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Showing posts from November, 2020

अगर आपके रिश्तों में है कड़वाहट तो जानिए वास्तु से कैसे करें इसे दूर?By समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब 12सितम्बर, 2020घर के उत्तर-पूर्व में कचरा, टॉयलेट, सेप्टिक टैंक जैसे वास्तु दोष भी संबंधों को खराब करते हैं. यहाँ पर लाल, बैंगनी, या गुलाबी रंग होना भी हानिकारक है. इस रंग को क्रीम कलर में बदल दें. 3 CLAPS00 पुरुष और स्त्री की मनो-संरचना में अंतर है और इसके कारण कई बार तनाव की स्थिति बन जाती है. कहते हैं कि पुरुष अगर मंगल ग्रह से है तो स्त्री शुक्र ग्रह की निवासिनी है. इसका भी वही तात्पर्य है कि दोनों एक दूसरे से विपरीत हैं. सदियों से पुरुष का काम शिकार करना या आज के परिपेक्ष में घर के लिए आय का प्रबंध करना रहा है और महिला का काम घर का संचालन करना रहा है.इसके कारण पुरुष अपनी दृष्टि पर एकाग्रचित रहता है – कोई अवसर हाथ से छूट न जाए और स्त्री अपनी श्रवण पर एकाग्रचित है कि कोई आहट अनसुनी न रह जाए. इसलिए जब भी पति-पत्नी के बीच मनमुटाव होता है तो स्त्री कहती है कि ये सुनते ही नहीं है और पति कहता है कि इसको दिखता ही नहीं हैं. इसमें दोनों की गलती नहीं पर उनके बीच का स्वाभाविक अंतर है. kसांकेतिक फोटो (साभार: shutterstock)वर्तमान में स्थिति अलग है. अधिक से अधिक महिलाएं घर में आमदनी लाने की ज़िम्मेदारी ओढ़ रही हैं यानि अपनी श्रवण योग्यता का कॉर्पोरेट सेक्टर में उपयोग कर उस कमी को पूर्ण कर रही हैं. जो पहले एक कमज़ोर कड़ी थी जैसे कि मानव संसाधन या ग्राहक सेवा.स्त्री-पुरुष में नैसर्गिक अंतर के अलावा भी पति-पत्नी के बीच मनमुटाव के अनेक कारण हो जाते हैं. आजकल पति-पत्नी दिन का आधे से ज्यादा समय ऑफिस में या घर के बाहर गुजारते हैं कभी-कभी इस कारण विवाहोत्तर संबंध बनने की संभावना बन जाती है और जो गृह-कलह का कारण बनती है. कई बार दोनों के अहम् भी टकराने लगते हैं जिससे भी रिश्तों में कड़वाहट आने लगती है.ऊपर दिए कई कारण ऐसे हैं जिनपर हमारा कोई नियंत्रण नहीं है. जो पुरुष-स्त्री के मनोविज्ञान में अंतर है उसको तो बदला नहीं जा सकता पर अगर पति-पत्नी में प्रेम और आपसी सौहार्द है तो फिर कड़वाहट या मनमुटाव की नौबत कभी नहीं आती है. आइए जानते हैं कि आपसी प्रेम को बढ़ाने के लिए क्या वास्तु उपाय किए जा सकते हैं.ALSO READवास्तुशास्त्र: हर दिशा में अलग होता है बेडरूम का प्रभाव, यहां जानिए बेडरूम का वास्तुअगर आपका बेडरूम दक्षिण-पश्चिम में है तो सर्वोत्तम है, दक्षिण का शयनकक्ष भी उत्तम माना गया है. दक्षिण-पूर्व का शयनकक्ष पति-पत्नी के बीच खटपट को बढाता है, खास तौर से जब पलंग पूर्व और दक्षिण-पूर्व के मध्य रखा हुआ हो. वास्तु के अनुसार घर के तीन ज़ोन पति-पत्नी के आपसी प्रेम को बढाने में सहायक हैं; इनमें सबसे प्रमुख है दक्षिण-पश्चिम. घर के इस क्षेत्र में रिश्तों को निभाने की उर्जाएं हैं. उत्तर-पूर्व हमको रिश्तों में स्पष्टता लाने में सहायक है. जरूरत पड़ने पर एक दुसरे के लिए खड़े होने की दृढ़ता उत्तर-पश्चिम की उर्जा से आती है. घर के इन तीन क्षेत्र में अगर टॉयलेट या कोई अन्य वास्तु दोष है, तो इसका सीधा असर पति-पत्नी के आपसी संबंध पर पड़ता है और इसका समुचित निदान कराना जरूरी है. अगर घर के दक्षिण-पश्चिम में लाल रंग का आधिक्य है तो उसको पीले या क्रीम कलर में बदल दें. यहाँ पर पौधे रखना भी वर्जित है. दक्षिण-पश्चिम में दो हंसों का जोड़ा रखना भी संबंधों को सुदृढ़ बनाने में सहायक होता है. अगर हंसों का जोड़ा उपलब्ध नहीं है तो “डबल हैप्पीनेस” का सिंबल भी दक्षिण-पश्चिम में लगा सकते हैं. यहाँ पर एक फ्रेम में पति-पत्नी अपना चित्र भी फ्रेम करके लगाएं.घर के उत्तर-पूर्व में कचरा, टॉयलेट, सेप्टिक टैंक जैसे वास्तु दोष भी संबंधों को खराब करते हैं. यहाँ पर लाल, बैंगनी, या गुलाबी रंग होना भी हानिकारक है. इस रंग को क्रीम कलर में बदल दें.उपरोक्त उदाहरण पति-पत्नी के संबंधों के विषय में लिखे गए हैं पर इनका प्रभाव घर में बाकी संबंधों पर भी पड़ता है जैसे अगर आप संयुक्त परिवार में रह रहे हैं और परिवारजनों के बीच कड़वाहट है तो दक्षिण-पश्चिम में पूरे परिवार का एक संयुक्त चित्र लगाएं.आचार्य मनोज श्रीवास्तव ऐसे वास्तु कंसलटेंट और ज्योतिषी हैं जिनको बीस साल से ज्यादा का कॉर्पोरेट लीडरशिप का अनुभव है। वे पूर्व में एयरटेल, रिलायंस और एमटीएस जैसे बड़े कॉर्पोरेट हाउस में वरिष्ठ पदों पर कार्यरत रहे हैं। आजकल वे पूर्ण रूप से एक वास्तु कंसलटेंट और ज्योतिषी के रूप में अपनी सेवाएँ दे रहे हैं।अपने सवाल और सुझाव के लिये आप भी इनसे जुड़ सकते हैं : +9877264170+9780948925

, वास्तु एवं रोग (वास्तु शास्त्र का प्रयोग रोग निवारण के लिए) ; vastu and diseases*Byसमाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*चौंकिये मत बिलकुल सही बात है कि जब हम वास्तु शास्त्र के द्वारा जीवन की अनेकों समस्याए ठीक कर सकने में सक्षम है तो शारीरिक व्याधियों या रोगों को ठीक नहीं कर सकते हें.?व्यक्ति वास्तु शास्त्र के नियम अनुसार यदि निवास करता है तो समस्त बाधाए समाप्त हो जाती है. वास्तु शास्त्र प्राचीन वैज्ञानिक जीवन शैली है वास्तु विज्ञान सम्मत तो है ही साथ ही वास्तु का सम्बन्ध ग्रह नक्षत्रों एवम धर्म से भी है ग्रहों के अशुभ होने तथा वास्तु दोष विद्यमान होने से व्यक्ति को बहुत भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ता है. वास्तु शास्त्र अनुसार पंच तत्वों पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश और वायु तथा वास्तु के आठ कोण दिशाए एवम ब्रह्म स्थल केन्द्र को संतुलित करना अति आवश्यक होता है जिससे जीवन हमारा एवं परिवार सुखमय रह सके. वास्तु शास्त्र के कुछ नियम रोग निवारण में भी सहायक सिद्ध होते है… आपको विस्मय होना स्वाभाविक है जो रोग राजसी श्रेणी में आ कर फिर की समाप्त नहीं होता बल्कि केवल दवाईयों के द्वारा नियंत्रित हो कर जीवन भर हमें दंड देता रहता है वही मधुमेह को हमारे ऋषि मुनिओं ने वास्तु शास्त्र के द्वारा नियंत्रण की बात तो दूर है पूरी तरह से सफाया करने पर अग्रसित हो रहा है दुर्भाग्य कि बात है कि हम विशवास नहीं करते आपकी बात बिलकुल सही है इससे पहले मै भी कभी विशवास नहीं रखता था लेकिन जब से वास्तु शास्त्र के नियम मेने अपने घर एवं अपने व अपने परिवार के लोगों पर लगाए तो कुछ समय बाद मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा मै शत प्रतिशत सफल हुआ आज में समाज की भलाई के लिए साथ ही यह भी बताने का पूरा प्रयास करूँगा की आधुनिक दौड़ में अपने पीछे कि सभ्यता को भी याद रखे जो कि सटीक व हमारे जीवन में शत प्रतिशत कारगर सिद्ध होती आई है. वास्तु सही रूप से जीवन की एक कला है क्योंकि हर व्यक्ति का शरीर उर्जा का केन्द्र होता है. जंहा भी व्यक्ति निवास करता है वहाँ कि वस्तुओं की उर्जा अपनी होती है और वह मनुष्य की उर्जा से तालमेल रखने की कोशिश करती है. यदि उस भवन/स्थान की उर्जा उस व्यक्ति के शरीर की उर्जा से ज्यादा संतुलित हो तो उस स्थान से विकास होता है शरीर से स्वस्थ रहता है सही निर्णय लेने में समर्थ होता है सफलता प्राप्त करने में उत्साह बढता है,धन की वृद्धि होती है जिससे समृधि बढती है यदि वास्तु दोष होने एवं उस स्थान की उर्जा संतुलित नहीं होने से अत्यधिक मेहनत करने पर भी सफलता नहीं मिलती. वह व्यक्ति अनेक व्याधियो व रोगों से दुखी होने लगता है अपयश तथा हानि उठानी पडती है. भारत में प्राचीन काल से ही वास्तु शास्त्र को पर्याप्त मान्यता दी जाती रही है। अनेक प्राचीन इमारतें वास्तु के अनुरूप निर्मित होने के कारण ही आज तक अस्तित्व में है। वास्तु के सिद्धांत पूर्ण रूप से वैज्ञानिक हैं, क्योंकि इस शास्त्र् में हमें प्राप्त होने वाली सकारात्मक ऊर्जा शक्तियों का समायोजन पूर्ण रूप से वैज्ञानिक ढंग से करना बताया गया है।वास्तु के सिद्धांतों का अनुपालन करके बनाए गए गृह में रहने वाले प्राणी सुख, शांति, स्वास्थ्य, समृद्धि इत्यादि प्राप्त करते हैं। जबकि वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत बनाये गए गृह में रहने वाले समय-असमय प्रतिकूलता का अनुभव करते हैं एवं कष्टपद जीवन व्यतीत करते हैं। कई व्य-क्तियों के मन में यह शंका होती है कि वास्तु शास्त्रब का अधिकतम उपयोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न वर्ग ही करते हैं। मध्यम वर्ग के लिए इस विषय का उपयोग कम होता है। निस्संदेह यह धारणा गलत है। वास्तु विषय किसी वर्ग या जाति विशेष के लिये ही नहीं है, बल्कि वास्तु शास्त्रत संपूर्ण मानव जाति के लिये प्रकृति की ऊर्जा शक्तियों को दिलाने का ईश्वैर प्रदत्त एक अनुपम वरदान है।वास्तु विषय में दिशाओं एवं पंच-तत्त्वों की अत्यधिक उपयोगिता है। ये तत्त्वं जल-अग्नि-वायु-पृथ्वी-आकाश है। भवन निर्माण में इन तत्त्वों का उचित अनुपात ही, उसमें निवास करने वालों का जीवन प्रसन्नए एवं समृद्धिदायक बनाता है। भवन का निर्माण वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप करने पर, उस स्थल पर निवास करने वालों को प्राकृतिक एवं चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति एवं सूर्य की शुभ एवं स्वास्थ्यपद रश्मियों का शुभ प्रभाव पाप्त होता है। यह शुभ एवं सकारात्मक प्रभाव, वहाँ पर निवास करने वालों के सोच-विचार तथा कार्यशैली को विकासवादी बनाने में सहायक होता है, जिससे मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ एवं प्रसन्नचित रहती है और बौद्धिक संतुलन भी बना रहता है। ताकि हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेकर सुख-समृद्धिदायक एवं उन्नतिशील जीवन व्यतीत कर सकें। इसके विपरीत यदि भवन का निर्माण का कार्य वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत करने पर, उस स्थान पर निवास एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों के विचार तथा कार्यशैली निश्चित ही दुष्प्रभावी होंगी और मानसिक अशांति एवं परेशानियाँ बढ़ जायेंगी। इन पांच तत्त्वोंष के उचित संतुलन के अभाव में शारीरिक स्वास्थ्य तथा बुद्धि भी विचलित हो जाती है। इन तत्वों का उचित संतुलन ही, गृह में निवास करने वाले पाणियों को मानसिक तनाव से मुक्त करता है। ताकि वह उचित-अनुचित का विचार करके, सही निर्णय लेकर, उन्नतिशील एवं आनंददायक जीवन व्यतीत कर सकें। ब्रह्माण्ड में विद्यमान अनेक ग्रहों में से जीवन पृथ्वी पर ही है। क्योंकि पृथ्वी पर इन पंच-तत्त्वों का संतुलन निरंतर बना रहता है। हमें सुख और दुःख देने वाला कोई नहीं है। हम अपने अविवेकशील आचरण और प्रकृति के नियमों के विरुद्ध आहार-विहार करने से समस्याग्रस्त रहते हैं। पंच-तत्त्वों के संतुलन के विपरीत अपना जीवन निर्वाह करने से ही हमें दुःख और कष्ट भोगने पड़ते हैं।जब तक मनुष्य के ग्रह अच्छे रहते हैं वास्तुदोष का दुष्प्रभाव दबा रहता है पर जब उसकी ग्रहदशा निर्बल पड़ने लगती है तो वह वास्तु विरुध्द बने मकान में रहकर अनेक दुःखों, कष्टों, तनाव और रोगों से घिर जाता है। इसके विपरीत यदि मनुष्य वास्तु शास्त्र के अनुसार बने भवन में रहता है तो उसके ग्रह निर्बल होने पर भी उसका जीवन सामान्य ढंग से शांति पूर्ण चलता है।यथा— शास्तेन सर्वस्य लोकस्य परमं सुखम्चतुवर्ग फलाप्राप्ति सलोकश्च भवेध्युवम्शिल्पशास्त्र परिज्ञान मृत्योअपि सुजेतांव्रजेत्परमानन्द जनक देवानामिद मीरितम्शिल्पं बिना नहि देवानामिद मीरितम्शिल्पं बिना नहि जगतेषु लोकेषु विद्यते।जगत् बिना न शिल्पा च वतंते वासवप्रभोः॥विश्व के प्रथम विद्वान वास्तुविद् विश्वकर्मा के अनुसार शास्त्र सम्मत निर्मित भवन विश्व को सम्पूर्ण सुख, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। वास्तु शिल्पशास्त्र का ज्ञान मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कराकर लोक में परमानन्द उत्पन्न करता है, अतः वास्तु शिल्प ज्ञान के बिना निवास करने का संसार में कोई महत्व नहीं है। जगत और वास्तु शिल्पज्ञान परस्पर पर्याय हैं।क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंच रचित अति अघम शरीरा।मानव शरीर पंचतत्वों से निर्मित है- पृथ्वी, जल आकाश, वायु और अग्नि। मनुष्य जीवन में ये पंचमहाभूत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके सही संतुलन पर ही मनुष्य की बुध्दि का संतुलन एवं आरोग्य निर्भर हैं जिसमें वह अपने जीवन में सही निर्णय लेकर सुखी जीवन व्यतीत करता है। इसी प्रकार निवास स्थान में इन पांच तत्वों का सही संतुलन होने से उसके निवासी मानसिक तनाव से मुक्त रहकर सही ढंग से विचार करके समस्त कार्य सम्पन्न कर पायेंगे और सुखी जीवन जी सकेंगे।वास्तु विषय में दिशाओं एवं पंच-तत्वों का अत्यधिक महत्व है। यह तत्व, जल-अग्नि-वायु-पृथ्वी-आकाश है। भवन निर्माण में इन तत्वों का उचित तालमेल ही, वहाँ पर निवास करने वालों का जीवन खुशहाल एवं समृद्धिदायक बनाता है। भवन का निर्माण वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप करने पर, उस स्थल पर निवास करने वालों को पाकृतिक एवं चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति एवं सूर्य की शुभ एवं स्वास्थ्यपद रश्मियों का शुभ पभाव पाप्त होता है। यह शुभ एवं सकारात्मक पभाव, वहाँ पर निवास करने वालों के सोच-विचार तथा कार्यशैली को विकासवादी बनाने में सहायक होता है। जिससे मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ एवं पसन्नचित रहती है। साथ ही बौद्धिक संतुलन भी बना रहता है। ताकि हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेकर सुख-समृद्धिदायक एवं उन्नतिशील जीवन व्यतीत कर सकें। इसके विपरीत यदि भवन का निर्माण कार्य वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत करने पर, उस स्थान पर निवास एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों के विचार तथा कार्यशैली निश्चित ही दुष्पभावी होगी। जिसके कारण मानसिक अशांति एवं परेशानियाँ बढ़ जायेंगी। इन पांच तत्वों के उचित संतुलन एवं तालमेल के अभाव में शारीरिक स्वास्थ्य तथा बुद्धि भी विचलित हो जाती है।इन तत्वों का उचित संतुलन ही, वहाँ पर निवास करने वाले पाणियों को मानसिक तनाव से मुक्त करता है। ताकि वह उचित-अनुचित का विचार करके, सही निर्णय लेकर, उन्नतिशील एवं आनंददायक जीवन व्यतीत कर सके। ब्रह्माण्ड में विद्यमान अनेक ग्रहों में से जीवन पृथ्वी पर ही है। क्योंकि पथ्वी पर इन पंच-तत्वों का संतुलन निरंतर बना रहता है। हमें सुख और दुःख देने वाला कोई नहीं है। हम अपने अविवेकशील आचरण और पकृति के नियमों के विरुद्ध आहारविहार करने से समस्याग्रस्त रहते हैं। पंच-तत्वों के संतुलन के विपरीत अपना जीवन निर्वाह करने से ही हमें दुःख और कष्ट भोगने पड़ते हैं।देवशिल्पी विश्वकर्मा द्वारा रचित इस भारतीय वास्तु शास्त्र का एकमात्र उदेश्य यही है कि गृहस्वामी को भवन शुभफल दे, उसे पुत्र-पौत्रादि, सुख-समृद्धि प्रदान कर लक्ष्मी एवं वैभव को बढाने वाला हो.इस विलक्षण भारतीय वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने से घर में स्वास्थय, खुशहाली एवं समृद्धि को पूर्णत: सुनिश्चित किया जा सकता है. एक इन्जीनियर आपके लिए सुन्दर तथा मजबूत भवन का निर्माण तो कर सकता है, परन्तु उसमें निवास करने वालों के सुख और समृद्धि की गारंटी नहीं दे सकता. लेकिन भारतीय वास्तुशास्त्र आपको इसकी पूरी गारंटी देता है.यहाँ हम अपने पाठकों को जानकारी दे रहे हैं कि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन न करने से पारिवारिक सदस्यों को किस तरह से नाना प्रकार के रोगों का सामना करना पड सकता है.यहाँ हम ऐसे ही कुछ नियम लिख रहे है जिन्हें अपना कर आप स्वय तथा अपने परिवारजनों को कुछ रोगों से मुक्ति दिला सकते है..जेसे—दमा के रोगियों के लिए वास्तु नियम—यदि घर में दमा का रोगी हो तो अपने बेठने वाले कमरे क़ी पश्चिम क़ी दिवार पर पेंडुलम वाली सफेद या सुनहरी-पीले रंग क़ी दिवार घडी लगा देनी चाहिए,शरीर क़ी सुरक्षा हेतु तीन मुखी रुद्राक्ष भी धारण करे, मिर्गी, हिस्टीरिया या दिमागी कमजोरी के लिए वास्तु नियम—उतर-पश्चिम, दखिन- पश्चिम, पश्चिम या दक्षिण दिशा के शयनकक्ष में सोना चाहिए, रोगी का शयन कक्ष भवन के उत्तर-पूर्व दिशा में कतई नही होना चाहिए, इससे अशांति बनती है, पाँचमुखी रुद्राक्ष या एकमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए… शिव उपासना करना शुभ/लाभ दायक रहेगा,उच्च रक्तचाप-मधुमेह के उपचार के लिए वास्तु नियम—अपने भूखंड और भवन के बीच के स्थान में कोई स्टोर, लोहे का जाल या बेकार का सामान नही होना चाहिए, अपने घर क़ी उत्तर-पूर्व दिशा में नीले फूल वाला पौधा लगाये,जोड़ो के दर्द, गठिया, सियाटिका और पीठ दर्द हेतु के लिए वास्तु नियम—आपके घर के कमरों क़ी दीवारों पर दरारे नही होनी चाहिए, उन पर कवर/प्लास्टर करवा देना चाहिए या दरारों पर किसी झरने या पहाड़ी का पोस्टर लगा देना चाहिए, सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना भी ठीक रहेगा,ह्रदय रोग निवारण हेतु के लिए वास्तु नियम—सुबह उठने के बाद अपने सोने वाले पलंग क़ी साइड पर ३-4 बार दाए हाथ से हल्का सा थपथपाय इसे नो (09 ) दिनों तक करे, सोने वाले कमरे क़ी उत्तर दिवार पर क्रिस्टल गेंद टांग दे और गेंदों के नीचे चारो दिशाओ में एक एक क्रिस्टल पिरामिड रख दे, घर टूटी खिडकिया शीशे, आईने नही होने चाहिए, अगर ऐसा हो तो उन्हें भी बदल दीजिये, टूटे शीशे और खिडकियों को कभी भी अखवार, कागज या कपड़े से नहीं ढकें…मधुमेह /डायबिटीज निवारण हेतु के लिए वास्तु नियम–वास्तु शास्त्र प्राचीन वैज्ञानिक जीवन शैली है वास्तु विज्ञान सम्मत तो है ही साथ ही वास्तु का सम्बन्ध ग्रह नक्षत्रों एवम धर्म से भी है ग्रहों के अशुभ होने तथा वास्तु दोष विद्यमान होने से व्यक्ति को बहुत भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ता है. वास्तु शास्त्र अनुसार पंच तत्वों पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश और वायु तथा वास्तु के आठ कोण दिशाए एवम ब्रह्म स्थल केन्द्र को संतुलित करना अति आवश्यक होता है जिससे जीवन हमारा एवं परिवार सुखमय रह सके.