , स्कॉटलैंड , यूके) में उत्खनित आवासप्रारंभिक मानव बस्तियां ज्यादातर ग्रामीण थीं । खर्च अर्थव्यवस्थाओं की रचना हुई शहरी क्षेत्रों में इस तरह के के रूप में जो कुछ मामलों में वृद्धि हुई है और बहुत तेजी से विकसित, catal Höyük में अनातोलिया और मोहन जोदड़ो आधुनिक दिन में सिंधु घाटी सभ्यता के पाकिस्तान ।नवपाषाण बस्तियों और "शहरों" शामिल Göbekli टेपे और Çatalhöyük तुर्की में, जेरिको लेवंत में, मेहरगढ़ पाकिस्तान में, Howar के पठार और स्कारा ब्रे , ओर्कनेय द्वीप , स्कॉटलैंड , और कुकुटेनी-ट्राईपिलियन संस्कृति में बस्तियों रोमानिया , मोल्दोवा और यूक्रेन ।प्राचीन वास्तुकलामेसोपोटामिया वास्तुकला : पेर्गमोन संग्रहालय ( बर्लिन , जर्मनी ) में ईशर गेट का पुनर्निर्माण , लगभग 575 ई.पू. प्राचीन मिस्र की वास्तुकला , गीज़ा का महान पिरामिड ( गीज़ा , मिस्र), लगभग २५८९-२५६६ ईसा पूर्व, हेमियुनु द्वारा प्राचीन ग्रीक वास्तुकला : एथेनियन एक्रोपोलिस पर पार्थेनन , संगमरमर और चूना पत्थर से बना, 460-406 ईसा पूर्व प्राचीन रोमन वास्तुकला : नीम्स (फ्रांस) से मैसन कैरी , सबसे अच्छी तरह से संरक्षित रोमन मंदिरों में से एक, लगभग 2 ईस्वीकई प्राचीन सभ्यताओं जैसे कि मिस्र और मेसोपोटामिया में , वास्तुकला और शहरीकरण ने दिव्य और अलौकिक के साथ निरंतर जुड़ाव को दर्शाया , और कई प्राचीन संस्कृतियों ने शासक, शासक अभिजात वर्ग, या प्रतीकात्मक रूप से राजनीतिक शक्ति का प्रतिनिधित्व करने के लिए वास्तुकला में स्मारक का सहारा लिया। राज्य ही।वास्तुकला और शहरीकरण की शास्त्रीय सभ्यताओं जैसे ग्रीक और रोमन धार्मिक या अनुभवजन्य लोगों के बजाय नागरिक आदर्शों और नए भवन प्रकार से विकसित उभरा। स्थापत्य "शैली" शास्त्रीय आदेशों के रूप में विकसित हुई । रोमन वास्तुकला ग्रीक वास्तुकला से प्रभावित थी क्योंकि उन्होंने कई यूनानी तत्वों को अपने निर्माण प्रथाओं में शामिल किया था। [20]वास्तुकला पर ग्रंथ प्राचीन काल से लिखे गए हैं। इन ग्रंथों ने सामान्य सलाह और विशिष्ट औपचारिक नुस्खे या सिद्धांत दोनों प्रदान किए। कैनन के कुछ उदाहरण पहली शताब्दी ईसा पूर्व के रोमन वास्तुकार विट्रुवियस के लेखन में पाए जाते हैं । प्रामाणिक वास्तुकला के कुछ सबसे महत्वपूर्ण प्रारंभिक उदाहरण धार्मिक हैं।एशियाई वास्तुकलाभारतीय वास्तुकला : कंदरिया महादेव मंदिर ( खजुराहो , मध्य प्रदेश , भारत ), लगभग १०३० चीनी वास्तुकला : द हॉल ऑफ प्रेयर फॉर गुड हार्वेस्ट, मुख्य भवन स्वर्ग के मंदिर ( बीजिंग , चीन), १७०३-१७९० जापानी वास्तुकला : हिमेजी कैसल ( हिमेजी , ह्योगो प्रान्त , जापान ), १६०९ खमेर वास्तुकला : बकोंग ( सिएम रीप , कंबोडिया के पास ), अंगकोर में सबसे पुराना जीवित मंदिर पर्वत, 881 ईस्वी में पूराएशिया के विभिन्न हिस्सों की वास्तुकला यूरोप से अलग-अलग तर्ज पर विकसित हुई; बौद्ध, हिंदू और सिख वास्तुकला प्रत्येक की अलग-अलग विशेषताएं हैं। भारतीय और चीनी वास्तुकला का आसपास के क्षेत्रों पर बहुत प्रभाव पड़ा है, जबकि जापानी वास्तुकला का नहीं है। बौद्ध वास्तुकला , विशेष रूप से, महान क्षेत्रीय विविधता दिखाती है। हिंदू मंदिर वास्तुकला , जो लगभग 5 वीं शताब्दी सीई से विकसित हुई, सिद्धांत रूप में शास्त्रों में निर्धारित अवधारणाओं द्वारा शासित है।, और स्थूल जगत और सूक्ष्म जगत को व्यक्त करने से संबंधित है। कई एशियाई देशों में, पंथवादी धर्म ने स्थापत्य रूपों को जन्म दिया जो विशेष रूप से प्राकृतिक परिदृश्य को बढ़ाने के लिए डिज़ाइन किए गए थे ।