चिकित्सा शास्त्र में बहुत से लक्षण सुनने और देखने में मिलते है लेकिन वास्तु शास्त्र में बिलकुल स्पष्ट है कि घर/भवन का दक्षिण-पश्चिम भाग अर्थात नैऋत्य कोण ही इस रोग का जनक बनता है देखिये कैसे…—- दक्षिण-पश्चिम कोण में कुआँ,जल बोरिंग या भूमिगत पानी का स्थान मधुमेह बढाता है।—–दक्षिण-पश्चिम कोण में हरियाली बगीचा या छोटे छोटे पोधे भी शुगर का कारण है।—–घर/भवन का दक्षिण-पश्चिम कोना बड़ा हुआ है तब भी शुगर आक्रमण करेगी।—–यदि दक्षिण-पश्चिम का कोना घर में सबसे छोटा या सिकुड भी हुआ है तो समझो मधुमेह का द्वार खुल गया।——दक्षिण-पश्चिम भाग घर या वन की ऊँचाई से सबसे नीचा है मधुमेह बढेगी. इसलिए यह भाग सबसे ऊँचा रखे।——-दक्षिण-पश्चिम भाग में सीवर का गड्ढा होना भी शुगर को निमंत्रण देना है।——ब्रह्म स्थान अर्थात घर का मध्य भाग भारी हो तथा घर के मध्य में अधिक लोहे का प्रयोग हो या ब्रह्म भाग से जीना सीडीयां ऊपर कि और जा रही हो तो समझ ले कि मधुमेह का घर में आगमन होने जा रहा हें अर्थात दक्षिण-पश्चिम भाग यदि आपने सुधार लिया तो काफी हद तक आप असाध्य रोगों से मुक्त हो जायेगे कुछ सावधानियां और करे जैसे कि….——अपने बेडरूम में कभी भी भूल कर भी खाना ना खाए।——अपने बेडरूम में जूते चप्पल नए या पुराने बिलकुल भी ना रखे।——मिटटी के घड़े का पानी का इस्तेमाल करे तथा घडे में प्रतिदिन सात तुलसी के पत्ते डाल कर उसे प्रयोग करे। —–दिन में एक बार अपनी माता के हाथ का बना हुआ खाना अवश्य खाए। —–अपने पिता को तथा जो घर का मुखिया हो उसे पूर्ण सम्मान दे।——प्रत्येक मंगलवार को अपने मित्रों को मिष्ठान जरूर दे।——रविवार भगवान सूर्य को जल दे कर यदि बन्दरों को गुड खिलाये तो आप स्वयं अनुभव करेंगे की मधुमेह शुगर कितनी जल्दी जा रही है।——ईशानकोण से लोहे की सारी वस्तुए हटा ले।इन सब के करने से आप मधुमेह मुक्त हो सकते है. वृहस्पति देव की हल्दी की एक गाँठ लेकर एक चम्मच शहद में सिलपत्थर में घिस कर सुबह खाली पेट पीने से मधुमेह से मुक्त हो सकते है।===========================================—–पूर्व दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–—-यदि भवन में पूर्व दिशा का स्थान ऊँचा हो, तो व्यक्ति का सारा जीवन आर्थिक अभावों, परेशानियों में ही व्यतीत होता रहेगा और उसकी सन्तान अस्वस्थ, कमजोर स्मरणशक्ति वाली, पढाई-लिखाई में जी चुराने तथा पेट और यकृत के रोगों से पीडित रहेगी.—–यदि पूर्व दिशा में रिक्त स्थान न हो और बरामदे की ढलान पश्चिम दिशा की ओर हो, तो परिवार के मुखिया को आँखों की बीमारी, स्नायु अथवा ह्रदय रोग की स्मस्या का सामना करना पडता है.—–घर के पूर्वी भाग में कूडा-कर्कट, गन्दगी एवं पत्थर, मिट्टी इत्यादि के ढेर हों, तो गृहस्वामिनी में गर्भहानि का सामना करना पडता है.—–भवन के पश्चिम में नीचा या रिक्त स्थान हो, तो गृहस्वामी यकृत, गले, गाल ब्लैडर इत्यादि किसी बीमारी से परिवार को मंझधार में ही छोडकर अल्पावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.—–यदि पूर्व की दिवार पश्चिम दिशा की दिवार से अधिक ऊँची हो, तो संतान हानि का सामना करना पडता है.—–अगर पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया जाए, तो घर की बहू-बेटियाँ अवश्य अस्वस्थ रहेंगीं.—-बचाव के उपाय:—–—- पूर्व दिशा में पानी, पानी की टंकी, नल, हैंडापम्प इत्यादि लगवाना शुभ रहेगा.—–पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है, जो कि कालपुरूष के मुख का प्रतीक है. इसके लिए पूर्वी दिवार पर ‘सूर्य यन्त्र’ स्थापित करें और छत पर इस दिशा में लाल रंग का ध्वज(झंडा) लगायें.—– पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगें. धन और वंश की वृद्धि होगी तथा समाज में मान-प्रतिष्ठा बढेगी.—-पश्चिम दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–—-पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है. यह स्थान कालपुरूष का पेट, गुप्ताँग एवं प्रजनन अंग है.—–यदि पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो परिवार में फेफडे, मुख, छाती और चमडी इत्यादि के रोगों का सामना करना पडता है.—-यदि भवन का पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो पुरूष संतान की रोग बीमारी पर व्यर्थ धन का व्यय होता रहेगा.—-यदि घर के पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरूष सदस्यों को लम्बी बीमारियों का शिकार होना पडेगा.—-यदि भवन का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो, तो अकारण व्यर्थ में धन का अपव्यय होता रहेगा.—-यदि पश्चिम दिशा की दिवार में दरारें आ जायें, तो गृहस्वामी के गुप्ताँग में अवश्य कोई बीमारी होगी.—–यदि पश्चिम दिशा में रसोईघर अथवा अन्य किसी प्रकार से अग्नि का स्थान हो, तो पारिवारिक सदस्यों को गर्मी, पित्त और फोडे-फिन्सी, मस्से इत्यादि की शिकायत रहेगी.—–बचाव के उपाय:—–—–ऎसी स्थिति में पश्चिमी दिवार पर ‘वरूण यन्त्र’ स्थापित करें.—–परिवार का मुखिया न्यूनतम 11 शनिवार लगातार उपवास रखें और गरीबों में काले चने वितरित करे.—-पश्चिम की दिवार को थोडा ऊँचा रखें और इस दिशा में ढाल न रखें.—-पश्चिम दिशा में अशोक का एक वृक्ष लगायें.—-उत्तर दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–— उत्तर दिशा का प्रतिनिधि ग्रह बुध है और भारतीय वास्तुशास्त्र में इस दिशा को कालपुरूष का ह्रदय स्थल माना जाता है. जन्मकुंडली का चतुर्थ सुख भाव इसका कारक स्थान है.—-यदि उत्तर दिशा ऊँची हो और उसमें चबूतरे बने हों, तो घर में गुर्दे का रोग, कान का रोग, रक्त संबंधी बीमारियाँ, थकावट, आलस, घुटने इत्यादि की बीमारियाँ बनी रहेंगीं.—– यदि उत्तर दिशा अधिक उन्नत हो, तो परिवार की स्त्रियों को रूग्णता का शिकार होना पडता है.—बचाव के उपाय :—–यदि उत्तर दिशा की ओर बरामदे की ढाल रखी जाये, तो पारिवारिक सदस्यों विशेषतय: स्त्रियों का स्वास्थय उत्तम रहेगा. रोग-बीमारी पर अनावश्यक व्यय से बचे रहेंगें और उस परिवार में किसी को भी अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पडेगा.—– इस दिशा में दोष होने पर घर के पूजास्थल में ‘बुध यन्त्र’ स्थापित करें.—–परिवार का मुखिया 21 बुधवार लगातार उपवास रखे.—–भवन के प्रवेशद्वार पर संगीतमय घंटियाँ लगायें.—–उत्तर दिशा की दिवार पर हल्का हरा (Parrot Green) रंग करवायें.—–दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–दक्षिण दिशा का प्रतिनिधि ग्रह मंगल है, जो कि कालपुरूष के बायें सीने, फेफडे और गुर्दे का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली का दशम भाव इस दिशा का कारक स्थान होता है.—-यदि घर की दक्षिण दिशा में कुआँ, दरार, कचरा, कूडादान, कोई पुराना सामान इत्यादि हो, तो गृहस्वामी को ह्रदय रोग, जोडों का दर्द, खून की कमी, पीलिया, आँखों की बीमारी, कोलेस्ट्राल बढ जाना अथवा हाजमे की खराबीजन्य विभिन्न प्रकार के रोगों का सामना करना पडता है.—-दक्षिण दिशा में उत्तरी दिशा से कम ऊँचा चबूतरा बनाया गया हो, तो परिवार की स्त्रियों को घबराहट, बेचैनी, ब्लडप्रैशर, मूर्च्छाजन्य रोगों से पीडा का कष्ट भोगना पडता है.—-यदि दक्षिणी भाग नीचा हो, ओर उत्तर से अधिक रिक्त स्थान हो, तो परिवार के वृद्धजन सदैव अस्वस्थ रहेंगें. उन्हे उच्चरक्तचाप, पाचनक्रिया की गडबडी, खून की कमी, अचानक मृत्यु अथवा दुर्घटना का शिकार होना पडेगा. दक्षिण पिशाच का निवास है, इसलिए इस तरफ थोडी जगह खाली छोडकर ही भवन का निर्माण करवाना चाहिए.—-यदि किसी का घर दक्षिणमुखी हो ओर प्रवेश द्वार नैऋत्याभिमुख बनवा लिया जाए, तो ऎसा भवन दीर्घ व्याधियाँ एवं किसी पारिवारिक सदस्य को अकाल मृत्यु देने वाला होता है.बचाव के उपाय:———-यदि दक्षिणी भाग ऊँचा हो, तो घर-परिवार के सभी सदस्य पूर्णत: स्वस्थ एवं संपन्नता प्राप्त करेंगें. इस दिशा में किसी प्रकार का वास्तुजन्य दोष होने की स्थिति में छत पर लाल रक्तिम रंग का एक ध्वज अवश्य लगायें.—घर के पूजनस्थल में ‘श्री हनुमंतयन्त्र’ स्थापित करें.—-दक्षिणमुखी द्वार पर एक ताम्र धातु का ‘मंगलयन्त्र’ लगायें.—प्रवेशद्वार के अन्दर-बाहर दोनों तरफ दक्षिणावर्ती सूँड वाले गणपति जी की लघु प्रतिमा लगायें.—–आग्नेय में वास्तु दोष होने पर :—— पूर्व दिशा व दक्षिण दिशा को मिलाने वाले कोण को अग्नेय कोण संज्ञा दी जाती है। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है। इस कोण को अग्नि तत्व का प्रभुत्व माना गया है और इसका सीधा सम्बन्ध स्वास्थय के साथ है। यदि भवन की यह दिशा दूषित रहेंगी तो द्घर का कोई न कोई सदस्य बीमार रहेगा। इस दिशा के दोषपूर्ण रहने से व्यक्ति को क्रोधित स्वभाव वाला व चिडचिड़ा बना देगा। यदि भवन का यह कोण बढ़ा हुआ है तो यह संतान को कष्टप्रद होकर राजमय आदि देता है। इस दिशा का स्वामी ‘गणेश’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘शुक्र’ है। यदि आग्नेय ब्लॉक की पूर्वी दिशा मे सड़क सीधे उत्तर की ओर न बढ़कर घर के पास ही समाप्त हो जाए तो वह घर पराधीन हो जाएगा।—-नैऋत्य में वास्तु दोष होने पर :—— दक्षिण व पश्चिम के मध्य कोण को नेऋत्य कोण कहते है। यह कोण व्यक्ति के चरित्र का परिचय देता है। यदि भवन का यह कोण दूषित होगा तो उस भवन के सदस्यों का चरित्र प्रायः कुलषित होगा और शत्रु भय बना रहेगा। विद्वानों के अनुसार इस कोण के दूषित होने से अकस्मिक दुर्द्घटना होने के साथ ही अल्प आयु होने का भी योग होता है। यदि द्घर में इस कोण में खाली जगह है गड्डा है, भूत है या कांटेदार वृक्ष है तो गृह स्वामी बीमार, शत्रुओं से पीडित एंव सम्पन्नता से दूर रहेगा। नेऋत्य का हर कोण पूरे घर मे हर जगह संतुलित होना चाहिए, अन्यथा दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा। इस दिशा का स्वामी ‘राक्षस’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘राहु’ है।—-.वायव्य में वास्तु दोष होने पर :—— पश्चिम दिशा व उत्तर दिशा को मिलाने वाली विदिशा को वायव्य विदिशा या कोण कहते है जैसा कि नाम से ही विदित होता है कि यह कोण वायु का प्रतिनिधित्व करता है। यह वायु का ही स्थान माना जाता है। यह मानव को शांति, स्वस्थ दीर्घायु आदि प्रदान करता है। वस्तुतः यह परिवर्तन प्रदान करता है। भवन मे यदि इस कोण मे दोष हो, तो यह शत्रुता चपट हो तो, जातक भाग्यशाली होते हुए भी आनन्द नही भोग सकता है। यदि वायव्य द्घर मे सबसे बड़ा या ज्यादा गोलाकार है तो गृहस्वामी को गुप्त रोग सताएंगें। इस कोण का स्वामी ‘बटुक’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘चन्द्रमा’ माना गया है।—–ईशानमें वास्तु दोष होने पर :—— यह दिशा विवेक, धैर्य, ज्ञान, बुद्धि आदि प्रदान करती है भवन मे इस दिशा को पूरी तरह शुद्ध व पवित्र रखा जाना चाहिए। यदि यह दिशा दूषित होगी तो भवन मे प्रायः कलह व विभिन्न कष्टों को प्रदान करने के साथ व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट होती है और प्रायः कन्या संतान प्राप्त होती है। अतः भवन में इस दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस दिशा का स्वामी ‘रूद्र’ यानि भगवान शिव है और प्रतिनिधि ग्रह ‘बृहस्पति’ है।——-लगातार शारीरिक कष्ट बने रहने कि स्थिति को दूर करने के विषय में बताया कि अपने मकान के सामने अशोक के पेड़ लगायें. घर के सामने लैंप पोस्ट कुछ इस तरह से लगायें की उसका प्रकाश घर के ऊपर आये. इसके अलावे यदि आपका प्रवेश द्वार दक्षिण अथवा दक्षिण-पश्चिम में हो तो लाल रंग अथवा केवल पश्चिम में होने पर सफेद अथवा सुनहरे रंग से रंगे.——सर दर्द अथवा माइग्रेन जैसे रोग को दूर करने के लिये बेड के उत्तर पश्चिम कोने में सफेद माल जिसका किनारा भूरे रंग का हो, दबा कर रखने से समस्या का हल हो जाता है. इसके अलावे बेड कवर सफेद अथवा हल्के रंग का प्रयोग में लायें. मधुमेह की बढ़ती समस्या को नियंत्रित करने लिये अपने शयन कक्ष के उत्तर-पश्चिम दिशा में नीले रंग के फूलों का गुलदस्ता रखें. इसके अतिरिक्त सफेद मूंगा के धारण करने से भी इसे नियंत्रित किया जा सकता है.——एकाग्रता लाने के विषय में बताया कि विद्यार्थियों के कमरे की पूर्व दीवार पीला अथवा गुलाबी रंग की होनी चाहिये. साथ ही जोड़ों के दर्द के समाधान के लिये यह ध्यान अवश्य रखें कि जिस कमरे में आप सोते हैं उसकी दीवार में दरार न हो. साथ ही दक्षिण-पश्चिम भाग को भारी रखें. साथ ही भगवान विष्णु की तसवीर कमरे की पूर्व दीवार में लगाना सही माना जाता है.प्रकृति की ऊर्जा शक्तियों के संतुलित उपयोग से जीवन को खुशहाल और समृद्धिदायक कैसे बनायें? इसका व्यवस्थित अध्ययन और व्यावहारिक उपयोग करना ही वास्तु विज्ञान है।आज का आम इंसान अति व्यस्त है। दूषित वातावरण एवं समस्याओं ने उसका जीवन अंधकारमय, उदास एवं पीड़ित बना दिया है। मानव भले ही महान मेधावी क्यों न हो। प्रकृति पर विजय पाने की आकांक्षा को लेकर कितना ही प्रयत्न करे। उसे प्रकृति की शक्तियों के समक्ष नतमस्तक होना ही पड़ेगा। प्रकृति पर विजय पाने की कामना को छोड़कर उसके रहस्यों को आत्मसात करके, उसके नियमों का अनुसरण करे, तो प्रकृति की ऊर्जा शक्तियां स्वयं ही मानव समुदाय के लिये वरदान सिद्ध होगी। इस विषय में वास्तु विषय अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है। पंच-तत्वों पर आधारित वास्तु पर मानव सिद्धि प्राप्त करता है, तो वह उसे सुख-शांति और समृद्धि प्रदान कर सकती है। यही वास्तु का रहस्य है। वास्तु विषय का महत्व बढ़ने के साथ-साथ केवल पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर इस विषय में इतने अपरिपक्व एवं अज्ञानी लोग प्रवेश कर चुके हैं कि आम व्यक्ति के लिये सही-गलत का फैसला कर पाना मुश्किल हो जाता है। बाजार में वास्तु-शास्त्र से संबंधित मिलने वाली लगभग सभी पुस्तकों में एक ही तरह की बातें लिखी रहती हैं। इसका अर्थ यह है कि यह पुस्तकें लेखक की मौलिक रचना नहीं है और ना ही स्वयं शोध या अनुसंधान करके लिखी गयी है। बल्कि शास्त्रों में लिखी गयी बातों को अपनी भाषा में पिरो दी जाती है या फिर अन्य पुस्तकों की नकल, जिन्हें पढ़कर आम इंसान वास्तु-विषय के प्रति भ्रमित ही रहता है। जब कई मकानों का अवलोकन किया जाता है, तब हम यह देखते हैं कि प्रत्येक मकान का आकार एवं दिशाएं अलग-अलग होती हैं। जबकि पुस्तकों में लगभग एक ही तरह के सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है। आप स्वयं चिंतन कर सकते हैं कि जब अलग-अलग मकान की दिशाएं भिन्न-भिन्न रहती है, तब अलग-अलग मकान में वास्तु के सिद्धांत भी पृथक लागू होंगे।कई महानुभावों का यह सोचना है कि भवन में वास्तु के सिद्धांतों का पालन करने के बावजूद भी जीवन समस्याग्रसित रहता है। निश्चित ही यह दोष वास्तु विषय का नहीं माना जा सकता है बल्कि बिना अनुभव के अज्ञानियों के परामर्श का ही नतीजा होता है। कमी व्यक्ति के ज्ञान में संभव है, वास्तु विज्ञान में नहीं।कुशल एवं अनुभवी वास्तु विशेषज्ञ के परामर्श के अनुसार वास्तु के सिद्धांतों का पालन करते हुए भवन का निर्माण कार्य किया जाये तो, वहाँ पर रहने वालों का जीवन निरंतर खुशहाल, समृद्धिदायक और उन्नतिशील बना रहता है। वास्तु की दिशाएँ और तत्व सुधरते ही, ग्रह दशा भी स्वयं सुधरने लगती है। वास्तु के सिद्धांतों का परिपालन करते हुए, यदि मकान का निर्माण एवं सामान रखने की व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन किया जाये तो निश्चय ही वह मकान गृह स्वामी एवं वहाँ पर रहने वालों के लिये समृद्धिदायक एवं मंगलमय सिद्ध होगा। *वनिता कासनियां पंजाब*🌷🌷🙏🙏🌷🌷

वास्तु एवं रोग (वास्तु शास्त्र का प्रयोग रोग निवारण के लिए) ; vastu and diseases*By(समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब)*चौंकिये मत बिलकुल सही बात है कि जब हम वास्तु शास्त्र के द्वारा जीवन की अनेकों समस्याए ठीक कर सकने में सक्षम है तो शारीरिक व्याधियों या रोगों को ठीक नहीं कर सकते हें.?व्यक्ति वास्तु शास्त्र के नियम अनुसार यदि निवास करता है तो समस्त बाधाए समाप्त हो जाती है. वास्तु शास्त्र प्राचीन वैज्ञानिक जीवन शैली है वास्तु विज्ञान सम्मत तो है ही साथ ही वास्तु का सम्बन्ध ग्रह नक्षत्रों एवम धर्म से भी है ग्रहों के अशुभ होने तथा वास्तु दोष विद्यमान होने से व्यक्ति को बहुत भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ता है. वास्तु शास्त्र अनुसार पंच तत्वों पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश और वायु तथा वास्तु के आठ कोण दिशाए एवम ब्रह्म स्थल केन्द्र को संतुलित करना अति आवश्यक होता है जिससे जीवन हमारा एवं परिवार सुखमय रह सके. वास्तु शास्त्र के कुछ नियम रोग निवारण में भी सहायक सिद्ध होते है… आपको विस्मय होना स्वाभाविक है जो रोग राजसी श्रेणी में आ कर फिर की समाप्त नहीं होता बल्कि केवल दवाईयों के द्वारा नियंत्रित हो कर जीवन भर हमें दंड देता रहता है वही मधुमेह को हमारे ऋषि मुनिओं ने वास्तु शास्त्र के द्वारा नियंत्रण की बात तो दूर है पूरी तरह से सफाया करने पर अग्रसित हो रहा है दुर्भाग्य कि बात है कि हम विशवास नहीं करते आपकी बात बिलकुल सही है इससे पहले मै भी कभी विशवास नहीं रखता था लेकिन जब से वास्तु शास्त्र के नियम मेने अपने घर एवं अपने व अपने परिवार के लोगों पर लगाए तो कुछ समय बाद मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा मै शत प्रतिशत सफल हुआ आज में समाज की भलाई के लिए साथ ही यह भी बताने का पूरा प्रयास करूँगा की आधुनिक दौड़ में अपने पीछे कि सभ्यता को भी याद रखे जो कि सटीक व हमारे जीवन में शत प्रतिशत कारगर सिद्ध होती आई है. वास्तु सही रूप से जीवन की एक कला है क्योंकि हर व्यक्ति का शरीर उर्जा का केन्द्र होता है. जंहा भी व्यक्ति निवास करता है वहाँ कि वस्तुओं की उर्जा अपनी होती है और वह मनुष्य की उर्जा से तालमेल रखने की कोशिश करती है. यदि उस भवन/स्थान की उर्जा उस व्यक्ति के शरीर की उर्जा से ज्यादा संतुलित हो तो उस स्थान से विकास होता है शरीर से स्वस्थ रहता है सही निर्णय लेने में समर्थ होता है सफलता प्राप्त करने में उत्साह बढता है,धन की वृद्धि होती है जिससे समृधि बढती है यदि वास्तु दोष होने एवं उस स्थान की उर्जा संतुलित नहीं होने से अत्यधिक मेहनत करने पर भी सफलता नहीं मिलती. वह व्यक्ति अनेक व्याधियो व रोगों से दुखी होने लगता है अपयश तथा हानि उठानी पडती है. भारत में प्राचीन काल से ही वास्तु शास्त्र को पर्याप्त मान्यता दी जाती रही है। अनेक प्राचीन इमारतें वास्तु के अनुरूप निर्मित होने के कारण ही आज तक अस्तित्व में है। वास्तु के सिद्धांत पूर्ण रूप से वैज्ञानिक हैं, क्योंकि इस शास्त्र् में हमें प्राप्त होने वाली सकारात्मक ऊर्जा शक्तियों का समायोजन पूर्ण रूप से वैज्ञानिक ढंग से करना बताया गया है।वास्तु के सिद्धांतों का अनुपालन करके बनाए गए गृह में रहने वाले प्राणी सुख, शांति, स्वास्थ्य, समृद्धि इत्यादि प्राप्त करते हैं। जबकि वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत बनाये गए गृह में रहने वाले समय-असमय प्रतिकूलता का अनुभव करते हैं एवं कष्टपद जीवन व्यतीत करते हैं। कई व्य-क्तियों के मन में यह शंका होती है कि वास्तु शास्त्रब का अधिकतम उपयोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न वर्ग ही करते हैं। मध्यम वर्ग के लिए इस विषय का उपयोग कम होता है। निस्संदेह यह धारणा गलत है। वास्तु विषय किसी वर्ग या जाति विशेष के लिये ही नहीं है, बल्कि वास्तु शास्त्रत संपूर्ण मानव जाति के लिये प्रकृति की ऊर्जा शक्तियों को दिलाने का ईश्वैर प्रदत्त एक अनुपम वरदान है।वास्तु विषय में दिशाओं एवं पंच-तत्त्वों की अत्यधिक उपयोगिता है। ये तत्त्वं जल-अग्नि-वायु-पृथ्वी-आकाश है। भवन निर्माण में इन तत्त्वों का उचित अनुपात ही, उसमें निवास करने वालों का जीवन प्रसन्नए एवं समृद्धिदायक बनाता है। भवन का निर्माण वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप करने पर, उस स्थल पर निवास करने वालों को प्राकृतिक एवं चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति एवं सूर्य की शुभ एवं स्वास्थ्यपद रश्मियों का शुभ प्रभाव पाप्त होता है। यह शुभ एवं सकारात्मक प्रभाव, वहाँ पर निवास करने वालों के सोच-विचार तथा कार्यशैली को विकासवादी बनाने में सहायक होता है, जिससे मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ एवं प्रसन्नचित रहती है और बौद्धिक संतुलन भी बना रहता है। ताकि हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेकर सुख-समृद्धिदायक एवं उन्नतिशील जीवन व्यतीत कर सकें। इसके विपरीत यदि भवन का निर्माण का कार्य वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत करने पर, उस स्थान पर निवास एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों के विचार तथा कार्यशैली निश्चित ही दुष्प्रभावी होंगी और मानसिक अशांति एवं परेशानियाँ बढ़ जायेंगी। इन पांच तत्त्वोंष के उचित संतुलन के अभाव में शारीरिक स्वास्थ्य तथा बुद्धि भी विचलित हो जाती है। इन तत्वों का उचित संतुलन ही, गृह में निवास करने वाले पाणियों को मानसिक तनाव से मुक्त करता है। ताकि वह उचित-अनुचित का विचार करके, सही निर्णय लेकर, उन्नतिशील एवं आनंददायक जीवन व्यतीत कर सकें। ब्रह्माण्ड में विद्यमान अनेक ग्रहों में से जीवन पृथ्वी पर ही है। क्योंकि पृथ्वी पर इन पंच-तत्त्वों का संतुलन निरंतर बना रहता है। हमें सुख और दुःख देने वाला कोई नहीं है। हम अपने अविवेकशील आचरण और प्रकृति के नियमों के विरुद्ध आहार-विहार करने से समस्याग्रस्त रहते हैं। पंच-तत्त्वों के संतुलन के विपरीत अपना जीवन निर्वाह करने से ही हमें दुःख और कष्ट भोगने पड़ते हैं।जब तक मनुष्य के ग्रह अच्छे रहते हैं वास्तुदोष का दुष्प्रभाव दबा रहता है पर जब उसकी ग्रहदशा निर्बल पड़ने लगती है तो वह वास्तु विरुध्द बने मकान में रहकर अनेक दुःखों, कष्टों, तनाव और रोगों से घिर जाता है। इसके विपरीत यदि मनुष्य वास्तु शास्त्र के अनुसार बने भवन में रहता है तो उसके ग्रह निर्बल होने पर भी उसका जीवन सामान्य ढंग से शांति पूर्ण चलता है।यथा— शास्तेन सर्वस्य लोकस्य परमं सुखम्चतुवर्ग फलाप्राप्ति सलोकश्च भवेध्युवम्शिल्पशास्त्र परिज्ञान मृत्योअपि सुजेतांव्रजेत्परमानन्द जनक देवानामिद मीरितम्शिल्पं बिना नहि देवानामिद मीरितम्शिल्पं बिना नहि जगतेषु लोकेषु विद्यते।जगत् बिना न शिल्पा च वतंते वासवप्रभोः॥विश्व के प्रथम विद्वान वास्तुविद् विश्वकर्मा के अनुसार शास्त्र सम्मत निर्मित भवन विश्व को सम्पूर्ण सुख, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। वास्तु शिल्पशास्त्र का ज्ञान मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कराकर लोक में परमानन्द उत्पन्न करता है, अतः वास्तु शिल्प ज्ञान के बिना निवास करने का संसार में कोई महत्व नहीं है। जगत और वास्तु शिल्पज्ञान परस्पर पर्याय हैं।क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंच रचित अति अघम शरीरा।मानव शरीर पंचतत्वों से निर्मित है- पृथ्वी, जल आकाश, वायु और अग्नि। मनुष्य जीवन में ये पंचमहाभूत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके सही संतुलन पर ही मनुष्य की बुध्दि का संतुलन एवं आरोग्य निर्भर हैं जिसमें वह अपने जीवन में सही निर्णय लेकर सुखी जीवन व्यतीत करता है। इसी प्रकार निवास स्थान में इन पांच तत्वों का सही संतुलन होने से उसके निवासी मानसिक तनाव से मुक्त रहकर सही ढंग से विचार करके समस्त कार्य सम्पन्न कर पायेंगे और सुखी जीवन जी सकेंगे।वास्तु विषय में दिशाओं एवं पंच-तत्वों का अत्यधिक महत्व है। यह तत्व, जल-अग्नि-वायु-पृथ्वी-आकाश है। भवन निर्माण में इन तत्वों का उचित तालमेल ही, वहाँ पर निवास करने वालों का जीवन खुशहाल एवं समृद्धिदायक बनाता है। भवन का निर्माण वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप करने पर, उस स्थल पर निवास करने वालों को पाकृतिक एवं चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति एवं सूर्य की शुभ एवं स्वास्थ्यपद रश्मियों का शुभ पभाव पाप्त होता है। यह शुभ एवं सकारात्मक पभाव, वहाँ पर निवास करने वालों के सोच-विचार तथा कार्यशैली को विकासवादी बनाने में सहायक होता है। जिससे मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ एवं पसन्नचित रहती है। साथ ही बौद्धिक संतुलन भी बना रहता है। ताकि हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेकर सुख-समृद्धिदायक एवं उन्नतिशील जीवन व्यतीत कर सकें। इसके विपरीत यदि भवन का निर्माण कार्य वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत करने पर, उस स्थान पर निवास एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों के विचार तथा कार्यशैली निश्चित ही दुष्पभावी होगी। जिसके कारण मानसिक अशांति एवं परेशानियाँ बढ़ जायेंगी। इन पांच तत्वों के उचित संतुलन एवं तालमेल के अभाव में शारीरिक स्वास्थ्य तथा बुद्धि भी विचलित हो जाती है।इन तत्वों का उचित संतुलन ही, वहाँ पर निवास करने वाले पाणियों को मानसिक तनाव से मुक्त करता है। ताकि वह उचित-अनुचित का विचार करके, सही निर्णय लेकर, उन्नतिशील एवं आनंददायक जीवन व्यतीत कर सके। ब्रह्माण्ड में विद्यमान अनेक ग्रहों में से जीवन पृथ्वी पर ही है। क्योंकि पथ्वी पर इन पंच-तत्वों का संतुलन निरंतर बना रहता है। हमें सुख और दुःख देने वाला कोई नहीं है। हम अपने अविवेकशील आचरण और पकृति के नियमों के विरुद्ध आहारविहार करने से समस्याग्रस्त रहते हैं। पंच-तत्वों के संतुलन के विपरीत अपना जीवन निर्वाह करने से ही हमें दुःख और कष्ट भोगने पड़ते हैं।देवशिल्पी विश्वकर्मा द्वारा रचित इस भारतीय वास्तु शास्त्र का एकमात्र उदेश्य यही है कि गृहस्वामी को भवन शुभफल दे, उसे पुत्र-पौत्रादि, सुख-समृद्धि प्रदान कर लक्ष्मी एवं वैभव को बढाने वाला हो.इस विलक्षण भारतीय वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने से घर में स्वास्थय, खुशहाली एवं समृद्धि को पूर्णत: सुनिश्चित किया जा सकता है. एक इन्जीनियर आपके लिए सुन्दर तथा मजबूत भवन का निर्माण तो कर सकता है, परन्तु उसमें निवास करने वालों के सुख और समृद्धि की गारंटी नहीं दे सकता. लेकिन भारतीय वास्तुशास्त्र आपको इसकी पूरी गारंटी देता है.यहाँ हम अपने पाठकों को जानकारी दे रहे हैं कि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन न करने से पारिवारिक सदस्यों को किस तरह से नाना प्रकार के रोगों का सामना करना पड सकता है.यहाँ हम ऐसे ही कुछ नियम लिख रहे है जिन्हें अपना कर आप स्वय तथा अपने परिवारजनों को कुछ रोगों से मुक्ति दिला सकते है..जेसे—दमा के रोगियों के लिए वास्तु नियम—यदि घर में दमा का रोगी हो तो अपने बेठने वाले कमरे क़ी पश्चिम क़ी दिवार पर पेंडुलम वाली सफेद या सुनहरी-पीले रंग क़ी दिवार घडी लगा देनी चाहिए,शरीर क़ी सुरक्षा हेतु तीन मुखी रुद्राक्ष भी धारण करे, मिर्गी, हिस्टीरिया या दिमागी कमजोरी के लिए वास्तु नियम—उतर-पश्चिम, दखिन- पश्चिम, पश्चिम या दक्षिण दिशा के शयनकक्ष में सोना चाहिए, रोगी का शयन कक्ष भवन के उत्तर-पूर्व दिशा में कतई नही होना चाहिए, इससे अशांति बनती है, पाँचमुखी रुद्राक्ष या एकमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए… शिव उपासना करना शुभ/लाभ दायक रहेगा,उच्च रक्तचाप-मधुमेह के उपचार के लिए वास्तु नियम—अपने भूखंड और भवन के बीच के स्थान में कोई स्टोर, लोहे का जाल या बेकार का सामान नही होना चाहिए, अपने घर क़ी उत्तर-पूर्व दिशा में नीले फूल वाला पौधा लगाये,जोड़ो के दर्द, गठिया, सियाटिका और पीठ दर्द हेतु के लिए वास्तु नियम—आपके घर के कमरों क़ी दीवारों पर दरारे नही होनी चाहिए, उन पर कवर/प्लास्टर करवा देना चाहिए या दरारों पर किसी झरने या पहाड़ी का पोस्टर लगा देना चाहिए, सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना भी ठीक रहेगा,ह्रदय रोग निवारण हेतु के लिए वास्तु नियम—सुबह उठने के बाद अपने सोने वाले पलंग क़ी साइड पर ३-4 बार दाए हाथ से हल्का सा थपथपाय इसे नो (09 ) दिनों तक करे, सोने वाले कमरे क़ी उत्तर दिवार पर क्रिस्टल गेंद टांग दे और गेंदों के नीचे चारो दिशाओ में एक एक क्रिस्टल पिरामिड रख दे, घर टूटी खिडकिया शीशे, आईने नही होने चाहिए, अगर ऐसा हो तो उन्हें भी बदल दीजिये, टूटे शीशे और खिडकियों को कभी भी अखवार, कागज या कपड़े से नहीं ढकें…मधुमेह /डायबिटीज निवारण हेतु के लिए वास्तु नियम–वास्तु शास्त्र प्राचीन वैज्ञानिक जीवन शैली है वास्तु विज्ञान सम्मत तो है ही साथ ही वास्तु का सम्बन्ध ग्रह नक्षत्रों एवम धर्म से भी है ग्रहों के अशुभ होने तथा वास्तु दोष विद्यमान होने से व्यक्ति को बहुत भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ता है. वास्तु शास्त्र अनुसार पंच तत्वों पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश और वायु तथा वास्तु के आठ कोण दिशाए एवम ब्रह्म स्थल केन्द्र को संतुलित करना अति आवश्यक होता है जिससे जीवन हमारा एवं परिवार सुखमय रह सके.चिकित्सा शास्त्र में बहुत से लक्षण सुनने और देखने में मिलते है लेकिन वास्तु शास्त्र में बिलकुल स्पष्ट है कि घर/भवन का दक्षिण-पश्चिम भाग अर्थात नैऋत्य कोण ही इस रोग का जनक बनता है देखिये कैसे…—- दक्षिण-पश्चिम कोण में कुआँ,जल बोरिंग या भूमिगत पानी का स्थान मधुमेह बढाता है।—–दक्षिण-पश्चिम कोण में हरियाली बगीचा या छोटे छोटे पोधे भी शुगर का कारण है।—–घर/भवन का दक्षिण-पश्चिम कोना बड़ा हुआ है तब भी शुगर आक्रमण करेगी।—–यदि दक्षिण-पश्चिम का कोना घर में सबसे छोटा या सिकुड भी हुआ है तो समझो मधुमेह का द्वार खुल गया।——दक्षिण-पश्चिम भाग घर या वन की ऊँचाई से सबसे नीचा है मधुमेह बढेगी. इसलिए यह भाग सबसे ऊँचा रखे।——-दक्षिण-पश्चिम भाग में सीवर का गड्ढा होना भी शुगर को निमंत्रण देना है।——ब्रह्म स्थान अर्थात घर का मध्य भाग भारी हो तथा घर के मध्य में अधिक लोहे का प्रयोग हो या ब्रह्म भाग से जीना सीडीयां ऊपर कि और जा रही हो तो समझ ले कि मधुमेह का घर में आगमन होने जा रहा हें अर्थात दक्षिण-पश्चिम भाग यदि आपने सुधार लिया तो काफी हद तक आप असाध्य रोगों से मुक्त हो जायेगे कुछ सावधानियां और करे जैसे कि….——अपने बेडरूम में कभी भी भूल कर भी खाना ना खाए।——अपने बेडरूम में जूते चप्पल नए या पुराने बिलकुल भी ना रखे।——मिटटी के घड़े का पानी का इस्तेमाल करे तथा घडे में प्रतिदिन सात तुलसी के पत्ते डाल कर उसे प्रयोग करे। —–दिन में एक बार अपनी माता के हाथ का बना हुआ खाना अवश्य खाए। —–अपने पिता को तथा जो घर का मुखिया हो उसे पूर्ण सम्मान दे।——प्रत्येक मंगलवार को अपने मित्रों को मिष्ठान जरूर दे।——रविवार भगवान सूर्य को जल दे कर यदि बन्दरों को गुड खिलाये तो आप स्वयं अनुभव करेंगे की मधुमेह शुगर कितनी जल्दी जा रही है।——ईशानकोण से लोहे की सारी वस्तुए हटा ले।इन सब के करने से आप मधुमेह मुक्त हो सकते है. वृहस्पति देव की हल्दी की एक गाँठ लेकर एक चम्मच शहद में सिलपत्थर में घिस कर सुबह खाली पेट पीने से मधुमेह से मुक्त हो सकते है।===========================================—–पूर्व दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–—-यदि भवन में पूर्व दिशा का स्थान ऊँचा हो, तो व्यक्ति का सारा जीवन आर्थिक अभावों, परेशानियों में ही व्यतीत होता रहेगा और उसकी सन्तान अस्वस्थ, कमजोर स्मरणशक्ति वाली, पढाई-लिखाई में जी चुराने तथा पेट और यकृत के रोगों से पीडित रहेगी.—–यदि पूर्व दिशा में रिक्त स्थान न हो और बरामदे की ढलान पश्चिम दिशा की ओर हो, तो परिवार के मुखिया को आँखों की बीमारी, स्नायु अथवा ह्रदय रोग की स्मस्या का सामना करना पडता है.—–घर के पूर्वी भाग में कूडा-कर्कट, गन्दगी एवं पत्थर, मिट्टी इत्यादि के ढेर हों, तो गृहस्वामिनी में गर्भहानि का सामना करना पडता है.—–भवन के पश्चिम में नीचा या रिक्त स्थान हो, तो गृहस्वामी यकृत, गले, गाल ब्लैडर इत्यादि किसी बीमारी से परिवार को मंझधार में ही छोडकर अल्पावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.—–यदि पूर्व की दिवार पश्चिम दिशा की दिवार से अधिक ऊँची हो, तो संतान हानि का सामना करना पडता है.—–अगर पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया जाए, तो घर की बहू-बेटियाँ अवश्य अस्वस्थ रहेंगीं.—-बचाव के उपाय:—–—- पूर्व दिशा में पानी, पानी की टंकी, नल, हैंडापम्प इत्यादि लगवाना शुभ रहेगा.—–पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है, जो कि कालपुरूष के मुख का प्रतीक है. इसके लिए पूर्वी दिवार पर ‘सूर्य यन्त्र’ स्थापित करें और छत पर इस दिशा में लाल रंग का ध्वज(झंडा) लगायें.—– पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगें. धन और वंश की वृद्धि होगी तथा समाज में मान-प्रतिष्ठा बढेगी.—-पश्चिम दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–—-पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है. यह स्थान कालपुरूष का पेट, गुप्ताँग एवं प्रजनन अंग है.—–यदि पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो परिवार में फेफडे, मुख, छाती और चमडी इत्यादि के रोगों का सामना करना पडता है.—-यदि भवन का पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो पुरूष संतान की रोग बीमारी पर व्यर्थ धन का व्यय होता रहेगा.—-यदि घर के पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरूष सदस्यों को लम्बी बीमारियों का शिकार होना पडेगा.—-यदि भवन का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो, तो अकारण व्यर्थ में धन का अपव्यय होता रहेगा.—-यदि पश्चिम दिशा की दिवार में दरारें आ जायें, तो गृहस्वामी के गुप्ताँग में अवश्य कोई बीमारी होगी.—–यदि पश्चिम दिशा में रसोईघर अथवा अन्य किसी प्रकार से अग्नि का स्थान हो, तो पारिवारिक सदस्यों को गर्मी, पित्त और फोडे-फिन्सी, मस्से इत्यादि की शिकायत रहेगी.—–बचाव के उपाय:—–—–ऎसी स्थिति में पश्चिमी दिवार पर ‘वरूण यन्त्र’ स्थापित करें.—–परिवार का मुखिया न्यूनतम 11 शनिवार लगातार उपवास रखें और गरीबों में काले चने वितरित करे.—-पश्चिम की दिवार को थोडा ऊँचा रखें और इस दिशा में ढाल न रखें.—-पश्चिम दिशा में अशोक का एक वृक्ष लगायें.—-उत्तर दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–— उत्तर दिशा का प्रतिनिधि ग्रह बुध है और भारतीय वास्तुशास्त्र में इस दिशा को कालपुरूष का ह्रदय स्थल माना जाता है. जन्मकुंडली का चतुर्थ सुख भाव इसका कारक स्थान है.—-यदि उत्तर दिशा ऊँची हो और उसमें चबूतरे बने हों, तो घर में गुर्दे का रोग, कान का रोग, रक्त संबंधी बीमारियाँ, थकावट, आलस, घुटने इत्यादि की बीमारियाँ बनी रहेंगीं.—– यदि उत्तर दिशा अधिक उन्नत हो, तो परिवार की स्त्रियों को रूग्णता का शिकार होना पडता है.