एशिया के कई हिस्सों में, यहां तक ​​​​कि सबसे बड़े घर अपेक्षाकृत हल्के ढांचे थे जो मुख्य रूप से हाल के समय तक लकड़ी का उपयोग करते थे, और महान उम्र के कुछ जीवित रहते हैं। बौद्ध धर्म पत्थर और ईंट की धार्मिक संरचनाओं की ओर बढ़ने से जुड़ा था, संभवतः रॉक-कट आर्किटेक्चर के रूप में शुरू हुआ , जो अक्सर बहुत अच्छी तरह से जीवित रहा है।वास्तुकला पर प्रारंभिक एशियाई लेखन में ७वीं-५वीं शताब्दी ईसा पूर्व से चीन के काओ गोंग जी शामिल हैं ; प्राचीन भारत के शिल्पा शास्त्र ; मंजुश्री Vasthu विद्या शास्त्र की श्रीलंका और अरानिको की नेपाल ।इस्लामी वास्तुकलामुख्य लेख: इस्लामी वास्तुकलामूरिश वास्तुकला : कॉर्डोबा के मस्जिद-कैथेड्रल के भव्य मेहराब ( कॉर्डोबा , स्पेन ) फारसी वास्तुकला : इस्फहान ( ईरान ) में जमीह मस्जिद मुगल वास्तुकला : लाहौर ( पाकिस्तान ) में बादशाही मस्जिद तुर्क वास्तुकला : एडिरने ( तुर्की ) में सेलिमिये मस्जिद के मुख्य गुंबद का आंतरिक दृश्यइस्लामी वास्तुकला 7 वीं शताब्दी सीई में शुरू हुई , जिसमें प्राचीन मध्य पूर्व और बीजान्टियम से स्थापत्य रूपों को शामिल किया गया था , लेकिन समाज की धार्मिक और सामाजिक आवश्यकताओं के अनुरूप सुविधाओं का विकास भी किया गया था। तुर्क साम्राज्य के विस्तार के परिणामस्वरूप पूरे मध्य पूर्व, तुर्की, उत्तरी अफ्रीका, भारतीय उपमहाद्वीप और यूरोप के कुछ हिस्सों जैसे स्पेन, अल्बानिया और बाल्कन राज्यों में उदाहरण पाए जा सकते हैं । [21] [22]मध्य युगबीजान्टिन वास्तुकला : सांता मारिया मैगीगोर ( रोम ) का अप्स , इस ग्लैमरस मोज़ेक के साथ 5 वीं शताब्दी में सजाया गया रोमनस्क्यू वास्तुकला : डरहम कैथेड्रल का इंटीरियर ( डरहम , यूके ), 1093-1133 गॉथिक वास्तुकला : पेरिस में सैंट-चैपल की सना हुआ ग्लास खिड़कियां , 1248 में पूरी हुई, ज्यादातर 1194 और 1220 के बीच निर्मित ब्रांकोवेनेस्क वास्तुकला : स्टावरोपोलोस चर्च (डाउनटाउन बुखारेस्ट , रोमानिया ), अग्रभाग पर विस्तृत चित्रों के साथ, १७२४में यूरोप दौरान मध्यकालीन अवधि, गिल्ड कारीगरों द्वारा निर्मित हुए थे उनके लेनदेन से व्यवस्थित करने के लिए और लिखित अनुबंध बच गया है, विशेष रूप से चर्च संबंधी भवनों के संबंध में। आर्किटेक्ट की भूमिका आमतौर पर मास्टर मेसन, या मैजिस्टर लैथोमोरम के साथ एक थी क्योंकि उन्हें कभी-कभी समकालीन दस्तावेजों में वर्णित किया जाता है।प्रमुख वास्तुशिल्प उपक्रम अभय और गिरिजाघरों की इमारतें थीं । लगभग 900 सीई के बाद से, मौलवियों और व्यापारियों दोनों के आंदोलनों ने पूरे यूरोप में स्थापत्य ज्ञान को आगे बढ़ाया, जिसके परिणामस्वरूप पैन-यूरोपीय शैली रोमनस्क्यू और गॉथिक बन गई ।इसके अलावा, मध्य युग की स्थापत्य विरासत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा पूरे महाद्वीप में कई किलेबंदी है। बाल्कन से लेकर स्पेन तक और माल्टा से एस्टोनिया तक, ये इमारतें यूरोपीय विरासत के एक महत्वपूर्ण हिस्से का प्रतिनिधित्व करती हैं।पुनर्जागरण और वास्तुकारमुख्य लेख: पुनर्जागरण वास्तुकलाडोनाटो ब्रैमांटे द्वारा द टेम्पिएटो (रोम) , १४४४-१५१४ से परिप्रेक्ष्य हॉल ऑफ विला Farnesina (रोम), द्वारा बाल्डससार पेरुज्ज़ी , 1505-1510 द शैटॉ डे चेनोनसेउ (फ्रांस), फिलिबर्ट डी ल'ऑर्म द्वारा , १५७६ द प्लेस डेस वोसगेस (पेरिस), और हेनरी चतुर्थ शैली की वास्तुकला का उदाहरण , क्लाउड चैस्टिलन द्वारा , १६१२ Pavillon de l'Horloge , का एक हिस्सा लौवर पैलेस (पेरिस), द्वारा जैक्स लेमर्सियर , 1640 के लगभगमें पुनर्जागरण यूरोप 1400 के बाद के बारे में, यहां के विकास के साथ शास्त्रीय शिक्षा के एक पुनरुद्धार था पुनर्जागरण मानवतावाद , जो की तुलना में मध्ययुगीन काल के दौरान मामले में किया गया था समाज में व्यक्ति की भूमिका पर अधिक से अधिक जोर दिया। इमारतों को विशिष्ट आर्किटेक्ट्स - ब्रुनेलेस्ची , अल्बर्टी , माइकल एंजेलो , पल्लाडियो - के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था और व्यक्ति की पंथ शुरू हो गई थी। कलाकार , वास्तुकार और इंजीनियर , या किसी भी संबंधित व्यवसाय के बीच अभी भी कोई विभाजन रेखा नहीं थी , और पदवी अक्सर क्षेत्रीय वरीयता में से एक थी।वास्तुकला में शास्त्रीय शैली के पुनरुद्धार के साथ-साथ विज्ञान और इंजीनियरिंग का उदय हुआ, जिसने इमारतों के अनुपात और संरचना को प्रभावित किया। इस स्तर पर, एक कलाकार के लिए पुल का डिजाइन करना अभी भी संभव था क्योंकि इसमें शामिल संरचनात्मक गणनाओं का स्तर सामान्यवादी के दायरे में था।प्रारंभिक आधुनिक और औद्योगिक युगबैरोक वास्तुकला : फ्रांकोइस मानसर्ट द्वारा , 1630-1651 में द शैटॉ डी मैसन्स (फ्रांस) रोकोको वास्तुकला : द पीस डे ला वैसेले डी'ओर (वर्साय का महल) नियोक्लासिकल आर्किटेक्चर : एंग-जैक्स गेब्रियल द्वारा पेटिट ट्रायोन ( वर्साय , फ्रांस) का पश्चिमी पहलू , १७६४ ऐतिहासिकता (इस मामले में गॉथिक रिवाइवल ): विलियम बटरफील्ड द्वारा सभी संतों का आंतरिक भाग (लंदन), १८५०-१८५९ 19वीं सदी के इक्लेक्टिक क्लासिकिस्ट आर्किटेक्चर : द म्यूज़ियम ऑफ़ एज्स ऑन विक्ट्री एवेन्यू ( बुखारेस्ट , रोमानिया ), 19वीं सदी के अंत में, अज्ञात वास्तुकार 19वीं सदी की औद्योगिक वास्तुकला : लेस हॉल्स (पेरिस), 1850-1971 में विक्टर बाल्टर्ड द्वारा नष्ट कर दिया गया ओरिएंटलिस्ट वास्तुकला : एडेन-थिएटर (पेरिस), 1880 के दशक की शुरुआत में विलियम क्लेन और अल्बर्ट डुक्लोस द्वारा 1895 में ध्वस्त कर दिया गया था। बीक्स-आर्ट्स आर्किटेक्चर : द सीईसी पैलेस ऑन विक्ट्री एवेन्यू (बुखारेस्ट), 8 जून 1897 - 1900, पॉल गोटेरो द्वारा [23] आर्ट नोव्यू आर्किटेक्चर : द एंट्रेंस ऑफ़ द कैसल बेरेंजर (पेरिस), १८९५-१८९८, हेक्टर गुइमार्ड द्वारावैज्ञानिक क्षेत्रों में उभरते ज्ञान और नई सामग्रियों और प्रौद्योगिकी के उदय के साथ, वास्तुकला और इंजीनियरिंग अलग होने लगे, और वास्तुकार ने सौंदर्यशास्त्र और मानवतावादी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित करना शुरू कर दिया , अक्सर भवन डिजाइन के तकनीकी पहलुओं की कीमत पर। "सज्जन वास्तुकार" का भी उदय हुआ, जो आम तौर पर धनी ग्राहकों के साथ व्यवहार करते थे और मुख्य रूप से ऐतिहासिक प्रोटोटाइप से प्राप्त दृश्य गुणों पर ध्यान केंद्रित करते थे, जो कि ग्रेट ब्रिटेन के कई देश के घरों द्वारा विशिष्ट थे जो नियो गोथिक या स्कॉटिश औपनिवेशिक शैलियों में बनाए गए थे । 19वीं सदी में औपचारिक वास्तुशिल्प प्रशिक्षण, उदाहरण के लिए इकोले डेस ब्यूक्स-आर्ट्स में फ्रांस में, सुंदर चित्रों के उत्पादन पर बहुत जोर दिया और संदर्भ और व्यवहार्यता पर बहुत कम जोर दिया।इस बीच, औद्योगिक क्रांति ने बड़े पैमाने पर उत्पादन और उपभोग के द्वार खोल दिए। सौंदर्यशास्त्र मध्यम वर्ग के लिए एक मानदंड बन गया क्योंकि अलंकृत उत्पाद, एक बार महंगे शिल्प कौशल के प्रांत के भीतर, मशीन उत्पादन के तहत सस्ते हो गए।