—बचाव के उपाय :—–यदि उत्तर दिशा की ओर बरामदे की ढाल रखी जाये, तो पारिवारिक सदस्यों विशेषतय: स्त्रियों का स्वास्थय उत्तम रहेगा. रोग-बीमारी पर अनावश्यक व्यय से बचे रहेंगें और उस परिवार में किसी को भी अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पडेगा.—– इस दिशा में दोष होने पर घर के पूजास्थल में ‘बुध यन्त्र’ स्थापित करें.—–परिवार का मुखिया 21 बुधवार लगातार उपवास रखे.—–भवन के प्रवेशद्वार पर संगीतमय घंटियाँ लगायें.—–उत्तर दिशा की दिवार पर हल्का हरा (Parrot Green) रंग करवायें.—–दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–दक्षिण दिशा का प्रतिनिधि ग्रह मंगल है, जो कि कालपुरूष के बायें सीने, फेफडे और गुर्दे का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली का दशम भाव इस दिशा का कारक स्थान होता है.—-यदि घर की दक्षिण दिशा में कुआँ, दरार, कचरा, कूडादान, कोई पुराना सामान इत्यादि हो, तो गृहस्वामी को ह्रदय रोग, जोडों का दर्द, खून की कमी, पीलिया, आँखों की बीमारी, कोलेस्ट्राल बढ जाना अथवा हाजमे की खराबीजन्य विभिन्न प्रकार के रोगों का सामना करना पडता है.—-दक्षिण दिशा में उत्तरी दिशा से कम ऊँचा चबूतरा बनाया गया हो, तो परिवार की स्त्रियों को घबराहट, बेचैनी, ब्लडप्रैशर, मूर्च्छाजन्य रोगों से पीडा का कष्ट भोगना पडता है.—-यदि दक्षिणी भाग नीचा हो, ओर उत्तर से अधिक रिक्त स्थान हो, तो परिवार के वृद्धजन सदैव अस्वस्थ रहेंगें. उन्हे उच्चरक्तचाप, पाचनक्रिया की गडबडी, खून की कमी, अचानक मृत्यु अथवा दुर्घटना का शिकार होना पडेगा. दक्षिण पिशाच का निवास है, इसलिए इस तरफ थोडी जगह खाली छोडकर ही भवन का निर्माण करवाना चाहिए.—-यदि किसी का घर दक्षिणमुखी हो ओर प्रवेश द्वार नैऋत्याभिमुख बनवा लिया जाए, तो ऎसा भवन दीर्घ व्याधियाँ एवं किसी पारिवारिक सदस्य को अकाल मृत्यु देने वाला होता है.बचाव के उपाय:———-यदि दक्षिणी भाग ऊँचा हो, तो घर-परिवार के सभी सदस्य पूर्णत: स्वस्थ एवं संपन्नता प्राप्त करेंगें. इस दिशा में किसी प्रकार का वास्तुजन्य दोष होने की स्थिति में छत पर लाल रक्तिम रंग का एक ध्वज अवश्य लगायें.—घर के पूजनस्थल में ‘श्री हनुमंतयन्त्र’ स्थापित करें.—-दक्षिणमुखी द्वार पर एक ताम्र धातु का ‘मंगलयन्त्र’ लगायें.—प्रवेशद्वार के अन्दर-बाहर दोनों तरफ दक्षिणावर्ती सूँड वाले गणपति जी की लघु प्रतिमा लगायें.—–आग्नेय में वास्तु दोष होने पर :—— पूर्व दिशा व दक्षिण दिशा को मिलाने वाले कोण को अग्नेय कोण संज्ञा दी जाती है। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है। इस कोण को अग्नि तत्व का प्रभुत्व माना गया है और इसका सीधा सम्बन्ध स्वास्थय के साथ है। यदि भवन की यह दिशा दूषित रहेंगी तो द्घर का कोई न कोई सदस्य बीमार रहेगा। इस दिशा के दोषपूर्ण रहने से व्यक्ति को क्रोधित स्वभाव वाला व चिडचिड़ा बना देगा। यदि भवन का यह कोण बढ़ा हुआ है तो यह संतान को कष्टप्रद होकर राजमय आदि देता है। इस दिशा का स्वामी ‘गणेश’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘शुक्र’ है। यदि आग्नेय ब्लॉक की पूर्वी दिशा मे सड़क सीधे उत्तर की ओर न बढ़कर घर के पास ही समाप्त हो जाए तो वह घर पराधीन हो जाएगा।—-नैऋत्य में वास्तु दोष होने पर :—— दक्षिण व पश्चिम के मध्य कोण को नेऋत्य कोण कहते है। यह कोण व्यक्ति के चरित्र का परिचय देता है। यदि भवन का यह कोण दूषित होगा तो उस भवन के सदस्यों का चरित्र प्रायः कुलषित होगा और शत्रु भय बना रहेगा। विद्वानों के अनुसार इस कोण के दूषित होने से अकस्मिक दुर्द्घटना होने के साथ ही अल्प आयु होने का भी योग होता है। यदि द्घर में इस कोण में खाली जगह है गड्डा है, भूत है या कांटेदार वृक्ष है तो गृह स्वामी बीमार, शत्रुओं से पीडित एंव सम्पन्नता से दूर रहेगा। नेऋत्य का हर कोण पूरे घर मे हर जगह संतुलित होना चाहिए, अन्यथा दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा। इस दिशा का स्वामी ‘राक्षस’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘राहु’ है।—-.वायव्य में वास्तु दोष होने पर :—— पश्चिम दिशा व उत्तर दिशा को मिलाने वाली विदिशा को वायव्य विदिशा या कोण कहते है जैसा कि नाम से ही विदित होता है कि यह कोण वायु का प्रतिनिधित्व करता है। यह वायु का ही स्थान माना जाता है। यह मानव को शांति, स्वस्थ दीर्घायु आदि प्रदान करता है। वस्तुतः यह परिवर्तन प्रदान करता है। भवन मे यदि इस कोण मे दोष हो, तो यह शत्रुता चपट हो तो, जातक भाग्यशाली होते हुए भी आनन्द नही भोग सकता है। यदि वायव्य द्घर मे सबसे बड़ा या ज्यादा गोलाकार है तो गृहस्वामी को गुप्त रोग सताएंगें। इस कोण का स्वामी ‘बटुक’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘चन्द्रमा’ माना गया है।—–ईशानमें वास्तु दोष होने पर :—— यह दिशा विवेक, धैर्य, ज्ञान, बुद्धि आदि प्रदान करती है भवन मे इस दिशा को पूरी तरह शुद्ध व पवित्र रखा जाना चाहिए। यदि यह दिशा दूषित होगी तो भवन मे प्रायः कलह व विभिन्न कष्टों को प्रदान करने के साथ व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट होती है और प्रायः कन्या संतान प्राप्त होती है। अतः भवन में इस दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस दिशा का स्वामी ‘रूद्र’ यानि भगवान शिव है और प्रतिनिधि ग्रह ‘बृहस्पति’ है।——-लगातार शारीरिक कष्ट बने रहने कि स्थिति को दूर करने के विषय में बताया कि अपने मकान के सामने अशोक के पेड़ लगायें. घर के सामने लैंप पोस्ट कुछ इस तरह से लगायें की उसका प्रकाश घर के ऊपर आये. इसके अलावे यदि आपका प्रवेश द्वार दक्षिण अथवा दक्षिण-पश्चिम में हो तो लाल रंग अथवा केवल पश्चिम में होने पर सफेद अथवा सुनहरे रंग से रंगे.——सर दर्द अथवा माइग्रेन जैसे रोग को दूर करने के लिये बेड के उत्तर पश्चिम कोने में सफेद माल जिसका किनारा भूरे रंग का हो, दबा कर रखने से समस्या का हल हो जाता है. इसके अलावे बेड कवर सफेद अथवा हल्के रंग का प्रयोग में लायें. मधुमेह की बढ़ती समस्या को नियंत्रित करने लिये अपने शयन कक्ष के उत्तर-पश्चिम दिशा में नीले रंग के फूलों का गुलदस्ता रखें. इसके अतिरिक्त सफेद मूंगा के धारण करने से भी इसे नियंत्रित किया जा सकता है.——एकाग्रता लाने के विषय में बताया कि विद्यार्थियों के कमरे की पूर्व दीवार पीला अथवा गुलाबी रंग की होनी चाहिये. साथ ही जोड़ों के दर्द के समाधान के लिये यह ध्यान अवश्य रखें कि जिस कमरे में आप सोते हैं उसकी दीवार में दरार न हो. साथ ही दक्षिण-पश्चिम भाग को भारी रखें. साथ ही भगवान विष्णु की तसवीर कमरे की पूर्व दीवार में लगाना सही माना जाता है.प्रकृति की ऊर्जा शक्तियों के संतुलित उपयोग से जीवन को खुशहाल और समृद्धिदायक कैसे बनायें? इसका व्यवस्थित अध्ययन और व्यावहारिक उपयोग करना ही वास्तु विज्ञान है।आज का आम इंसान अति व्यस्त है। दूषित वातावरण एवं समस्याओं ने उसका जीवन अंधकारमय, उदास एवं पीड़ित बना दिया है। मानव भले ही महान मेधावी क्यों न हो। प्रकृति पर विजय पाने की आकांक्षा को लेकर कितना ही प्रयत्न करे। उसे प्रकृति की शक्तियों के समक्ष नतमस्तक होना ही पड़ेगा। प्रकृति पर विजय पाने की कामना को छोड़कर उसके रहस्यों को आत्मसात करके, उसके नियमों का अनुसरण करे, तो प्रकृति की ऊर्जा शक्तियां स्वयं ही मानव समुदाय के लिये वरदान सिद्ध होगी। इस विषय में वास्तु विषय अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है। पंच-तत्वों पर आधारित वास्तु पर मानव सिद्धि प्राप्त करता है, तो वह उसे सुख-शांति और समृद्धि प्रदान कर सकती है। यही वास्तु का रहस्य है। वास्तु विषय का महत्व बढ़ने के साथ-साथ केवल पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर इस विषय में इतने अपरिपक्व एवं अज्ञानी लोग प्रवेश कर चुके हैं कि आम व्यक्ति के लिये सही-गलत का फैसला कर पाना मुश्किल हो जाता है। बाजार में वास्तु-शास्त्र से संबंधित मिलने वाली लगभग सभी पुस्तकों में एक ही तरह की बातें लिखी रहती हैं। इसका अर्थ यह है कि यह पुस्तकें लेखक की मौलिक रचना नहीं है और ना ही स्वयं शोध या अनुसंधान करके लिखी गयी है। बल्कि शास्त्रों में लिखी गयी बातों को अपनी भाषा में पिरो दी जाती है या फिर अन्य पुस्तकों की नकल, जिन्हें पढ़कर आम इंसान वास्तु-विषय के प्रति भ्रमित ही रहता है। जब कई मकानों का अवलोकन किया जाता है, तब हम यह देखते हैं कि प्रत्येक मकान का आकार एवं दिशाएं अलग-अलग होती हैं। जबकि पुस्तकों में लगभग एक ही तरह के सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है। आप स्वयं चिंतन कर सकते हैं कि जब अलग-अलग मकान की दिशाएं भिन्न-भिन्न रहती है, तब अलग-अलग मकान में वास्तु के सिद्धांत भी पृथक लागू होंगे।कई महानुभावों का यह सोचना है कि भवन में वास्तु के सिद्धांतों का पालन करने के बावजूद भी जीवन समस्याग्रसित रहता है। निश्चित ही यह दोष वास्तु विषय का नहीं माना जा सकता है बल्कि बिना अनुभव के अज्ञानियों के परामर्श का ही नतीजा होता है। कमी व्यक्ति के ज्ञान में संभव है, वास्तु विज्ञान में नहीं।कुशल एवं अनुभवी वास्तु विशेषज्ञ के परामर्श के अनुसार वास्तु के सिद्धांतों का पालन करते हुए भवन का निर्माण कार्य किया जाये तो, वहाँ पर रहने वालों का जीवन निरंतर खुशहाल, समृद्धिदायक और उन्नतिशील बना रहता है। वास्तु की दिशाएँ और तत्व सुधरते ही, ग्रह दशा भी स्वयं सुधरने लगती है। वास्तु के सिद्धांतों का परिपालन करते हुए, यदि मकान का निर्माण एवं सामान रखने की व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन किया जाये तो निश्चय ही वह मकान गृह स्वामी एवं वहाँ पर रहने वालों के लिये समृद्धिदायक एवं मंगलमय सिद्ध होगा। *वनिता कासनियां पंजाब*🌷🌷🙏🙏🌷🌷

वास्तु एवं रोग (वास्तु शास्त्र का प्रयोग रोग निवारण के लिए) ; vastu and diseases*Byसमाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*चौंकिये मत बिलकुल सही बात है कि जब हम वास्तु शास्त्र के द्वारा जीवन की अनेकों समस्याए ठीक कर सकने में सक्षम है तो शारीरिक व्याधियों या रोगों को ठीक नहीं कर सकते हें.?व्यक्ति वास्तु शास्त्र के नियम अनुसार यदि निवास करता है तो समस्त बाधाए समाप्त हो जाती है. वास्तु शास्त्र प्राचीन वैज्ञानिक जीवन शैली है वास्तु विज्ञान सम्मत तो है ही साथ ही वास्तु का सम्बन्ध ग्रह नक्षत्रों एवम धर्म से भी है ग्रहों के अशुभ होने तथा वास्तु दोष विद्यमान होने से व्यक्ति को बहुत भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ता है. वास्तु शास्त्र अनुसार पंच तत्वों पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश और वायु तथा वास्तु के आठ कोण दिशाए एवम ब्रह्म स्थल केन्द्र को संतुलित करना अति आवश्यक होता है जिससे जीवन हमारा एवं परिवार सुखमय रह सके. वास्तु शास्त्र के कुछ नियम रोग निवारण में भी सहायक सिद्ध होते है… आपको विस्मय होना स्वाभाविक है जो रोग राजसी श्रेणी में आ कर फिर की समाप्त नहीं होता बल्कि केवल दवाईयों के द्वारा नियंत्रित हो कर जीवन भर हमें दंड देता रहता है वही मधुमेह को हमारे ऋषि मुनिओं ने वास्तु शास्त्र के द्वारा नियंत्रण की बात तो दूर है पूरी तरह से सफाया करने पर अग्रसित हो रहा है दुर्भाग्य कि बात है कि हम विशवास नहीं करते आपकी बात बिलकुल सही है इससे पहले मै भी कभी विशवास नहीं रखता था लेकिन जब से वास्तु शास्त्र के नियम मेने अपने घर एवं अपने व अपने परिवार के लोगों पर लगाए तो कुछ समय बाद मेरी खुशी का ठिकाना ना रहा मै शत प्रतिशत सफल हुआ आज में समाज की भलाई के लिए साथ ही यह भी बताने का पूरा प्रयास करूँगा की आधुनिक दौड़ में अपने पीछे कि सभ्यता को भी याद रखे जो कि सटीक व हमारे जीवन में शत प्रतिशत कारगर सिद्ध होती आई है. वास्तु सही रूप से जीवन की एक कला है क्योंकि हर व्यक्ति का शरीर उर्जा का केन्द्र होता है. जंहा भी व्यक्ति निवास करता है वहाँ कि वस्तुओं की उर्जा अपनी होती है और वह मनुष्य की उर्जा से तालमेल रखने की कोशिश करती है. यदि उस भवन/स्थान की उर्जा उस व्यक्ति के शरीर की उर्जा से ज्यादा संतुलित हो तो उस स्थान से विकास होता है शरीर से स्वस्थ रहता है सही निर्णय लेने में समर्थ होता है सफलता प्राप्त करने में उत्साह बढता है,धन की वृद्धि होती है जिससे समृधि बढती है यदि वास्तु दोष होने एवं उस स्थान की उर्जा संतुलित नहीं होने से अत्यधिक मेहनत करने पर भी सफलता नहीं मिलती. वह व्यक्ति अनेक व्याधियो व रोगों से दुखी होने लगता है अपयश तथा हानि उठानी पडती है. भारत में प्राचीन काल से ही वास्तु शास्त्र को पर्याप्त मान्यता दी जाती रही है। अनेक प्राचीन इमारतें वास्तु के अनुरूप निर्मित होने के कारण ही आज तक अस्तित्व में है। वास्तु के सिद्धांत पूर्ण रूप से वैज्ञानिक हैं, क्योंकि इस शास्त्र् में हमें प्राप्त होने वाली सकारात्मक ऊर्जा शक्तियों का समायोजन पूर्ण रूप से वैज्ञानिक ढंग से करना बताया गया है।वास्तु के सिद्धांतों का अनुपालन करके बनाए गए गृह में रहने वाले प्राणी सुख, शांति, स्वास्थ्य, समृद्धि इत्यादि प्राप्त करते हैं। जबकि वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत बनाये गए गृह में रहने वाले समय-असमय प्रतिकूलता का अनुभव करते हैं एवं कष्टपद जीवन व्यतीत करते हैं। कई व्य-क्तियों के मन में यह शंका होती है कि वास्तु शास्त्रब का अधिकतम उपयोग आर्थिक दृष्टि से संपन्न वर्ग ही करते हैं। मध्यम वर्ग के लिए इस विषय का उपयोग कम होता है। निस्संदेह यह धारणा गलत है। वास्तु विषय किसी वर्ग या जाति विशेष के लिये ही नहीं है, बल्कि वास्तु शास्त्रत संपूर्ण मानव जाति के लिये प्रकृति की ऊर्जा शक्तियों को दिलाने का ईश्वैर प्रदत्त एक अनुपम वरदान है।वास्तु विषय में दिशाओं एवं पंच-तत्त्वों की अत्यधिक उपयोगिता है। ये तत्त्वं जल-अग्नि-वायु-पृथ्वी-आकाश है। भवन निर्माण में इन तत्त्वों का उचित अनुपात ही, उसमें निवास करने वालों का जीवन प्रसन्नए एवं समृद्धिदायक बनाता है। भवन का निर्माण वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप करने पर, उस स्थल पर निवास करने वालों को प्राकृतिक एवं चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति एवं सूर्य की शुभ एवं स्वास्थ्यपद रश्मियों का शुभ प्रभाव पाप्त होता है। यह शुभ एवं सकारात्मक प्रभाव, वहाँ पर निवास करने वालों के सोच-विचार तथा कार्यशैली को विकासवादी बनाने में सहायक होता है, जिससे मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ एवं प्रसन्नचित रहती है और बौद्धिक संतुलन भी बना रहता है। ताकि हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेकर सुख-समृद्धिदायक एवं उन्नतिशील जीवन व्यतीत कर सकें। इसके विपरीत यदि भवन का निर्माण का कार्य वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत करने पर, उस स्थान पर निवास एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों के विचार तथा कार्यशैली निश्चित ही दुष्प्रभावी होंगी और मानसिक अशांति एवं परेशानियाँ बढ़ जायेंगी। इन पांच तत्त्वोंष के उचित संतुलन के अभाव में शारीरिक स्वास्थ्य तथा बुद्धि भी विचलित हो जाती है। इन तत्वों का उचित संतुलन ही, गृह में निवास करने वाले पाणियों को मानसिक तनाव से मुक्त करता है। ताकि वह उचित-अनुचित का विचार करके, सही निर्णय लेकर, उन्नतिशील एवं आनंददायक जीवन व्यतीत कर सकें। ब्रह्माण्ड में विद्यमान अनेक ग्रहों में से जीवन पृथ्वी पर ही है। क्योंकि पृथ्वी पर इन पंच-तत्त्वों का संतुलन निरंतर बना रहता है। हमें सुख और दुःख देने वाला कोई नहीं है। हम अपने अविवेकशील आचरण और प्रकृति के नियमों के विरुद्ध आहार-विहार करने से समस्याग्रस्त रहते हैं। पंच-तत्त्वों के संतुलन के विपरीत अपना जीवन निर्वाह करने से ही हमें दुःख और कष्ट भोगने पड़ते हैं।जब तक मनुष्य के ग्रह अच्छे रहते हैं वास्तुदोष का दुष्प्रभाव दबा रहता है पर जब उसकी ग्रहदशा निर्बल पड़ने लगती है तो वह वास्तु विरुध्द बने मकान में रहकर अनेक दुःखों, कष्टों, तनाव और रोगों से घिर जाता है। इसके विपरीत यदि मनुष्य वास्तु शास्त्र के अनुसार बने भवन में रहता है तो उसके ग्रह निर्बल होने पर भी उसका जीवन सामान्य ढंग से शांति पूर्ण चलता है।यथा— शास्तेन सर्वस्य लोकस्य परमं सुखम्चतुवर्ग फलाप्राप्ति सलोकश्च भवेध्युवम्शिल्पशास्त्र परिज्ञान मृत्योअपि सुजेतांव्रजेत्परमानन्द जनक देवानामिद मीरितम्शिल्पं बिना नहि देवानामिद मीरितम्शिल्पं बिना नहि जगतेषु लोकेषु विद्यते।जगत् बिना न शिल्पा च वतंते वासवप्रभोः॥विश्व के प्रथम विद्वान वास्तुविद् विश्वकर्मा के अनुसार शास्त्र सम्मत निर्मित भवन विश्व को सम्पूर्ण सुख, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कराता है। वास्तु शिल्पशास्त्र का ज्ञान मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कराकर लोक में परमानन्द उत्पन्न करता है, अतः वास्तु शिल्प ज्ञान के बिना निवास करने का संसार में कोई महत्व नहीं है। जगत और वास्तु शिल्पज्ञान परस्पर पर्याय हैं।क्षिति जल पावक गगन समीरा, पंच रचित अति अघम शरीरा।मानव शरीर पंचतत्वों से निर्मित है- पृथ्वी, जल आकाश, वायु और अग्नि। मनुष्य जीवन में ये पंचमहाभूत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इनके सही संतुलन पर ही मनुष्य की बुध्दि का संतुलन एवं आरोग्य निर्भर हैं जिसमें वह अपने जीवन में सही निर्णय लेकर सुखी जीवन व्यतीत करता है। इसी प्रकार निवास स्थान में इन पांच तत्वों का सही संतुलन होने से उसके निवासी मानसिक तनाव से मुक्त रहकर सही ढंग से विचार करके समस्त कार्य सम्पन्न कर पायेंगे और सुखी जीवन जी सकेंगे।