वर्नाक्युलर आर्किटेक्चर तेजी से सजावटी हो गया। हाउसबिल्डर पैटर्न की किताबों और वास्तुशिल्प पत्रिकाओं में मिली विशेषताओं को मिलाकर अपने काम में वर्तमान वास्तुशिल्प डिजाइन का उपयोग कर सकते हैं।आधुनिकतामुख्य लेख: आधुनिक वास्तुकलाप्रारंभिक आधुनिक वास्तुकला : वाल्टर ग्रोपियस द्वारा द फागस फैक्ट्री ( अल्फेल्ड , जर्मनी), 1911 अभिव्यक्तिवादी वास्तुकला : आइंस्टीन टॉवर ( बर्लिन , जर्मनी के पास पॉट्सडैम ), 1919-1922, एरिक मेंडेलसोहन द्वारा आर्ट डेको : द थिएटर डेस चैंप्स-एलिसीस (पेरिस), 1910-1913, ऑगस्टे पेरेट द्वारा अंतर्राष्ट्रीय शैली : द ग्लासपेलिस ( हेरलेन , नीदरलैंड), 1934-1935, फ्रिट्स प्यूट्ज़ और फिलिप जॉनसन द्वारा20 वीं शताब्दी की शुरुआत के आसपास, पुनरुत्थानवादी वास्तुकला और विस्तृत सजावट पर जोर देने के साथ सामान्य असंतोष ने विचारों की कई नई पंक्तियों को जन्म दिया जो आधुनिक वास्तुकला के अग्रदूत के रूप में कार्य करते थे। इनमें से उल्लेखनीय है ड्यूशर वेर्कबंड , जिसका गठन 1907 में बेहतर गुणवत्ता वाली मशीन-निर्मित वस्तुओं का उत्पादन करने के लिए किया गया था। औद्योगिक डिजाइन के पेशे का उदय आमतौर पर यहां रखा गया है। इस नेतृत्व के बाद , 1919 में जर्मनी के वीमर में स्थापित बॉहॉस स्कूल ने पूरे इतिहास में पूर्व निर्धारित वास्तुशिल्प सीमाओं को फिर से परिभाषित किया, एक इमारत के निर्माण को अंतिम संश्लेषण-कला, शिल्प और प्रौद्योगिकी के शीर्ष के रूप में देखा।जब आधुनिक वास्तुकला का पहली बार अभ्यास किया गया था, तो यह नैतिक, दार्शनिक और सौंदर्यवादी आधार के साथ एक अवांट-गार्डे आंदोलन था । प्रथम विश्व युद्ध के तुरंत बाद, अग्रणी आधुनिकतावादी वास्तुकारों ने युद्ध के बाद की नई सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था के लिए उपयुक्त एक पूरी तरह से नई शैली विकसित करने की मांग की, जो मध्यम और कामकाजी वर्गों की जरूरतों को पूरा करने पर केंद्रित थी। उन्होंने ऐतिहासिक शैलियों के अकादमिक शोधन के स्थापत्य अभ्यास को खारिज कर दिया, जिसने तेजी से घटते अभिजात वर्ग के आदेश की सेवा की। आधुनिकतावादी वास्तुकारों का दृष्टिकोण कार्यात्मक विवरणों के पक्ष में ऐतिहासिक संदर्भों और आभूषणों को हटाकर भवनों को शुद्ध रूपों में कम करना था। इमारतों ने अपने कार्यात्मक और संरचनात्मक तत्वों को प्रदर्शित किया, उन्हें सजावटी रूपों के पीछे छिपाने के बजाय स्टील बीम और ठोस सतहों को उजागर किया। फ्रैंक लॉयड राइट जैसे वास्तुकारों ने जैविक वास्तुकला विकसित की, जिसमें रॉबी हाउस और फॉलिंगवॉटर के प्रमुख उदाहरणों के साथ मानव निवास और प्राकृतिक दुनिया के बीच सद्भाव को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इसके पर्यावरण और उद्देश्य द्वारा रूप को परिभाषित किया गया था ।मिज़ वैन डेर रोहे , फिलिप जॉनसन और मार्सेल ब्रेउर जैसे आर्किटेक्ट्स ने निर्माण सामग्री और आधुनिक निर्माण तकनीकों के अंतर्निहित गुणों के आधार पर सुंदरता बनाने के लिए काम किया, सरलीकृत ज्यामितीय रूपों के लिए पारंपरिक ऐतिहासिक रूपों का व्यापार किया, नए साधनों और तरीकों का जश्न मनाया जो कि औद्योगिक द्वारा संभव बनाया गया था। स्टील-फ्रेम निर्माण सहित क्रांति , जिसने उच्च-वृद्धि वाले सुपरस्ट्रक्चर को जन्म दिया। फजलुर रहमान खान की ट्यूब संरचना का विकास कभी भी उच्चतर निर्माण में एक तकनीकी सफलता थी। मध्य शताब्दी तक, आधुनिकतावाद अंतर्राष्ट्रीय शैली में रूपांतरित हो गया थामिनोरू यामासाकी द्वारा डिज़ाइन किए गए न्यूयॉर्क के वर्ल्ड ट्रेड सेंटर के ट्विन टावर्स द्वारा कई मायनों में एक सौंदर्य का प्रतीक है ।