वास्तु विषय में दिशाओं एवं पंच-तत्वों का अत्यधिक महत्व है। यह तत्व, जल-अग्नि-वायु-पृथ्वी-आकाश है। भवन निर्माण में इन तत्वों का उचित तालमेल ही, वहाँ पर निवास करने वालों का जीवन खुशहाल एवं समृद्धिदायक बनाता है। भवन का निर्माण वास्तु के सिद्धांतों के अनुरूप करने पर, उस स्थल पर निवास करने वालों को पाकृतिक एवं चुम्बकीय ऊर्जा शक्ति एवं सूर्य की शुभ एवं स्वास्थ्यपद रश्मियों का शुभ पभाव पाप्त होता है। यह शुभ एवं सकारात्मक पभाव, वहाँ पर निवास करने वालों के सोच-विचार तथा कार्यशैली को विकासवादी बनाने में सहायक होता है। जिससे मनुष्य की जीवनशैली स्वस्थ एवं पसन्नचित रहती है। साथ ही बौद्धिक संतुलन भी बना रहता है। ताकि हम अपने जीवन में उचित निर्णय लेकर सुख-समृद्धिदायक एवं उन्नतिशील जीवन व्यतीत कर सकें। इसके विपरीत यदि भवन का निर्माण कार्य वास्तु के सिद्धांतों के विपरीत करने पर, उस स्थान पर निवास एवं कार्य करने वाले व्यक्तियों के विचार तथा कार्यशैली निश्चित ही दुष्पभावी होगी। जिसके कारण मानसिक अशांति एवं परेशानियाँ बढ़ जायेंगी। इन पांच तत्वों के उचित संतुलन एवं तालमेल के अभाव में शारीरिक स्वास्थ्य तथा बुद्धि भी विचलित हो जाती है।इन तत्वों का उचित संतुलन ही, वहाँ पर निवास करने वाले पाणियों को मानसिक तनाव से मुक्त करता है। ताकि वह उचित-अनुचित का विचार करके, सही निर्णय लेकर, उन्नतिशील एवं आनंददायक जीवन व्यतीत कर सके। ब्रह्माण्ड में विद्यमान अनेक ग्रहों में से जीवन पृथ्वी पर ही है। क्योंकि पथ्वी पर इन पंच-तत्वों का संतुलन निरंतर बना रहता है। हमें सुख और दुःख देने वाला कोई नहीं है। हम अपने अविवेकशील आचरण और पकृति के नियमों के विरुद्ध आहारविहार करने से समस्याग्रस्त रहते हैं। पंच-तत्वों के संतुलन के विपरीत अपना जीवन निर्वाह करने से ही हमें दुःख और कष्ट भोगने पड़ते हैं।देवशिल्पी विश्वकर्मा द्वारा रचित इस भारतीय वास्तु शास्त्र का एकमात्र उदेश्य यही है कि गृहस्वामी को भवन शुभफल दे, उसे पुत्र-पौत्रादि, सुख-समृद्धि प्रदान कर लक्ष्मी एवं वैभव को बढाने वाला हो.इस विलक्षण भारतीय वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन करने से घर में स्वास्थय, खुशहाली एवं समृद्धि को पूर्णत: सुनिश्चित किया जा सकता है. एक इन्जीनियर आपके लिए सुन्दर तथा मजबूत भवन का निर्माण तो कर सकता है, परन्तु उसमें निवास करने वालों के सुख और समृद्धि की गारंटी नहीं दे सकता. लेकिन भारतीय वास्तुशास्त्र आपको इसकी पूरी गारंटी देता है.यहाँ हम अपने पाठकों को जानकारी दे रहे हैं कि वास्तुशास्त्र के नियमों का पालन न करने से पारिवारिक सदस्यों को किस तरह से नाना प्रकार के रोगों का सामना करना पड सकता है.यहाँ हम ऐसे ही कुछ नियम लिख रहे है जिन्हें अपना कर आप स्वय तथा अपने परिवारजनों को कुछ रोगों से मुक्ति दिला सकते है..जेसे—दमा के रोगियों के लिए वास्तु नियम—यदि घर में दमा का रोगी हो तो अपने बेठने वाले कमरे क़ी पश्चिम क़ी दिवार पर पेंडुलम वाली सफेद या सुनहरी-पीले रंग क़ी दिवार घडी लगा देनी चाहिए,शरीर क़ी सुरक्षा हेतु तीन मुखी रुद्राक्ष भी धारण करे, मिर्गी, हिस्टीरिया या दिमागी कमजोरी के लिए वास्तु नियम—उतर-पश्चिम, दखिन- पश्चिम, पश्चिम या दक्षिण दिशा के शयनकक्ष में सोना चाहिए, रोगी का शयन कक्ष भवन के उत्तर-पूर्व दिशा में कतई नही होना चाहिए, इससे अशांति बनती है, पाँचमुखी रुद्राक्ष या एकमुखी रुद्राक्ष धारण करना चाहिए… शिव उपासना करना शुभ/लाभ दायक रहेगा,उच्च रक्तचाप-मधुमेह के उपचार के लिए वास्तु नियम—अपने भूखंड और भवन के बीच के स्थान में कोई स्टोर, लोहे का जाल या बेकार का सामान नही होना चाहिए, अपने घर क़ी उत्तर-पूर्व दिशा में नीले फूल वाला पौधा लगाये,जोड़ो के दर्द, गठिया, सियाटिका और पीठ दर्द हेतु के लिए वास्तु नियम—आपके घर के कमरों क़ी दीवारों पर दरारे नही होनी चाहिए, उन पर कवर/प्लास्टर करवा देना चाहिए या दरारों पर किसी झरने या पहाड़ी का पोस्टर लगा देना चाहिए, सात मुखी रुद्राक्ष धारण करना भी ठीक रहेगा,ह्रदय रोग निवारण हेतु के लिए वास्तु नियम—सुबह उठने के बाद अपने सोने वाले पलंग क़ी साइड पर ३-4 बार दाए हाथ से हल्का सा थपथपाय इसे नो (09 ) दिनों तक करे, सोने वाले कमरे क़ी उत्तर दिवार पर क्रिस्टल गेंद टांग दे और गेंदों के नीचे चारो दिशाओ में एक एक क्रिस्टल पिरामिड रख दे, घर टूटी खिडकिया शीशे, आईने नही होने चाहिए, अगर ऐसा हो तो उन्हें भी बदल दीजिये, टूटे शीशे और खिडकियों को कभी भी अखवार, कागज या कपड़े से नहीं ढकें…मधुमेह /डायबिटीज निवारण हेतु के लिए वास्तु नियम–वास्तु शास्त्र प्राचीन वैज्ञानिक जीवन शैली है वास्तु विज्ञान सम्मत तो है ही साथ ही वास्तु का सम्बन्ध ग्रह नक्षत्रों एवम धर्म से भी है ग्रहों के अशुभ होने तथा वास्तु दोष विद्यमान होने से व्यक्ति को बहुत भयंकर कष्टों का सामना करना पड़ता है. वास्तु शास्त्र अनुसार पंच तत्वों पृथ्वी,जल,अग्नि,आकाश और वायु तथा वास्तु के आठ कोण दिशाए एवम ब्रह्म स्थल केन्द्र को संतुलित करना अति आवश्यक होता है जिससे जीवन हमारा एवं परिवार सुखमय रह सके.चिकित्सा शास्त्र में बहुत से लक्षण सुनने और देखने में मिलते है लेकिन वास्तु शास्त्र में बिलकुल स्पष्ट है कि घर/भवन का दक्षिण-पश्चिम भाग अर्थात नैऋत्य कोण ही इस रोग का जनक बनता है देखिये कैसे…—- दक्षिण-पश्चिम कोण में कुआँ,जल बोरिंग या भूमिगत पानी का स्थान मधुमेह बढाता है।—–दक्षिण-पश्चिम कोण में हरियाली बगीचा या छोटे छोटे पोधे भी शुगर का कारण है।—–घर/भवन का दक्षिण-पश्चिम कोना बड़ा हुआ है तब भी शुगर आक्रमण करेगी।—–यदि दक्षिण-पश्चिम का कोना घर में सबसे छोटा या सिकुड भी हुआ है तो समझो मधुमेह का द्वार खुल गया।——दक्षिण-पश्चिम भाग घर या वन की ऊँचाई से सबसे नीचा है मधुमेह बढेगी. इसलिए यह भाग सबसे ऊँचा रखे।——-दक्षिण-पश्चिम भाग में सीवर का गड्ढा होना भी शुगर को निमंत्रण देना है।——ब्रह्म स्थान अर्थात घर का मध्य भाग भारी हो तथा घर के मध्य में अधिक लोहे का प्रयोग हो या ब्रह्म भाग से जीना सीडीयां ऊपर कि और जा रही हो तो समझ ले कि मधुमेह का घर में आगमन होने जा रहा हें अर्थात दक्षिण-पश्चिम भाग यदि आपने सुधार लिया तो काफी हद तक आप असाध्य रोगों से मुक्त हो जायेगे कुछ सावधानियां और करे जैसे कि….——अपने बेडरूम में कभी भी भूल कर भी खाना ना खाए।——अपने बेडरूम में जूते चप्पल नए या पुराने बिलकुल भी ना रखे।——मिटटी के घड़े का पानी का इस्तेमाल करे तथा घडे में प्रतिदिन सात तुलसी के पत्ते डाल कर उसे प्रयोग करे। —–दिन में एक बार अपनी माता के हाथ का बना हुआ खाना अवश्य खाए। —–अपने पिता को तथा जो घर का मुखिया हो उसे पूर्ण सम्मान दे।——प्रत्येक मंगलवार को अपने मित्रों को मिष्ठान जरूर दे।——रविवार भगवान सूर्य को जल दे कर यदि बन्दरों को गुड खिलाये तो आप स्वयं अनुभव करेंगे की मधुमेह शुगर कितनी जल्दी जा रही है।——ईशानकोण से लोहे की सारी वस्तुए हटा ले।इन सब के करने से आप मधुमेह मुक्त हो सकते है. वृहस्पति देव की हल्दी की एक गाँठ लेकर एक चम्मच शहद में सिलपत्थर में घिस कर सुबह खाली पेट पीने से मधुमेह से मुक्त हो सकते है।===========================================—–पूर्व दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–—-यदि भवन में पूर्व दिशा का स्थान ऊँचा हो, तो व्यक्ति का सारा जीवन आर्थिक अभावों, परेशानियों में ही व्यतीत होता रहेगा और उसकी सन्तान अस्वस्थ, कमजोर स्मरणशक्ति वाली, पढाई-लिखाई में जी चुराने तथा पेट और यकृत के रोगों से पीडित रहेगी.—–यदि पूर्व दिशा में रिक्त स्थान न हो और बरामदे की ढलान पश्चिम दिशा की ओर हो, तो परिवार के मुखिया को आँखों की बीमारी, स्नायु अथवा ह्रदय रोग की स्मस्या का सामना करना पडता है.—–घर के पूर्वी भाग में कूडा-कर्कट, गन्दगी एवं पत्थर, मिट्टी इत्यादि के ढेर हों, तो गृहस्वामिनी में गर्भहानि का सामना करना पडता है.—–भवन के पश्चिम में नीचा या रिक्त स्थान हो, तो गृहस्वामी यकृत, गले, गाल ब्लैडर इत्यादि किसी बीमारी से परिवार को मंझधार में ही छोडकर अल्पावस्था में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाता है.—–यदि पूर्व की दिवार पश्चिम दिशा की दिवार से अधिक ऊँची हो, तो संतान हानि का सामना करना पडता है.—–अगर पूर्व दिशा में शौचालय का निर्माण किया जाए, तो घर की बहू-बेटियाँ अवश्य अस्वस्थ रहेंगीं.—-बचाव के उपाय:—–—- पूर्व दिशा में पानी, पानी की टंकी, नल, हैंडापम्प इत्यादि लगवाना शुभ रहेगा.—–पूर्व दिशा का प्रतिनिधि ग्रह सूर्य है, जो कि कालपुरूष के मुख का प्रतीक है. इसके लिए पूर्वी दिवार पर ‘सूर्य यन्त्र’ स्थापित करें और छत पर इस दिशा में लाल रंग का ध्वज(झंडा) लगायें.—– पूर्वी भाग को नीचा और साफ-सुथरा खाली रखने से घर के लोग स्वस्थ रहेंगें. धन और वंश की वृद्धि होगी तथा समाज में मान-प्रतिष्ठा बढेगी.—-पश्चिम दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–—-पश्चिम दिशा का प्रतिनिधि ग्रह शनि है. यह स्थान कालपुरूष का पेट, गुप्ताँग एवं प्रजनन अंग है.—–यदि पश्चिम भाग के चबूतरे नीचे हों, तो परिवार में फेफडे, मुख, छाती और चमडी इत्यादि के रोगों का सामना करना पडता है.—-यदि भवन का पश्चिमी भाग नीचा होगा, तो पुरूष संतान की रोग बीमारी पर व्यर्थ धन का व्यय होता रहेगा.—-यदि घर के पश्चिम भाग का जल या वर्षा का जल पश्चिम से बहकर, बाहर जाए तो परिवार के पुरूष सदस्यों को लम्बी बीमारियों का शिकार होना पडेगा.—-यदि भवन का मुख्य द्वार पश्चिम दिशा की ओर हो, तो अकारण व्यर्थ में धन का अपव्यय होता रहेगा.—-यदि पश्चिम दिशा की दिवार में दरारें आ जायें, तो गृहस्वामी के गुप्ताँग में अवश्य कोई बीमारी होगी.—–यदि पश्चिम दिशा में रसोईघर अथवा अन्य किसी प्रकार से अग्नि का स्थान हो, तो पारिवारिक सदस्यों को गर्मी, पित्त और फोडे-फिन्सी, मस्से इत्यादि की शिकायत रहेगी.—–बचाव के उपाय:—–—–ऎसी स्थिति में पश्चिमी दिवार पर ‘वरूण यन्त्र’ स्थापित करें.—–परिवार का मुखिया न्यूनतम 11 शनिवार लगातार उपवास रखें और गरीबों में काले चने वितरित करे.—-पश्चिम की दिवार को थोडा ऊँचा रखें और इस दिशा में ढाल न रखें.—-पश्चिम दिशा में अशोक का एक वृक्ष लगायें.—-उत्तर दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–— उत्तर दिशा का प्रतिनिधि ग्रह बुध है और भारतीय वास्तुशास्त्र में इस दिशा को कालपुरूष का ह्रदय स्थल माना जाता है. जन्मकुंडली का चतुर्थ सुख भाव इसका कारक स्थान है.—-यदि उत्तर दिशा ऊँची हो और उसमें चबूतरे बने हों, तो घर में गुर्दे का रोग, कान का रोग, रक्त संबंधी बीमारियाँ, थकावट, आलस, घुटने इत्यादि की बीमारियाँ बनी रहेंगीं.—– यदि उत्तर दिशा अधिक उन्नत हो, तो परिवार की स्त्रियों को रूग्णता का शिकार होना पडता है.—बचाव के उपाय :—–यदि उत्तर दिशा की ओर बरामदे की ढाल रखी जाये, तो पारिवारिक सदस्यों विशेषतय: स्त्रियों का स्वास्थय उत्तम रहेगा. रोग-बीमारी पर अनावश्यक व्यय से बचे रहेंगें और उस परिवार में किसी को भी अकाल मृत्यु का सामना नहीं करना पडेगा.—– इस दिशा में दोष होने पर घर के पूजास्थल में ‘बुध यन्त्र’ स्थापित करें.—–परिवार का मुखिया 21 बुधवार लगातार उपवास रखे.—–भवन के प्रवेशद्वार पर संगीतमय घंटियाँ लगायें.—–उत्तर दिशा की दिवार पर हल्का हरा (Parrot Green) रंग करवायें.—–दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर :—–दक्षिण दिशा का प्रतिनिधि ग्रह मंगल है, जो कि कालपुरूष के बायें सीने, फेफडे और गुर्दे का प्रतिनिधित्व करता है. जन्मकुंडली का दशम भाव इस दिशा का कारक स्थान होता है.—-यदि घर की दक्षिण दिशा में कुआँ, दरार, कचरा, कूडादान, कोई पुराना सामान इत्यादि हो, तो गृहस्वामी को ह्रदय रोग, जोडों का दर्द, खून की कमी, पीलिया, आँखों की बीमारी, कोलेस्ट्राल बढ जाना अथवा हाजमे की खराबीजन्य विभिन्न प्रकार के रोगों का सामना करना पडता है.—-दक्षिण दिशा में उत्तरी दिशा से कम ऊँचा चबूतरा बनाया गया हो, तो परिवार की स्त्रियों को घबराहट, बेचैनी, ब्लडप्रैशर, मूर्च्छाजन्य रोगों से पीडा का कष्ट भोगना पडता है.—-यदि दक्षिणी भाग नीचा हो, ओर उत्तर से अधिक रिक्त स्थान हो, तो परिवार के वृद्धजन सदैव अस्वस्थ रहेंगें. उन्हे उच्चरक्तचाप, पाचनक्रिया की गडबडी, खून की कमी, अचानक मृत्यु अथवा दुर्घटना का शिकार होना पडेगा. दक्षिण पिशाच का निवास है, इसलिए इस तरफ थोडी जगह खाली छोडकर ही भवन का निर्माण करवाना चाहिए.—-यदि किसी का घर दक्षिणमुखी हो ओर प्रवेश द्वार नैऋत्याभिमुख बनवा लिया जाए, तो ऎसा भवन दीर्घ व्याधियाँ एवं किसी पारिवारिक सदस्य को अकाल मृत्यु देने वाला होता है.बचाव के उपाय:———-यदि दक्षिणी भाग ऊँचा हो, तो घर-परिवार के सभी सदस्य पूर्णत: स्वस्थ एवं संपन्नता प्राप्त करेंगें. इस दिशा में किसी प्रकार का वास्तुजन्य दोष होने की स्थिति में छत पर लाल रक्तिम रंग का एक ध्वज अवश्य लगायें.—घर के पूजनस्थल में ‘श्री हनुमंतयन्त्र’ स्थापित करें.—-दक्षिणमुखी द्वार पर एक ताम्र धातु का ‘मंगलयन्त्र’ लगायें.—प्रवेशद्वार के अन्दर-बाहर दोनों तरफ दक्षिणावर्ती सूँड वाले गणपति जी की लघु प्रतिमा लगायें.—–आग्नेय में वास्तु दोष होने पर :—— पूर्व दिशा व दक्षिण दिशा को मिलाने वाले कोण को अग्नेय कोण संज्ञा दी जाती है। जैसा कि नाम से ही प्रतीत होता है। इस कोण को अग्नि तत्व का प्रभुत्व माना गया है और इसका सीधा सम्बन्ध स्वास्थय के साथ है। यदि भवन की यह दिशा दूषित रहेंगी तो द्घर का कोई न कोई सदस्य बीमार रहेगा। इस दिशा के दोषपूर्ण रहने से व्यक्ति को क्रोधित स्वभाव वाला व चिडचिड़ा बना देगा। यदि भवन का यह कोण बढ़ा हुआ है तो यह संतान को कष्टप्रद होकर राजमय आदि देता है। इस दिशा का स्वामी ‘गणेश’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘शुक्र’ है। यदि आग्नेय ब्लॉक की पूर्वी दिशा मे सड़क सीधे उत्तर की ओर न बढ़कर घर के पास ही समाप्त हो जाए तो वह घर पराधीन हो जाएगा।—-नैऋत्य में वास्तु दोष होने पर :—— दक्षिण व पश्चिम के मध्य कोण को नेऋत्य कोण कहते है। यह कोण व्यक्ति के चरित्र का परिचय देता है। यदि भवन का यह कोण दूषित होगा तो उस भवन के सदस्यों का चरित्र प्रायः कुलषित होगा और शत्रु भय बना रहेगा। विद्वानों के अनुसार इस कोण के दूषित होने से अकस्मिक दुर्द्घटना होने के साथ ही अल्प आयु होने का भी योग होता है। यदि द्घर में इस कोण में खाली जगह है गड्डा है, भूत है या कांटेदार वृक्ष है तो गृह स्वामी बीमार, शत्रुओं से पीडित एंव सम्पन्नता से दूर रहेगा। नेऋत्य का हर कोण पूरे घर मे हर जगह संतुलित होना चाहिए, अन्यथा दुष्परिणाम भुगतना पड़ेगा। इस दिशा का स्वामी ‘राक्षस’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘राहु’ है।—-.वायव्य में वास्तु दोष होने पर :—— पश्चिम दिशा व उत्तर दिशा को मिलाने वाली विदिशा को वायव्य विदिशा या कोण कहते है जैसा कि नाम से ही विदित होता है कि यह कोण वायु का प्रतिनिधित्व करता है। यह वायु का ही स्थान माना जाता है। यह मानव को शांति, स्वस्थ दीर्घायु आदि प्रदान करता है। वस्तुतः यह परिवर्तन प्रदान करता है। भवन मे यदि इस कोण मे दोष हो, तो यह शत्रुता चपट हो तो, जातक भाग्यशाली होते हुए भी आनन्द नही भोग सकता है। यदि वायव्य द्घर मे सबसे बड़ा या ज्यादा गोलाकार है तो गृहस्वामी को गुप्त रोग सताएंगें। इस कोण का स्वामी ‘बटुक’ है और प्रतिनिधि ग्रह ‘चन्द्रमा’ माना गया है।—–ईशानमें वास्तु दोष होने पर :—— यह दिशा विवेक, धैर्य, ज्ञान, बुद्धि आदि प्रदान करती है भवन मे इस दिशा को पूरी तरह शुद्ध व पवित्र रखा जाना चाहिए। यदि यह दिशा दूषित होगी तो भवन मे प्रायः कलह व विभिन्न कष्टों को प्रदान करने के साथ व्यक्ति की बुद्धि भ्रष्ट होती है और प्रायः कन्या संतान प्राप्त होती है। अतः भवन में इस दिशा का विशेष ध्यान रखना चाहिए। इस दिशा का स्वामी ‘रूद्र’ यानि भगवान शिव है और प्रतिनिधि ग्रह ‘बृहस्पति’ है।——-लगातार शारीरिक कष्ट बने रहने कि स्थिति को दूर करने के विषय में बताया कि अपने मकान के सामने अशोक के पेड़ लगायें. घर के सामने लैंप पोस्ट कुछ इस तरह से लगायें की उसका प्रकाश घर के ऊपर आये. इसके अलावे यदि आपका प्रवेश द्वार दक्षिण अथवा दक्षिण-पश्चिम में हो तो लाल रंग अथवा केवल पश्चिम में होने पर सफेद अथवा सुनहरे रंग से रंगे.——सर दर्द अथवा माइग्रेन जैसे रोग को दूर करने के लिये बेड के उत्तर पश्चिम कोने में सफेद माल जिसका किनारा भूरे रंग का हो, दबा कर रखने से समस्या का हल हो जाता है. इसके अलावे बेड कवर सफेद अथवा हल्के रंग का प्रयोग में लायें. मधुमेह की बढ़ती समस्या को नियंत्रित करने लिये अपने शयन कक्ष के उत्तर-पश्चिम दिशा में नीले रंग के फूलों का गुलदस्ता रखें. इसके अतिरिक्त सफेद मूंगा के धारण करने से भी इसे नियंत्रित किया जा सकता है.——एकाग्रता लाने के विषय में बताया कि विद्यार्थियों के कमरे की पूर्व दीवार पीला अथवा गुलाबी रंग की होनी चाहिये. साथ ही जोड़ों के दर्द के समाधान के लिये यह ध्यान अवश्य रखें कि जिस कमरे में आप सोते हैं उसकी दीवार में दरार न हो. साथ ही दक्षिण-पश्चिम भाग को भारी रखें. साथ ही भगवान विष्णु की तसवीर कमरे की पूर्व दीवार में लगाना सही माना जाता है.प्रकृति की ऊर्जा शक्तियों के संतुलित उपयोग से जीवन को खुशहाल और समृद्धिदायक कैसे बनायें? इसका व्यवस्थित अध्ययन और व्यावहारिक उपयोग करना ही वास्तु विज्ञान है।आज का आम इंसान अति व्यस्त है। दूषित वातावरण एवं समस्याओं ने उसका जीवन अंधकारमय, उदास एवं पीड़ित बना दिया है। मानव भले ही महान मेधावी क्यों न हो। प्रकृति पर विजय पाने की आकांक्षा को लेकर कितना ही प्रयत्न करे। उसे प्रकृति की शक्तियों के समक्ष नतमस्तक होना ही पड़ेगा। प्रकृति पर विजय पाने की कामना को छोड़कर उसके रहस्यों को आत्मसात करके, उसके नियमों का अनुसरण करे, तो प्रकृति की ऊर्जा शक्तियां स्वयं ही मानव समुदाय के लिये वरदान सिद्ध होगी। इस विषय में वास्तु विषय अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकता है। पंच-तत्वों पर आधारित वास्तु पर मानव सिद्धि प्राप्त करता है, तो वह उसे सुख-शांति और समृद्धि प्रदान कर सकती है। यही वास्तु का रहस्य है। वास्तु विषय का महत्व बढ़ने के साथ-साथ केवल पुस्तकीय ज्ञान के आधार पर इस विषय में इतने अपरिपक्व एवं अज्ञानी लोग प्रवेश कर चुके हैं कि आम व्यक्ति के लिये सही-गलत का फैसला कर पाना मुश्किल हो जाता है। बाजार में वास्तु-शास्त्र से संबंधित मिलने वाली लगभग सभी पुस्तकों में एक ही तरह की बातें लिखी रहती हैं। इसका अर्थ यह है कि यह पुस्तकें लेखक की मौलिक रचना नहीं है और ना ही स्वयं शोध या अनुसंधान करके लिखी गयी है। बल्कि शास्त्रों में लिखी गयी बातों को अपनी भाषा में पिरो दी जाती है या फिर अन्य पुस्तकों की नकल, जिन्हें पढ़कर आम इंसान वास्तु-विषय के प्रति भ्रमित ही रहता है। जब कई मकानों का अवलोकन किया जाता है, तब हम यह देखते हैं कि प्रत्येक मकान का आकार एवं दिशाएं अलग-अलग होती हैं। जबकि पुस्तकों में लगभग एक ही तरह के सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है। आप स्वयं चिंतन कर सकते हैं कि जब अलग-अलग मकान की दिशाएं भिन्न-भिन्न रहती है, तब अलग-अलग मकान में वास्तु के सिद्धांत भी पृथक लागू होंगे।कई महानुभावों का यह सोचना है कि भवन में वास्तु के सिद्धांतों का पालन करने के बावजूद भी जीवन समस्याग्रसित रहता है। निश्चित ही यह दोष वास्तु विषय का नहीं माना जा सकता है बल्कि बिना अनुभव के अज्ञानियों के परामर्श का ही नतीजा होता है। कमी व्यक्ति के ज्ञान में संभव है, वास्तु विज्ञान में नहीं।कुशल एवं अनुभवी वास्तु विशेषज्ञ के परामर्श के अनुसार वास्तु के सिद्धांतों का पालन करते हुए भवन का निर्माण कार्य किया जाये तो, वहाँ पर रहने वालों का जीवन निरंतर खुशहाल, समृद्धिदायक और उन्नतिशील बना रहता है। वास्तु की दिशाएँ और तत्व सुधरते ही, ग्रह दशा भी स्वयं सुधरने लगती है। वास्तु के सिद्धांतों का परिपालन करते हुए, यदि मकान का निर्माण एवं सामान रखने की व्यवस्था में आवश्यक परिवर्तन किया जाये तो निश्चय ही वह मकान गृह स्वामी एवं वहाँ पर रहने वालों के लिये समृद्धिदायक एवं मंगलमय सिद्ध होगा। *वनिता कासनियां पंजाब*🌷🌷🙏🙏🌷🌷

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Copy, Paste न करें यह गलती अक्सर नए Blogger करते हैं। नए Blogger सोचते हैं कि इतने लम्बे-लम्बे Article कौन लिखे ? Google से Search करके उसे अगर हम Copy, Paste कर देंगे तो इससे हमें मेहनत भी नहीं करनी पड़ेगी और AdSense भी जल्दी से मिल जाएगा। Google इतना बेबकूफ नहीं है। वह आसानी से पता लगा लेता है कि कौन सा Article Copy Paste है और कौन सा Article Original ? ऐसी Condition में आपको कभी Approval नहीं मिलेगा। AdSense तभी आपको Approval देगा जब आप अपना Unique Content लिखेंगे। अगर आप किसी Post को Copy करके उसे थोड़ा Edit करके AdSense से Approval लेना चाहेंगे तो ऐसी Condition में भी आपको AdSense से Approval मिलने के Chance न के बराबर हैं। अगर आप AdSense से Approval चाहते हैं तो आपको अपने खुद से Unique Article लिखने ही होंगे। 2. Quality Content लिखें AdSense से आपको Approval तभी मिलेगा जब आप Unique और Quality Content लिखेंगे। Unique Content तो आपको समझ में आ गया होगा कि ये Unique Content क्या है ? अगर आप Quality Content के बारे में नहीं जानते हैं तो हम आपको संक्षेप में बता रहे हैं कि Quality Content का मतलब क्या होता है ? जिस जानकारी के लिए कोई Visitor आपके Page पर आए तो उसे वह जानकारी मिले। ऐसा न हो आप Unique Content लिखने के चक्कर में कुछ भी लिख दें। आपको Point to Point बताना होगा। बिलकुल सटीक जानकारी देनी होगी। Visitor को वह जानकारी दें जिसके लिए वह आपके Page पर आया है। उसे इधर-उधर टहलाने की कोशिश न करें। उसे ऐसी जानकारी दें जिससे वह 100% संतुष्ट हो जाए। इस तरह के Content को ही Quality Content कहते हैं। 3. Copyright Image का Use न करें जब हम अपने Blog के लिए कोई Post लिखते हैं तो हमें इसके लिए Images की जरूरत होती है। ऐसे में हम Google में Search करके किसी भी Image को अपनी Post में लगा देते हैं। इस तरह की Image को Copyright Image कहते हैं। अपनी Post में Copyright Image का Use कभी नहीं करें, नहीं तो आपको AdSense से Approval नहीं मिलेगा। अगर आप अपनी Post में Image का Use करना चाहते हैं तो वह आपकी खुद की बनाई हुई Original Image होनी चाहिए। अगर आप अपनी Image नहीं बना सकते हैं तो हमेशा Free Image का Use करें। कुछ ऐसी Websites हैं जो Free Image Provide करती हैं। AdSense से Approval के लिए ऐसी Websites से ही Image Download करके उसे अपनी Post में Use करें। 4. Post कितनी होनी चाहिए Blog में AdSense से Approval के लिए आपके Blog में कितनी Post होनी चाहिए, इस पर सबकी राय अलग-अलग है। कोई कहता है कि 50 Post होनी चाहिए। कोई कहता है कि 35 Post होनी चाहिए तो कोई कहता है कि 20 Post होनी चाहिए। मेरा मानना है कि अगर आपके Blog में 10 Post भी होंगी तब भी आपको Approval मिल जाएगा, बस Post कहीं से Copyrighted नहीं होनी चाहिए। 5. Post कितने शब्द की होनी चाहिए कुछ Bloggerअपने Blog में Post की संख्या बढ़ाने के लिए बहुत ही छोटी-छोटी Post लिख देते हैं। अगर आप अपने AdSense Approval के लिए वास्तव में Serious हैं तो आपको अपनी हर एक Post कम से कम 700 शब्दों में लिखनी होगी। 500 शब्दों से कम आपकी कोई भी Post नहीं होनी चाहिए। हो सके तो हर एक Post को 1000+ शब्दों में लिखने की कोशिश करें। इससे जहाँ एक ओर आपको AdSense से Approval लेने में आसानी होगी वहीँ दूसरी ओर 1000+ शब्दों में लिखी हुई आपकी हर Post SEO की दृष्टि से भी काफी फायदेमंद होगी। अगर आप अपने ब्लॉग में 10 Post ही लिखें, लेकिन 1000+ शब्दों में, तो आपको AdSense Approve कराने में आसानी होगी। Google AdSense Account Approved Kaise Kare Google AdSense Account Approved Kaise Kare 6. Clear Navigation होना चाहिए कुछ Blogger को AdSense से Approval इसलिए नहीं मिल पाता है क्योंकि वह अपने Blog के लिए Navigation पर ध्यान नहीं देते हैं। AdSense इस बात पर बहुत ध्यान देता है कि आपके Blog का Navigation कैसा है ? अगर आपके Blog का Navigation अच्छा होगा तो आपको AdSense से Approval जल्दी मिल जाएगा। अगर आपने अपने Blog के Navigation पर काम नहीं किया है तो आपको फिर से Apply करना होगा। जो लोग Navigation के बारे में नहीं जानते हैं उनको हम बता दें कि Navigation का मतलब होता है – आपके Blog का आपके Visitor के सामने पूरा खुला हुआ होना। वह आपके एक Page, Category या Post से किसी दूसरे Page, Category या Post तक आसानी से पहुँच सके। उसे आपके Blog में चीजों को ज्यादा ढूँढना न पड़े। इसके लिए आप अपने Blog में Page, Category, Recent Post और Popular Post के लिए Widgets का Use कर सकते हैं। 7. Top Level Domain का ही Use करें कुछ Blogger Free का Domain लेकर उससे AdSense Approve कराने की कोशिश करते हैं। Free के Domain से कुछ समय पहले तक AdSense Approve हो जाता था। लेकिन अब आपको Free Domain की बजाय Domain को खरीदना ही पड़ेगा, तभी AdSense आपको Approval देगा। हमेशा Top Level Domain जैसे .com, .in, .net, .org .edu ही Use करें। .tk जैसे Domain का प्रयोग करने से बचें। इनका Use करके आप AdSense Approve कराने की कोशिश करेंगे तो आपका AdSense Approve नहीं होगा। 8. इन Websites पर नहीं होता है AdSense Approve कुछ ऐसी Websites होती हैं जिन पर AdSense कभी Approve नहीं होता है, जैसे – Jokes Website, Shayari Website. इन जैसी Websites को AdSense Copyrighted Material की श्रेणी में रखता है। अगर आप इन Websites के लिए AdSense Approve कराने की कोशिश करेंगे तो आपका AdSense कभी Approve नहीं होगा। किसी ऐसे Blog से AdSense Approve कराने की कोशिश करें जिस पर आपने थोड़ी मेहनत की हो। 9. आपके Blog में जरूर होने चाहिए ये 4 Important Page अपना AdSense Approve कराने के लिए आपके Blog में ये चार Page जरूर होने चाहिए। ये चार Page हैं – 1. About Us – इसमें आपको अपने और अपने Blog के बारे में संक्षेप में बताना होगा। 2. Contact Us – इसमें आपको अपनी Contact Details देनी होंगी जिससे कि कोई आपसे सम्पर्क कर सके। 3. Privacy Policy – इसमें आपको अपने Blog की Privacy Policies के बारें में बताना होगा। 4. Disclaimer – इसमें आपको अपनी Disclaimer Details देनी होंगी। 10. AdSense के लिए Apply करते वक्त दूसरे Ad Network की Ads का Use न करें आपने देखा होगा जब तक हमें AdSense से Approval नहीं मिलता है, तब तक हम किसी दूसरे Ad Network से Approval लेकर उसके Ad अपने Blog में लगा लेते हैं। इसका कारण यह है कि दूसरे Ad Network से Approval मिलना थोड़ा आसान होता है। हम अपने Blog में किसी भी Ad Network के Ad लगा सकते हैं। जब आप AdSense के लिए Apply करें तो अपने Blog से दूसरे सभी Ad Network के Ads हटाकर ही Apply करें। कभी-कभी हम दूसरे Ad Network के Ads हटाए बिना ही AdSense Approval के लिए Apply कर देते हैं, जिसकी वजह से हमें Approval नहीं मिलता है। आप ऐसी गलती न करें। 11. ज्यादा Images और Videos का Use न करें कुछ Blogger अपने Blog को आकर्षक और Colourful दिखाने के चक्कर में बहुत ज्यादा Images और Videos का Use कर लेते हैं। AdSense को जरूरत से ज्यादा Images और Videos से सख्त नफरत है। अपने Blog में केवल उतनी ही Images और Videos का Use करें, जितना जरूरी हो। AdSense का मानना है कि Visitor आपके Blog पर Content पढ़ने आता है, इसलिए आपका Content अच्छा होना चाहिए। आप केवल Images और Videos का Use करके Visitor को ज्यादा देर तक नहीं रोक सकते। अपने Blog में ज्यादा Images और Videos का प्रयोग करने से बचें। 12. हमेशा Neat and Clean Theme का ही Use करें अपने Blog के लिए हमेशा Neat and Clean Theme या Template का ही Use करें। आपके द्वारा इस्तेमाल की गयी Theme या Template जितनी साफ़-सुथरी होगी, आपके AdSense Approval के Chance उतने ही बढ़ जाएँगे। ज्यादा भड़काऊ Theme या Template का Use न करें, नहीं तो AdSense Account Approve होने में मुश्किल होगी। #बाल_वनिता_महिला_आश्रम उम्मीद है अब आपको पता चल गया होगा कि अपना Google AdSense Account Approved कैसे करे। अगर आपके मन में अभी भी कोई सवाल है तो आप नीचे Comment करके हमसे पूँछ सकते हैं। हमें उत्तर देने में ख़ुशी होगी।

#SEO_क्या_है #हिन्दी में – What is SEO in Hindi – Full & Easy Explanation in Hindi - by *#समाजसेवी_वनिता_कासनियां_पंजाब*🌹🌹🙏🙏🌹🌹🇮🇳- Leave a Comment SEO kya hai what is seo in hindi SEO क्या है हिन्दी में (What is SEO in Hindi) SEO क्या है हिन्दी में (What is SEO in Hindi) : SEO का Full Form होता है – Search Engine Optimization. किसी भी Blog या Website की सफलता में SEO (Search Engine Optimization) का बहुत बड़ा हाथ होता है। अगर आप अपने Blog या Website का SEO नहीं करते हैं तो आपके लिए अपने Blog या Website से Earning करना काफी मुश्किल होगा। SEO Meaning and Definition in Hindi SEO (Search Engine Optimization) एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा हम अपने Blog या Website को Search Engine में Rank कराते हैं। हर Blogger चाहता है कि उसके द्वारा लिखी गयी हर Post Google में पहले नम्बर पर आए। अधिकांश Bloggers को इसमें निराशा ही हाथ लगती है। आपकी कोई Post Google में पहले नम्बर पर आएगी या नहीं, यह आपके द्वारा किए जाने वाले SEO पर निर्भर करता है। अगर आपकी Post का SEO अच्छा होगा तो आपकी Post Google में पहले नम्बर पर जरूर आएगी। अगर आपने अपनी Post के SEO पर ध्यान नहीं दिया होगा तो आपकी Post Google में पहले नम्बर पर कभी नहीं आएगी। एक Blogger Blogging की Field में कितना आगे तक जाएगा, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उसकी SEO (Search Engine Optimization) पर पकड़ कितनी मजबूत है। अगर आपको SEO (Search Engine Optimization) की Basics की जानकारी है तो आप अपनी Post का SEO अच्छी तरह से कर पाएँगे। आज हर #Blogger चाहता है कि वह अपने Blog से अधिक से अधिक पैसे कमाए। अधिक से अधिक पैसे कमाने के लिए उसके Blog पर अधिक से अधिक Traffic का आना बहुत जरूरी है। आपके Blog पर अधिक से अधिक Traffic तभी आएगा, जब आपकी Post Google के पहले Page पर होगी। SEO क्यों करते हैं आपकी Post Google के पहले Page पर तभी होगी, जब आपने अपनी Post का SEO अच्छी तरह से किया होगा। इस तरह हम कह सकते हैं कि SEO कहीं न कहीं आपकी Earning को भी प्रभावित करता है। अगर हमें SEO का Knowedge अच्छी तरह से होगा तो इससे हमारी Earning भी ज्यादा होगी। आपने अपनी Post में चाहे जितना अच्छा Content लिखा हो। अगर आप अपनी Post का SEO (Search Engine Optimization)नहीं करते हैं तो वह सारा Content बेकार है। वह लोगों की नजरों में तभी आ पाएगा, लोग उससे फायदा तभी उठा पाएँगे, जब आपने उसका SEO अच्छी तरह से किया होगा। अगर एक Blogger सफल होना चाहता है तो उसे SEO अच्छी तरह से करना ही होगा। एक Blogger अपनी Earning तभी कर पाएगा जब वह SEO अच्छी तरह से करेगा। यही कारण है कि एक Blogger के लिए SEO इतना जरूरी है। बिना SEO के किसी भी Blog या Website का कोई महत्व नहीं रह जाता है। #SEO कैसे करे (SEO kaise kare in Hindi) यह समस्या अक्सर नए Bloggers के सामने आती है। वह नहीं जानते हैं कि अपने Blog का SEO कैसे करे ? नए Bloggers SEO को एक हौवा मान लेते हैं। इसको एक बहुत ही बड़ी चीज मान लेते हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि SEO इतना आसान भी नहीं है। लेकिन अगर मैं अपनी बात करूँ तो इसको सीखना इतना मुश्किल भी नहीं है। आज हमने अपनी इसी Post में विस्तार से बताया है कि SEO कैसे करे ? हमारी इस Post को पढ़कर आपकी यह समस्या हमेशा-हमेशा के लिए Solve हो जाएगी कि SEO कैसे करे ? SEO कितने प्रकार का होता है (Types of SEO in Hindi) SEO दो प्रकार का होता है – 1. On #Page SEO 2. Off Page SEO सबसे पहले हम जानेंगे कि On Page SEO क्या होता है ? 1. On Page SEO क्या है (On Page SEO Meaning in Hindi) SEO kya hai what is seo in hindi SEO Kya Hai On Page SEO वह होता है जो हम अपना Blog बनाते समय या Post लिखते समय करते हैं। Off Page SEO की तुलना में On Page SEO ज्यादा Important होता है। On Page SEO इसलिए ज्यादा Important होता है क्योंकि Off Page SEO तभी सही तरीके से काम करेगा, जब आपने अपने On Page SEO पर ध्यान दिया होगा। जब तक आप अपने On Page SEO पर ध्यान नहीं देंगे, तब तक आप Off Page SEO कितना भी अच्छा क्यों न कर लें, उससे कोई फायदा होने वाला नहीं है। इसके अलावा On Page SEO अपने आप में थोड़ा आसान भी होता है। कोई भी इसे थोड़ा Time देकर अच्छी तरह से कर सकता है। On Page SEO हम उसी समय कर सकते हैं, जब हम अपना Blog बना रहे होते हैं या कोई Post लिख रहे होते हैं। On Page SEO Techniques in Hindi अब हम आपको बताएँगे कि आप अपना On Page SEO (On Page SEO Search Engine Optimization) किस तरह से अच्छा कर सकते हैं – 1. Responsive Theme – हम सभी जानते हैं कि आज अधिकतर Users Internet का प्रयोग Computer या Laptop की तुलना में Mobile में ज्यादा करते हैं। कुछ ऐसी Themes होती हैं जो Mobile को Support नहीं करती हैं, जिससे User को उस Website से जानकारी प्राप्त करने में असुविधा होती है। Google ऐसी Websites को कभी Rank नहीं करता है। वहीँ कुछ Themes ऐसी होती हैं जो Mobile में भी आसानी से खुल जाती हैं। ऐसी Themes को Responsive Themes कहते हैं। अपने Blog या Website के लिए हमेशा किसी ऐसी ही Responsive Theme का Use करें। 2. Post Length – मैं कई बार बता चुकी हूँ कि Google के लिए Post Length बहुत मायने रखती है। अगर आप अपने Blog का On Page SEO अच्छा करना चाहते हैं तो हमेशा लम्बी Post ही लिखें। अपनी हर Post को कम से कम 2000+ शब्दों में लिखने की कोशिश करें। इससे आपके Blog या Website का SEO Improve होगा। 3. Post Title – On Page SEO को बेहतर करने में Post के Title का बहुत बड़ा हाथ होता है। आप जिस Keyword पर अपनी Post को Rank करवाना चाह रहे हैं, वह Keyword आपकी Post के Title में भी जरूर होना चाहिए। अगर आप अपनी Post का Title ऐसे ही कुछ भी लिख देंगे तो आपकी Post को Rank होने में मुश्किल होगी। 4. Permalink – #Post के URL को ही हम Permalink कहते हैं। किसी भी Post को Rank कराने में Permalink महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। Permalink को हम अपनी सुविधानुसार कई तरह से Modify कर सकते हैं। सबसे अच्छा Permalink वह होता है जिसमें हम अपने Domain Name के ठीक बाद अपनी Post के Main Keyword का Use करते हैं। अपने Permalink को इसी तरह Set करें। इससे आपका On Page SEO काफी अच्छा होगा। 5. Image Alt Tag – जब भी हम कोई नयी Post लिखते हैं तो उसमें Image का भी Use करना पड़ता है। इसको Google की कमी भी कह सकते हैं कि Google किसी भी Image को देख नहीं सकता है। वह केवल Image को पढ़ सकता है। अगर हम अपनी Post में किसी Image का Use कर रहे हैं तो हमें Google को बताना पड़ेगा कि हमारी यह Image किससे सम्बन्धित है। केवल Image को Use कर देने से कोई फायदा नहीं होगा। इसके लिए हमें Alt Tag का सहारा लेना पड़ता है। जिस Keyword को आप Rank कराना चाहते हैं, वह आपकी Image में भी Alt Tag के रूप में Use होना चाहिए। 