पश्चातमुख्य लेख: उत्तर आधुनिक वास्तुकलापियाज़ा डी'इटालिया ( न्यू ऑरलियन्स , यूएसए), 1978, चार्ल्स मूर द्वारा माइकल ग्रेव्स द्वारा टीम डिज़्नी बिल्डिंग ( लॉस एंजिल्स , यूएसए), 1990 जॉन आउट्राम द्वारा कैम्ब्रिज जज बिजनेस स्कूल ( कैम्ब्रिज , यूके), 1995 का बहुरंगा इंटीरियर नृत्य हाउस ( प्राग , चेक गणराज्य ), 1996, द्वारा व्लादो मिलुनिक और फ्रैंक Gehryकई वास्तुकारों ने आधुनिकता का विरोध किया , इसे ऐतिहासिक शैलियों की सजावटी समृद्धि से रहित पाया। जैसा कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद आधुनिकतावादियों की पहली पीढ़ी की मृत्यु शुरू हुई , पॉल रूडोल्फ , मार्सेल ब्रेउर और ईरो सारेनिन सहित आर्किटेक्ट्स की दूसरी पीढ़ी ने क्रूरता के साथ आधुनिकता के सौंदर्यशास्त्र का विस्तार करने की कोशिश की , अधूरा कंक्रीट से बने अभिव्यंजक मूर्तिकला वाले भवनों के साथ। लेकिन युद्ध के बाद की एक नई युवा पीढ़ी ने भी आधुनिकतावाद और क्रूरतावाद की आलोचना बहुत कठोर, मानकीकृत, नीरस होने के लिए की, और ऐतिहासिक इमारतों में समय और विभिन्न स्थानों और संस्कृतियों में पेश किए गए मानवीय अनुभव की समृद्धि को ध्यान में नहीं रखा।आधुनिकतावाद और क्रूरतावाद के ठंडे सौंदर्य के लिए ऐसी ही एक प्रतिक्रिया रूपक वास्तुकला का स्कूल है , जिसमें बायोमोर्फिज्म और ज़ूमोर्फिक वास्तुकला जैसी चीजें शामिल हैं , दोनों प्रकृति को प्रेरणा और डिजाइन के प्राथमिक स्रोत के रूप में उपयोग करते हैं। जबकि कुछ इसे उत्तर-आधुनिकतावाद का केवल एक पहलू मानते हैं, अन्य इसे अपने आप में एक स्कूल मानते हैं और बाद में अभिव्यक्तिवादी वास्तुकला का विकास करते हैं । [24]1 9 50 और 1 9 60 के दशक के अंत में, वास्तुशिल्प घटना विज्ञान आधुनिकतावाद के खिलाफ प्रारंभिक प्रतिक्रिया में एक महत्वपूर्ण आंदोलन के रूप में उभरा, संयुक्त राज्य अमेरिका में चार्ल्स मूर , नॉर्वे में क्रिश्चियन नॉरबर्ग-शुल्ज और अर्नेस्टो नाथन रोजर्स और विटोरियो ग्रेगोटी , मिशेल वेलोरी जैसे आर्किटेक्ट्स के साथ । इटली में ब्रूनो ज़ेवी , जिन्होंने सामूहिक रूप से एक नए समकालीन वास्तुकला में रुचि को लोकप्रिय बनाया, जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक इमारतों का उपयोग मॉडल और मिसाल के रूप में मानव अनुभव का विस्तार करना है। [25]उत्तर-आधुनिकतावाद ने एक ऐसी शैली का निर्माण किया जो उच्च शास्त्रीय वास्तुकला से लेकर लोकप्रिय या स्थानीय क्षेत्रीय भवन शैलियों तक, पुरानी पूर्व-आधुनिक और गैर-आधुनिक शैलियों के सौंदर्यशास्त्र के साथ समकालीन भवन प्रौद्योगिकी और सस्ती सामग्री को जोड़ती है। रॉबर्ट वेंचुरी ने उत्तर आधुनिक वास्तुकला को "सजाया शेड" (एक साधारण इमारत जिसे कार्यात्मक रूप से अंदर और बाहर की तरफ अलंकृत किया गया है) के रूप में परिभाषित किया और इसे आधुनिकतावादी और क्रूरतावादी "बतख" (अनावश्यक रूप से अभिव्यंजक टेक्टोनिक रूपों वाली इमारतें) के खिलाफ बरकरार रखा। [26]वास्तुकला आजमुख्य लेख: समकालीन वास्तुकलामीडोज संग्रहालय ( डलास , टेक्सास , संयुक्त राज्य अमरीका), 2001, द्वारा HBRA आर्किटेक्ट बीजिंग नेशनल स्टेडियम ( बीजिंग , चीन ), 2003-2007, द्वारा Herzog और Meuron डे ज़ाहा हदीदो द्वारा विएना विश्वविद्यालय ( वियना , ऑस्ट्रिया ), 2008 का पुस्तकालय और शिक्षण केंद्र Isbjerget आवास परियोजना ( आरहूस , डेनमार्क), रूप और हिमशैल के रंग, 2013 से प्रेरित, द्वारा CEBRA , जेडीएस आर्किटेक्ट्स , लुई Paillard, और खोज1980 के दशक से, जैसे-जैसे इमारतों की जटिलता (संरचनात्मक प्रणालियों, सेवाओं, ऊर्जा और प्रौद्योगिकियों के संदर्भ में) बढ़ने लगी, वास्तुकला का क्षेत्र प्रत्येक परियोजना प्रकार, तकनीकी विशेषज्ञता या परियोजना वितरण विधियों के लिए विशेषज्ञता के साथ बहु-अनुशासनात्मक बन गया। इसके अलावा, 'डिज़ाइन' आर्किटेक्ट [नोट्स 1] को 'प्रोजेक्ट' आर्किटेक्ट से अलग कर दिया गया है जो यह सुनिश्चित करता है कि प्रोजेक्ट आवश्यक मानकों को पूरा करता है और दायित्व के मामलों से संबंधित है। [नोट्स २]किसी भी बड़ी इमारत के डिजाइन के लिए प्रारंभिक प्रक्रियाएं तेजी से जटिल हो गई हैं, और स्थायित्व, स्थायित्व, गुणवत्ता, धन और स्थानीय कानूनों के अनुपालन जैसे मामलों के प्रारंभिक अध्ययन की आवश्यकता है। एक बड़ी संरचना अब एक व्यक्ति का डिज़ाइन नहीं हो सकती है बल्कि कई लोगों का काम होना चाहिए। वास्तु पेशे के कुछ सदस्यों द्वारा आधुनिकतावाद और उत्तर आधुनिकतावाद की आलोचना की गई है, जो महसूस करते हैं कि सफल वास्तुकला व्यक्तिवादियों द्वारा व्यक्तिगत, दार्शनिक या सौंदर्यवादी खोज नहीं है; बल्कि इसे लोगों की रोजमर्रा की जरूरतों पर विचार करना होगा और रहने योग्य वातावरण बनाने के लिए प्रौद्योगिकी का उपयोग करना होगा, डिजाइन प्रक्रिया को व्यवहार, पर्यावरण और सामाजिक विज्ञान के अध्ययन द्वारा सूचित किया जाएगा।वास्तुशिल्प पेशे पर गहरा प्रभाव डालने के साथ पर्यावरणीय स्थिरता मुख्यधारा का मुद्दा बन गया है। कई डेवलपर्स, जो इमारतों के वित्तपोषण का समर्थन करते हैं, प्राथमिक रूप से तत्काल लागत पर आधारित समाधानों के बजाय पर्यावरणीय रूप से टिकाऊ डिजाइन की सुविधा को प्रोत्साहित करने के लिए शिक्षित हो गए हैं। इसके प्रमुख उदाहरण निष्क्रिय सौर भवन डिजाइन , हरित छत डिजाइन , बायोडिग्रेडेबल सामग्री, और संरचना के ऊर्जा उपयोग पर अधिक ध्यान में पाए जा सकते हैं । वास्तुकला में इस प्रमुख बदलाव ने पर्यावरण पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए वास्तुकला स्कूलों को भी बदल दिया है। इमारतों की संख्या में तेजी आई है जो हरित भवन टिकाऊ डिजाइन को पूरा करना चाहते हैंसिद्धांतों। स्थायी प्रथाएं जो स्थानीय वास्तुकला के मूल में थीं, तेजी से पर्यावरण और सामाजिक रूप से टिकाऊ समकालीन तकनीकों के लिए प्रेरणा प्रदान करती हैं। [२७] यूएस ग्रीन बिल्डिंग काउंसिल की LEED (ऊर्जा और पर्यावरण डिजाइन में नेतृत्व) रेटिंग प्रणाली ने इसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। [२८] [ मात्रा निर्धारित करें ]समवर्ती रूप से, नए शहरीकरण , रूपक वास्तुकला , पूरक वास्तुकला और नई शास्त्रीय वास्तुकला के हालिया आंदोलनों ने निर्माण के प्रति एक स्थायी दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया है जो स्मार्ट विकास , वास्तुशिल्प परंपरा और शास्त्रीय डिजाइन की सराहना करता है और विकसित करता है । [२९] [३०] यह आधुनिकतावादी और विश्व स्तर पर समान वास्तुकला के विपरीत है , साथ ही एकान्त आवास सम्पदा और उपनगरीय फैलाव के खिलाफ है । [31]कांच की पर्दे की दीवारें, जो कई देशों में अति आधुनिक शहरी जीवन की पहचान थीं, नाइजीरिया जैसे विकासशील देशों में भी सामने आईं, जहां 20 वीं शताब्दी के मध्य से ज्यादातर विदेशी-प्रशिक्षित वास्तुकारों के झुकाव के कारण अंतरराष्ट्रीय शैलियों का प्रतिनिधित्व किया गया था। [32]अन्य प्रकार की वास्तुकलाविल्टशायर , इंग्लैंड में स्टौरहेड , हेनरी होरे