6. Website Speed – On Page SEO को अच्छा या ख़राब करने में Website Speed का बहुत बड़ा हाथ होता है। आप हमेशा ऐसी Theme का Use करें, जिसे Open होने में ज्यादा समय न लगे। अगर आपके Blog या आपकी Website को खुलने में ज्यादा समय लग रहा है तो इससे आपका On Page SEO ख़राब होता चला जाएगा। शुरुआत में लगभग सभी की Website Speed सही होती है, लेकिन कुछ दिनों के बाद इसमें समस्या आने लगती है। हम अपने Blog या Website में बड़ी-बड़ी Images, Videos, Plugins और तमाम तरह के Codes भर देते हैं, जिसकी वजह से हमारी Website की Speed काफी कम हो जाती है। 7. Keywords – जिस Keyword को हम Rank कराना चाहते हैं, वह हमारी Post में लगभग 2% होना चाहिए। उसी Keyword को बहुत ज्यादा बार प्रयोग करने की वजाय, उससे मिलते-जुलते अन्य Keywords का भी कम से कम 2 से 3 बार Use करें। अपनी Post में ज्यादा से ज्यादा Keywords का Use करें, लेकिन अनावश्यक रूप से नहीं। जब जरूरत हो तभी Keywords का Use करें। इसके अलावा आपकी Post के पहले Paragraph की शुरुआत आपके Main Keyword से ही होनी चाहिए। 8. Internal Links – अपना On Page SEO अच्छा करने के लिए अपनी Post में Internal Links का भी प्रयोग करें। अपनी Post में कम से कम 5 Internal Links का प्रयोग जरूर करें। यह सभी Internal Links ऐसी Post के होने चाहिए जो आपकी उस Post से मिलती जुलती हों। जब आप अपनी Post के बीच-बीच में अपनी दूसरी Post के Links Share करेंगे तो इससे User आपके Blog या Website पर ज्यादा समय देगा। इससे आपका On Page SEO काफी सुधर जाएगा। 9. Meta Description – किसी Post को Rank कराने में Meta Description का भी काफी Important Role होता है। Meta Description आपकी पूरी पोस्ट का सबसे Important हिस्सा होता है। आपकी Post का Meta Description ही Google के Page पर Show होता है, इसलिए इस पर काफी ध्यान देने की जरूरत है। कोई User आपकी Post पर Click करेगा या नहीं, यह काफी हद तक आपकी Post के Meta Description पर ही Depend करता है। 10. Heading & Sub-Heading – अपनी Post में Heading और Sub-Heading का भी Use करें। आपका Main Keyword आपकी Post की Heading में भी होना चाहिए और कोशिश करें कम से कम 3 Sub-Heading में भी होना चाहिए। इससे आपका On Page SEO काफी अच्छा होगा। 2. Off Page SEO क्या है (Off Page SEO in Hindi) जब भी हम Off Page SEO (Off Page SEO Search Engine Optimization) की बात करते हैं तो सबसे पहले हमारे दिमाग में Backlinks की ही बात आती है। Off Page SEO, Backlink बनाने तक ही सीमित नहीं है। यह अपने आप में काफी बड़ा Topic है। Off Page SEO (Off Page SEO Search Engine Optimization) करने में समय भी थोड़ा ज्यादा लगता है। Off Page SEO Techniques in Hindi आज हम आपको बताएँगे कि आप अपने Blog या Website का Off Page SEO (Off Page SEO Search Engine Optimization) किस तरह से अच्छा कर सकते हैं। 1. Submit Sitemap – Off Page SEO का पहला Step है, अपने Blog या Website के Sitemap को Search Engines में Submit करना। आप अपने Blog या Website के Sitemap को Google, Bing, Yahoo, Yandex जैसे सभी Search Engines में Submit करें। Sitemap को Search Engine में Submit करने से किसी भी Search Engine के लिए आपके Blog या Website के Structure का पता लगाने में आसानी होती है। अपने Blog या Website के Sitemap को Search Engine में Submit करने के फायदे यहीं तक सीमित नहीं हैं। इससे आपके Blog या Website में आने वाले सभी Errors की जानकारी भी प्राप्त होती है। 2. Create Backlinks – अगर आपके Blog या Website के SEO के लिए सबसे ज्यादा Important कोई चीज है, तो वह है – Backlinks. Backlink के बिना हम SEO की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। जितने ज्यादा आपके Blog या Website के Quality Backlinks होंगे, उतनी ज्यादा आपकी Website Google में Rank होगी। अपने Blog या Website के लिए ज्यादा से ज्यादा Quality और Dofollow Backlinks बनाने की कोशिश करें। 3. Facebook – अपनी Post को Social Media पर Share करना Off Page SEO का ही एक Part है। Facebook आज Social Media का दूसरा रूप बन चुका है। Facebook के बिना हम Social Media की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। अगर आप Social Media का सही-सही लाभ लेना चाहते हैं तो आपको अपने Blog या Website के नाम से Facebook पर एक Page Create करना होगा। हो सके तो उस Page का Promotion भी करें। ज्यादा से ज्यादा Facebook Groups में जुड़ने की कोशिश करें और वहाँ अपनी Post को Share करें। इससे आपको अच्छा Traffic मिलेगा। 4. Google Plus – हम लोग Facebook के आगे Google Plus को नजरअंदाज कर देते हैं। Social Media के क्षेत्र में Google Plus का भी अपना एक अलग ही स्थान है। Google Plus, Google का ही एक Product है। ऐसे में इसे कम आँकना हमारी भूल ही होगी। Google Plus में आपको बड़ी-बड़ी Communities मिल जाएँगी, जिनमें आप अपनी Post को Share कर सकते हैं। इससे भी आपको अच्छा Traffic प्राप्त होगा। 5. Directory Submission – अगर आप Free में Quality और Dofollow Backlinks प्राप्त करना चाहते हैं तो Directory Submission आपके लिए सबसे अच्छा विकल्प रहेगा। अपने Blog और Website के Link को अच्छी Directories में जरूर Submit करें। इसका Result थोड़ा देर से प्राप्त होता है लेकिन काफी अच्छा प्राप्त होता है। 6. Guest Post – यह Traffic और Backlink दोनों को एक साथ प्राप्त करने का काफी Popular तरीका है। अच्छे-अच्छे Blog के लिए Guest Post जरूर करें। Off Page SEO को अच्छा करने के लिए Guest Post लिखना काफी अच्छा तरीका है। 7. Blog Commenting – अपने Niche (Topic) से मिलते-जुलते Blog या Website पर Comment जरूर करें। इससे शुरू-शुरू में आपको Traffic मिलने में आसानी होती है। दूसरे Blog पर Comment करके आप Backlink भी प्राप्त कर सकते हैं। हाँलाकि Comment करने से हमें ज्यादातर Nofollow Backlinks ही प्राप्त होते हैं। एक अच्छे SEO के लिए Nofollow Backlinks की भी जरूरत होती है। 8. Participate in Question & Answer – Off Page SEO को और अच्छा करने के लिए आपको Question & Answer वाली Websites पर भी Active रहना होगा। जैसे – Quora. आप यहाँ लोगों के द्वारा पूँछे जाने वाले सवालों के जवाब दे सकते हैं। Answer के नीचे आप अपने Blog या अपनी Website का Link दे सकते हैं। यहाँ से भी आपको Traffic और Backlink दोनों प्राप्त होते हैं। उम्मीद है हमारी इस Post को पढ़कर आपको अपने इन सवालों के जवाब मिल गए होंगे कि SEO क्या है(What is SEO in Hindi), SEO क्या होता है, SEO कैसे करे, On Page SEO क्या है, Off Page SEO क्या है ? अगर आपको हमारी यह Post अच्छी लगी हो तो इसे ज्यादा से ज्यादा Share करें। अगर आपके मन में SEO (Search Engine Optimization) से सम्बन्धित कोई सवाल है तो आप नीचे Comment करके हमसे पूँछ सकते हैं। हम आपको उसका जवाब जरूर देंगे। बाल वनिता महिला आश्रम

ब्लॉगर (सेवा) साहित्य सेवा सदन किसी अन्य भाषा में पढ़ें डाउनलोड करें ध्यान रखें संपादित करें यह लेख ब्लॉगर नामक चिट्ठाकारी सेवा के बारे में है। उपयोक्ता (व्यक्ति) के लिए, ब्लॉगर (उपयोक्ता) देखें। यह लेख आज का आलेख के लिए निर्वाचित हुआ है। अधिक जानकारी हेतु क्लिक करें। ब्लॉगर (पूर्व नाम: ब्लॉगस्पॉट) एक चिट्ठा होस्टिंग सेवा है जो गूगल ब्लॉगर प्रोग्राम के द्वारा उपलब्ध कराई जाती है, व जिसके द्वारा ब्लॉगर्स अपने नए ब्लॉग शीघ्र ही बना सकते हैं। इसकी मदद से डोमेन नेम और होस्टिंग जब तक ब्लॉगर चाहे निःशुल्क उपलब्ध रहती है। गूगल के एडसेंस कार्यक्रम के द्वारा ब्लोगर्स अपने ब्लॉग से आय भी कर सकते हैं।[2] यह सुविधा अन्य चिट्ठाकारी कार्यक्रमों पर निर्भर नहीं होती। एक ब्लॉग किसी भी कार्य के लिए प्रयोग किया जा सकता है, चाहे वह निजी दैनंदिनी के रूप में हो या व्यावसायिक कार्य के लिए या सामान्य रूप में अपने विचार दूसरों तक पहुंचाने के लिए ब्लॉग्गिंग का ज्यादा उपयोग किया जाता है। ब्लॉगस्पॉट का आरंभ १९९९ में एक होस्टिंग टूल के रूप में पायरा लैब्स ने की थी। सन् २००३ में इसे गूगल ने खरीद लिया था, और तब से यह इंटरनेट पर सबसे प्रसिद्ध शुल्करहित होस्टिंग वेबसाइट बनी हुई है। ब्लॉगर ब्लॉगर का प्रतिक चिन्ह Blogger screen.png ब्लॉगर जालस्थल का मुखपृष्ठ (हिन्दी में), अभिगमन:२३ अप्रैल २०१० प्रकार ब्लॉग होस्ट इनमें उपलब्ध अंग्रेज़ी , हिंदी , फ़ारसी और अन्य ५७ मालिक गूगल इंका. निर्माता पायरा लैब्स जालस्थल www.blogger.com Edit this at Wikidata एलेक्सा रैंक १९६ जनवरी २०१९ व्यापारिक? हां पंजीकरण वैकल्पिक, निःशुल्क उद्घाटन तिथि २३ अगस्त १९९९[1] वर्तमान स्थिति सक्रिय प्रयोग इस पर ब्लॉग निर्माण के लिए कोई जटिल सॉफ्टवेयर या तकनीकी जानकारी को डाउनलोड करना या उसका प्रयोग नहीं करना पड़ता। इस पर अपना ब्लॉग बनाने के लिए प्रयोक्ताओं को केवल गूगल पर अपना खाता बनाना पड़ता है। इस पर साइनअप के लिए प्रयोक्ता को एक अलग नाम रखना होता है जो उसके ब्लॉग का नाम होगा। यही नाम डोमेन नेम के रूप में भी प्रयोग होता है।[2] ब्लॉगस्पॉट पर अन्य कुछ ब्लॉगिंग सेवाओं जैसी सुविधाएं उपलब्ध नहीं होतीं, लेकिन इसके सर्वसाधारण टूल्स और अन्य सुविधाएं ब्लॉगिंग को अत्यंत सरल बना देती हैं। किन्तु इसका अर्थ ये नहीं है, कि ब्लॉगस्पॉट पर आधुनिक सुविधाएं नहीं हैं। अधिकांश उन्नत प्रयोक्ता अपने ब्लॉग में कई परिवर्तन ला सकते हैं, जिसमें अपना साँचा (टेम्प्लेट) डिजाइन करना और गूगल का जालस्थल विश्लेषण (वेबसाइट एनलाइजिंग) कार्यक्रम का प्रयोग करने तक की भी सुविधाएं हैं। गूगल पर कई हजार उपकरण (गैजेट) हैं जिनको ब्लॉग्स पर जोड़ा (अटैच किया) जा सकता है। इनकी मदद से ब्लॉगर बहुउपयोगी उपयोक्ता ब्लॉग तैयार कर सकते हैं, जिसकी मदद से कई ब्लॉगर एक ही ब्लॉग पर अपना योगदान दे सकते हैं। सीमाएं ब्लॉगर ने सामग्री भंडारण एवं तरंगदैर्घ्य (बैंडविड्थ), प्रति उपयोक्ता खाते की सीमाएं नियत की हैं[3]: ब्लॉगस की संख्या = असीमित पृष्ठ का नाप = विशिष्ट पृष्ठ (ब्लॉग का मुखपृष्ठ या पुरालेख पृष्ठ) १ एम.बी. पर सीमित हैं। लेबल्स की संख्या = २,००० अपूर्व लेबल/ब्लॉग, २० अपूर्व लेबल/पोस्ट चित्र संख्या (उपयोक्ता पिकासा जाल संग्रह से हाइपरलिंक्ड) = कुल भंडार के १ जी.बी तक चित्रों का नाप = यदि ब्लॉगर मोबाइल द्वाआ पोस्ट किया गया, तब २५० के.बी. प्रति चित्र; पोस्ट की हुए चित्र 800px पर परिसीमित किये जाते हैं। टीम सदस्य (जो एक ब्लॉग को लिख सकते हों) = १०० १८ फ़रवरी २०१० को,[4] ब्लॉगर ने स्वतः-पृष्ठांकन "ऑटो-पेजिनेशन" आरंभ किया है, जिससे प्रति पृष्ठ प्रदर्शित पोस्ट सीमित हो गयी हैं। जिसके कारण मुखपृष्ठ पर पोस्टों की संख्या उपयोक्ता द्वारा बतायी गई संख्या से कम होती है और कुछ उपयोक्ता रुष्ट भी हुए हैं।[5][6] अवरुद्ध ब्लॉगर को समय-समय पर निम्न देशों में अवरुद्ध किया गया है: फीजी चीन ईरान पाकिस्तान[7] सीरियाई अरब गणराज्य म्याँमार तुर्की (अक्तूबर, २००८ में चार दिनों के लिये)[8] इन्हें भी देखें वर्डप्रेस ब्लॉगजगत ब्लॉग ब्लॉगर ब्लॉगवाणी ब्लॉगरोल हिन्दी ब्लॉगिंग संस्कृत ब्लॉग गूगल चिट्ठाजगत.इन

*🍄ध्यान कब करें🍄* *🍄समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब राम राम जी🍄*🍄🙏🙏🍄 अभी बात आये गी, कि हम ध्यान कब करें?🍄 ध्यान !!! तो कब के लिए, हम सब से पहले खुद को देखेंगे, हमें खुद को देखना होगा, कियों कि,ध्यान हम शान्ति, सकून, चैन व ऊंचाई को पाने के लिए कर रहे हैं l🍄 और शान्ति कब मिले गी ? या कब होती है ?🍄 हम यदी पूरे दिन को देखें गे, सुबह को अमृत वेल्ला (प्रभात) के समय सवेरे, 4 या 5 बजे पूरा माहोल, पूरा वातावरण शांतमय, पुरसकून होता है l🍄 हर तरफ शांति, हर तरफ ख़ामोशी, यहाँ तक कि, हमारे अंदर में भी शान्ति होती है l बाहर भी शांती, और अंदर भी शांती l🍄 जैसे जैसी दिन निकले गा, वातावरण में शोर, आवाज़, हमारा उठना बैठना, शुरू हो जाये गा, और हमारे अंदर में भी कितने ही विचार आयें गे, कितने ही काम आयें गे, भाग दौड़ करें गे, आगे बढ़ें गे,🍄 फिर जैसे शाम होगी, फिर वातावरण शांत होने शुरू हो जाता है, फिर खामोशी हो जाती है और थोड़े समय के लिए वैसी ही पूर्ण शांती आ जाती है,🍄 शाम को कभी भी हम ध्यान से देखें गे, यहाँ तक कि, हमारे अंदर में भी थोड़े समय के लिए शान्ति आ जाती है, फिर जैसे ही रात होगी, फिर नींद, आलस, सोना और ख्याल और विचार, सभी आना शुरू हो जाएँ गे,🍄 तो जो सुबह और श्याम इतनी शान्ति होती है उसका अर्थ यह होता है कि🍄 जैसे सुबह हुई रात गयी और दिन आया, जब रात जा रही होती है और दिन आ रहा होता है, तो जब दोनों कुछ क्षणों के लिए, थोड़े वक़्त के लिए, एक साथ मिल जाते हैं, तो पूरा वातावरण शांत हो जाता है ,फिर जैसे ही दिन आया और रात गयी तो दोनों अलग अलग हुए, तो फिर जैसे ही दिन आया तो शोर होना शुरू हो जाता है l🍄 फिर दिन गया, रात आयी, जब वोह जा रहा होता है, तो फिर जब दोनों श्याम को कुछ क्षणों के लिए, थोड़े वक़्त के मिलते हैं, , तो फिर वातावरण शांत और पुरसुकून हो जाता है l🍄 फिर जैसे ही रात आयी दिन गया तो फिर नीद आलस सोना कितने विचार, कितने ख्याल आना शुरू हो जाते हैं🍄 तो जब दिन और रात दोनों मिलते हैं उसी समय पूर्ण शान्ति और सकून हो जाता है सुबह को भी श्याम को भी बाकी जब तक अलग अलग रहें गे, तब तक, विचार, परेशानी,शोर सब चलता रहता है l🍄 तो यह बात प्रत्येक दिन हमें सिखा रही है, कि हमारी आत्मा जब तक परमात्मा से अलग रहेगी तब तक कभी दुःख कभी सुख कभी ख़ुशी कभी गम कभी अंदर में उत्पाद ( उधम ) कभी आलस कभी मायूसी कभी खुशी यह चलते रहें गे l🍄 लेकिन हमें वोह सच्चा सुख सच्ची शान्ति तभी मिले गी जब हमारी आत्मा और परमात्मा एक हो जाएँ गे उस से मिल कर के हम एक होंगे l🍄 इसीलिए सुबह और श्याम दो वक़्त, दो समय ऐसे हैं, जब हम ध्यान में बैठें गे, उसी समय वातावरण भी शांत होगा, और, वोह भी हमें सहायता करे गा वोह भी हमें शांती प्रदान करेगा, और, हमारा अंदर भी उसी वातावरण की वजह से शांत होगा l🍄 फिर हम बैठें गे तो हमारा ध्यान सरलता से , आसानी से लगे गा और हमें उसे लगाने पर हम पर बहुत अच्छे तरीके से बेहतर प्रभाव पड़े गा , तो उसी वक़्त हमारा ध्यान, शांत वातावरण में, बहुत आसानी से और अच्छाई से लग जाता है l🍄 और अगर ध्यान हो जाये, तो अच्छा है, यदी , उसी वक़्त हम कर न पाएं तो फिर भी कोई बात नहीं लेकिन हम ध्यान करें ज़रूर, ध्यान करना अनिवार्य है l🍄 यदी हम सुबह को नहीं कर पाते, श्याम को नहीं कर पाते, कभी घर का काम है कभी आफिस का काम है, कभी दूकान का काम है, और हम नहीं कर पा रहे हैं, तो कोई बात नहीं, हमें जो भी अच्छा समय लगे, जो समय खाली लगे, हम अपना समय निर्धारित कर दें l यानि कि, समय निर्धारित करना महत्वपूर्ण है l🍄 सुबह, श्याम, हो तो अच्छा है, नहीं है, तो कोई भी समय निर्धारित करें, कियों कि मनुष्य का एक स्वभाव होता है कि, हर अच्छे काम को पीछे छोड़ना l हम देखें गे कि हमें सुबह को सवेरे कहीं जाना होगा, तो हम सुबह उठें गे, नहाएं गे तैयार होंगे नाश्ता लेंगे सामान पैक करें गे, ब्रिफकेस लें गे और काम पर जायेंगे, हमारा कुछ भी नहीं छूटे गा, किसी को भी हम नहीं छोड़ें गे, न नहाने को, न तैयार होने को, न नाश्ते को, न ब्रिफकेस लेने को, न सामान को छोड़ें गे l🍄 हम सब कुछ ले कर जायेंगे अगर छूटे गा तो सिर्फ यह होगा कि, उस दिन हम मंदिर नहीं जायेंगे कि ‘मुझे बहुत जल्दी है मैं नहीं जा सका’ सिर्फ मंदिर छूटे ग बाकी कुछ भी नहीं छूटे ग कियों कि इंसान का स्वभाव है कि हर अच्छे काम को पीछे छोड़ना l ध्यान, नाम सिमरन, वोह तो ऐसे हैं, जो हमें संसार में भी सुख दें लेकिन आगे साहिब तक पहुंचाएं, तो उसे हम कभी छोड़ें नहीं इसलिए नाम को ऐसे जोड़ कर के रखें कि जब समय निर्धारित हो जाता है तो फिर हमारी एक आदत सी बन जाती है, फिर उसी ,समय जहाँ कहीं भी होंगे जैसे भी होंगे, तो हमारा दिमाग सोचे गा कि हमारे ध्यान का समय हो गया है, और हम ध्यान करें गे l यदी कोई समय निर्धारित नहीं करें गे, तो कहें गे कि, अभी करता हूँ बाद में करता हूँ थोड़ी देर के बाद करता हूँ और ऐसे करते हुए, समय भी पूरा हो जायेगा और हम बिसतर में सो जायेंगे, लेकिन हम ध्यान नहीं कर पाएंगे l अधिकतर ऐसे ही होता है, इस लिए उसको ऐसे बना के रखो जैसे हम हर दिन खाना खाते हैं l हम हर दिन तीन बार खाना खाते हैं, लेकिन कभी खाना याद कर के नहीं खाते है, हम जैसे खाना खाने का समय होता है हम खाना खा लेते हैं, हम प्रतेक दिन तीन बार खाना खाते हैं परन्तु उसे सिर्फ याद नहीं करते हैं पर समय पर खा लेते हैं सिर्फ उसे बैठ कर याद नहीं करते l🍄 यदी कभी एक दिन उपवास या व्रत रखें, तो दिन में कितनी बार खाना याद आता है हर दिन तीन बार खाते हैं, कभी याद नहीं आता, एक दिन सिर्फ उपवास रखा, कितनी बार खाना याद आया, और बड़ी बात यह नहीं कि खाना याद आया, बड़ी बात यह है कि, जब खाने का वक़्त गुज़र जाता है फिर कहते हैं कि ‘अभी तो भूख ही मर गयी, अब में रात को एकसाथ खा लूं गा l🍄 वास्तव में भूक मरी नहीं उस समय हमें भूख लगी थी कियों कि, हमें उस समय समय खाना खाने की आदत थी🍄 जब वोह समय आया, उस की याद आयी, उस आदत ने हमें सताया, वोह याद नहीं पर वोह आदत का समय गुज़र गया तो फिर हमें भूख ही नहीं थी l🍄 वैसे ही जब हम ध्यान में बैठें गे तो उस खाने की तरह हम खुद में आदत ड़ाल दें🍄 तो जहाँ कहीं भी हों तो उस समय हमें ध्यान का समय याद आये गा कि हमारे ध्यान का समय है तो हम ध्यान कर पाएंगे l इसीलिए ध्यान और सिमरन से खुद को जोड़ के रखिये, कि जैसे हम हर दिन खान खाते हैं🍄 हम प्रतेक दिन बच्चों को तैयार कर के इस्कूल भेजते हैं, रात को किसी वक़्त कैसे भी सोएं, वच्चों का वक़्त होता है, हम उसी वक़्त उठते हैं बच्चों को तैयार करते हैं बस हर दिन की दिनचर्या है l🍄 हमारा दूकान है ऑफिस है हम रात को कितनी भी देर से सोएं, कैसे भी थके हों, सुबह को उठते हैं चाबियाँ ले के खुद पहुँच जाते हैं l तो जैसे,हम हर दिन, हम, अपने समय से काम करते हैं,नाम सिमरन को भी, हम, वैसे ही खुद स, अपनी दिनचर्या में शामिल कर लें l🍄 यह न बताएं,कि यह कोई बड़ी चीज़ है,या ऊंची चीज़ है, पर हमारी दिनचर्या है, और हमें महसूस भी नहीं होगा, और हम संभलते जायेंगे, हम सुधरते जायेंगे हम सत्यकर्मी बनते जाएँ गे l🍄 सत्य कर्मों की वजह से सदा ही सुख लेते हुए, हम आगे बड़ पाएंगे, इसलिए हो सके तो सुबह श्याम, यदी सुबह श्याम न कर पाएं, तो किसी समय, कहीं पर भी परन्तु, अपना समय निर्धारित कर लें, और उसी समय हम नाम ध्यान करें तो हमारी अंदर की ऊंचाई बढ़ती जायेगी l🍄 समय निर्धारित करना,अत्यंत आवयशक है l🍄