द्वारा डिजाइन किया गया (1705-1785)एक प्रकार का आर्किटेक्चरमुख्य लेख: लैंडस्केप आर्किटेक्चरलैंडस्केप आर्किटेक्चर पर्यावरण, सामाजिक-व्यवहार या सौंदर्य संबंधी परिणामों को प्राप्त करने के लिए बाहरी सार्वजनिक क्षेत्रों, स्थलों और संरचनाओं का डिज़ाइन है। [३३] इसमें परिदृश्य में मौजूदा सामाजिक, पारिस्थितिक और मिट्टी की स्थिति और प्रक्रियाओं की व्यवस्थित जांच और हस्तक्षेपों का डिजाइन शामिल है जो वांछित परिणाम उत्पन्न करेगा। पेशे के दायरे में लैंडस्केप डिजाइन शामिल है ; साइट योजना ; तूफानी जल प्रबंधन ; पर्यावरण बहाली ; पार्क और मनोरंजन योजना; दृश्य संसाधन प्रबंधन; हरित बुनियादी ढांचे की योजना और प्रावधान; और निजी संपत्ति और निवासलैंडस्केप मास्टर प्लानिंग और डिजाइन; सभी डिजाइन, योजना और प्रबंधन के विभिन्न पैमानों पर। परिदृश्य वास्तुकला के पेशे में एक व्यवसायी एक कहा जाता है परिदृश्य वास्तुकार ।आन्तरिक रूप रेखामुख्य लेख: आंतरिक वास्तुकलाचार्ल्स रेनी मैकिन्टोश - संगीत कक्ष 1901आंतरिक वास्तुकला एक ऐसी जगह का डिज़ाइन है जो संरचनात्मक सीमाओं और इन सीमाओं के भीतर मानव संपर्क द्वारा बनाई गई है। यह प्रारंभिक डिजाइन और उपयोग की योजना भी हो सकती है, फिर बाद में एक बदले हुए उद्देश्य को समायोजित करने के लिए फिर से डिज़ाइन किया जा सकता है, या बिल्डिंग शेल के अनुकूली पुन: उपयोग के लिए एक महत्वपूर्ण संशोधित डिज़ाइन हो सकता है । [३४] उत्तरार्द्ध अक्सर टिकाऊ वास्तुकला का हिस्सा होता हैप्रथाओं, अनुकूली रीडिज़ाइन द्वारा एक संरचना "रीसाइक्लिंग" के माध्यम से संसाधनों का संरक्षण। आम तौर पर पर्यावरण डिजाइन, रूप और अभ्यास की स्थानिक कला के रूप में जाना जाता है, आंतरिक वास्तुकला वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से इमारतों के अंदरूनी हिस्सों को डिजाइन किया जाता है, जो संरचनात्मक रिक्त स्थान के मानव उपयोग के सभी पहलुओं से संबंधित है। सीधे शब्दों में कहें, आंतरिक वास्तुकला वास्तुशिल्प दृष्टि से एक इंटीरियर का डिजाइन है।नौसेना वास्तुकलामुख्य लेख: नौसेना वास्तुकलापतवार के रूप को दर्शाने वाले जहाज की शारीरिक योजनानौसेना वास्तुकला, जिसे नौसेना इंजीनियरिंग के रूप में भी जाना जाता है, एक इंजीनियरिंग अनुशासन है जो इंजीनियरिंग डिजाइन प्रक्रिया , जहाज निर्माण , रखरखाव और समुद्री जहाजों और संरचनाओं के संचालन से संबंधित है । [३५] [३६] नौसेना वास्तुकला में एक समुद्री वाहन के जीवन के सभी चरणों के दौरान बुनियादी और अनुप्रयुक्त अनुसंधान, डिजाइन, विकास, डिजाइन मूल्यांकन और गणना शामिल है। पोत का प्रारंभिक डिजाइन, इसका विस्तृत डिजाइन, निर्माण , परीक्षण , संचालन और रखरखाव, लॉन्चिंग और ड्राई-डॉकिंग शामिल मुख्य गतिविधियां हैं। जहाजों को संशोधित करने के लिए जहाज डिजाइन गणना भी आवश्यक है(रूपांतरण, पुनर्निर्माण, आधुनिकीकरण या मरम्मत के माध्यम से)। नौसेना वास्तुकला में सुरक्षा नियमों और क्षति नियंत्रण नियमों का निर्माण और वैधानिक और गैर-सांविधिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जहाज के डिजाइन का अनुमोदन और प्रमाणन भी शामिल है ।