वास्तु शास्त्र भवन-निर्माण का विज्ञान है। वास्तु के आधार पर बना भवन ब्रह्माण्ड से सकारात्मक ऊर्जा को अपनी ओर आकर्षित करता है और भवन के अंदर ऊर्जा का संतुलन बना रहता है, जिससे वहाँ सुख, शांति, प्रगति और सौहार्द का माहौल उत्पन्न होता है। वास्तु-शास्त्र के सिद्धांत ठोस वैज्ञानिक तथ्यों पर टिके हुए हैं, जिनका प्रयोग जीवन को सही दिशा देने और अधिकतम फल प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। इन सिद्धांतों के आधार पर यदि भवन बनाया जाए और वहाँ रहते या कार्य करते समय कुछ छोटी-छोटी बातों को ध्यान में रखें, तो निश्चित ही बहुत अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं। आइए, चर्चा करते हैं ऐसे ही कुछ सिद्धांतों की, जो जीवन को सुखमय और आनंदपूर्ण बनाने के लिए ज़रूरी हैं। वास्तु शास्त्र में पेड़-पौधों को बहुत महत्व दिया गया है। वास्तु के अनुसार मज़बूत तने वाले या ऊँचे-ऊँचे पौधे उत्तर-पूर्व, उत्तर व पूर्व दिशा में ही होने चाहिए। घर के आस-पास या घर के अन्दर कैक्टस, कीकर, बेरी या अन्य कांटेदार पौधे व दूध वाले पौधे लगाने से घर के लोग तनावग्रस्त, चिड़चिड़े स्वभाव के हो जाते हैं और ऐसे पौधे स्त्रियों के स्वास्थ्य को हानि पहुँचाते हैं। घर में तेज़ ख़ुश्बूदार पौधों को नहीं लगाना चाहिए। साथ ही घर में चौड़े पत्ते वाले पौधे, बोनसाई व नीचे की तरफ़ झुकी बेलें नहीं लगानी चाहिए। पौधे लगाते समय ध्यान रखें कि पौधे सही प्रकार बढ़ें, सूखें नहीं और सूखने पर उन्हें तुरन्त बदल दें। घर में फलदार पौधे लगाना भी कभी-कभी हानिकारक हो सकता है, क्योंकि जिस वर्ष फलदार पौधे पर फल कम लगें या न लगें, इस वर्ष आपको नुक़सान या परेशानी का सामना ज़्यादा करना पड़ेगा। *समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*💐💐🙏🙏💐💐 घर में तुलसी का पौधा उत्तर-पूर्व या पूर्व दिशा में रखें और तुलसी का पौधा ज़मीन से कुछ ऊँचाई पर ही लगाना उचित है। तुलसी के पौधे पर कलावा व लाल चुन्नियाँ आदि नहीं बांधनी चाहिए। त�

*कहानी* *🌻भगवान् की कृपा🌻* *एक राजा था। उसका मन्त्री भगवान का भक्त था। कोई भी बात होती तो वह यही कहता कि भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! एक दिन राजा के बेटे की मृत्यु हो गयी। मृत्यु का समाचार सुनते ही मन्त्री बोल उठा - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! यह बात राजा को बुरी तो लगी, पर वह चुप रहा।* *कुछ दिनों के बाद राजा की पत्नी की भी मृत्यु हो गयी। मन्त्रीने कहा - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! राजा को गुस्सा आया, पर उसने गुस्सा पी लिया, कुछ बोला नहीं।* *एक दिन राजाके पास एक नयी तलवार बनकर आयी। राजा अपनी अंगुली से तलवार की धार देखने लगा तो धार बहुत तेज होने के कारण चट उसकी अँगुली कट गयी! मन्त्री पास में ही खड़ा था । वह बोला- भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! अब राजा के भीतर जमा गुस्सा बाहर निकला और उसने तुरन्त मन्त्री को राज्य से बाहर निकल जाने का आदेश दे दिया और कहा कि मेरे राज्य में अन्न-जल ग्रहण मत करना। मन्त्री बोला - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी!* *मन्त्री अपने घर पर भी नहीं गया, साथ में कोई वस्तु भी नहीं ली और राज्य के बाहर निकल गया।* *कुछ दिन बीत गये। एक बार राजा अपने साथियों के साथ शिकार खेलने के लिये जंगल गया , जंगल में एक हिरण का पीछा करते-करते राजा बहुत दूर घने जंगल में निकल गया।उसके सभी साथी बहुत पीछे छूट गये वहाँ जंगल में डाकुओं का एक दल रहता था। उस दिन डाकुओं ने कालीदेवी को एक मनुष्य की बलि देने का विचार किया हुआ था। संयोग से डाकुओं ने राजा को देख लिया।उन्होंने राजा को पकड़कर बाँध दिया। अब उन्होंने बलि देने की तैयारी शुरू कर दी। जब पूरी तैयारी हो गयी, तब डाकुओं के पुरोहित ने राजा से पूछा- तुम्हारा बेटा जीवित है? राजा बोला- नहीं, वह मर गया। पुरोहित ने कहा कि इसका तो हृदय जला हुआ है। पुरोहित ने फिर पूछा-तुम्हारी पत्नी जीवित है? राजा बोला - वह भी मर चुकी है। पुरोहित ने कहा कि यह तो आधे अंग का है । अत: यह बलि के योग्य नहीं है। परन्तु हो सकता है कि यह मरने के भय से झूठ बोल रहा हो! पुरोहित ने राजा के शरीर की जाँच की तो देखा,कि उसकी अँगुली कटी हुई है। पुरोहित बोला-अरे! यह तो अंग-भंग है, बलि के योग्य नहीं है ! छोड़ दो इसको ! डाकुओं ने राजा को छोड़ दिया।* *राजा अपने घर लौट आया। लौटते ही उसने अपने आदमियों को आज्ञा दी कि हमारा मन्त्री जहाँ भी हो, उसको तुरन्त ढूँढ़कर हमारे पास लाओ। जब तक मन्त्री वापस नहीं आयेगा, तबतक मैं अन्न ग्रहण नहीं करूँगा।* *राजा के आदमियों ने मन्त्री को ढूँढ़ लिया और उससे तुरन्त राजा के पास वापस चलने की प्रार्थना की। मन्त्री ने कहा - भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी! मन्त्री राजा के सामने उपस्थित हो गया । राजा ने बड़े आदरपूर्वक मन्त्री को बैठाया और अपनी भूल पर पश्चात्ताप करते हुए जंगल वाली घटना सुनाकर कहा कि 'पहले मैं तुम्हारी बात को समझा नहीं। अब समझमें आया कि भगवान् की मेरे पर कितनी कृपा थी! भगवान् की कृपा से अगर मेरी अँगुली न कटता तो उस दिन मेरा गला कट जाता! परन्तु जब मैंने तुम्हें राज्य से निकाल दिया, तब तुमने कहा कि भगवान् की बड़ी कृपा हो गयी तो वह कृपा क्या थी, यह अभी मेरी समझ में नहीं आया !* *मन्त्री बोला-महाराज, जब आप शिकार करने गये, तब मैं भी आपके साथ जंगल में जाता। आपके साथ मैं भी जंगल में बहुत दूर निकल जाता; क्योंकि मेरा घोड़ा आपके घोड़े से कम तेज नहीं है। डाकू लोग आपके साथ मेरे को भी पकड़ लेते। आप तो अँगुली कटी होने के कारण बच जाते पर मेरा तो उस दिन गला कट ही जाता! इसलिये भगवान की कृपा से मैं आपके साथ नहीं था, राज्य से बाहर था; अत: मरने से बच गया।* *अब पुन: अपनी जगह वापस आ गया हूँ। यह भगवान् की कृपा ही तो है!* *कहानी का सार यह है कि आज कल मनुष्य को सुविधा भोगने की इतनी बुरी आदत हो गयी है की थोड़ी सी भी विपरीत परिस्थिति में विचलित हो जाता है ,कई बार तो भगवान के अस्तित्त्व को भी नकारने लगता है उनके लिये यही संदेश है कि उस परमात्मा ने जब हम जन्म दिया है तो हमारा योगक्षेम भी वहां करने की जिम्मेदारी उसी की है बस हमे उसके प्रति निष्ठा बनाये रखनी होगी जैसे एक पिता के दो पुत्र हो एक कपूत दूसरा सपूत फिर भी पिता होने के नाते उसे दोनो की ही फिक्र रहेगी परंतु किसी भी कार्य अथवा सहयोग में प्राथमिकता सपूत को ही दी जाएगीु।* *इसी प्रकार हमें उस परमात्मा के प्रति निष्ठा बनाये रखनी होगी सुख दुख जीवन में धूप छांया की तरह बने रहते है कभी स्थायी नही रहते हमारे अंदर उनको व्यतीत करके का धैर्य जगाना होगा और यह केवल परमात्मा की भक्ति से ही संभव है।* *वनिता पंजाब*🌷🌷🌷 *जय श्री राम जय श्री कृष्ण*

GST के नाम पर किसी ने आपसे वसूले ज्यादा पैसे, तो यहां करें शिकायत GST complaint helpline number अगर कोई भी दुकानदार, कंपनी या कारोबारी आपसे जीएसटी के नाम पर ज्यादा पैसे ले रहा है तो अब आप इसकी शिकायत सीधे सरकार को कर सकते हैं। सरकार की नेशनल एंटी प्रॉफियटरिंग अथॉरिटी (एनएए) ने हेल्पलाइन नंबर की शुरुआत की है, जहां कन्ज्यूमर ऐसे मामलों की शिकायत कर सकते हैं। ऐसे मामलों पर सरकार तुरंत कार्रवाई करेगी। *समाजसेवी वनिता कासनियां पंजाब*🌷🙏🙏🌷 नई दिल्ली.अगर कोई भी दुकानदार, कंपनी या कारोबारी आपसे जीएसटी के नाम पर ज्यादा पैसे ले रहा है तो अब आप इसकी शिकायत सीधे सरकार को कर सकते हैं। सरकार की नेशनल एंटी प्रॉफियटरिंग अथॉरिटी (एनएए) ने हेल्पलाइन नंबर की शुरुआत कर दी है, जहां कंज्यूमर ऐसे मामलों की शिकायत कर सकते हैं। ऐसे मामलों पर सरकार तुरंत कार्रवाई करेगी। कंज्यूमर कर सकता है शिकायत आपको जीएसटी रेट कट का बेनेफिट नहींं दे रहा है तो आप इसकी शिकायत हेल्पलाइन नंबर पर कर सकते हैं। सरकार ने जीएसटी के तहत की प्रोडक्ट पर टैक्स रेट कम किए हैं और कंपनियों को कीमतें नए टैक्स स्ट्रक्चर के तहत कीमतें कम करने के लिए कहा है। अगर कंज्यूमर को लगता है कि कंपनियों या दुकानदार ने दाम नहीं घटाए हैं तो आप इसकी शिकायत कर सकते हैं। ये हेल्पलाइन नंबर एनएए ने नया हेल्पलाइन नंबर *1800-103-4786+1800-1200-232* ਹੈजारी किया है। यहां कन्ज्यूमर अपनी शिकायत दर्ज कर सकते हैं। इन नंबर पर फोन करके आप जीएसटी को लेकर कोई भी जानकारी ले सकते हैं। अपनी शिकायत का समाधान भी हेल्पलाइन पर फोन करके निकाल सकते हैं।

सुषुम्ना को प्राणायाम से कैसे जगाएं, जानिए *वनिता पंजाब* 🌹🙏🙏🌹 कबहु इडा स्वर चलत है कभी पिंगला माही। सुष्मण इनके बीच बहत है गुर बिन जाने नाही।। बहुत छोटी-सी बात है, लेकिन समझने में उम्र बीत जाती है। हमारे रोगी और निरोगी रहने का राज छिपा है हमारी श्वासों में। व्यक्ति उचित रीति से श्वास लेना भूल गया है। हम जिस तरीके और वातावरण में श्वास लेते हैं उसे हमारी इड़ा और पिंगला नाड़ी ही पूर्ण रूप से सक्रिय नहीं हो पाती तो सुषुम्ना कैसे होगी? दोनों नाड़ियों के सक्रिय रहने से किसी भी प्रकार का रोग और शोक नहीं सताता और यदि हम प्राणायाम के माध्यम से सुषुम्ना को सक्रिय कर लेते हैं, तो जहां हम श्वास-प्रश्वास की उचित विधि से न केवल स्वस्थ, सुंदर और दीर्घजीवी बनते हैं, वहीं हम सिद्ध पुरुष बनाकर ईश्वरानुभूति तक कर सकते हैं। मनुष्य के दोनों नासिका छिद्रों से एकसाथ श्वास-प्रश्वास कभी नहीं चलती है। कभी वह बाएं तो कभी दाएं नासिका छिद्र से श्वास लेता और छोड़ता है। बाएं नासिका छिद्र में इडा यानी चंद्र नाड़ी और दाएं नासिका छिद्र में पिंगला यानी सूर्य नाड़ी स्थित है। इनके अलावा एक सुषुम्ना नाड़ी भी होती है जिससे श्वास प्राणायाम और ध्यान विधियों से ही प्रवाहित होती है। प्रत्येक 1 घंटे के बाद यह 'श्वास' नासिका छिद्रों में परिवर्तित होते रहती है। शिवस्वरोदय ज्ञान के जानकार योगियों का कहना है कि चंद्र नाड़ी से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होने पर वह मस्तिष्क को शीतलता प्रदान करती है। चंद्र नाड़ी से ऋणात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। जब सूर्य नाड़ी से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होती है तो शरीर को ऊष्मा प्राप्त होती है यानी गर्मी पैदा होती है। सूर्य नाड़ी से धनात्मक ऊर्जा प्रवाहित होती है। प्राय: मनुष्य उतनी गहरी श्वास नहीं लेता और छोड़ता है जितनी एक स्वस्थ व्यक्ति के लिए जरूरी होती है। प्राणायाम मनुष्य को वह तरीका बताता है जिससे मनुष्य ज्यादा गहरी और लंबी श्वास ले और छोड़ सकता है। अनुलोम-विलोम प्राणायाम की विधि से दोनों नासिका छिद्रों से बारी-बारी से वायु को भरा और छोड़ा जाता है। अभ्यास करते-करते एक समय ऐसा आ जाता है, जब चंद्र और सूर्य नाड़ी से समान रूप से श्वास-प्रश्वास प्रवाहित होने लगती है। उस अल्पकाल में सुषुम्ना नाड़ी से श्वास प्रवाहित होने की अवस्था को ही 'योग' कहा जाता है। प्राणायाम का मतलब है- प्राणों का विस्तार। दीर्घ श्वास-प्रश्वास से प्राणों का विस्तार होता है। एक स्वस्थ मनुष्य को 1 मिनट में 15 बार सांस लेनी चाहिए। इस तरह 1 घंटे में उसके श्वासों की संख्या 900 और 24 घंटे में 21,600 होनी चाहिए। स्वर विज्ञान के अनुसार चंद्र और सूर्य नाड़ी से श्वास-प्रश्वास के जरिए कई तरह के रोगों को ठीक किया जा सकता है। उदाहरण के लिए यदि चंद्र नाड़ी से श्वास-प्रश्वास को प्रवाहित किया जाए तो रक्तचाप, हाई ब्लड प्रेशर सामान्य हो जाता है।

 🌺 जानिए किस देवता के तेज से देवी दुर्गा के कौन से अंग बने 🌺 भगवान शंकर के तेज से देवी का मुख प्रकट हुआ।  यमराज के तेज से मस्तक के केश।  भगवान विष्णु के तेज से भुजाएं।  चंद्रमा के तेज से स्तन।  इंद्र के तेज से कमर।  वरुण के तेज से जंघा।  पृथ्वी के तेज से नितंब।  ब्रह्मा के तेज से चरण।  सूर्य के तेज से दोनों पौरों की अंगुलियां,  प्रजापति के तेज से सारे दांत।  अग्नि के तेज से दोनों नेत्र।  संध्या के तेज से भौंहें।  वायु के तेज से कान।  अन्य देवताओं के तेज से देवी के भिन्न-भिन्न अंग बने हैं।  कहा जाता है कि फिर शिवजी ने उस महाशक्ति को अपना त्रिशूल दिया, लक्ष्मीजी ने कमल का फूल, विष्णु ने चक्र, अग्नि ने शक्ति व बाणों से भरे तरकश, प्रजापति ने स्फटिक मणियों की माला, वरुण ने दिव्य शंख, हनुमानजी ने गदा, शेषनागजी ने मणियों से सुशोभित नाग, इंद्र ने वज्र, भगवान राम ने धनुष, वरुण देव ने पाश व तीर, ब्रह्माजी ने चारों वेद तथा हिमालय पर्वत ने सवारी के लिए सिंह को प्रदान किया।  इसके अतिरिक्त समुद्र ने बहुत उज्ज्वल हार, क...
  ਬਲੌਗਰ ਸਮਗਰੀ ਨੀਤੀ ਬਲੌਗਰ ਇੱਕ ਮੁਫਤ ਸੇਵਾ ਹੈ ਜੋ ਇੱਕ ਵਿਅਕਤੀ ਨੂੰ ਆਪਣੇ ਵਿਚਾਰਾਂ ਨੂੰ ਲੋਕਾਂ ਤੱਕ ਪਹੁੰਚਾਉਣ ਦੀ ਆਗਿਆ ਦਿੰਦੀ ਹੈ.  ਸਾਡਾ ਮੰਨਣਾ ਹੈ ਕਿ ਇਹ ਵੱਧ ਤੋਂ ਵੱਧ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪ੍ਰਦਾਨ ਕਰਦਾ ਹੈ ਅਤੇ ਅਜਿਹੀ ਬਹਿਸ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਤ ਕਰਦਾ ਹੈ ਜਿਸ ਦੁਆਰਾ ਲੋਕ ਕੁਝ ਨਵਾਂ ਸਿੱਖਦੇ ਹਨ.  ਨਾਲ ਹੀ, ਇਹ ਸੇਵਾ ਨਵੇਂ ਲੋਕਾਂ ਨਾਲ ਜੁੜਨ ਦਾ ਵੀ ਇੱਕ ਮੌਕਾ ਦਿੰਦੀ ਹੈ.  ਅਸੀਂ ਇਹ ਵੀ ਮੰਨਦੇ ਹਾਂ ਕਿ ਇਸ 'ਤੇ ਸਮੱਗਰੀ ਨੂੰ ਸੈਂਸਰ ਕਰਨਾ ਸਮੀਕਰਨ ਦੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਦੇ ਵਿਰੁੱਧ ਹੈ. ਹਾਲਾਂਕਿ, ਇਹਨਾਂ ਕਦਰਾਂ ਕੀਮਤਾਂ ਨੂੰ ਬਰਕਰਾਰ ਰੱਖਣ ਲਈ, ਸਾਨੂੰ ਉਨ੍ਹਾਂ ਦੁਰਵਰਤੋਂ ਨੂੰ ਨਿਯੰਤਰਿਤ ਕਰਨਾ ਪਏਗਾ ਜੋ ਸਾਡੀ ਇਸ ਸੇਵਾ ਨੂੰ ਦੇਣ ਦੀ ਸਾਡੀ ਯੋਗਤਾ ਅਤੇ ਪ੍ਰਗਟਾਵੇ ਦੀ ਆਜ਼ਾਦੀ ਨੂੰ ਉਤਸ਼ਾਹਤ ਕਰਨ ਵਾਲੇ ਖਤਰੇ ਨੂੰ ਖ਼ਤਰੇ ਵਿੱਚ ਪਾਉਂਦੀਆਂ ਹਨ.  ਨਤੀਜੇ ਵਜੋਂ, ਸਮੱਗਰੀ ਦੀਆਂ ਕਿਸਮਾਂ ਦੀਆਂ ਕੁਝ ਸੀਮਾਵਾਂ ਹਨ ਜੋ ਬਲੌਗਰ ਨਾਲ ਹੋਸਟ ਕੀਤੀਆਂ ਜਾ ਸਕਦੀਆਂ ਹਨ.  ਉਹ ਸੀਮਾਵਾਂ ਜੋ ਅਸੀਂ ਨਿਰਧਾਰਤ ਕੀਤੀਆਂ ਹਨ ਕਨੂੰਨੀ ਜ਼ਰੂਰਤਾਂ ਦੀ ਪਾਲਣਾ ਕਰਨ ਦੇ ਨਾਲ ਨਾਲ ਸਮੁੱਚੀ ਸੇਵਾ ਵਿੱਚ ਸੁਧਾਰ. ਸਾਨੂੰ ਪੂਰਾ ਵਿਸ਼ਵਾਸ ਹੈ ਕਿ ਬਲਾੱਗ ਨੂੰ ਪੜ੍ਹਨ ਵਾਲੇ ਲੋਕ ਬਲਾਗਰ ਦੇ ਸਮੂਹ ਦਿਸ਼ਾ-ਨਿਰਦੇਸ਼ਾਂ ਦੀ ਉਲੰਘਣਾ ਕਰਨ ਵਾਲੀ ਸਮਗਰੀ ਬਾਰੇ ਸ਼ਿਕਾਇਤ ਕਰਨਗੇ.  ਜੇ ਤੁਸੀਂ ਇਕ ਪੋਸਟ ਦੇਖਦੇ ਹੋ ਜਿਸ ਬਾਰੇ ਤੁਹਾਨੂੰ ਲੱਗਦਾ ਹੈ ਕ...
 वास्तु शास्त्र के अनुसार पूर्व और उत्तर दिशाएं जहां पर मिलती हैं उस स्थान को ईशान कोण कहते हैं।  वास्तु शास्त्र में इस स्थान को सबसे पवित्र माना गया है। भगवान शिव का एक नाम ईशान भी है। भगवान शिव का आधिपत्य उत्तर-पूर्व दिशा में होता है। इस दिशा के स्वामी ग्रह बृहस्पति और केतु माने गए है। घर का ये हिस्सा सबसे पवित्र होता है इसलिए ईशान में सभी देवी और देवताओं का वास होता है। यही कारण है कि इस दिशा को सबसे शुभ माना गया है। इसे साफ-स्वच्छ और खाली रखा जाना चाहिए। लेकिन क्या आप ये जानते है कि आपकी नौकरी और बिजनेस की तरक्की ये दिशा ही तय करती है ईशान कोण में न रखने वाले सामान: ईशान कोण में कोई नुकीली चीज तथा झाडू भी नहीं रखना चाहिए वरना धन हानि होती है। घर या ऑफिस के इस हिस्से में बैठक व्यवस्था नहीं होनी चाहिए। इस स्थान पर कूड़ा-कचरा नहीं होना चाहिए। ऐसा होने पर नौकरी-पेशे में रूकावट आती है। ईशान कोण में स्टोररुम और टॉयलेट नहीं होना चाहिए। इससे कार्यों में रूकावट आती है। किचन और बेडरुम इस दिशा में होने से वास्तुदोष बनता है। लोहे का कोई भारी भी इस दिशा में नहीं होना चाहिए। सिंक या वॉश...
  ਸਹਾਇਤਾ ਕੇਂਦਰ ਘੋਸ਼ਣਾਵਾਂ ਕੋਵਿਡ -19 ਨੂੰ ਧਿਆਨ ਵਿਚ ਰੱਖਦਿਆਂ, ਅਸੀਂ ਗੂਗਲ ਦੇ ਸਹਾਇਤਾ ਮਾਹਰਾਂ ਨੂੰ ਸਿਹਤ ਦੇ ਖਤਰਿਆਂ ਤੋਂ ਬਚਾਉਣ ਲਈ ਕੁਝ ਮਹੱਤਵਪੂਰਨ ਕਦਮ ਚੁੱਕੇ ਹਨ.  ਇਸ ਲਈ, ਕੁਝ ਸਹਾਇਤਾ ਸਹੂਲਤਾਂ ਉਪਲਬਧ ਨਹੀਂ ਹੋ ਸਕਦੀਆਂ ਹਨ ਜਾਂ ਉਨ੍ਹਾਂ ਵਿੱਚ ਦੇਰੀ ਹੋ ਸਕਦੀ ਹੈ.  ਅਸੀਂ ਹੋਣ ਵਾਲੀ ਕਿਸੇ ਵੀ ਪ੍ਰੇਸ਼ਾਨੀ ਲਈ ਮੁਆਫੀ ਚਾਹੁੰਦੇ ਹਾਂ.  ਇਸ ਸਮੇਂ ਦੌਰਾਨ ਤੁਹਾਡੇ ਸਬਰ ਲਈ ਧੰਨਵਾਦ.  ਜਿਵੇਂ ਹੀ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚ ਸੁਧਾਰ ਹੁੰਦਾ ਹੈ, ਇਹ ਸੰਦੇਸ਼ ਅਪਡੇਟ ਹੋ ਜਾਵੇਗਾ. ਘੋਸ਼ਣਾਵਾਂ ਤੁਹਾਡੀ ਸਾਈਟ ਤੇ ਗੂਗਲ ਦੇ ਸਰਚ ਇੰਜਨ ਨੂੰ ਜੋੜਨਾ 2020-11-11 ਹੁਣ ਗੂਗਲ ਦੇ ਸਰਚ ਇੰਜਨ ਨੂੰ ਆਪਣੀ ਸਾਈਟ ਵਿਚ ਸ਼ਾਮਲ ਕਰਨਾ ਅਤੇ ਤੁਹਾਡੇ ਖੋਜ ਨਤੀਜਿਆਂ ਦੇ ਪੰਨਿਆਂ 'ਤੇ ਕੰਮ ਦੇ ਵਿਗਿਆਪਨ ਪ੍ਰਦਰਸ਼ਤ ਕਰਕੇ ਪੈਸਾ ਕਮਾਉਣਾ ਸੌਖਾ ਹੋ ਗਿਆ ਹੈ.  ਅਸੀਂ ਐਡਸੈਂਸ ਸਰਚ ਇੰਜਨ ਦੀ ਵਿਸ਼ੇਸ਼ਤਾ ਲਈ ਹੇਠ ਦਿੱਤੇ ਸੁਧਾਰ ਕੀਤੇ ਹਨ: ਅਸੀਂ ਖੋਜ ਇੰਜਣਾਂ ਨੂੰ ਬਣਾਉਣ ਵਿਚ ਇਸ ਪ੍ਰਕਿਰਿਆ ਨੂੰ ਤੇਜ਼ ਅਤੇ ਅਸਾਨ ਬਣਾਇਆ ਹੈ.  ਅਸੀਂ ਇਸ਼ਤਿਹਾਰ ਦੀ ਝਲਕ ਵੇਖੀ ਹੈ, ਤਾਂ ਜੋ ਤੁਸੀਂ ਵੇਖ ਸਕੋ ਕਿ ਇਹ ਲਾਈਵ ਹੋਣ ਤੋਂ ਪਹਿਲਾਂ ਤੁਹਾਡੇ ਖੋਜ ਨਤੀਜਿਆਂ ਦੇ ਪੰਨੇ ਤੇ ਕਿਵੇਂ ਦਿਖਾਈ ਦੇਵੇਗਾ.  ਖੋਜ ਇੰਜਨ ਬਣਾਉਣ ਲਈ ਹੁਣ ਤੁਹਾਨੂੰ ਐਡਸੈਂਸ ਲਈ ਸਾਈਨ ਅਪ ਕਰਨ ਦੀ ਜ਼ਰੂਰਤ ਨਹੀਂ ਹੈ.  ਹੁਣ ਤੁਸੀਂ ਐਡ ਖਾਸ ਜਾਣਕਾਰੀ ਪੰਨੇ ਦ...