शहरी योजनामुख्य लेख: शहरी डिजाइनशहरी डिजाइन शहरों, कस्बों और गांवों की भौतिक विशेषताओं को डिजाइन और आकार देने की प्रक्रिया है। वास्तुकला के विपरीत, जो व्यक्तिगत भवनों के डिजाइन पर केंद्रित है, शहरी डिजाइन शहरी क्षेत्रों को कार्यात्मक, आकर्षक बनाने के लक्ष्य के साथ इमारतों, सड़कों और सार्वजनिक स्थानों, पूरे पड़ोस और जिलों और पूरे शहरों के समूहों के बड़े पैमाने से संबंधित है। , और टिकाऊ। [37]शहरी डिजाइन एक अंतःविषय क्षेत्र है जो परिदृश्य वास्तुकला , शहरी नियोजन , वास्तुकला, सिविल इंजीनियरिंग और नगरपालिका इंजीनियरिंग सहित कई निर्मित पर्यावरण व्यवसायों के तत्वों का उपयोग करता है । [३८] इन सभी विषयों में पेशेवरों के लिए शहरी डिजाइन का अभ्यास करना आम बात है। हाल के दिनों में शहरी डिजाइन के विभिन्न उप-उपक्षेत्र उभरे हैं जैसे सामरिक शहरी डिजाइन, परिदृश्य शहरीकरण , जल-संवेदनशील शहरी डिजाइन , और टिकाऊ शहरीकरण ।रूपक "वास्तुकला""आर्किटेक्चर" का उपयोग कई आधुनिक तकनीकों या अमूर्त संरचना के क्षेत्रों के रूपक के रूप में किया जाता है। इसमे शामिल है:कंप्यूटर वास्तुकला , नियमों और तरीकों कि कार्यक्षमता, संगठन, और के कार्यान्वयन का वर्णन का एक सेट कंप्यूटर सिस्टम , के साथ सॉफ्टवेयर वास्तुकला , हार्डवेयर वास्तुकला और नेटवर्क वास्तुकला और अधिक विशिष्ट पहलू शामिल हैं।व्यावसायिक वास्तुकला , "उद्यम का एक खाका जो संगठन की एक सामान्य समझ प्रदान करता है और रणनीतिक उद्देश्यों और सामरिक मांगों को संरेखित करने के लिए उपयोग किया जाता है" के रूप में परिभाषित किया गया है, [३९] उद्यम वास्तुकला एक और शब्द है।मानव मन की संरचना के बारे में संज्ञानात्मक वास्तुकला सिद्धांतसिस्टम आर्किटेक्चर एक वैचारिक मॉडल है जो किसी भी प्रकार के सिस्टम की संरचना , व्यवहार और अधिक विचारों को परिभाषित करता है । [40]भूकंपीय वास्तुकला'भूकंपीय वास्तुकला' या 'भूकंप वास्तुकला' शब्द पहली बार 1985 में रॉबर्ट रेथरमैन द्वारा पेश किया गया था। [४१] वाक्यांश "भूकंप वास्तुकला" का उपयोग भूकंप प्रतिरोध की स्थापत्य अभिव्यक्ति की डिग्री या भूकंप प्रतिरोध में वास्तुशिल्प विन्यास, रूप या शैली के निहितार्थ का वर्णन करने के लिए किया जाता है। इसका उपयोग उन इमारतों का वर्णन करने के लिए भी किया जाता है जिनमें भूकंपीय डिजाइन के विचारों ने इसकी वास्तुकला को प्रभावित किया। भूकंप प्रवण क्षेत्रों में संरचनाओं को डिजाइन करने में इसे एक नया सौंदर्य दृष्टिकोण माना जा सकता है। [42] अभिव्यंजक संभावनाओं की व्यापक चौड़ाई भूकंपीय मुद्दों के रूपक के उपयोग से लेकर भूकंपीय प्रौद्योगिकी के अधिक सरल प्रदर्शन तक होती है। जबकि भूकंप की वास्तुकला के परिणाम उनकी भौतिक अभिव्यक्तियों में बहुत विविध हो सकते हैं, भूकंपीय सिद्धांतों की स्थापत्य अभिव्यक्ति भी परिष्कार के कई रूप और स्तर ले सकती है।

आर्किटेक्चर By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब भाषा: हिन्दी डाउनलोड पीडीऍफ़ घड़ी संपादित करें पेशे के लिए,  आर्किटेक्ट  देखें  ।  अन्य उपयोगों के लिए,  आर्किटेक्चर (बहुविकल्पी) देखें  । वास्तुकला  (लैटिन  architectura  , ग्रीक से  ἀρχιτέκτων  arkhitekton  "वास्तुकार", से  ἀρχι-  "मुख्य" और  τέκτων  "निर्माता") प्रक्रिया और का उत्पाद है  नियोजन  ,  डिजाइन  , और  निर्माण  इमारतों  या अन्य  संरचनाओं  ।  [३]  इमारतों  के भौतिक रूप में स्थापत्य के कार्यों  को अक्सर सांस्कृतिक प्रतीकों और  कला के कार्यों के  रूप में माना जाता है  ।  ऐतिहासिक सभ्यताओं को अक्सर उनकी जीवित स्थापत्य उपलब्धियों के साथ पहचाना जाता है।  [४] 15वीं शताब्दी की शुरुआत में  फ्लोरेंस कैथेड्रल  (इटली) में  गुंबद को जोड़ने में  , वास्तुकार  फिलिपो ब्रुनेलेस्ची ने  न केवल इमारत और शहर को बदल दिया, बल्कि  वास्तुकार  की भू...